सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ ऐ लोगो! अपने रब का डर रखो! निश्चय ही क़ियामत की घड़ी काभूकम्प बड़ी भयानक चीज़ है। (1)
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☆ जिस दिन तुम उसे देखोगे, हाल यह होगा कि प्रत्येक दूध पिलानेवाली अपने दूध पीते बच्चे को भूल जाएगी और प्रत्येक गर्भवती अपना गर्भभार रख देगी। और लोगों कोतुम नशे में देखोगे, हालाँकि वे नशे में न होंगे, बल्कि अल्लाह की यातना है ही बड़ी कठोर चीज़।(2)
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☆ लोगों में कोई ऐसा भी है, जो ज्ञान के बिना अल्लाह के विषय में झगड़ता है और प्रत्येक सरकश शैतान का अनुसरण करता है। (3)
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☆ जबकि उसके लिए लिख दिया गया है कि जो उससे मित्रता का सम्बन्ध रखेगा उसे वह पथभ्रष्ट करके रहेगा और उसे दहकती अग्नि की यातना की ओर ले जाएगा। (4)
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☆ ऐ लोगो! यदि तुम्हें दोबारा जी उठने के विषय में कोई सन्देह हो तो देखो, हमने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया,फिर वीर्य से, फिर लोथड़े से, फिर माँस की बोटी से जो बनावट में पूर्ण दशा में भी होती है और अपूर्ण दशा में भी, ताकि हमतुमपर स्पष्ट कर दें और हम जिसे चाहते हैं एक नियत समय तक गर्भाशयों में ठहराए रखते हैं। फिर तुम्हें एक बच्चे केरूप में निकाल लाते हैं। फिर (तुम्हारा पालन-पोषण होता है) ताकि तुम अपनी युवावस्था को प्राप्त हो और तुममें से कोई तो पहले मर जाता है और कोई बुढ़ापे की जीर्ण अवस्था की ओर फेर दिया जाता है जिसके परिणामस्वरूप, जानने के पश्चात वह कुछ भी नहीं जानता।और तुम भूमि को देखते हो कि सूखी पड़ी है। फिर जहाँ हमने उसपर पानी बरसाया कि वह फबक उठी और वह उभर आई और उसने हर प्रकार की शोभायमान चीज़ें उगाईं। (5)
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☆ यह इसलिए कि अल्लाह ही सत्य है और वह मुर्दों को जीवित करता है और उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है। (6)
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☆ और यह कि क़ियामत की घड़ी आनेवाली है, इसमें कोई सन्देहनहीं है। और यह कि अल्लाह उन्हें उठाएगा जो क़ब्रों में हैं।(7)
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☆ और लोगों में कोई ऐसा है जोकिसी ज्ञान, मार्गदर्शन और प्रकाशमान किताब के बिना अल्लाह के विषय में (घमंड से) अपने पहलू मोड़ते हुए झगड़ता है, (8)
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☆ ताकि अल्लाह के मार्ग से भटका दे। उसके लिए दुनिया मेंभी रुसवाई है और क़ियामत के दिन हम उसे जलने की यातना का मज़ा चखाएँगे। (9)
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☆ (कहा जाएगा,) यह उसके कारण है जो तेरे हाथों ने आगे भेजा था और इसलिए कि अल्लाह बन्दोंपर तनिक भी ज़ुल्म करनेवाला नहीं। (10)
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☆ और लोगों में कोई ऐसा है, जो एक किनारे पर रहकर अल्लाह की बन्दगी करता है। यदि उसे लाभ पहुँचा तो उससे सन्तुष्ट हो गया और यदि उसे कोई आज़माइश पेश आ गई तो औंधा होकर पलट गया। दुनिया भी खोई और आख़िरत भी। यही है खुला घाटा। (11)
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☆ वह अल्लाह को छोड़कर उसे पुकारता है, जो न उसे हानि पहुँचा सके और न उसे लाभ पहुँचा सके। यही है परले दर्जे की गुमराही। (12)
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☆ वह उसको पुकारता है जिससे पहुँचनेवाली हानि उससे अपेक्षित लाभ की अपेक्षा अधिक निकट है। बहुत ही बुरा संरक्षक है वह और बहुत ही बुरा साथी! (13)
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☆ निश्चय ही अल्लाह उन लोगोंको, जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेगा, जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। निस्संदेह अल्लाह जो चाहे करे । (14)
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☆ जो कोई यह समझता है कि अल्लाह दुनिया और आख़िरत में उसकी (रसूल की) कदापि कोई सहायता न करेगा तो उसे चाहिए कि वह आकाश की ओर एक रस्सी ताने, फिर (अल्लाह की सहायता के सिलसिले को) काट दे। फिर देख ले कि क्या उसका उपाय उस चीज़ को दूर कर सकता है जो उसेक्रोध में डाले हुए है । (15)
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☆ इसी प्रकार हमने इस (क़ुरआन) को स्पष्ट आयतों के रूप में अवतरित किया। और बात यह है कि अल्लाह जिसे चाहता है मार्ग दिखाता है । (16)
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☆ जो लोग ईमान लाए और जो यहूदी हुए और साबिई और ईसाई और मजूस और जिन लोगों ने शिर्क किया - इन सबके बीच अल्लाह क़ियामत के दिन फ़ैसला कर देगा। निस्संदेह अल्लाह की दृष्टि में हर चीज़है। (17)
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☆ क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह ही को सजदा करते हैं वे सब जो आकाशों में हैं और जोधरती में हैं, और सूर्य, चन्द्रमा, तारे, पहाड़, वृक्ष,जानवर और बहुत-से मनुष्य? और बहुत-से ऐसे हैं जिनपर यातना का औचित्य सिद्ध हो चुका है, और जिसे अल्लाह अपमानित करे उस सम्मानित करनेवाला कोई नहीं। निस्संदेह अल्लाह जो चाहे करता है। (18)
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☆ ये दो विवादी हैं, जो अपने रब के विषय में आपस में झगड़े। अतः जिन लोगों ने कुफ़्र किया उनके लिए आग के वस्त्र काटे जा चुके हैं। उनके सिरों पर खौलता हुआ पानीडाला जाएगा । (19)
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☆ इससे जो कुछ उनके पेटों में है, वह पिघल जाएगा और खालें भी। (20)
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☆ और उनके लिए (दंड देने को) लोहे के गुर्ज़ होंगे। (21)
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☆ जब कभी वे घबराकर उससे निकलना चाहेंगे तो उसी में लौटा दिए जाएँगे और (कहा जाएगा,) "चखो दहकती आग की यातना का मज़ा!" (22)
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☆ निस्संदेह अल्लाह उन लोगों को, जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, ऐसेबाग़ों में दाख़िल करेगा जिनके नीचें नहरें बह रही होंगी। वहाँ वे सोने के कंगनों और मोती से आभूषित किएजाएँगे और वहाँ उनका परिधान रेशमी होगा । (23)
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☆ निर्देशित किया गया उन्हें अच्छे पाक बोल की ओर और उनको प्रशंसित अल्लाह का मार्ग दिखाया गया । (24)
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☆ जिन लोगों ने इनकार किया और वे अल्लाह के मार्ग से रोकते हैं और प्रतिष्ठित मस्जिद (काबा) से, जिसे हमने सब लोगों के लिए ऐसा बनाया है कि उसमें बराबर है वहाँ का रहनेवाला और बाहर से आया हुआ।और जो व्यक्ति उस (प्रतिष्ठितमस्जिद) में कुटिलता अर्थात ज़ुल्म के साथ कुछ करना चाहेगा, उसे हम दुखद यातना का मज़ा चखाएँगे। (25)
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☆ याद करो जब कि हमने इबराहीम के लिए अल्लाह के घर को ठिकाना बनाया, इस आदेश के साथ कि "मेरे साथ किसी चीज़ कोसाझी न ठहराना और मेरे घर को तवाफ़ (परिक्रमा) करनेवालों और खड़े होने और झुकने और सजदा करनेवालों के लिए पाक-साफ़ रखना।" (26)
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☆ और लोगों में हज के लिए उद्घोषणा कर दो कि "वे प्रत्येक गहरे मार्ग से, पैदलभी और दुबली-दुबली ऊँटनियों पर, तेरे पास आएँ ।(27)
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☆ ताकि वे उन लाभों को देखें जो वहाँ उनके लिए रखे गए हैं। और कुछ ज्ञात और निश्चित दिनों में उन चौपाए अर्थात मवेशियों पर अल्लाह का नाम लें, जो उसने उन्हें दिए हैं। फिर उसमें से स्वयं भी खाओ और तंगहाल मुहताज को भी खिलाओ।" (28)
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☆ फिर उन्हें चाहिए कि अपना मैल-कुचैल दूर करें और अपनी मन्नतें पूरी करें और इस पुरातन घर का तवाफ़ (परिक्रमा) करें । (29)
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☆ इन बातों का ध्यान रखो और जो कोई अल्लाह द्वारा निर्धारित मर्यादाओं का आदर करे, तो यह उसके रब के यहाँ उसी के लिए अच्छा है। और तुम्हारे लिए चौपाए हलाल हैं,सिवाय उनके जो तुम्हें बताए गए हैं। तो मूर्तियों की गन्दगी से बचो और बचो झूठी बातों से। (30)
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☆ इस तरह कि अल्लाह ही की ओर के होकर रहो। उसके साथ किसी को साझी न ठहराओ, क्योंकि जो कोई अल्लाह के साथ साझी ठहराता है तो मानो वह आकाश से गिर पड़ा। फिर चाहे उसे पक्षीउचक ले जाएँ या वायु उसे किसी दूरवर्ती स्थान पर फेंक दे। (31)
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☆ इन बातों का ख़याल रखो। और जो कोई अल्लाह के नाम लगी चीज़ों का आदर करे, तो निस्संदेह वे (चीज़ें) दिलों के तक़वा (धर्मपरायणता) से सम्बन्ध रखती हैं। (32)
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☆ उनमें एक निश्चित समय तक तुम्हारे लिए फ़ायदे हैं। फिर उनको उस पुरातन घर तक (क़ुरबानी के लिए) पहुँचना है। (33)
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☆ और प्रत्येक समुदाय के लिएहमने क़ुरबानी का विधान किया,ताकि वे उन जानवरों अर्थात मवेशियों पर अल्लाह का नाम लें, जो उसने उन्हें प्रदान किए हैं। अतः तुम्हारा पूज्य-प्रभु अकेला पूज्य-प्रभु है। तो उसी के आज्ञाकारी बनकर रहोऔर विनम्रता अपनानेवालों को शुभ सूचना दे दो । (34)
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☆ ये वे लोग हैं कि जब अल्लाहको याद किया जाता है तो उनके दिल दहल जाते हैं और जो मुसीबत उनपर आती है उसपर धैर्य से काम लेते हैं और नमाज़ को क़ायम करते हैं, और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से ख़र्च करते हैं। (35)
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☆ (क़ुरबानी के) ऊँटों को हमने तुम्हारे लिए अल्लाह की निशानियों में से बनाया है। तुम्हारे लिए उनमें भलाई है। अतः खड़ा करके उनपर अल्लाह कानाम लो। फिर जब उनके पहलू भूमि से आ लगें तो उनमें से स्वयं भी खाओ और संतोष से बैठनेवालों को भी खिलाओ और माँगनेवालों को भी। ऐसा ही करो। हमने उनको तुम्हारे लिए वशीभूत कर दिया है, ताकि तुम कृतज्ञता दिखाओ । (36)
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☆ न उनके मांस अल्लाह को पहुँचते हैं और न उनके रक्त। किन्तु उसे तुम्हारा तक़वा (धर्मपरायणता) पहुँचता है। इसप्रकार उसने उन्हें तुम्हारेलिए वशीभूत किया है, ताकि तुम अल्लाह की बड़ाई बयान करो, इसपर कि उसने तुम्हारा मार्गदर्शन किया और सुकर्मियों को शुभ सूचना दे दो । (37)
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☆ निश्चय ही अल्लाह उन लोगोंकी ओर से प्रतिरक्षा करता है, जो ईमान लाए। निस्संदेह अल्लाह किसी विश्वासघाती, अकृतज्ञ को पसन्द नहीं करता। (38)
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☆ अनुमति दी गई उन लोगों को जिनके विरुद्ध युद्ध किया जा रहा है, क्योंकि उनपर ज़ुल्म किया गया - और निश्चय ही अल्लाह उनकी सहायता की पूरी सामर्थ्य रखता है। - (39)
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☆ ये वे लोग हैं जो अपने घरोंसे नाहक़ निकाले गए, केवल इसलिए कि वे कहते हैं कि"हमारा रब अल्लाह है।" यदि अल्लाह लोगों को एक-दूसरे के द्वारा हटाता न रहता तो मठ और गिरजा और यहूदी प्रार्थना भवन और मस्जिदें, जिनमें अल्लाह का अधिक नाम लिया जाताहै, सब ढा दी जातीं। अल्लाह अवश्य उसकी सहायता करेगा, जो उसकी सहायता करेगा - निश्चय ही अल्लाह बड़ा बलवान, प्रभुत्वशाली है। -(40)
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☆ ये वे लोग हैं कि यदि धरती में हम उन्हें सत्ता प्रदान करें तो वे नमाज़ का आयोजन करेंगे और ज़कात देंगे और भलाई का आदेश करेंगे और बुराईसे रोकेंगे। और सब मामलों का अन्तिम परिणाम अल्लाह ही के हाथ में है। (41)
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☆ यदि वे तुम्हें झुठलाते हैं तो उनसे पहले नूह की क़ौम,आद और समूद (42)
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☆ और इबराहीम की क़ौम और लूत की क़ौम (43)
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☆ और मदयनवाले भी झुठला चुकेहैं और मूसा को भी झूठलाया जा चुका है। किन्तु मैंने इनकार करनेवालों को मुहलत दी, फिर उन्हें पकड़ लिया। तो कैसी रही मेरी यंत्रणा! (44)
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☆ कितनी ही बस्तियाँ हैं जिन्हें हमने विनष्ट कर दिया इस दशा में कि वे ज़ालिम थीं, तो वे अपनी छतों के बल गिरी पड़ी हैं। और कितने ही परित्यक्त (उजाड़) कुएँ पड़े हैं और कितने ही पक्के महल भी!(45)
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☆ क्या वे धरती में चले फिरे नहीं हैं कि उनके दिल होते जिनसे वे समझते या (कम से कम) कान होते जिनसे वे सुनते? बात यह है कि आँखें अंधी नहीं हो जातीं, बल्कि वे दिल अंधे हो जाते हैं जो सीनों में होते हैं। (46)
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☆ और वे तुमसे यातना के लिए जल्दी मचा रहे हैं! अल्लाह कदापि अपने वादे के विरुद्ध नकरेगा। किन्तु तुम्हारे रब के यहाँ एक दिन, तुम्हारी गणना के अनुसार, एक हज़ार वर्ष जैसा है । (47)
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☆ कितनी ही बस्तियाँ हैं जिनको मैंने मुहलत दी इस दशा में कि वे ज़ालिम थीं। फिर मैंने उन्हें पकड़ लिया और अन्ततः आना तो मेरी ही ओर है। (48)
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☆ कह दो, "ऐ लोगो! मैं तो तुम्हारे लिए बस एक साफ़-साफ़सचेत करनेवाला हूँ।" (49)
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☆ फिर जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके लिए क्षमादान और सम्मानपूर्वक आजीविका है। (50)
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☆ किन्तु जिन लोगों ने हमारीआयतों को नीचा दिखाने की कोशिश की, वही भड़कती आगवाले हैं। (51)
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☆ तुमसे पहले जो रसूल और नबी भी हमने भेजा, तो जब भी उसने कोई कामना की तो शैतान ने उसकी कामना में विघ्न डाला। इस प्रकार जो कुछ भी शैतान विघ्न डालता है, अल्लाह उसे मिटा देता है। फिर अल्लाह अपनी आयतों को सुदृढ़ कर देताहै। - अल्लाह सर्वज्ञ, बड़ा तत्वदर्शी है।- (52)
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☆ ताकि शैतान के डाले हुए विघ्न को उन लोगों के लिए आज़माइश बना दे जिनके दिलों में रोग है और जिनके दिल कठोर हैं।- निस्संदेह ज़ालिम परले दर्जे के विरोध में ग्रस्त हैं। - (53)
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☆ और ताकि वे लोग जिन्हें ज्ञान मिला है, जान लें कि यह तुम्हारे रब की ओर से सत्य है। अतः वे इसपर ईमान लाएँ और उसके सामने उनके दिल झुक जाएँऔर निश्चय ही अल्लाह ईमान लानेवालों को अवश्य सीधा मार्ग दिखाता है। (54)
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☆ जिन लोगों ने इनकार किया वे सदैव इसकी ओर से सन्देह में पड़े रहेंगे, यहाँ तक कि क़ियामत की घड़ी अचानक उनपर आजाए या एक अशुभ दिन की यातना उनपर आ पहुँचे। (55)
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☆ उस दिन बादशाही अल्लाह ही की होगी। वह उनके बीच फ़ैसला कर देगा। अतः जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वे नेमत भरी जन्नतों में होंगे । (56)
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☆ और जिन लोगों ने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, उनके लिए अपमानजनक यातना है । (57)
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☆ और जिन लोगों ने अल्लाह के मार्ग में घरबार छोड़ा, फिर मारे गए या मर गए, अल्लाह अवश्य उन्हें अच्छी आजीविका प्रदान करेगा। और निस्संदेह अल्लाह ही उत्तम आजीविका प्रदान करनेवाला है। (58)
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☆ वह उन्हें ऐसी जगह प्रवेश कराएगा जिससे वे प्रसन्न हो जाएँगे। और निश्चय ही अल्लाह सर्वज्ञ, अत्यन्त सहनशील है। (59)
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☆ यह बात तो सुन ली। और जो कोई बदला ले, वैसा ही जैसा उसके साथ किया गया और फिर उसपर ज़्यादती की गई, तो अल्लाह अवश्य उसकी सहायता करेगा। निश्चय ही अल्लाह दरगुज़र करनेवाला (छोड़ देनेवाला), बहुत क्षमाशील है । (60)
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☆ यह इसलिए कि अल्लाह ही है जो रात को दिन में पिरोता हुआ ले आता है और दिन को रात में पिरोता हुआ ले आता है। और यह कि अल्लाह सुनता, देखता है। (61)
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☆ यह इसलिए कि अल्लाह ही सत्य है और जिसे वे उसको छोड़कर पुकारते हैं, वे सब असत्य हैं, और यह कि अल्लाह हीसर्वोच्च, महान है। (62)
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☆ क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह आकाश से पानी बरसाता है, तो धरती हरी-भरी हो जाती है? निस्संदेह अल्लाह सूक्ष्मदर्शी, ख़बर रखनेवालाहै। (63)
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☆ उसी का है जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है। निस्संदेह अल्लाह ही निस्पृहप्रशंसनीय है। (64)
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☆ क्या तुमने देखा नहीं कि धरती में जो कुछ भी है उसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए वशीभूत कर रखा है और नौका को भी कि उसके आदेश से दरिया में चलती है, और उसने आकाश को धरतीपर गिरने से रोक रखा है। उसकी अनुज्ञा हो तो बात दूसरी है। निस्संदेह अल्लाह लोगों के हक़ में बड़ा करुणाशील, दयावान है। (65)
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☆ और वही है जिसने तुम्हें जीवन प्रदान किया। फिर वही तुम्हें मृत्यु देता है और फिर वही तुम्हें जीवित करनेवाला है। निस्संदेह मानवबड़ा ही अकृतज्ञ है। (66)
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☆ प्रत्येक समुदाय के लिए हमने बन्दगी की एक रीति निर्धारित कर दी है, जिसका पालन उसके लोग करते हैं। अतः इस मामले में वे तुमसे झगड़नेकी राह न पाएँ। तुम तो अपने रबकी ओर बुलाए जाओ। निस्संदेह तुम सीधे मार्ग पर हो। (67)
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☆ और यदि वे तुमसे झगड़ा करें तो कह दो कि "तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसे भली-भाँतिजानता है । (68)
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☆ अल्लाह क़ियामत के दिन तुम्हारे बीच उस चीज़ का फ़ैसला कर देगा, जिसमें तुम विभेद करते हो।" (69)
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☆ क्या तुम्हें नहीं मालूम कि अल्लाह जानता है जो कुछ आकाश और धरती मैं हैं? निश्चय ही वह (लोगों का कर्म) एक किताब में अंकित है। निस्संदेह वह (फ़ैसला करना) अल्लाह के लिए अत्यन्त सरल है। (70)
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☆ और वे अल्लाह से इतर उनकी बन्दगी करते हैं जिनके लिए न तो उसने कोई प्रमाण उतारा और न उन्हें उनके विषय में कोई ज्ञान ही है। और इन ज़ालिमों का कोई सहायक नहीं। (71)
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☆ और जब उन्हें हमारी स्पष्ट आयतें सुनाई जाती हैं, तो इनकार करनेवालों के चेहरों पर तुम्हें नागवारी प्रतीत होती है। लगता है कि अभी वे उनलोगों पर टूट पड़ेंगे जो उन्हें हमारी आयतें सुनाते हैं। कह दो, "क्या मैं तुम्हेंइससे बुरी चीज़ की ख़बर दूँ? आग है वह - अल्लाह ने इनकार करनेवालों से उसी का वादा कर रखा है - और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है।"(72)
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☆ ऐ लोगो! एक मिसाल पेश की जाती है। उसे ध्यान से सुनो, अल्लाह से हटकर तुम जिन्हें पुकारते हो वे एक मक्खी भी पैदा नहीं कर सकते। यद्यपि इसके लिए वे सब इकट्ठे हो जाएँ और यदि मक्खी उनसे कोई चीज़ छीन ले जाए तो उससे वे उसको छुड़ा भी नहीं सकते। बेबस और असहाय रहा चाहनेवाला भी (उपासक) और उसका अभीष्ट (उपास्य) भी। (73)
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☆ उन्होंने अल्लाह की क़द्र ही नहीं पहचानी जैसी कि उसकी क़द्र पहचाननी चाहिए थी। निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त बलवान, प्रभुत्वशाली है। (74)
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☆ अल्लाह फ़रिश्तों में से संदेशवाहक चुनता है और मनुष्यों में से भी। निश्चय ही अल्लाह सब कुछ सुनता, देखता है। (75)
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☆ वह जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे है। और सारे मामले अल्लाह ही की ओर पलटते हैं। (76)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! झुको और सजदा करो और अपने रब की बन्दगी करो और भलाई करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो। (77)
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☆ और परस्पर मिलकर जिहाद करोअल्लाह के मार्ग में, जैसा कि जिहाद का हक़ है। उसने तुम्हें चुन लिया है - और धर्मके मामले में तुमपर कोई तंगी और कठिनाई नहीं रखी। तुम्हारे बाप इबराहीम के पंथ को तुम्हारे लिए पसन्द किया। उसने इससे पहले तुम्हारा नाम मुस्लिम (आज्ञाकारी) रखा था और इस ध्येय से - ताकि रसूल तुमपर गवाह हो और तुम लोगों पर गवाह हो। अतः नमाज़ का आयोजन करो और ज़कात दो और अल्लाह को मज़बूती से पकड़े रहो। वही तुम्हारा संरक्षक है। तो क्या ही अच्छा संरक्षकहै और क्या ही अच्छा सहायक! (78)
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