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72. अल-जिन्न [ कुल आयतें - 28 ]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
☆ कह दो, "मेरी ओर प्रकाशना की गई है कि जिन्नों के एक गरोह ने सुना, फिर उन्होंने कहा कि ‘हमने एक मनभाता क़ुरआनसुना, (1)
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जो भलाई और सूझ-बूझ का मार्ग दिखाता है, अतः हम उसपर ईमान ले आए, और अब हम कदापि किसी को अपने रब का साझी नहीं ठहराएँगे। (2)
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और यह कि हमारे रब का गौरव अत्यन्त उच्च है। उसने अपने लिए न तो कोई पत्नी बनाई और न सन्तान।(3)
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और यह कि हममें का मूर्ख व्यक्ति अल्लाह के विषय में सत्य से बिल्कुल हटी हुई बातें कहता रहा है। (4)
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और यह कि हमने समझ रखा था कि मनुष्य और जिन्न अल्लाह केविषय में कभी झूठ नहीं बोलते।(5)
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और यह कि मनुष्यों में से कितने ही पुरुष ऐसे थे, जो जिन्नों में से कितने ही पुरूषों की शरण माँगा करते थे। इस प्रकार उन्होंने उन्हें (जिन्नों को) और चढ़ा दिया। (6)
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और यह कि उन्होंने गुमान किया जैसे कि तुमने गुमान किया कि अल्लाह किसी (नबी) को कदापि न उठाएगा। (7)
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और यह कि हमने आकाश को टटोला तो उसे सख़्त पहरेदारों और उल्काओं से भरा हुआ पाया। (8)
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और यह कि हम उसमें बैठने केस्थानों में सुनने के लिए बैठा करते थे, किन्तु अब कोई सुनना चाहे तो वह अपने लिए घात में लगा एक उल्का पाएगा। (9)
_______________________________
और यह कि हम नहीं जानते कि उन लोगों के साथ जो धरती में है बुराई का इरादा किया गया है या उनके रब ने उनके लिए भलाई और मार्गदर्शन का इरादा किया है। (10)
_______________________________
और यह कि हममें से कुछ लोग अच्छे हैं और कुछ लोग उससे निम्नतर हैं, हम विभिन्न मार्गों पर हैं। (11)
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  और यह कि हमने समझ लिया कि हम न धरती में कहीं जाकर अल्लाह के क़ाबू से निकल सकतेहैं, और न आकाश में कहीं भागकरउसके क़ाबू से निकल सकते हैं।(12)
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और यह कि जब हमने मार्गदर्शन की बात सुनी तो उसपर ईमान ले आए। अब जो कोई अपने रब पर ईमान लाएगा, उसे न तो किसी हक़ के मारे जाने का भय होगा और न किसी ज़ुल्म-ज़्यादती का। (13)
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और यह कि हममें से कुछ मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं और हममें से कुछ हक़ से हटे हुए हैं। तो जिन्होंने आज्ञापालनका मार्ग ग्रहण कर लिया उन्होंने भलाई और सूझ-बूझ की राह ढूँढ ली। (14)
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रहे वे लोग जो हक़ से हटे हुए हैं, तो वे जहन्नम का ईंधनहोकर रहे।" (15)
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और प्रकाशना की गई है कि यदि वे सीधे मार्ग पर धैर्यपूर्वक चलते तो हम उन्हें पर्याप्त जल से अभिषिक्त करते, (16)
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ताकि हम उसमें उनकी परीक्षा करें। और जो कोई अपनेरब की याद से कतराएगा, तो वह उसे कठोर यातना में डाल देगा।(17)
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और यह कि मस्जिदें अल्लाह के लिए हैं। अतः अल्लाह के साथ किसी और को न पुकारो। (18)
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और यह कि "जब अल्लाह का बन्दा उसे पुकारता हुआ खड़ा हुआ तो वे ऐसे लगते थे कि उसपरजत्थे बनकर टूट पड़ेंगे।"(19)
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कह दो, "मैं तो बस अपने रब ही को पुकारता हूँ, और उसके साथ किसी को साझी नहीं ठहराता।" (20)
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कह दो, "मैं तो तुम्हारे लिए न किसी हानि का अधिकार रखता हूँ और न किसी भलाई का।"-(21)
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कहो, "अल्लाह के मुक़ाबले में मुझे कोई पनाह नहीं दे सकता और न मैं उससे बचकर कतराने की कोई जगह पा सकता हूँ। - (22)
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सिवाय अल्लाह की ओर से पहुँचाने और उसके संदेश देने के। और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करेगा तो उसकेलिए जहन्नम की आग है, जिसमें ऐसे लोग सदैव रहेंगे।"(23)
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यहाँ तक कि जब वे उस चीज़ को देख लेंगे जिसका उनसे वादाकिया जाता है तो वे जान लेंगे कि कौन अपने सहायक की दृष्टि से कमज़ोर और संख्या में न्यूनतर है। (24)
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कह दो, "मैं नहीं जानता कि जिस चीज़ का तुमसे वादा किया जाता है वह निकट है या मेरा रबउसके लिए लम्बी अवधि ठहराता है। (25)    _______________________________
परोक्ष का जाननेवाला वही है और वह अपने परोक्ष को किसी पर प्रकट नहीं करता, (26)
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सिवाय उस व्यक्ति के जिसे उसने रसूल की हैसियत से पसन्दकर लिया हो तो उसके आगे से और उसके पीछे से निगरानी की पूर्ण व्यवस्था कर देता है, (27)
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ताकि वह यक़ीनी बना दे कि उन्होंने अपने रब के सन्देश पहुँचा दिए और जो कुछ उनके पास है उसे वह घेरे हुए है और हर चीज़ को उसने गिन रखा है।" (28)
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