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70. अल-मआरिज    [ कुल आयतें - 44 ]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
एक माँगनेवाले ने घटित होनेवाली यातना माँगी, (1)
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जो इनकार करनेवालों के लिएहोगी, उसे कोई टालनेवाला नहीं, (2)
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वह अल्लाह की ओर से होगी, जो चढ़ाव के सोपानों का स्वामी है। (3)
_______________________________
फ़रिश्ते और रूह (जिबरील) उसकी ओर चढ़ते हैं- उस दिन मेंजिसकी अवधि पचास हज़ार वर्ष है। (4)
_______________________________
अतः धैर्य से काम लो, उत्तमधैर्य। (5)
_______________________________
वे उसे बहुत दूर देख रहे हैं, (6)
_______________________________
किन्तु हम उसे निकट देख रहे हैं। (7)
_______________________________
जिस दिन आकाश तेल की तलछट जैसा काला हो जाएगा, (8)
_______________________________
और पर्वत रंग-बिरंगे ऊन के सदृश हो जाएँगे। (9)
_______________________________
कोई मित्र किसी मित्र को न पूछेगा, (10)
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हालाँकि वे एक-दूसरे को दिखाए जाएँगे। अपराधी चाहेगाकि किसी प्रकार वह उस दिन की यातना से छूटने के लिए अपने बेटों, (11)
_______________________________
अपनी पत्नी, अपने भाई (12)
_______________________________
और अपने उस परिवार को जो उसको आश्रय देता है, (13)
_______________________________
और उन सभी लोगों को जो धरतीमें रहते हैं, फ़िदया (मुक्ति-प्रतिदान) के रूप में दे डाले फिर वह उसको छुटकारा दिला दे।(14)
_______________________________
कदापि नहीं! वह लपट मारती हुई आग है, (15)
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जो मांस और त्वचा को चाट जाएगी, (16)
_______________________________
वह उस व्यक्ति को बुलाती हैजिसने पीठ फेरी और मुँह मोड़ा,(17)
_______________________________
और (धन) एकत्र किया और सैंत कर रखा। (18)
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निस्संदेह मनुष्य अधीर पैदा हुआ है। (19)    _______________________________
जब उसे तकलीफ़ पहुँचती है तो घबरा उठता है, (20)
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किन्तु जब उसे सम्पन्नता प्राप्त होती है तो वह कृपणतादिखाता है। (21)
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किन्तु नमाज़ अदा करनेवालों की बात और है, (22)
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जो अपनी नमाज़ पर सदैव जमे रहते हैं, (23)
_______________________________
और जिनके मालों में (24)
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माँगनेवालों और वंचित का एक ज्ञात और निश्चित हक़ होताहै, (25)
_______________________________
जो बदले के दिन को सत्य मानते हैं, (26)
_______________________________
जो अपने रब की यातना से डरते हैं - (27)
_______________________________
उनके रब की यातना है ही ऐसीजिससे निश्चिन्त न रहा जाए - (28)
_______________________________
जो अपनी पत्नियों या जो उनकी मिल्क में हों उनके अतिरिक्त दूसरों से अपने गुप्तांगों की रक्षा करते हैं।(29)
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तो इस बात पर उनकी कोई भर्त्सना नहीं। -(30)
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किन्तु जिस किसी ने इसके अतिरिक्त कुछ और चाहा तो ऐसे ही लोग सीमा का उल्लंघन करनेवाले हैं।- (31)
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जो अपने पास रखी गई अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह करते हैं, (32)
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जो अपनी गवाहियों पर क़़ायम रहते हैं, (33)
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जो अपनी नमाज़ की रक्षा करते हैं। (34)
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वही लोग जन्नतों में सम्मानपूर्वक रहेंगे। (35)
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फिर उन इनकार करनेवालों को क्या हुआ है(36)
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कि वे दाएँ और बाएँ से गरोहके गरोह तुम्हारी ओर दौड़े चले आ रहे हैं?(37)
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क्या उनमें से प्रत्येक व्यक्ति इसकी लालसा रखता है कि वह अनुकम्पा से परिपूर्ण जन्नत में प्रविष्ट हो? (38)
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कदापि नहीं, हमने उन्हें उस चीज़ से पैदा किया है, जिसेवे भली-भाँति जानते हैं। (39)
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अतः कुछ नहीं, मैं क़सम खाता हूँ पूर्वों और पश्चिमों के रब की, हमें इसकी सामर्थ्य प्राप्त है (40)
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कि उनकी जगह उनसे अच्छे ले आएँ और हम पिछड़ जानेवाले नहीं हैं। (41)
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अतः उन्हें छोड़ो कि वे व्यर्थ बातों में पड़े रहें और खेलते रहें, यहाँ तक कि वे अपने उस दिन से मिलें, जिसका उनसे वादा किया जा रहा है, (42)
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जिस दिन वे क़ब्रों से तेज़ी के साथ निकलेंगे जैसे किसी निशान की ओर दौड़े जा रहे हैं, (43)
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उनकी निगाहें झुकी होंगी, ज़िल्लत उनपर छा रही होगी। यहहै वह दिन जिससे वे डराए जाते रहे हैं। (44)
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