सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ हमने नूह को उसकी क़ौम की ओर भेजा कि "अपनी क़ौम के लोगों को सावधान कर दो, इससे पहले किउनपर कोई दुखद यातना आ जाए।" (1)
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☆ उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैं तुम्हारे लिए एक स्पष्ट सचेतकर्ता हूँ, (2)
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☆ कि ‘अल्लाह की बन्दगी करो और उसका डर रखो और मेरी आज्ञा मानो’।- (3)
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☆ वह तुम्हें क्षमा करके तुम्हारे गुनाहों से तुम्हेंपाक कर देगा और एक निश्चित समय तक तुम्हे मुहलत देगा। निश्चय ही जब अल्लाह का निश्चित समय आ जाता है तो वह टलता नहीं, काश कि तुम जानते!" (4)
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☆ उसने कहा, "ऐ मेरे रब! मैंने अपनी क़ौम के लोगों को रात और दिन बुलाया, (5)
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☆ किन्तु मेरी पुकार ने उनकेपलायन को ही बढ़ाया। (6)
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☆ और जब भी मैंने उन्हें बुलाया, ताकि तू उन्हें क्षमाकर दे, तो उन्होंने अपने कानों में अपनी उँगलियाँ दे लीं और अपने कपड़ों से स्वयं को ढाँक लिया और अपनी हठ पर अड़ गए और बड़ा ही घमंड किया। (7)
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☆ "फिर मैंने उन्हें खुल्लमखुल्ला बुलाया, (8)
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☆ फिर मैंने उनसे खुले तौर पर भी बातें कीं और उनसे चुपके-चुपके भी बातें कीं। (9)
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☆ और मैंने कहा, ‘अपने रब से क्षमा की प्रार्थना करो। निश्चय ही वह बड़ा क्षमाशील है, (10)
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☆ वह बादल भेजेगा तुमपर ख़ूबबरसनेवाला, (11)
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☆ और वह माल और बेटों से तुम्हें बढ़ोतरी प्रदान करेगा, और तुम्हारे लिए बाग़ पैदा करेगा और तुम्हारे लिए नहरें प्रवाहित करेगा। (12)
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☆ तुम्हें क्या हो गया है कि तुम (अपने दिलों में) अल्लाह के लिए किसी गौरव की आशा नहीं रखते? (13)
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☆ हालाँकि उसने तुम्हें विभिन्न अवस्थाओं से गुज़ारते हुए पैदा किया। (14)
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☆ क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह ने किस प्रकार ऊपर-तलेसात आकाश बनाए, (15)
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☆ और उनमें चन्द्रमा को प्रकाश और सूर्य को प्रदीप बनाया? (16)
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☆ और अल्लाह ने तुम्हें धरतीसे विशिष्ट प्रकार से विकसित किया, (17)
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☆ फिर वह तुम्हें उसमें लौटाता है और तुम्हें बाहर निकालेगा भी। (18)
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☆ और अल्लाह ने तुम्हारे लिएधरती को बिछौना बनाया, (19)
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☆ ताकि तुम उसके विस्तृत मार्गों पर चलो’।" (20 )
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☆ नूह ने कहा, "ऐ मेरे रब! उन्होंने मेरी अवज्ञा की, और उसका अनुसरण किया जिसके धन औरजिसकी सन्तान ने उसके घाटे हीमें अभिवृद्धि की।(21)
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☆ और वे बहुत बड़ी चाल चले, (22)
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☆ और उन्होंने कहा, ‘अपने इष्ट-पूज्यों को कदापि न छोड़ो और न ‘वद्द’ को छोड़ो और न ‘सुवा’ को और न ‘यग़ूस’ और न ‘यऊक़’ और ‘नस्र’ को’। (23)
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☆ और उन्होंने बहुत-से लोगों को पथभ्रष्ट किया है (तो तू उन्हें मार्ग न दिखा) अब, तू भी ज़ालिमों की पथभ्रष्टता ही में अभिवृद्धि कर।"(24)
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☆ वे अपनी बड़ी ख़ताओं के कारण पानी में डुबो दिए गए, फिर आग में दाख़िल कर दिए गए, फिर वे अपने और अल्लाह के बीच आड़ बननेवाले सहायक न पा सके।(25)
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☆ और नूह ने कहा, "ऐ मेरे रब! धरती पर इनकार करनेवालों में से किसी बसनेवाले को न छोड़। (26)
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☆ यदि तू उन्हें छोड़ देगा तो वे तेरे बन्दों को पथभ्रष्ट कर देंगे और वे दुराचारियों और बड़े अधर्मियों को ही जन्म देंगे। (27)
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☆ ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे और मेरे माँ-बाप को भी और हर उस व्यक्ति को भी जो मेरे घर में ईमानवाला बन कर दाख़िलहुआ और (सामान्य) ईमानवाले पुरुषों और ईमानवाली स्त्रियों को भी (क्षमा कर दे), और ज़ालिमों के विनाश को ही बढ़ा।" (28)
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