सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ जबकि आकाश फट जाएगा, (1)
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☆ और वह अपने रब की सुनेगा, और उसे यही चाहिए भी। (2)
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☆ जब धरती फैला दी जाएगी। (3)
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☆ और जो कुछ उसके भीतर है उसे बाहर डालकर ख़ाली हो जाएगी।(4)
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☆ और वह अपने रब की सुनेगी, और उसे यही चाहिए भी। (5)
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☆ ऐ मनुष्य! तू मशक़्क़त करता हुआ अपने रब ही की ओर खिंचा चला जा रहा है और अन्ततः उससे मिलने वाला है। (6)
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☆ फिर जिस किसी को उसका कर्म-पत्र उसके दाहिने हाथ में दिया गया, (7)
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☆ तो उससे आसान, सरसरी हिसाब लिया जाएगा (8)
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☆ और वह अपने लोगों की ओर ख़ुश-ख़ुश पलटेगा। (9)
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☆ और रहा वह व्यक्ति जिसका कर्म-पत्र (उसके बाएँ हाथ में)उसकी पीठ के पीछे से दिया गया,(10)
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☆ तो वह विनाश (मृत्यु) को पुकारेगा, (11)
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☆ और दहकती आग में जा पड़ेगा। (12)
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☆ वह अपने लोगों में मग्न था,(13)
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☆ उसने यह समझ रखा था कि उसे कभी पलटना नहीं है। (14)
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☆ क्यों नहीं, निश्चय ही उसका रब तो उसे देख रहा था! (15)
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☆ अतः कुछ नहीं, मैं क़सम खाता हूँ सांध्य-लालिमा की, (16)
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☆ और रात की और उसके समेट लेने की, (17)
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☆ और चन्द्रमा की जबकि वह पूर्ण हो जाता है, (18)
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☆ निश्चय ही तुम्हें मंज़िल पर मंज़िल चढ़ना है। (19)
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☆ फिर उन्हें क्या हो गया है कि ईमान नहीं लाते? (20)
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☆ और जब उन्हें कुरआन पढ़कर सुनाया जाता है तो सजदे में नहीं गिर पड़ते? (21)
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☆ नहीं, बल्कि इनकार करनेवाले तो झुठलाते हैं, (22)
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☆ हालाँकि जो कुछ वे अपने अन्दर एकत्र कर रहे हैं, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है। (23)
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☆ अतः उन्हें दुखद यातना की मंगल सूचना दे दो। (24)
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☆ अलबत्ता जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके लिए कभी न समाप्त होनेवाला प्रतिदान है। (25)
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