सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ ता॰ सीन॰। ये आयतें हैं क़ुरआन और एक स्पष्ट किताब की। (1)
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☆ मार्गदर्शन है और शुभ-सूचना उन ईमानवालों के लिए, (2)
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☆ जो नमाज़ का आयोजन करते हैं और ज़कात देते हैं और वही है जो आख़िरत पर विश्वास रखतेहैं। (3)
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☆ रहे वे लोग जो आख़िरत को नहीं मानते, उनके लिए हमने उनकी करतूतों को शोभायमान बना दिया है। अतः वे भटकते फिरते हैं। (4)
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☆ वही लोग हैं, जिनके लिए बुरी यातना है और वही हैं जो आख़िरत में अत्यन्त घाटे में रहेंगे। (5)
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☆ निश्चय ही तुम यह क़ुरआन एक बड़े तत्वदर्शी, ज्ञानवान (प्रभु) की ओर से पा रहे हो। (6)
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☆ याद करो जब मूसा ने अपने घरवालों से कहा कि "मैंने एक आग-सी देखी है। मैं अभी वहाँ से तुम्हारे पास कोई ख़बर लेकर आता हूँ या तुम्हारे पासकोई दहकता अंगारा लाता हूँ, ताकि तुम तापो।" (7)
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☆ फिर जब वह उसके पास पहुँचा तो उसे आवाज़ आई कि "मुबारक हैवह जो इस आग में है और जो इसके आस-पास है। महान और उच्च है अल्लाह, सारे संसार का रब! (8)
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☆ ऐ मूसा! वह तो मैं अल्लाह हूँ, अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी! (9)
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☆ तू अपनी लाठी डाल दे।" जब मूसा ने देखा कि वह बलखा रही है जैसेवह कोई साँप हो, तो वह पीठ फेरकर भागा और पीछे मुड़कर न देखा। "ऐ मूसा! डर मत। निस्संदेह रसूल मेरे पास डरा नहीं करते,(10)
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☆ सिवाय उसके जिसने कोई ज़्यादती की हो। फिर बुराई केपश्चात उसे भलाई से बदल दिया, तो मैं भी बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान हूँ। (11)
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☆ अपना हाथ अपने गिरेबान में डाल। वह बिना किसी ख़राबी के उज्जवल चमकता निकलेगा। ये नौ निशानियों में से है फ़िरऔन और उसकी क़ौम की ओर भेजने के लिए। निश्चय ही वे अवज्ञाकारी लोग हैं।"(12)
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☆ किन्तु जब आँखें खोल देनेवाली हमारी निशानियाँ उनके पास आईं तो उन्होंने कहा, "यह तो खुला हुआ जादू है।" (13)
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☆ उन्होंने ज़ुल्म और सरकशी से उनका इनकार कर दिया, हालाँकि उनके जी को उनका विश्वास हो चुका था। अब देख लो इन बिगाड़ पैदा करनेवालों का क्या परिणाम हुआ? (14)
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☆ हमने दाऊद और सुलैमान को बड़ा ज्ञान प्रदान किया था, (उन्होंने उसके महत्व को जाना) और उन दोनों ने कहा,"सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने हमें अपने बहुत-से ईमानवाले बन्दों के मुक़ाबलेमें श्रेष्ठता प्रदान की।" (15)
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☆ दाऊद का उत्तराधिकारी सुलैमान हुआ औऱ उसने कहा, "ऐ लोगो! हमें पक्षियों की बोली सिखाई गई है और हमें हर चीज़ दी गई है। निस्संदेह वह स्पष्ट बड़ाई है।" (16)
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☆ सुलैमान के लिए जिन्न और मनुष्य और पक्षियों मे से उसकी सेनाएँ एकत्र की गईं फिरउनकी दर्जाबन्दी की जा रही थी। (17)
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☆ यहाँ तक कि जब वे चींटियों की घाटी में पहुँचे तो एक चींटी ने कहा, "ऐ चींटियों! अपने घरों में प्रवेश कर जाओ।कहीं सुलैमान और उसकी सेनाएँ तुम्हें कुचल न डालें और उन्हें एहसास भी न हो।" (18)
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☆ तो वह उसकी बात पर प्रसन्न होकर मुस्कराया और कहा, "मेरे रब! मुझे संभाले रख कि मैं तेरी उस कृपा पर कृतज्ञता दिखाता रहूँ जो तूने मुझपर औरमेरे माँ-बाप पर की है। और यह कि अच्छा कर्म करूँ जो तुझे पसन्द आए और अपनी दयालुता से मुझे अपने अच्छे बन्दों में दाख़िल कर।"(19)
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☆ उसने पक्षियों की जाँच-पड़ताल की तो कहा, "क्या बात है कि मैं हुदहुद को नहीं देख रहा हूँ, (वह यहीं कहीं है)या वह ग़ायब हो गया है? (20)
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☆ मैं उसे कठोर दंड दूँगा या उसे ज़बह ही कर डालूँगा या फिर वह मेरे सामने कोई स्पष्टकारण प्रस्तुत करे।" (21)
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☆ फिर कुछ अधिक देर नहीं ठहरा कि उसने आकर कहा, "मैंने वह जानकारी प्राप्त की है जो आपको मालूम नहीं है। मैं सबा से आपके पास एक विश्वसनीय सूचना लेकर आया हूँ। (22)
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☆ मैंने एक स्त्री को उनपर शासन करते पाया है। उसे हर चीज़ प्राप्त है और उसका एक बड़ा सिंहासन है। (23)
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☆ मैंने उसे और उसकी क़ौम के लोगों को अल्लाह से इतर सूर्यको सजदा करते हुए पाया। शैतानने उनके कर्मों को उनके लिए शोभायमान बना दिया है और उन्हें मार्ग से रोक दिया है -अतः वे सीधा मार्ग नहीं पा रहे हैं। - (24)
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☆ कि अल्लाह को सजदा न करें जो आकाशों और धरती की छिपी चीज़ें निकालता है, और जानता है जो कुछ भी तुम छिपाते हो औरजो कुछ प्रकट करते हो। (25)
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☆ अल्लाह कि उसके सिवा कोई इष्ट -पूज्य नहीं, वह महान सिंहासन का रब है।" (26)
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☆ उसने कहा, "अभी हम देख लेतेहैं कि तूने सच कहा या तू झूठाहै। (27)
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☆ मेरा यह पत्र लेकर जा, और इसे उन लोगों की ओर डाल दे। फिर उनके पास से अलग हटकर देख कि वे क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं।" (28)
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☆ वह बोली, "ऐ सरदारो! मेरी ओरएक प्रतिष्ठित पत्र डाला गया है।(29)
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☆ वह सुलैमान की ओर से है और वह यह है कि ‘अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है। (30)
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☆ यह कि मेरे मुक़ाबले में सरकशी न करो और आज्ञाकारी बनकर मेरे पास आओ’।" (31)
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☆ उसने कहा, "ऐ सरदारो! मेरे मामले में मुझे परामर्श दो। मैं किसी मामले का फ़ैसला नहीं करती, जब तक कि तुम मेरे पास मौजूद न हो।"(32)
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☆ उन्होंने कहा, "हम शक्तिशाली हैं और हमें बड़ी युद्ध-क्षमता प्राप्त है। आगे मामले का अधिकार आपको है, अतः आप देख लें कि आपको क्या आदेश देना है।" (33)
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☆ उसने कहा, "सम्राट जब किसी बस्ती में प्रवेश करते हैं, तो उसे ख़राब कर देते हैं और वहाँ के प्रभावशाली लोगों को अपमानित करके रहते हैं। और वेऐसा ही करेंगे। (34)
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☆ मैं उनके पास एक उपहार भेजती हूँ; फिर देखती हूँ कि दूत क्या उत्तर लेकर लौटते हैं।" (35)
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☆ फिर जब वह सुलैमान के पास पहुँचा तो उसने (सुलैमान ने) कहा, "क्या तुम माल से मेरी सहायता करोगे, तो जो कुछ अल्लाह ने मुझे दिया है वह उससे कहीं उत्तम है, जो उसने तुम्हें दिया है? बल्कि तुम्ही लोग हो जो अपने उपहार से प्रसन्न होते हो! (36)
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☆ उनके पास वापस जाओ। हम उनपर ऐसी सेनाएँ लेकर आएँगे, जिनका मुक़ाबला वे न कर सकेंगे और हम उन्हें अपमानित करके वहाँ से निकाल देंगे कि वे पस्त होकर रहेंगे।" (37)
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☆ उसने (सुलैमान ने) कहा, "ऐ सरदारो! तुममें कौन उसका सिंहासन लेकर मेरे पास आता है, इससे पहले कि वे लोग आज्ञाकारी होकर मेरे पास आएँ?" (38)
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☆ जिन्नों में से एक बलिष्ठ निर्भीक ने कहा, "मैं उसे आपकेपास ले आऊँगा। इससे पहले कि आप अपने स्थान से उठें। मुझे इसकी शक्ति प्राप्त है और मैंअमानतदार भी हूँ।"(39)
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☆ जिस व्यक्ति के पास किताब का ज्ञान था, उसने कहा, "मैं आपकी पलक झपकने से पहले उसे आपके पास लाए देता हूँ।" फिर जब उसने उसे अपने पास रखा हुआ देखा तो कहा, "यह मेरे रब का उदार अनुग्रह है, ताकि वह मेरी परीक्षा करे कि मैं कृतज्ञता दिखाता हूँ या कृतघ्न बनता हूँ। जो कृतज्ञता दिखलाता है तो वह अपने लिए ही कृतज्ञता दिखलाता है और वह जिसने कृतघ्नता दिखाई, तो मेरा रब निश्चय ही निस्पृह, बड़ा उदारहै।" (40)
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☆ उसने कहा कि, "उसके लिए उसके सिंहासन का रूप बदल दो। देखें वह वास्तविकता को पा लेती है या उन लोगों में से होकर रह जाती है, जो वास्तविकता को नहीं पाते।"(41)
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☆ जब वह आई तो कहा गया, "क्या तुम्हारा सिंहासन ऐसा ही है?"उसने कहा, "यह तो जैसे वही है, और हमें तो इससे पहले ही ज्ञान प्राप्त हो चुका था; और हम आज्ञाकारी हो गए थे।" (42)
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☆ अल्लाह से हटकर वह दूसरे को पूजती थी। इसी चीज़ ने उसे रोक रखा था। निस्संदेह वह एक इनकार करनेवाली क़ौम में से थी। (43)
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☆ उससे कहा गया कि "महल में प्रवेश करो।" तो जब उसने उसे देखा तो उसने उसको गहरा पानी समझा और उसने अपनी दोनों पिंडलियाँ खोल दीं। उसने कहा,"यह तो शीशे से निर्मित महल है।" बोली, "ऐ मेरे रब! निश्चय ही मैंने अपने आपपर ज़ुल्म किया। अब मैंने सुलैमान के साथ अपने आपको अल्लाह के समर्पित कर दिया, जो सारे संसार का रब है।"(44)
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☆ और समूद की ओर हमने उनके भाई सालेह को भेजा कि "अल्लाह की बन्दगी करो।" तो क्या देखते हैं कि वे दो गिरोह होकर आपस में झगड़ने लगे। (45)
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☆ उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो, तुम भलाई से पहले बुराई के लिए क्यों जल्दी मचा रहे हो? तुम अल्लाह से क्षमा याचना क्यों नहीं करते? कदाचित तुमपर दया की जाए।"(46)
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☆ उन्होंने कहा, "हमने तुम्हें और तुम्हारे साथवालों को अपशकुन पाया है।"उसने कहा, "तुम्हारा शकुन-अपशकुन तो अल्लाह के पासहै, बल्कि बात यह है कि तुम लोग आज़माए जा रहे हो।" (47)
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☆ नगर में नौ जत्थेदार थे जो धरती में बिगाड़ पैदा करते थे, सुधार का काम नहीं करते थे। (48)
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☆ वे आपस में अल्लाह की क़समें खाकर बोले, "हम अवश्य उसपर और उसके घरवालों पर रात को छापा मारेंगे। फिर उसके वली (परिजन) से कह देंगे कि हम उसके घरवालों के विनाश के अवसर पर मौजूद न थे। और हम बिलकुल सच्चे हैं।" (49)
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☆ वे एक चाल चले और हमने भी एक चाल चली और उन्हें ख़बर तक न हुई। (50)
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☆ अब देख लो, उनकी चाल का कैसा परिणाम हुआ! हमने उन्हेंऔर उनकी क़ौम - सबको विनष्ट करके रख दिया। (51)
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☆ अब ये उनके घर उनके ज़ुल्म के कारण उजड़े पड़े हुए हैं। निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है उन लोगों के लिए जो जानना चाहें। (52)
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☆ और हमने उन लोगों को बचा लिया, जो ईमान लाए और डर रखते थे। (53)
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☆ और लूत को भी भेजा, जब उसने अपनी क़ौम के लोगों से कहा,"क्या तुम आँखों देखते हुए अश्लील कर्म करते हो? (54)
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☆ क्या तुम स्त्रियों को छोड़कर अपनी काम-तृप्ति के लिए पुरुषों के पास जाते हो? बल्कि बात यह है कि तुम बड़े ही जाहिल लोग हो।" (55)
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☆ परन्तु उसकी क़ौम के लोगोंका उत्तर इसके सिवा कुछ न था कि उन्होंने कहा, "निकाल बाहर करो लूत के घरवालों को अपनी बस्ती से। ये लोग सुथराई को बहुत पसन्द करते हैं!" (56)
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☆ अन्ततः हमने उसे और उसके घरवालों को बचा लिया सिवाय उसकी स्त्री के। उसके लिए हमने नियत कर दिया था कि वह पीछे रह जानेवालों में से होगी। (57)
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☆ और हमने उनपर एक बरसात बरसाई और वह बहुत ही बुरी बरसात थी उन लोगों के हक़ में,जिन्हें सचेत किया जा चुका था। (58)
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☆ कहो, "प्रशंसा अल्लाह के लिए है और सलाम है उसके उन बन्दों पर जिन्हें उसने चुन लिया। क्या अल्लाह अच्छा है या वे जिन्हें वे साझी ठहरा रहे हैं? (59)
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☆ (तुम्हारे पूज्य अच्छे हैं) या वह जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया और तुम्हारे लिए आकाश से पानी बरसाया; उसके द्वारा हमने रमणीय उद्यान उगाए? तुम्हारे लिए सम्भव न था कि तुम उनके वृक्षों को उगाते। - क्या अल्लाह के साथ कोई और प्रभु-पूज्य है? नहीं, बल्कि वही लोगमार्ग से हटकर चले जा रहे हैं!(60)
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☆ या वह जिसने धरती को ठहरने का स्थान बनाया और उसके बीच-बीच में नदियाँ बहाईं और उसके लिए मज़बूत पहाड़ बनाए और दो समुद्रों के बीच एक रोक लगा दी। क्या अल्लाह के साथ कोई और प्रभु पूज्य है? नहीं, उनमें से अधिकतर लोग जानते हीनहीं! (61)
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☆ या वह जो व्यग्र की पुकार सुनता है, जब वह उसे पुकारे औरतकलीफ़ दूर कर देता है और तुम्हें धरती में अधिकारी बनाता है? क्या अल्लाह के साथ कोई और पूज्य-प्रभु है? तुम ध्यान थोड़े ही देते हो। (62)
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☆ या वह जो थल और जल के अँधेरों में तुम्हारा मार्गदर्शन करता है और जो अपनी दयालुता के आगे हवाओं कोशुभ-सूचना बनाकर भेजता है? क्या अल्लाह के साथ कोई और प्रभु पूज्य है? उच्च है अल्लाह, उस शिर्क से जो वे करते हैं। (63)
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☆ या वह जो सृष्टि का आरम्भ करता है, फिर उसकी पुनरावृत्ति भी करता है, और जो तुमको आकाश और धरती से रोज़ी देता है? क्या अल्लाह के साथ कोई और प्रभु पूज्य है?कहो, "लाओ अपना प्रमाण, यदि तुम सच्चे हो।"(64)
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☆ कहो, "आकाशों और धरती में जो भी है, अल्लाह के सिवा किसीको भी परोक्ष का ज्ञान नहीं है। और न उन्हें इसकी चेतना प्राप्त है कि वे कब उठाए जाएँगे।" (65)
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☆ बल्कि आख़िरत के विषय में उनका ज्ञान पक्का हो गया है, बल्कि ये उसकी ओर से कुछ संदेह में हैं, बल्कि वे उससे अंधे हैं। (66)
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☆ जिन लोगों ने इनकार किया वे कहते हैं कि "क्या जब हम मिट्टी हो जाएँगे और हमारे बाप-दादा भी, तो क्या वास्तव में हम (जीवित करके) निकाले जाएँगे? (67)
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☆ इसका वादा तो इससे पहले भी किया जा चुका है, हमसे भी और हमारे बाप-दादा से भी। ये तो बस पहले लोगों की कहानियाँ हैं।"(68)
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☆ कहो कि "धरती में चलो-फिरो और देखो कि अपराधियों का कैसापरिणाम हुआ।" (69)
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☆ उनके प्रति शोकाकुल न हो और न उस चाल से दिल तंग हो, जो वे चल रहे हैं। (70)
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☆ वे कहते हैं, "यह वादा कब पूरा होगा, यदि तुम सच्चे हो?"(71)
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☆ कहो, "जिसकी तुम जल्दी मचा रहे हो बहुत सम्भव है कि उसका कोई हिस्सा तुम्हारे पीछे ही लगा हो।" (72)
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☆ निश्चय ही तुम्हारा रब तो लोगों पर उदार अनुग्रह करनेवाला है, किन्तु उनमें सेअधिकतर लोग कृतज्ञता नहीं दिखाते। (73)
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☆ निश्चय ही तुम्हारा रब भली-भाँति जानता है, जो कुछ उनके सीने छिपाए हुए हैं और जो कुछ वे प्रकट करते हैं। (74)
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☆ आकाश और धरती में छिपी कोई भी चीज़ ऐसी नहीं जो एक स्पष्ट किताब में मौजूद न हो।(75)
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☆ निस्संदेह यह क़ुरआन इसराईल की सन्तान को अधिकतर ऐसी बातें खोलकर सुनाता है जिनके विषय में उनमें मतभेद है। (76)
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☆ और निस्सन्देह यह तो ईमानवालों के लिए मार्गदर्शनऔर दयालुता है।(77)
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☆ निश्चय ही तुम्हारा रब उनके बीच अपने हुक्म से फ़ैसला कर देगा। वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, सर्वज्ञ है। (78)
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☆ अतः अल्लाह पर भरोसा रखो। निश्चय ही तुम स्पष्ट सत्य परहो। (79)
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☆ तुम मुर्दों को नहीं सुना सकते और न बहरों को अपनी पुकार सुना सकते हो, जबकि वे पीठ देकर फिरे भी जा रहें हो। (80)
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☆ और न तुम अंधों को उनकी गुमराही से हटाकर राह पर ला सकते हो। तुम तो बस उन्हीं को सुना सकते हो, जो हमारी आयतों पर ईमान लाना चाहें। अतः वही आज्ञाकारी होते हैं। (81)
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☆ और जब उनपर बात पूरी हो जाएगी, तो हम उनके लिए धरती काप्राणी सामने लाएँगे जो उनसे बातें करेगा कि "लोग हमारी आयतों पर विश्वास नहीं करते थे" (82)
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☆ और जिस दिन हम प्रत्येक समुदाय में से एक गिरोह, ऐसे लोगों का जो हमारी आयतों को झुठलाते हैं, घेर लाएँगे। फिरउनकी दर्जाबन्दी की जाएगी। (83)
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☆ यहाँ तक कि जब वे आ जाएँगे तो वह कहेगा, "क्या तुमने मेरीआयतों को झुठलाया, हालाँकि अपने ज्ञान से तुम उनपर हावी न थे या फिर तुम क्या करते थे?" (84)
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☆ और बात उनपर पूरी होकर रहेगी, इसलिए कि उन्होंने ज़ुल्म किया। अतः वे कुछ बोल न सकेंगे। (85)
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☆ क्या उन्होंने देखा नहीं कि हमने रात को (अँधेरी) बनाया, ताकि वे उसमें शान्ति और चैन प्राप्त करें। और दिन को प्रकाशमान बनाया (कि उसमेंकाम करें)? निश्चय ही इसमें उनलोगों के लिए निशानियाँ हैं, जो ईमान ले आएँ। (86)
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☆ और ख़याल करो जिस दिन सूर (नरसिंघा) में फूँक मारी जाएगी और जो आकाशों और धरती में हैं, घबरा उठेंगे, सिवाय उनके जिन्हें अल्लाह चाहे - और सब कान दबाए उसके समक्ष उपस्थित हो जाएँगे।(87)
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☆ और तुम पहाड़ों को देखकर समझते हो कि वे जमे हुए हैं, हालाँकि वे चल रहे होंगे, जिस प्रकार बादल चलते हैं। यह अल्लाह की कारीगरी है, जिसने हर चीज़ को सुदृढ़ किया। निस्संदेह वह उसकी ख़बर रखता है, जो कुछ तुम करते हो। (88)
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☆ जो कोई सुचरित लेकर आया उसको उससे भी अच्छा प्राप्त होगा; और ऐसे लोग घबराहट से उसदिन निश्चिन्त होंगे। (89)
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☆ और जो कुचरित लेकर आया तो ऐसे लोगों के मुँह आग में औंधे होंगे। (और उनसे कहा जाएगा) "क्या तुम उसके सिवा किसी और चीज़ का बदला पा रहे हो, जो तुम करते रहे हो?"(90)
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☆ मुझे तो बस यही आदेश मिला है कि इस नगर (मक्का) के रब की बन्दगी करूँ, जिसने इसे आदरणीय ठहराया और उसी की हर चीज़ है। और मुझे आदेश मिला है कि मैं आज्ञाकारी बनकर रहूँ। (91)
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☆ और यह कि क़ुरआन पढ़कर सुनाऊँ। अब जिस किसी ने संमार्ग ग्रहण किया वह अपने ही लिए संमार्ग ग्रहण करेगा। और जो पथभ्रष्ट रहा तो कह दो,"मैं तो बस एक सचेत करनेवाला ही हूँ।" (92)
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☆ और कहो, "सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है। जल्द ही वह तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखादेगा और तुम उन्हें पहचान लोगे। और तेरा रब उससे बेख़बरनहीं है, जो कुछ तुम सब कर रहे हो।" (93)
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