सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
☆ ऐ नबी! अल्लाह का डर रखना औरइनकार करनेवालों और कपटाचारियों का कहना न मानना। वास्तव में अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है। (1)
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☆ और अनुसरण करना उस चीज़ का जो तुम्हारे रब की ओर से तुम्हें प्रकाशना की जा रही है। निश्चय ही अल्लाह उसकी ख़बर रखता है जो तुम करते हो। (2)
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☆ और अल्लाह पर भरोसा रखो। और अल्लाह भरोसे के लिए काफ़ी है। (3)
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☆ अल्लाह ने किसी व्यक्ति केसीने में दो दिल नहीं रखे। और न उसने तुम्हारी उन पत्नियों को जिनसे तुम ज़िहार कर बैठतेहो, वास्तव में तुम्हारी माँ बनाया, और न उसने तुम्हारे मुँह बोले बेटों को तुम्हारे वास्तविक बेटे बनाए। ये तो तुम्हारे मुँह की बातें हैं। किन्तु अल्लाह सच्ची बात कहता है और वही मार्ग दिखाता है। (4)
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☆ उन्हें उनके बापों का बेटाकहकर पुकारो। अल्लाह के यहाँ यही अधिक न्यायसंगत बात है। और यदि तुम उनके बापों को न जानते हो, तो धर्म में वे तुम्हारे भाई तो हैं ही और तुम्हारे सहचर भी। इस सिलसिले में तुमसे जो ग़लती हुई हो उसमें तुमपर कोई गुनाहनहीं, किन्तु जिसका संकल्प तुम्हारे दिलों ने कर लिया, उसकी बात और है। वास्तव में अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है। (5)
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☆ नबी का हक़ ईमानवालों पर स्वयं उनके अपने प्राणों से बढ़कर है। और उसकी पत्नियाँ उनकी माएँ हैं। और अल्लाह के विधान के अनुसार सामान्य मोमिनों और मुहाजिरों की अपेक्षा नातेदार आपस में एक-दूसरे से अधिक निकट हैं। यह और बात है कि तुम अपने साथियों के साथ कोई भलाई करो।यह बात किताब में लिखी हुई है।(6)
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☆ और याद करो जब हमने नबियों से वचन लिया, तुमसे भी और नूह और इबराहीम और मूसा और मरयम के बेटे ईसा से भी। इन सबसे हमने दृढ़ वचन लिया,(7)
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☆ ताकि वह सच्चे लोगों से उनकी सच्चाई के बारे में पूछे। और इनकार करनेवालों के लिए तो उसने दुखद यातना तैयारकर रखी है। (8)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह कीउस अनुकम्पा को याद करो जो तुमपर हुई; जबकि सेनाएँ तुमपरचढ़ आईं तो हमने उनपर एक हवा भेज दी और ऐसी सेनाएँ भी, जिनको तुमने देखा नहीं। और अल्लाह वह सब कुछ देखता है जो तुम करते हो।(9)
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☆ याद करो जब वे तुम्हारे ऊपरकी ओर से और तुम्हारे नीचे की ओर से भी तुमपर चढ़ आए, और जब निगाहें टेढ़ी-तिरछी हो गईं और उर (हृदय) कंठ को आ लगे। और तुम अल्लाह के बारे में तरह-तरह के गुमान करने लगे थे।(10)
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☆ उस समय ईमानवाले आज़माए गएऔर पूरी तरह हिला दिए गए। (11)
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☆ और जब कपटाचारी और वे लोग जिनके दिलों में रोग है कहने लगे, "अल्लाह और उसके रसूल ने हमसे जो वादा किया था वह तो धोखा मात्र था।" (12)
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☆ और जबकि उनमें से एक गरोह ने कहा, "ऐ यसरिबवालो, तुम्हारे लिए ठहरने का कोई मौक़ा नहीं। अतः लौट चलो।" और उनका एक गरोह नबी से यह कहकर (वापस जाने की) अनुमति चाह रहाथा कि "हमारे घर असुरक्षित हैं।" यद्यपि वे असुरक्षित न थे। वे तो बस भागना चाहते थे।(13)
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☆ और यदि उसके चतुर्दिक से उनपर हमला हो जाता, फिर उस समयउनसे उपद्रव के लिए कहा जाता, तो वे ऐसा कर डालते और इसमें विलम्ब थोड़े ही करते! (14)
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☆ यद्यपि वे इससे पहले अल्लाह को वचन दे चुके थे कि वे पीठ न फेरेंगे, और अल्लाह से की गई प्रतिज्ञा के विषय में तो पूछा जाना ही है। (15)
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☆ कह दो, "यदि तुम मृत्यु और मारे जाने से भागो भी तो यह भागना तुम्हारे लिए कदापि लाभप्रद न होगा। और इस हालत में भी तुम सुख थोड़े ही प्राप्त कर सकोगे।" (16)
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☆ कहो, "कौन है जो तुम्हें अल्लाह से बचा सकता है, यदि वहतुम्हारी कोई बुराई चाहे या वह तुम्हारे प्रति दयालुता का इरादा करे (तो कौन है जो उसकी दयालुता को रोक सके)?" वेअल्लाह के अलावा न अपना कोई निकटवर्ती समर्थक पाएँगे और न (दूर का) सहायक।(17)
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☆ अल्लाह तुममें से उन लोगोंको भली-भाँति जानता है जो (युद्ध से) रोकते हैं और अपने भाइयों से कहते हैं, "हमारे पास आ जाओ।" और वे लड़ाई में थोड़े ही आते हैं, (क्योंकि वे) (18)
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☆ तुम्हारे साथ कृपणता से काम लेते हैं। अतः जब भय का समय आ जाता है, तो तुम उन्हें देखते हो कि वे तुम्हारी ओर इस प्रकार ताक रहे हैं कि उनकी आँखें चक्कर खा रही हैं, जैसे किसी व्यक्ति पर मौत की बेहोशी छा रही हो। किन्तु जब भय जाता रहता है तो वे माल के लोभ में तेज़ ज़बानें तुमपर चलाते हैं। ऐसे लोग ईमान लाए ही नहीं। अतः अल्लाह ने उनके कर्म उनकी जान को लागू कर दिए। और यह अल्लाह के लिए बहुत सरल है।(19)
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☆ वे समझ रहे हैं कि (शत्रु के) सैन्य दल अभी गए नहीं हैं, और यदि वे गरोह फिर आ जाएँ तो वे चाहेंगे कि किसी प्रकार बाहर (मरुस्थल में) बद्दुओं के साथ हो रहें और वहीं से तुम्हारे बारे में समाचार पूछते रहें। और यदि वे तुम्हारे साथ होते भी तो लड़ाई में हिस्सा थोड़े ही लेते।(20)
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☆ निस्संदेह तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल में एक उत्तम आदर्श है अर्थात उस व्यक्ति के लिए जो अल्लाह और अन्तिम दिन की आशा रखता हो और अल्लाह को अधिक याद करे। (21)
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☆ और जब ईमानवालों ने सैन्य दलों को देखा तो वे पुकार उठे,"यह तो वही चीज़ है, जिसका अल्लाह और उसके रसूल ने हमसे वादा किया था। और अल्लाह और उसके रसूल ने सच कहा था।" इस चीज़ ने उनके ईमान और आज्ञाकारिता ही को बढ़ाया। (22)
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☆ ईमानवालों के रूप में ऐसे पुरुष मौजूद हैं कि जो प्रतिज्ञा उन्होंने अल्लाह से की थी उसे उन्होंने सच्चा कर दिखाया। फिर उनमें से कुछ तो अपना प्रण पूरा कर चुके और उनमें से कुछ प्रतीक्षा में हैं। और उन्होंने अपनी बात तनिक भी नहीं बदली।(23)
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☆ ताकि इसके परिणामस्वरूप अल्लाह सच्चों को उनकी सच्चाई का बदला दे और कपटाचारियों को चाहे तो यातना दे या उनकी तौबा क़बूल करे। निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।(24)
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☆ अल्लाह ने इनकार करनेवालों को उनके अपने क्रोध के साथ फेर दिया। वे कोई भलाई प्राप्त न कर सके। अल्लाह ने मोमिनों को युद्ध करने से बचा लिया। अल्लाह तो है ही बड़ा शक्तिवान, प्रभुत्वशाली। (25)
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☆ और किताबवालों में से जिन लोगों ने उनकी सहायता की थी, उन्हें उनकी गढ़ियों से उतार लाया। और उनके दिलों में धाक बिठा दी कि तुम एक गरोह को जानसे मारने लगे और एक गरोह को बन्दी बनाने लगे।(26)
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☆ और उसने तुम्हें उनके भू-भाग और उनके घरों और उनके मालों का वारिस बना दिया और उस भू-भाग का भी जिसे तुमने पददलित नहीं किया। वास्तव में अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है। (27)
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☆ ऐ नबी! अपनी पत्नियों से कह दो कि "यदि तुम सांसारिक जीवन और उसकी शोभा चाहती हो तो आओ, मैं तुम्हें कुछ दे-दिलाकर भली रीति से विदा कर दूँ।(28)
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☆ "किन्तु यदि तुम अल्लाह औरउसके रसूल और आख़िरत के घर को चाहती हो तो निश्चय ही अल्लाहने तुममे से उत्तमकार स्त्रियों के लिए बड़ा प्रतिदान रख छोड़ा है।" (29)
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☆ ऐ नबी की स्त्रियो! तुममें से जो कोई प्रत्यक्ष अनुचित कर्म करे तो उसके लिए दोहरी यातना होगी। और यह अल्लाह के लिए बहुत सरल है।(30)
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☆ किन्तु तुममें से जो अल्लाह और उसके रसूल के प्रतिनिष्ठापूर्वक आज्ञाकारिता की नीति अपनाए और अच्छा कर्म करे, उसे हम दोहरा प्रतिदान प्रदान करेंगे और उसके लिए हमने सम्मानपूर्ण आजीविका तैयार कर रखी है। (31)
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☆ ऐ नबी की स्त्रियो! तुम सामान्य स्त्रियों में से किसी की तरह नहीं हो, यदि तुम अल्लाह का डर रखो। अतः तुम्हारी बातों में लोच न हो कि वह व्यक्ति जिसके दिल में रोग है, वह लालच में पड़ जाए। तुम सामान्य रूप से बात करो। (32)
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☆ अपने घरों में टिककर रहो और विगत अज्ञानकाल की-सी सज-धज न दिखाती फिरना। नमाज़ का आयोजन करो और ज़कात दो। और अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञाका पालन करो। अल्लाह तो बस यही चाहता है कि ऐ नबी के घरवालो, तुमसे गन्दगी को दूर रखे और तुम्हें पूरी तरह पाक-साफ़ रखे। (33)
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☆ तुम्हारे घरों में अल्लाह की जो आयतें और तत्वदर्शिता की बातें सुनाई जाती हैं उनकीचर्चा करती रहो। निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त सूक्ष्मदर्शी, ख़बर रखनेवाला है।(34)
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☆ मुस्लिम पुरुष और मुस्लिम स्त्रियाँ, ईमानवाले पुरुष और ईमानवाली स्त्रियाँ, निष्ठा्पूर्वक आज्ञापालन करनेवाले पुरुष और निष्ठापूर्वक आज्ञापालन करनेवाली स्त्रियाँ, सत्यवादी पुरुष और सत्यवादी स्त्रियाँ, धैर्यवान पुरुष और धैर्य रखनेवाली स्त्रियाँ, विनम्रता दिखानेवाले पुरुष और विनम्रता दिखानेवाली स्त्रियाँ, सदक़ा (दान) देनेवाले पुरुष और सदक़ा देनेवाली स्त्रियाँ, रोज़ा रखनेवाले पुरुष और रोज़ा रखनेवाली स्त्रियाँ, अपने गुप्तांगों की रक्षा करनेवाले पुरुष और रक्षा करनेवाली स्त्रियाँ और अल्लाह को अधिक याद करनेवाले पुरुष और याद करनेवाली स्त्रियाँ - इनके लिए अल्लाह ने क्षमा और बड़ा प्रतिदान तैयार कर रखा है। (35)
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☆ न किसी ईमानवाले पुरुष और न किसी ईमानवाली स्त्री को यहअधिकार है कि जब अल्लाह और उसका रसूल किसी मामले का फ़ैसला कर दें, तो फिर उन्हें अपने मामले में कोई अधिकार शेष रहे। जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करे तो वह खुली गुमराही में पड़ गया।(36)
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☆ याद करो (ऐ नबी), जबकि तुम उस व्यक्ति से कह रहे थे जिसपर अल्लाह ने अनुकम्पा की,और तुमने भी जिसपर अनुकम्पा की, कि "अपनी पत्नी को अपने पास रोक रखो और अल्लाह का डर रखो, और तुम अपने जी में उस बात को छिपा रहे हो जिसको अल्लाह प्रकट करनेवाला है। तुम लोगों से डरते हो, जबकि अल्लाह इसका ज़्यादा हक़ रखता है कि तुम उससे डरो।" अतःजब ज़ैद उससे अपनी ज़रूरत पूरी कर चुका तो हमने उसका तुमसे विवाह कर दिया, ताकि ईमानवालों पर अपने मुँह बोले बेटों की पत्नियों के मामले में कोई तंगी न रहे जबकि वे उनसे अपनी ज़रूरत पूरी कर लें। अल्लाह का फ़ैसला तो पूरा होकर ही रहता है। (37)
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☆ नबी पर उस काम में कोई तंगीनहीं जो अल्लाह ने उसके लिए ठहराया हो। यही अल्लाह का दस्तूर उन लोगों के मामले मेंभी रहा है जो पहले गुज़र चुके हैं - और अल्लाह का काम तो जँचा-तुला होता है। - (38)
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☆ जो अल्लाह के सन्देश पहुँचाते थे और उसी से डरते थे और अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरते थे। और हिसाब लेने के लिए अल्लाह काफ़ी है। - (39)
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☆ मुहम्मद तुम्हारे पुरुषों में से किसी के बापनहीं हैं,बल्कि वे अल्लाह के रसूल और नबियों के समापक हैं। अल्लाह को हर चीज़ का पूरा ज्ञान है।(40)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह को अधिक याद करो। (41)
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☆ और प्रातःकाल और सन्ध्या समय उसकी तसबीह करते रहो - (42)
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☆ वही है जो तुमपर रहमत भेजताहै और उसके फ़रिश्ते भी (दुआएँ करते हैं) - ताकि वह तुम्हें अँधेरों से प्रकाश की ओर निकाल लाए। वास्तव में, वह ईमानवालों पर बहुत दयालु है।(43) _______________________________
☆ जिस दिन वे उससे मिलेंगे उनका अभिवादन होगा, सलाम और उनके लिए उसने प्रतिष्ठामय प्रतिदान तैयार कर रखा है।(44)
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☆ ऐ नबी! हमने तुमको साक्षी और शुभ सूचना देनेवाला और सचेत करनेवाला बनाकर भेजा है;(45)
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☆ और अल्लाह की अनुज्ञा से उसकी ओर बुलानेवाला और प्रकाशमान प्रदीप बनाकर। (46)
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☆ ईमानवालों को शुभ सूचना दे दो कि उनके लिए अल्लाह की ओर से बहुत बड़ा उदार अनुग्रह है।(47)
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☆ और इनकार करनेवालों और कपटाचारियों के कहने में न आना। उनकी पहुँचाई हुई तकलीफ़ का ख़याल न करो। और अल्लाह पर भरोसा रखो। अल्लाह इसके लिए काफ़ी है कि अपने मामले में उसपर भरोसा किया जाए। (48)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! जब तुम ईमान वाली स्त्रियों से विवाह करो और फिर उन्हें हाथ लगाने से पहले तलाक़ दे दो तो तुम्हारे लिए उनपर कोई इद्दत नहीं, जिसकी तुम गिनती करो। अतः उन्हें कुछ सामान दे दो और भली रीति से विदा कर दो। (49)
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☆ ऐ नबी! हमने तुम्हारे लिए तुम्हारी वे पत्नियाँ वैध कर दी हैं जिनके मह्र तुम दे चुके हो, और उन स्त्रियों को भी जो तुम्हारी मिल्कियत में आईं, जिन्हें अल्लाह ने ग़नीमत के रूप में तुम्हें दीऔर तुम्हारी चचा की बेटियाँ और तुम्हारी फूफियों की बेटियाँ और तुम्हारे मामुओं की बेटियाँ और तुम्हारी ख़ालाओं की बेटियाँ जिन्होंने तुम्हारे साथ हिजरत की है और वह ईमानवाली स्त्री जो अपने आपको नबी के लिए दे दे, यदि नबी उससे विवाहकरना चाहे। ईमानवालों से हटकर यह केवल तुम्हारे ही लिएहै, हमें मालूम है जो कुछ हमनेउनकी पत्ऩियों और उनकी लौंडियों के बारे में उनपर अनिवार्य किया है - ताकि तुमपर कोई तंगी न रहे। अल्लाहबहुत क्षमाशील, दयावान है।(50)
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☆ तुम उनमें से जिसे चाहो अपने से अलग रखो और जिसे चाहो अपने पास रखो, और जिनको तुमने अलग रखा हो, उनमें से किसी के इच्छुक हो तो इसमें तुमपर कोईदोष नहीं, इससे इस बात की अधिकसम्भावना है कि उनकी आँखें ठंडी रहें और वे शोकाकुल न हों और जो कुछ तुम उन्हें दो उसपर वे राज़ी रहें। अल्लाह जानता है जो कुछ तुम्हारे दिलों में है। अल्लाह सर्वज्ञ, बहुत सहनशील है।(51)
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☆ इसके पश्चात तुम्हारे लिए दूसरी स्त्रियाँ वैध नहीं और न यह कि तुम उनकी जगह दूसरी पत्नियाँ ले आओ, यद्यपि उनका सौन्दर्य तुम्हें कितना ही भाए। उनकी बात औऱ है जो तुम्हारी लौंडियाँ हों। वास्तव में अल्लाह की दृष्टि हर चीज़ पर है।(52)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! नबी के घरों में प्रवेश न करो, सिवाय इसके कि कभी तुम्हें खाने पर आने की अनुमति दी जाए। वह भी इस तरह कि उसकी (खाना पकने की) तैयारी की प्रतीक्षा में न रहो। अलबत्ता जब तुम्हें बुलाया जाए तो अन्दर जाओ, और जब तुम खा चुको तो उठकर चले जाओ, बातों में लगे न रहो। निश्चय ही तुम्हारी यह हरकत नबी को तकलीफ़ देती है। किन्तु उन्हें तुमसे लज्जा आती है। किन्तु अल्लाह सच्ची बात कहने से लज्जा नहीं करता।और जब तुम उनसे कुछ माँगो तो उनसे परदे के पीछे से माँगो। यह अधिक शुद्धता की बात है तुम्हारे दिलों के लिए और उनके दिलों के लिए भी। तुम्हारे लिए वैध नहीं कि तुमअल्लाह के रसूल को तकलीफ़ पहुँचाओ और न यह कि उसके बाद कभी उसकी पत्नियों से विवाह करो। निश्चय ही अल्लाह की दृष्टि में यह बड़ी गम्भीर बात है।(53)
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☆ तुम चाहे किसी चीज़ को व्यक्त करो या उसे छिपाओ, अल्लाह को तो हर चीज़ का ज्ञान है। (54)
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☆ न उनके लिए अपने बापों के सामने होने में कोई दोष है और न अपने बेटों, न अपने भाइयों, न अपने भतीजों, न अपने भांजो, न अपने मेल की स्त्रियों और न जिनपर उन्हें स्वामित्व का अधिकार प्राप्त हो उनके सामने होने में। अल्लाह का डररखो, निश्चय ही अल्लाह हर चीज़ का साक्षी है। (55)
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☆ निस्संदेह अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी पर रहमत भेजते हैं। ऐ ईमान लानेवालो, तुम भी उसपर रहमत भेजो और ख़ूब सलाम भेजो। (56)
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☆ जो लोग अल्लाह और उसके रसूल को दुख पहुँचाते हैं, अल्लाह ने उनपर दुनिया और आख़िरत में लानत की है और उनके लिए अपमानजनक यातना तैयार कर रखी है। (57)
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☆ और जो लोग ईमानवाले पुरुषों और ईमानवाली स्त्रियों को, बिना इसके कि उन्होंने कुछ किया हो (आरोप लगाकर), दुख पहुँचाते हैं, उन्होंने तो बड़े मिथ्यारोपणऔर प्रत्यक्ष गुनाह का बोझ अपने ऊपर उठा लिया। (58)
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☆ ऐ नबी! अपनी पत्नियों और अपनी बेटियों और ईमानवाली स्त्रियों से कह दो कि वे अपने ऊपर अपनी चादरों का कुछ हिस्सा लटका लिया करें। इससे इस बात की अधिक सम्भावना है कि वे पहचान ली जाएँ और सताई नजाएँ। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।(59)
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☆ यदि कपटाचारी और वे लोग जिनके दिलों में रोग है और मदीना में खलबली पैदा करनेवाली अफ़वाहें फैलाने वाले बाज़ न आएँ तो हम तुम्हें उनके विरुद्ध उभार खड़ा करेंगे। फिर वे उसमें तुम्हारे साथ थोड़ा ही रहने पाएँगे, (60)
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☆ फिटकारे हुए होंगे। जहाँ कहीं पाए गए पकड़े जाएँगे और बुरी तरह जान से मारे जाएँगे।(61)
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☆ यही अल्लाह की रीति रही है उन लोगों के विषय में भी जो पहले गुज़र चुके हैं। और तुम अल्लाह की रीति में कदापि परिवर्तन न पाओगे। (62)
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☆ लोग तुमसे क़ियामत की घड़ीके बारे में पूछते हैं। कह दो,"उसका ज्ञान तो बस अल्लाह ही के पास है। तुम्हें क्या मालूम? कदाचित वह घड़ी निकट ही हो।" (63)
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☆ निश्चय ही अल्लाह ने इनकारकरनेवालों पर लानत की है और उनके लिए भड़कती आग तैयार कर रखी है, (64)
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☆ जिसमें वे सदैव रहेंगे। न वे कोई निकटवर्ती समर्थक पाएँगे और न (दूर का) सहायक। (65)
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☆ जिस दिन उनके चहेरे आग में उलटे-पलटे जाएँगे, वे कहेंगे,"क्या ही अच्छा होता कि हमने अल्लाह का आज्ञापालन किया होता और रसूल का आज्ञापालन किया होता!" (66)
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☆ वे कहेंगे, "ऐ हमारे रब! वास्तव में हमने अपने सरदारों और अपने बड़ों की आज्ञा का पालन किया और उन्होंने हमें मार्ग से भटका दिया।(67)
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☆ "ऐ हमारे रब! उन्हें दोहरी यातना दे और उनपर बड़ी लानत कर!" (68)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! उन लोगों की तरह न हो जाना जिन्होंने मूसा को दुख पहुँचाया, तो अल्लाह ने उससे जो कुछ उन्होंने कहा था उसे बरी कर दिया। वह अल्लाह के यहाँ बड़ागरिमावान था। (69)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखो और बात कहो ठीक सधी हुई। (70)
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☆ वह तुम्हारे कर्मों को सँवार देगा और तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर देगा। औरजो अल्लाह और उसके रसूल का आज्ञापालन करे, उसने बड़ी सफलता प्राप्त कर ली है। (71)
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☆ हमने अमानत को आकाशों और धरती और पर्वतों के समक्ष प्रस्तुत किया, किन्तु उन्होंने उसके उठाने से इनकार कर दिया और उससे डर गए। लेकिन मनुष्य ने उसे उठा लिया। निश्चय ही वह बड़ा ज़ालिम, आवेश के वशीभूत हो जानेवाला है। (72)
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☆ ताकि अल्लाह कपटाचारी पुरुषों और कपटाचारी स्त्रियों और बहुदेववादी पुरुषों और बहुदेववादी स्त्रियों को यातना दे, और ईमानवाले पुरुषों और ईमानवाली स्त्रियों पर अल्लाह कृपा-दृष्टि करे। वास्तव में अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है। (73)
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