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36. या सीन    [ कुल आयतें - 83 ]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
या॰ सीन॰ (1)
_______________________________
  गवाह है हिकमतवाला क़ुरआन (2)
_______________________________
कि तुम निश्चय ही रसूलों में से हो (3)
_______________________________
  एक सीधे मार्ग पर (4)
_______________________________
क्या ही ख़ूब है, प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान का इसको अवतरित करना! (5)
_______________________________
ताकि तुम ऐसे लोगों को सावधान करो, जिनके बाप-दादा को सावधान नहीं किया गया; इस कारण वे गफ़लत में पड़े हुए हैं। (6)
_______________________________
उनमें से अधिकतर लोगों पर बात सत्यापित हो चुकी है। अतःवे ईमान नहीं लाएँगे। (7)
_______________________________
हमने उनकी गर्दनों में तौक़ डाल दिए हैं जो उनकी ठोड़ियों से लगे हैं। अतः उनके सिर ऊपर को उचके हुए हैं। (8)
_______________________________
और हमने उनके आगे एक दीवार खड़ी कर दी है और एक दीवार उनके पीछे भी। इस तरह हमने उन्हें ढाँक दिया है। अतः उन्हें कुछ सुझाई नहीं देता। (9)
_______________________________
उनके लिए बराबर है तुमने सचेत किया या उन्हें सचेत नहीं किया, वे ईमान नहीं लाएँगे। (10)
_______________________________
तुम तो बस सावधान कर रहे हो। जो कोई अनुस्मृति का अनुसरण करे और परोक्ष में रहते हुए रहमान से डरे, अतः उसे क्षमा और प्रतिष्ठामय बदले की शुभ सूचना दे दो। (11)
_______________________________
निस्संदेह हम मुर्दों को जीवित करेंगे और हम लिखेंगे जो कुछ उन्होंने आगे के लिए भेजा और उनके चिन्हों को (जो पीछे रहा) । हर चीज़ हमने एक स्पष्ट किताब में गिन रखी है।(12)
_______________________________
  उनके लिए बस्तीवालों की एकमिसाल पेश करो, जबकि वहाँ भेजे हुए दूत आए। (13)
_______________________________
जबकि हमने उनकी ओर दो दूत भेजे, तो उन्होंने उनको झुठलादिया। तब हमने तीसरे के द्वारा शक्ति पहुँचाई, तो उन्होंने कहा, "हम तुम्हारी ओर भेजे गए हैं।" (14)
_______________________________
वे बोले, "तुम तो बस हमारे ही जैसे मनुष्य हो। रहमान ने तो कोई भी चीज़ अवतरित नहीं की है। तुम केवल झूठ बोलते हो।" (15)
_______________________________
उन्होंने कहा, "हमारा रब जानता है कि हम निश्चय ही तुम्हारी ओर भेजे गए हैं (16)
_______________________________
और हमारी ज़िम्मेदारी तो केवल स्पष्ट रूप से संदेश पहुँचा देने की है।"(17)
_______________________________
वे बोले, "हम तो तुम्हें अपशकुन समझते हैं, यदि तुम बाज़ न आए तो हम तुम्हें पथराव करके मार डालेंगे और तुम्हें अवश्य हमारी ओर से दुखद यातनापहुँचेगी।" (18)
_______________________________
उन्होंने कहा, "तुम्हारा अपशकुन तो तुम्हारे अपने ही साथ है। क्या यदि तुम्हें याददिहानी कराई जाए (तो यह कोई क्रुद्ध होने की बात है)? नहीं, बल्कि तुम मर्यादाहीन लोग हो।"(19)
_______________________________
इतने में नगर के दूरवर्ती सिरे से एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया। उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! उनका अनुवर्तन करो, जो भेजे गए हैं। (20)
_______________________________
उनका अनुवर्तन करो जो तुमसे कोई बदला नहीं माँगते और वे सीधे मार्ग पर हैं। (21)
_______________________________
"और मुझे क्या हुआ है कि मैं उसकी बन्दगी न करूँ, जिसने मुझे पैदा किया और उसी की ओर तुम्हें लौटकर जाना है? (22)
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"क्या मैं उससे इतर दूसरे उपास्य बना लूँ? यदि रहमान मुझे कोई तकलीफ़ पहुँचाना चाहे तो उनकी सिफ़ारिश मेरे कुछ काम नहीं आ सकती और न वे मुझे छुड़ा ही सकते हैं। (23)
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"तब तो मैं अवश्य स्पष्ट गुमराही में पड़ जाऊँगा। (24)
_______________________________
मैं तो तुम्हारे रब पर ईमान ले आया, अतः मेरी सुनो!" (25)
_______________________________
कहा गया, "प्रवेश करो जन्नत में!" उसने कहा, "ऐ काश! मेरी क़ौम के लोग जानते (26)
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कि मेरे रब ने मुझे क्षमा कर दिया और मुझे प्रतिष्ठित लोगों में सम्मिलित कर दिया।"(27)
_______________________________
उसके पश्चात उसकी क़ौम पर हमने आकाश से कोई सेना नहीं उतारी और हम इस तरह उतारा नहीं करते। (28)
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वह तो केवल एक प्रचंड चीत्कार थी। तो सहसा क्या देखते हैं कि वे बुझकर रह गए। (29)
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ऐ अफ़सोस बन्दों पर! जो रसूल भी उनके पास आया, वे उसकापरिहास ही करते रहे।(30)
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क्या उन्होंने नहीं देखा कि उनसे पहले कितनी ही नस्लोंको हमने विनष्ट किया कि वे उनकी ओर पलटकर नहीं आएँगे? (31)
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और जितने भी हैं, सबके सब हमारे ही सामने उपस्थित किए जाएँगे। (32)
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और एक निशानी उनके लिए मृत भूमि है। हमने उसे जीवित कियाऔर उससे अनाज निकाला, तो वे खाते हैं। (33)
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और हमने उसमें खजूरों और अंगूरों के बाग़ लगाए और उसमेंस्रोत प्रवाहित किए;(34)
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  ताकि वे उसके फल खाएँ - हालाँकि यह सब कुछ उनके हाथोंका बनाया हुआ नहीं है। - तो क्या वे आभार नहीं प्रकट करते? (35)
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महिमावान है वह जिसने सबके जोड़े पैदा किए धरती जो चीज़ेंउगाती है उनमें से भी और स्वयं उनकी अपनी जाति में से भी और उन चीज़ों में से भी जिनको वे नहीं जानते।(36)
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और एक निशानी उनके लिए रात है। हम उसपर से दिन को खींच लेते हैं। फिर क्या देखते हैंकि वे अँधेरे में रह गए। (37)
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और सूर्य अपने नियत ठिकानेके लिए चला जा रहा है। यह बाँधा हुआ हिसाब है प्रभुत्वशाली, ज्ञानवान का। (38)
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और रहा चन्द्रमा, तो उसकी नियति हमने मंज़िलों के क्रम में रखी, यहाँ तक कि वह फिर खजूर की पुरानी टेढ़ी टहनी केसदृश हो जाता है। (39)
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न सूर्य ही से हो सकता है कि चाँद को जा पकड़े और न रात दिन से आगे बढ़ सकती है। सब एक-एक कक्षा में तैर रहे हैं। (40)
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और एक निशानी उनके लिए यह है कि हमने उनके अनुवर्तियों को भरी हुई नौका में सवार किया। (41)
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और उनके लिए उसी के सदृश और भी ऐसी चीज़ें पैदा की, जिनपर वे सवार होते हैं।(42)
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और यदि हम चाहें तो उन्हें डूबो दें। फिर न तो उनकी कोई चीख़-पुकार हो और न उन्हें बचाया जा सके।(43)
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यह तो बस हमारी दयालुता और एक नियत समय तक की सुख-सामग्री है। (44)
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 और जब उनसे कहा जाता है कि उस चीज़ का डर रखो, जो तुम्हारे आगे है और जो तुम्हारे पीछे है, ताकि तुमपरदया की जाए! (तो चुप्पी साध लेते हैं)(45)
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उनके पास उनके रब की आयतों में से जो आयत भी आती है, वे उससे कतराते ही हैं। (46)
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और जब उनसे कहा जाता है कि"अल्लाह ने जो कुछ रोज़ी तुम्हें दी है उनमें से ख़र्चकरो।" तो जिन लोगों ने इनकार किया है, वे उन लोगों से, जो ईमान लाए हैं, कहते हैं, "क्या हम उसको खाना खिलाएँ जिसे यदिअल्लाह चाहता तो स्वयं खिला देता? तुम तो बस खुली गुमराही में पड़े हो।" (47)
_______________________________
और वे कहते हैं कि "यह वादाकब पूरा होगा, यदि तुम सच्चे हो?" (48)
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वे तो बस एक प्रचंड चीत्कारकी प्रतीक्षा में हैं, जो उन्हें आ पकड़ेगी, जबकि वे झगड़ते होंगे।(49)
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फिर न तो वे कोई वसीयत कर पाएँगे और न अपने घरवालों की ओर लौट ही सकेंगे। (50)
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और नरसिंघा में फूँक मारी जाएगी। फिर क्या देखेंगे कि वे क़ब्रों से निकलकर अपने रबकी ओर चल पड़े हैं। (51)
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कहेंगे, "ऐ अफ़सोस हम पर! किसने हमें सोते से जगा दिया? यह वही चीज़ है जिसका रहमान ने वादा किया था और रसूलों ने सच कहा था।" (52)
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बस एक ज़ोर की चिंघाड़ होगी। फिर क्या देखेंगे कि वेसबके-सब हमारे सामने उपस्थित कर दिए गए। (53)
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अब आज किसी जीव पर कुछ भी ज़ुल्म न होगा और तुम्हें बदले में वही मिलेगा जो कुछ तुम करते रहे हो। (54)
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निश्चय ही जन्नतवाले आज किसी न किसी काम में व्यस्त आनन्द ले रहे हैं।(55)
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 वे और उनकी पत्नियाँ छायों में मसहरियों पर तकिया लगाए हुए हैं,(56)
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उनके लिए वहाँ मेवे हैं। औऱ उनके लिए वह सब कुछ मौजूद है, जिसकी वे माँग करें। (57)
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(उनपर) सलाम है, दयामय रब काउच्चारित किया हुआ। (58)
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"और ऐ अपराधियो! आज तुम छँटकर अलग हो जाओ।(59)
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क्या मैंने तुम्हें ताकीद नहीं की थी, ऐ आदम के बेटो! कि शैतान की बन्दगी न करो। वास्तव में वह तुम्हारा खुला शत्रु है।(60)
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और यह कि मेरी बन्दगी करो? यही सीधा मार्ग है। (61)
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उसने तो तुममें से बहुत-से गिरोहों को पथभ्रष्ट कर दिया। तो क्या तुम बुद्धि नहीं रखते थे? (62)
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यह वही जहन्नम है जिसकी तुम्हें धमकी दी जाती रही है।(63)
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जो इनकार तुम करते रहे हो, उसके बदले में आज इसमें प्रविष्ट हो जाओ।" (64)
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 आज हम उनके मुँह पर मुहर लगा देंगे और उनके हाथ हमसे बोलेंगे और जो कुछ वे कमाते रहे हैं, उनके पाँव उसकी गवाही देंगे। (65)
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यदि हम चाहें तो उनकी आँखें मेट दें क्योंकि वे (अपने रूढ़) मार्ग की और लपके हुए हैं। फिर उन्हें सुझाई कहाँ से देगा? (66)
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यदि हम चाहें तो उनकी जगह पर ही उनके रूप बिगाड़कर रख दें क्योंकि वे सत्य की ओर न चल सके और वे (गुमराही से) बाज़ नहीं आते। (67)
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जिसको हम दीर्घायु देते हैं, उसको उसकी संरचना में उल्टा फेर देते हैं। तो क्या वे बुद्धि से काम नहीं लेते?(68)
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हमने उस (नबी) को कविता नहीं सिखाई और न वह उसके लिए शोभनीय है। वह तो केवल अनुस्मृति और स्पष्ट क़ुरआन है; (69)
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ताकि वह उसे सचेत कर दे जो जीवन्त हो और इनकार करनेवालों पर (यातना की) बात सत्यापित हो जाए।(70)
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क्या उन्होंने देखा नहीं कि हमने उनके लिए अपने हाथों की बनाई हुई चीज़ों में से चौपाए पैदा किए और अब वे उनके मालिक हैं? (71)
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और उन्हें उनके बस में कर दिया कि उनमें से कुछ तो उनकी सवारियाँ हैं और उनमें से कुछको वे खाते हैं।(72)
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और उनके लिए उनमें कितने ही लाभ हैं और पेय भी हैं। तो क्या वे कृतज्ञता नहीं दिखलाते? (73)
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उन्होंने अल्लाह से इतर कितने ही उपास्य बना लिए हैं कि शायद उन्हें मदद पहुँचे।(74)
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वे उनकी सहायता करने की सामर्थ्य नहीं रखते, हालाँकि वे (बहुदेववादियों की अपनी दृष्टि में) उनके लिए उपस्थितसेनाएँ हैं। (75)
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अतः उनकी बात तुम्हें शोकाकुल न करे। हम जानते हैं जो कुछ वे छिपाते और जो कुछ व्यक्त करते हैं। (76)
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 क्या (इनकार करनेवाले) मनुष्य ने देखा नहींकि हमने उसे वीर्य से पैदा किया? फिर क्या देखते हैं कि वह प्रत्क्षय विरोधी झगड़ालू बनगया।(77)
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और उसने हमपर फबती कसी और अपनी पैदाइश को भूल गया। कहताहै, "कौन हड्डियों में जान डालेगा, जबकि वे जीर्ण-शीर्ण हो चुकी होंगी?" (78)
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कह दो, "उनमें वहीजान डालेगा जिसने उनको पहली बार पैदा किया। वह तो प्रत्येक संसृति को भली-भाँति जानता है।(79)
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वही है जिसने तुम्हारे लिएहरे-भरे वृक्ष से आग पैदा कर दी। तो लगे हो तुम उससे जलाने।" (80)
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क्या जिसने आकाशों और धरतीको पैदा किया उसे इसकी सामर्थ्य नहीं कि उन जैसों कोपैदा कर दे? क्यों नहीं, जबकि वह महान स्रष्टा , अत्यन्त ज्ञानवान है। (81)
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उसका मामला तो बस यह है कि जब वह किसी चीज़ (के पैदा करने) का इरादा करता है तो उससे कहता है, "हो जा!" और वह हो जाती है। (82)
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अतः महिमा है उसकी, जिसके हाथ में हर चीज़ का पूरा अधिकार है। और उसी की ओर तुम लौटकर जाओगे। (83)
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