सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ अल्लाह की तसबीह कर रही है हर वह चीज़ जो आकाशों में है और जो धरती में है। उसी की बादशाही है और उसी के लिए प्रशंसा है और उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है। (1)
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☆ वही है जिसने तुम्हें पैदाकिया, फिर तुममें से कोई तो इनकार करनेवाला है और तुममें से कोई ईमानवाला है, और तुम जोकुछ भी करते हो अल्लाह उसे देख रहा होता है। (2)
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☆ उसने आकाशों और धरती को हक़ के साथ पैदा किया और तुम्हारा रूप बनाया, तो बहुत ही अच्छे बनाए तुम्हारे रूप और उसी की ओर अन्ततः जाना है। (3)
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☆ वह जानता है जो कुछ आकाशों और धरती में है और उसे भी जानता है जो कुछ तुम छिपाते हो और जो कुछ तुम प्रकट करते हो। अल्लाह तो सीनों में छिपीबात तक को जानता है। (4)
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☆ क्या तुम्हें उन लोगों की ख़बर नहीं पहुँची जिन्होंने इससे पहले इनकार किया था, फिर उन्होंने अपने कर्म के वबाल का मज़ा चखा और उनके लिए एक दुखद यातना भी है। (5)
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☆ यह इस कारण कि उनके पास उनके रसूल स्पष्ट प्रमाण लेकर आते रहे, किन्तु उन्होंने कहा, "क्या मनुष्य हमें मार्ग दिखाएँगे?" इस प्रकार उन्होंने इनकार किया और मुँह फेर लिया, तब अल्लाह भी उनसे बेपरवाह हो गया। अल्लाह तो है ही निस्पृह, अपने आप में स्वयं प्रशंसित। (6)
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☆ जिन लोगों ने इनकार किया, उन्होंने दावा किया कि वे मरने के पश्चात कदापि न उठाए जाएँगे। कह दो, "क्यों नहीं, मेरे रब की क़सम! तुम अवश्य उठाए जाओगे, फिर जो कुछ तुमने किया है उससे तुम्हें अवगत करा दिया जाएगा। और अल्लाह केलिए यह अत्यन्त सरल है।" (7)
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☆ अतः ईमान लाओ अल्लाह पर और उसके रसूल पर और उस प्रकाश पर जिसे हमने अवतरित किया है। तुम जो कुछ भी करते हो अल्लाह उसकी पूरी ख़बर रखता है। (8)
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☆ इकट्ठा होने के दिन वह तुम्हें इकट्ठा करेगा, वह परस्पर लाभ-हानि का दिन होगा।जो भी अल्लाह पर ईमान लाए और अच्छा कर्म करे उसकी बुराइयाँ अल्लाह उससे दूर कर देगा और उसे ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी, उनमें वे सदैव रहेंगे। यही बड़ी सफलता है। (9)
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☆ रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया और हमारी आयतों कोझुठलाया, वही आगवाले हैं जिसमें वे सदैव रहेंगे। अन्ततः लौटकर पहुँचने की वह बहुत ही बुरी जगह है। (10)
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☆ अल्लाह की अनुज्ञा के बिना कोई भी मुसीबत नहीं आती। जो अल्लाह पर ईमान ले आए अल्लाह उसके दिल को मार्ग दिखाता है, और अल्लाह हर चीज़ को भली-भाँति जानता है।(11)
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☆ अल्लाह की आज्ञा का पालन करो और रसूल की आज्ञा का पालन करो, किन्तु यदि तुम मुँह मोड़ते हो तो हमारे रसूल पर बस स्पष्ट रूप से (संदेश) पहुँचा देने ही की ज़िम्मेदारी है। (12)
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☆ अल्लाह वह है जिसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। अतः अल्लाह ही पर ईमानवालों को भरोसा करना चाहिए। (13)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो, तुम्हारीपत्नियों और तुम्हारी सन्तानमें से कुछ ऐसे भी हैं जो तुम्हारे शत्रु हैं। अतः उनसे होशियार रहो। और यदि तुममाफ़ कर दो और टाल जाओ और क्षमा कर दो निश्चय ही अल्लाहबड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है। (14)
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☆ तुम्हारे माल और तुम्हारी सन्तान तो केवल एक आज़माइश है, और अल्लाह ही है जिसके पासबड़ा प्रतिदान है। (15)
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☆ अतः जहाँ तक तुम्हारे बस में हो अल्लाह का डर रखो और सुनो और आज्ञापालन करो और ख़र्च करो अपनी भलाई के लिए। और जो अपने मन के लोभ एवं कृपणता से सुरक्षित रहा तो ऐसे ही लोग सफल हैं। (16)
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☆ यदि तुम अल्लाह को अच्छा ऋण दो तो वह उसे तुम्हारे लिए कई गुना बढ़ा देगा और तुम्हेंक्षमा कर देगा। अल्लाह बड़ा गुणग्राहक और सहनशील है, (17)
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☆ परोक्ष और प्रत्यक्ष को जानता है, प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है। (18)
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