सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ हा॰ मीम॰ (1)
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☆ ऐन॰ सीन॰ क़ाफ़॰ (2)
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☆ इसी प्रकार अल्लाह प्रुभत्वशाली, तत्वदर्शी तुम्हारी ओर और उन लोगों की ओर प्रकाशना (वह्य) करता रहा है, जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं। (3)
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☆ आकाशों और धरती में जो कुछ है उसी का है और वह सर्वोच्च महिमावान है। (4)
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☆ लगता है कि आकाश स्वयं अपनेऊपर से फट पड़े। हाल यह है कि फ़रिश्ते अपने रब का गुणगान कर रहे हैं, और उन लोगों के लिए जो धरती में हैं, क्षमा कीप्रार्थना करते रहते हैं। सुन लो! निश्चय ही अल्लाह ही क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।(5)
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☆ और जिन लोगों ने उससे हटकर अपने कुछ दूसरे संरक्षक बना रखे हैं, अल्लाह उनपर निगरानीरखे हुए है। तुम उनके कोई ज़िम्मेदार नहीं हो। (6)
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☆ और (जैसे हम स्पष्ट आयतें उतारते हैं) उसी प्रकार हमने तुम्हारी ओर एक अरबी क़ुरआन की प्रकाशना की है, ताकि तुम बस्तियों के केन्द्र (मक्का) को और जो लोग उसके चतुर्दिक हैं उनको सचेत कर दो और सचेत करो इकट्ठा होने के दिन से, जिसमें कोई सन्देह नहीं। एक गरोह जन्नत में होगा और एक गरोह भड़कती आग में। (7)
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☆ यदि अल्लाह चाहता तो उन्हें एक ही समुदाय बना देता, किन्तु वह जिसे चाहता है अपनी दयालुता में दाख़िल करता है। रहे ज़ालिम, तो उनका न तो कोई निकटवर्ती मित्र है और न कोई (दूर का) सहायक। (8)
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☆ (क्या उन्होंने अल्लाह से हटकर दूसरे सहायक बना लिए हैं,) या उन्होंने उससे हटकर दूसरे संरक्षक बना रखे हैं? संरक्षक तो अल्लाह ही है। वहीमुर्दों को जीवित करता है और उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है। (9)
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☆ (रसूल ने कहा,) "जिस चीज़ में तुमने विभेद किया है उसकाफ़ैसला तो अल्लाह के हवाले है। वही अल्लाह मेरा रब है। उसी पर मैंने भरोसा किया है, और उसी की ओर में रुजू करता हूँ। (10)
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☆ वह आकाशों और धरती का पैदा करनेवाला है। उसने तुम्हारे लिए तुम्हारी अपनी सहजाति से जोड़े बनाए और चौपायों के जोड़े भी। फैला रहा है वह तुमको अपने में। उसके सदृश कोई चीज़ नहीं। वही सबकुछ सुनता, देखता है। (11)
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☆ आकाशों और धरती की कुंजियाँ उसी के पास हैं। वह जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है नपी-तुली कर देता है। निस्संदेह उसे हर चीज़ का ज्ञान है। (12)
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☆ उसने तुम्हारे लिए वही धर्म निर्धारित किया जिसकी ताकीद उसने नूह को की थी।" और वह (जीवन्त आदेश) जिसकी प्रकाशना हमने तुम्हारी ओर की है और वह जिसकी ताकीद हमने इबराहीम और मूसा और ईसा को की थी यह है कि "धर्म को क़ायम करो और उसके विषय में अलग-अलग न हो जाओ।" बहुदेववादियों को वह चीज़ बहुत अप्रिय है, जिसकी ओर तुम उन्हें बुलाते हो। अल्लाह जिसे चाहता है अपनी ओर छाँट लेता है और अपनी ओर का मार्ग उसी को दिखाता है जो उसकी ओर रुजू करता है। (13)
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☆ उन्होंने तो परस्पर एक-दूसरे पर ज़्यादती करने केउद्देश्य से इसके पश्चात विभेद किया कि उनके पास ज्ञानआ चुका था। और यदि तुम्हारे रब की ओर से एक नियत अवधि तक के लिए बात पहले निश्चित न हो चुकी होती तो उनके बीच फ़ैसलाचुका दिया गया होता। किन्तु जो लोग उनके पश्चात किताब के वारिस हुए वे उसकी ओर से एक उलझन में डाल देनेवाले संदेह में पड़े हुए हैं। (14)
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☆ अतः इसी लिए (उन्हें सत्य की ओर) बुलाओ, और जैसा कि तुम्हें हुक्म दिया गया है स्वयं क़ायम रहो, और उनकी इच्छाओं का पालन न करना और कह दो, "अल्लाह ने जो किताब अवतरित की है, मैं उसपर ईमान लाया। मुझे तो आदेश हुआ है कि मैं तुम्हारे बीच न्याय करूँ। अल्लाह ही हमारा भी रब है और तुम्हारा भी। हमारे लिएहमारे कर्म हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म। हममें और तुममें कोई झगड़ा नहीं। अल्लाह हम सबको इकट्ठा करेगा और अन्ततः उसी की ओर जाना है।"(15)
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☆ जो लोग अल्लाह के विषय में झगड़ते हैं, इसके पश्चात कि उसकी पुकार स्वीकार कर ली गई, उनका झगड़ना उनके रब की दृष्टि में बिलकुल न ठहरनेवाला (असत्य) है। प्रकोपहै उनपर और उनके लिए कड़ी यातना है। (16)
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☆ वह अल्लाह ही है जिसने हक़ के साथ किताब और तुला अवतरित की। और तुम्हें क्या मालूम कदाचित क़ियामत की घड़ी निकट ही आ लगी हो। (17)
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☆ उसकी जल्दी वे लोग मचाते हैं जो उसपर ईमान नहीं रखते, किन्तु जो ईमान रखते हैं वे तो उससे डरते हैं और जानते हैं कि वह सत्य है। जान लो, जो लोग उस घड़ी के बारे में सन्देह डालनेवाली बहसें करतेहैं, वे परले दरजे की गुमराही में पड़े हुए हैं। (18)
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☆ अल्लाह अपने बन्दों पर अत्यन्त दयालु है। वह जिसे चाहता है रोज़ी देता है। वह शक्तिमान, अत्यन्त प्रभुत्वशाली है। (19)
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☆ जो कोई आख़िरत की खेती चाहता है, हम उसके लिए उसकी खेती में बढ़ोत्तरी प्रदान करेंगे और जो कोई दुनिया की खेती चाहता है, हम उसमें से उसे कुछ दे देते हैं, किन्तु आख़िरत में उसका कोई हिस्सा नहीं। (20)
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☆ (क्या उन्हें समझ नहीं) या उनके कुछ ऐसे (ठहराए हुए) साझीदार हैं, जिन्होंने उनके लिए कोई ऐसा धर्म निर्धारित कर दिया है जिसकी अनुज्ञा अल्लाह ने नहीं दी? यदि फ़ैसले की बात निश्चित न हो गई होती तो उनके बीच फ़ैसला हो चुका होता। निश्चय ही ज़ालिमों के लिए दुखद यातना है। (21)
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☆ तुम ज़ालिमों को देखोगे किउन्होंने जो कुछ कमाया उससे डर रहे होंगे, किन्तु वह तो उनपर पड़कर रहेगा। किन्तु जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वे जन्नतों की वाटिकाओं में होंगे। उनके लिए उनके रब के पास वह सब कुछ है जिसकी वे इच्छा करेंगे। वही तो बड़ा उदार अनुग्रह है।(22)
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☆ उसी की शुभ सूचना अल्लाह अपने बन्दों को देता है जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए- कहो, "मैं इसका तुमसे कोई पारिश्रमिक नहीं माँगता, बस निकटता का प्रेम-भाव चाहता हूँ, जो कोई नेकी कमाएगा हम उसके लिए उसमें अच्छाई की अभिवृद्धि करेंगे।निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, गुणग्राहक है।" (23)
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☆ (क्या वे ईमान नहीं लाएँगे) या उनका कहना है कि "इस व्यक्ति ने अल्लाह पर मिथ्यारोपण किया है?" यदि अल्लाह चाहे तो तुम्हारे दिल पर मुहर लगा दे (जिस प्रकार उसने इनकार करनेवालों के दिल पर मुहर लगा दी है)। अल्लाह तोअसत्य को मिटा रहा है और सत्य को अपने बोलों से सत्य सिद्ध कर रहा है। निश्चय ही वह सीनों तक की बात को भी भली-भाँति जानता है।(24)
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☆ वही है जो अपने बन्दों की तौबा क़बूल करता है और बुराइयों को माफ़ करता है, हालाँकि वह जानता है, जो कुछ तुम करते हो। (25)
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☆ और वह उन लोगों की प्रार्थनाएँ स्वीकार करता हैजो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए। और अपने उदारअनुग्रह से उन्हें और अधिक प्रदान करता है। रहे इनकार करनेवाले, तो उनके लिए कड़ी यातना है। (26)
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☆ यदि अल्लाह अपने बन्दों केलिए रोज़ी कुशादा कर देता तो वे धरती में सरकशी करने लगते।किन्तु वह एक अंदाज़े के साथ जो चाहता है, उतारता है। निस्संदेह वह अपने बन्दों की ख़बर रखनेवाला है। वह उनपर निगाह रखता है। (27)
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☆ वही है जो इसके पश्चात कि लोग निराश हो चुके होते हैं, मींह बरसाता है और अपनी दयालुता को फैला देता है। और वही है संरक्षक मित्र, प्रशंसनीय! (28)
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☆ और उसकी निशानियों में से है आकाशों और धरती को पैदा करना, और वे जीवधारी भी जो उसने इन दोनों में फैला रखे हैं। वह जब चाहे उन्हें इकट्ठा करने की सामर्थ्य भी रखता है। (29)
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☆ जो मुसीबत तुम्हें पहुँची वह तो तुम्हारे अपने हाथों कीकमाई से पहुँची और बहुत कुछ तो वह माफ़ कर देता है। (30)
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☆ तुम धरती में क़ाबू से निकल जानेवाले नहीं हो, और न अल्लाह से हटकर तुम्हारा कोई संरक्षक मित्र है और न सहायक ही। (31)
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☆ उसकी निशानियों में से समुद्र में पहाड़ों के सदृश चलते जहाज़ भी हैं। (32)
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☆ यदि वह चाहे तो वायु को ठहरा दे, तो वे समुद्र की पीठ पर ठहरे रह जाएँ - निश्चय ही इसमें कितनी ही निशानियाँ हैं हर उस व्यक्ति के लिए जो अत्यन्त धैर्यवान, कृतज्ञ हो। (33)
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☆ या उनको उनकी कमाई के कारण विनष्ट कर दे और बहुतों को माफ़ भी कर दे। (34)
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☆ और परिणामतः वे लोग जान लें जो हमारी आयतों में झगड़ते हैं कि उनके लिए भागनेकी कोई जगह नहीं। (35)
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☆ तुम्हें जो चीज़ भी मिली हैवह तो सांसारिक जीवन की अस्थायी सुख-सामग्री है। किन्तु जो कुछ अल्लाह के पास है वह उत्तम भी है और शेष रहनेवाला भी, वह उन्हीं के लिए है जो ईमान लाए और अपने रबपर भरोसा रखते हैं;(36)
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☆ जो बड़े-बड़े गुनाहों और अश्लील कर्मों से बचते हैं औरजब उन्हें (किसी पर) क्रोध आताहै तो वे क्षमा कर देते हैं; (37)
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☆ और जिन्होंने अपने रब का हुक्म माना और नमाज़ क़ायम की, और उनका मामला उनके पारस्परिक परामर्श से चलता है, और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से ख़र्च करते हैं; (38)
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☆ और जो ऐसे हैं कि जब उनपर ज़्यादती होती है तो वे प्रतिशोध करते हैं। (39)
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☆ बुराई का बदला वैसी ही बुराई है। किन्तु जो क्षमा करदे और सुधार करे तो उसका बदला अल्लाह के ज़िम्मे है। निश्चय ही वह ज़ालिमों को पसन्द नहीं करता। (40)
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☆ और जो कोई अपने ऊपर ज़ु्ल्म होने के पश्चात बदला ले ले, तो ऐसे लोगों पर कोई इलज़ाम नहीं। (41)
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☆ इलज़ाम तो केवल उनपर आता है जो लोगों पर ज़ुल्म करते हैं और धरती में नाहक़ ज़्यादती करते हैं। ऐसे लोगों के लिए दुखद यातना है। (42)
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☆ किन्तु जिसने धैर्य से कामलिया और क्षमा कर दिया तो निश्चय ही वह उन कामों में से है जो (सफलता के लिए) आवश्यक ठहरा दिए गए हैं। (43)
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☆ जिस व्यक्ति को अल्लाह गुमराही में डाल दे, तो उसके पश्चात उसे संभालनेवाला कोई भी नहीं। तुम ज़ालिमों को देखोगे कि जब वे यातना को देख लेंगे तो कह रहे होंगे, "क्या लौटने का भी कोई मार्ग है?"(44)
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☆ और तुम उन्हें देखोगे कि वे उस (जहन्नम) पर इस दशा में लाए जा रहे हैं कि बेबसी और अपमान के कारण दबे हुए हैं। कनखियों से देख रहे हैं। जो लोग ईमान लाए, वे उस समय कहेंगे कि "निश्चय ही घाटे में पड़नेवाले वही हैं जिन्होंने क़ियामत के दिन अपने आपको और अपने लोगों को घाटे में डाल दिया। सावधान! निश्चय ही ज़ालिम स्थिर रहनेवाली यातना में होंगे। (45)
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☆ और उनके कुछ संरक्षक भी न होंगे, जो सहायता करके उन्हेंअल्लाह से बचा सकें। जिसे अल्लाह गुमराही में डाल दे तोउसके लिए फिर कोई मार्ग नहीं।" (46)
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☆ अपने रब की बात मान लो इससेपहले कि अल्लाह की ओर से वह दिन आ जाए जो पलटने का नहीं। उस दिन तुम्हारे लिए न कोई शरण-स्थल होगा और न तुम किसी चीज़ को रद्द कर सकोगे। (47)
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☆ अब यदि वे ध्यान में न लाएँ तो हमने तुम्हें उनपर कोई रक्षक बनाकर तो भेजा नहीं है।तुम पर तो केवल (संदेश) पहुँचादेने की ज़िम्मेदारी है। हाल यह है कि जब हम मनुष्य को अपनीओर से किसी दयालुता का आस्वादन कराते हैं तो वह उसपरइतराने लगता है, किन्तु ऐसे लोगों के हाथों ने जो कुछ आगे भेजा है उसके कारण यदि उन्हेंकोई तकलीफ़ पहुँचती है तो निश्चय ही वही मनुष्य बड़ा कृतघ्न बन जाता है।(48)
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☆ अल्लाह ही की है आकाशों और धरती की बादशाही। वह जो चाहताहै पैदा करता है, जिसे चाहता है लड़कियाँ देता है और जिसे चाहता है लड़के देता है। (49)
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☆ या उन्हें लड़के और लड़कियाँ मिला-जुलाकर देता है और जिसे चाहता है निस्संतान रखता है। निश्चय ही वह सर्वज्ञ, सामर्थ्यवान है। (50)
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☆ किसी मनुष्य की यह शान नहीं कि अल्लाह उससे बात करे, सिवाय इसके कि प्रकाशना के द्वारा या परदे के पीछे से (बात करे)। या यह कि वह एक रसूल(फ़रिश्ता) भेज दे, फिर वह उसकी अनुज्ञा से जो कुछ वह चाहता है प्रकाशना कर दे। निश्चय ही वह सर्वोच्च अत्यन्त तत्वदर्शी है। (51)
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☆ और इसी प्रकार हमने अपने आदेश से एक रूह (क़ुरआन) की प्रकाशना तुम्हारी ओर की है। तुम नहीं जानते थे कि किताब क्या होती है और न ईमान को (जानते थे), किन्तु हमने इस (प्रकाशना) को एक प्रकाश बनाया, जिसके द्वारा हम अपने बन्दों में से जिसे चाहते हैंमार्ग दिखाते हैं। निश्चय ही तुम एक सीधे मार्ग की ओर पथप्रदर्शन कर रहे हो- (52)
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☆ उस अल्लाह के मार्ग की ओर जिसका वह सब कुछ है, जो आकाशोंमें है और जो धरती में है। सुनलो, सारे मामले अन्ततः अल्लाहही की ओर पलटते हैं। (53)
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