सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ अलिफ़॰ लाम॰ रा॰। ये तत्वदर्शितायुक्त किताब की आयतें हैं।(1)
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☆ क्या लोगों को इस बात पर आश्चर्य है कि हमने उन्ही मेंसे एक आदमी की ओर प्रकाशना की कि लोगों को सचेत कर दो और जो लोग मान लें, उनको शुभ समाचार दे दो कि उनके लिए उनके रब के पास शाश्वत सच्चा उन्नत स्थान है? इनकार करनेवाले कहने लगे, "निस्संदेह यह एक खुला जादूगर है।" (2)
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☆ निस्संदेह तुम्हारा रब वही अल्लाह है, जिसने आकाशों और धरती को छः दिनों में पैदा किया, फिर सिंहासन पर विराजमान होकर व्यवस्था चला रहा है। उसकी अनुज्ञा के बिनाकोई सिफ़ारिश करनेवाला नहीं है। वह अल्लाह है तुम्हारा रब। अतः उसी की बन्दगी करो। तो क्या तुम ध्यान न दोगे? (3)
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☆ उसी की ओर तुम सबको लौटना है। यह अल्लाह का पक्का वादा है। निस्संदेह वही पहली बार पैदा करता है। फिर दोबारा पैदा करेगा, ताकि जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उन्हें न्यायपूर्वक बदलादे। रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया उनके लिए खौलता पेय और दुखद यातना है, उस इनकार के बदले में जो वे करते रहे। (4)
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☆ वही है जिसने सूर्य को सर्वथा दीप्ति और चन्द्रमा को प्रकाश बनाया औऱ उनके लिए मंज़िलें निश्चित कीं, ताकि तुम वर्षों की गिनती और हिसाबमालूम कर लिया करो। अल्लाह नेयह सब कुछ सोद्देश्य ही पैदा किया है। वह अपनी निशानियों को उन लोगों के लिए खोल-खोलकर बयान करता है, जो जानना चाहें। (5)
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☆ निस्संदेह रात और दिन के उलट-फेर में और जो कुछ अल्लाह ने आकाशों और धरती में पैदा किया उसमें डर रखनेवाले लोगों के लिए निशानियाँ हैं। (6)
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☆ रहे वे लोग जो हमसे मिलने की आशा नहीं रखते और सांसारिकजीवन ही पर निहाल हो गए हैं औरउसी पर संतुष्ट हो बैठे, और जोहमारी निशानियों की ओर से असावधान हैं; (7)
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☆ ऐसे लोगों का ठिकाना आग है,उसके बदले में जो वे कमाते रहे। (8)
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☆ रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उनका रब उनके ईमान के कारण उनका मार्गदर्शन करेगा। उनकेनीचे नेमत भरी जन्नतों में नहरें बह रही होंगी। (9)
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☆ वहाँ उनकी पुकार यह होगी कि "महिमा है तेरी, ऐ अल्लाह!" और उनका पारस्परिक अभिवादन"सलाम" होगा। और उनकी पुकार काअन्त इसपर होगा कि "प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है जो सारे संसार का रब है।" (10)
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☆ यदि अल्लाह लोगों के लिए उनके जल्दी मचाने के कारण भलाई की जगह बुराई को शीघ्र घटित कर दे तो उनकी ओर उनकी अवधि पूरी कर दी जाए, किन्तु हम उन लोगों को जो हमसे मिलने की आशा नहीं रखते उनकी अपनी सरकशी में भटकने के लिए छोड़ देते हैं। (11)
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☆ मनुष्य को जब कोई तकलीफ़ पहुँचती है, वह लेटे या बैठे या खड़े हमको पुकारने लग जाताहै। किन्तु जब हम उसकी तकलीफ़उससे दूर कर देते हैं तो वह इसतरह चल देता है मानो कभी कोई तकलीफ़ पहुँचने पर उसने हमें पुकारा ही न था। इसी प्रकार मर्यादाहीन लोगों के लिए जो कुछ वे कर रहे हैं सुहावना बना दिया गया है। (12)
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☆ तुमसे पहले कितनी ही नस्लों को, जब उन्होंने अत्याचार किया, हम विनष्ट कर चुके हैं, हालाँकि उनके रसूल उनके पास खुली निशानियाँ लेकर आए थे। किन्तु वे ऐसे न थे कि उन्हें मानते। अपराधी लोगों को हम इसी प्रकार बदला दिया करते हैं। (13)
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☆ फिर उनके पश्चात हमने धरतीमें उनकी जगह तुम्हें रखा, ताकि हम देखें कि तुम कैसे कर्म करते हो। (14)
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☆ और जब उनके सामने हमारी खुली हुई आयतें पढ़ी जाती हैंतो वे लोग, जो हमसे मिलने की आशा नहीं रखते, कहते हैं,"इसके सिवा कोई और क़ुरआन ले आओ या इसमें कुछ परिवर्तन करो।" कह दो, "मुझसे यह नहीं हो सकता कि मैं अपनी ओर से इसमें कोई परिवर्तन करूँ। मैं तो बस उसका अनुपालन करता हूँ, जो प्रकाशना मेरी ओर अवतरित की जाती है। यदि मैं अपने प्रभु की अवज्ञा करूँ तोइसमें मुझे एक बड़े दिन की यातना का भय है।"(15)
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☆ कह दो, "यदि अल्लाह चाहता तो मैं तुम्हें यह पढ़कर न सुनाता और न वह तुम्हें इससे अवगत कराता। आख़िर इससे पहले मैं तुम्हारे बीच जीवन की पूरी अवधि व्यतीत कर चुका हूँ। फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते?" (16)
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☆ फिर उस व्यक्ति से बढ़कर अत्याचारी कौन होगा जो अल्लाह पर थोपकर झूठ घड़े या उसकी आयतों को झुठलाए? निस्संदेह अपराधी कभी सफल नहीं होते। (17)
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☆ वे लोग अल्लाह से हटकर उनको पूजते हैं, जो न उनका कुछबिगाड़ सकें और न उनका कुछ भला कर सकें। और वे कहते हैं,"ये अल्लाह के यहाँ हमारे सिफ़ारिशी हैं।" कह दो, "क्या तुम अल्लाह को उसकी ख़बर देनेवाले? हो, जिसका अस्तित्वन उसे आकाशों में ज्ञात है न धरती में" महिमावान है वह और उसकी उच्चता के प्रतिकूल है वह शिर्क, जो वे कर रहे हैं। (18)
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☆ सारे मनुष्य एक ही समुदाय थे। वे तो स्वयं अलग-अलग हो रहे। और यदि तेरे रब की ओर से पहले ही एक बात निश्चित न हो गई होती, तो उनके बीच उस चीज़ का फ़ैसला कर दिया जाता जिसमेंवे मतभेद कर रहे हैं। (19)
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☆ वे कहते हैं, "उस पर उनके रब की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं उतरी?" तो कह दो, "परोक्ष तो अल्लाह ही से सम्बन्ध रखताहै। अच्छा, प्रतीक्षा करो, मैं भी तुम्हारे साथ प्रतीक्षा करता हूँ।" (20)
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☆ जब हम लोगों को उनके किसी तकलीफ़ में पड़ने के पश्चात दयालुता का रसास्वादन कराते हैं तो वे हमारी आयतों के विषय में चालबाज़ियाँ करने लग जाते हैं। कह दो, "अल्लाह की चाल ज़्यादा तेज़ है।" निस्संदेह, जो चालबाजियाँ तुम कर रहे हो, हमारे भेजे हुए(फ़रिश्ते) उनको लिखते जा रहे हैं। (21)
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☆ वही है जो तुम्हें थल और जल में चलाता है, यहाँ तक कि जब तुम नौका में होते हो और वह लोगों को लिए हुए अच्छी अनुकूल वायु के सहारे चलती हैऔर वे उससे हर्षित होते हैं कि अकस्मात उनपर प्रचंड वायु का झोंका आता है, हर ओर से लहरें उनपर चली आती हैं और वे समझ लेते हैं कि बस अब वे घिर गए, उस समय वे अल्लाह ही को, निरी उसी पर आस्था रखकर पुकारने लगते हैं, "यदि तूने हमें इससे बचा लिया तो हम अवश्य आभारी होंगे।"(22)
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☆ फिर जब वह उनको बचा लेता है, तो क्या देखते हैं कि वे नाहक़ धरती में सरकशी करने लगजाते हैं। ऐ लोगो! तुम्हारी सरकशी तुम्हारे अपने ही विरुद्ध है। सांसारिक जीवन का सुख ले लो। फिर तुम्हें हमारी ही ओर लौटकर आना है। फिर हम तुम्हें बता देंगे जो कुछ तुम करते रहे होगे। (23)
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☆ सांसारिक जीवन की उपमा तो बस ऐसी है जैसे हमने आकाश से पानी बरसाया, तो उसके कारण धरती से उगनेवाली चीज़ें, जिनको मनुष्य और चौपाये सभी खाते हैं, घनी हो गईं, यहाँ तक कि जब धरती ने अपना ऋंगार कर लिया और सँवर गई और उसके मालिक समझने लगे कि उन्हें उसपर पूरा अधिकार प्राप्त है कि रात या दिन में हमारा आदेश आ पहुँचा। फिर हमने उसे कटी फ़सल की तरह कर दिया, मानो कल वहाँ कोई आबादी ही न थी। इसी तरह हम उन लोगों के लिए खोल-खोलकर निशानियाँ बयान करते हैं, जो सोच-विचार से कामलेना चाहें।(24)
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☆ और अल्लाह तुम्हें सलामती के घर की ओर बुलाता है, और जिसे चाहता है सीधी राह चलाताहै; (25)
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☆ अच्छे से अच्छा कर्म करनेवालों के लिए अच्छा बदला है और इसके अतिरिक्त और भी। और उनके चहरों पर न तो कलौंस छाएगी और न ज़िल्लत। वही जन्नतवाले हैं; वे उसमें सदैवरहेंगे। (26)
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☆ रहे वे लोग जिन्होंने बुराइयाँ कमाई, तो एक बुराई का बदला भी उसी जैसा होगा; और ज़िल्लत उनपर छा रही होगी। उन्हें अल्लाह से बचानेवाला कोई न होगा। उनके चहरों पर मानो अँधेरी रात के टुकड़े ओढ़ा दिए गए हों। वही आगवाले हैं, उन्हें उसमें सदैव रहना है। (27)
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☆ और जिस दिन हम उन सबको इकट्ठा करेंगे, फिर उन लोगों से, जिन्होंने शिर्क किया होगा, कहेंगे, "अपनी जगह ठहरे रहो तुम भी और तुम्हारे साझीदार भी।" फिर हम उनके बीच अलगाव पैदा कर देंगे, और उनके ठहराए हुए साझीदार कहेंगे,"तुम हमारी तो हमारी बन्दगी नहीं करते थे। (28)
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☆ "हमारे और तुम्हारे बीच अल्लाह ही एक गवाह काफ़ी है। हमें तो तुम्हारी बन्दगी की ख़बर तक न थी।" (29)
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☆ वहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपने पहले के किए हुए कर्मों को स्वयं जाँच लेगा और वह अल्लाह, अपने वास्तविक स्वामी की ओर फिरेंगे और जो कुछ झूठ वे घड़ते रहे थे, वह सब उनसे गुम होकर रह जाएगा। (30)
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☆ कहो, "तुम्हें आकाश और धरतीसे रोज़ी कौन देता है, या ये कान और आँखें किसके अधिकार में हैं और कौन जीवन्त को निर्जीव से निकालता है और निर्जीव को जीवन्त से निकालता है और कौन यह सारा इन्तिज़ाम चला रहा है?" इसपर वे बोल पड़ेंगे, "अल्लाह!" तो कहो, "फिर आख़िर तुम क्यों नहीं डर रखते?" (31)
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☆ फिर यही अल्लाह तो है तुम्हारा वास्तविक रब। फिर आख़िर सत्य के पश्चात पथभ्रष्टता के अतिरिक्त और क्या रह जाता है? फिर तुम कहाँसे फिरे जाते हो? (32)
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☆ इसी तरह अवज्ञाकारी लोगों के प्रति तुम्हारे रब की बात सच्ची होकर रही कि वे मानेंगेनहीं। (33)
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☆ कहो, "क्या तुम्हारे ठहराएहुए साझीदारों में कोई है जो सृष्टि का आरम्भ भी करता हो, फिर उसकी पुनरावृत्ति भी करे?" कहो, "अल्लाह ही सृष्टि का आरम्भ करता है और वही उसकी पुनरावृत्ति भी; आख़िर तुम कहाँ औंधे हुए जाते हो?" (34)
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☆ कहो, "क्या तुम्हारे ठहराएसाझीदारों में कोई है जो सत्यकी ओर मार्गदर्शन करे?" कहो,"अल्लाह ही सत्य के मार्ग पर चलाता है। फिर जो सत्य की ओर मार्गदर्शन करता हो, वह इसका ज़्यादा हक़दार है कि उसका अनुसरण किया जाए या वह जो स्वयं ही मार्ग न पाए जब तक किउसे मार्ग न दिखाया जाए? फिर यह तुम्हें क्या हो गया है, तुम कैसे फ़ैसले कर रहे हो?" (35)
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☆ और उनमें से अधिकतर तो बस अटकल पर चलते हैं। निश्चय ही अटकल सत्य को कुछ भी दूर नहीं कर सकती। वे जो कुछ कर रहे हैंअल्लाह उसको भली-भाँति जानता है। (36)
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☆ यह क़ुरआन ऐसा नहीं है कि अल्लाह से हटकर घड़ लिया जाए, बल्कि यह तो जिसके समक्ष है, उसकी पुष्टि में है और किताब का विस्तार है, जिसमें किसी संदेह की गुंजाइश नहीं। यह सारे संसार के रब की ओर से है।(37)
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☆ (क्या उन्हें कोई खटक है) या वे कहते हैं, "इस व्यक्ति (पैग़म्बर) ने उसे स्वयं ही घड़ लिया है?" कहो, "यदि तुम सच्चे हो, तो इस जैसी एक सूरा ले आओ और अल्लाह से हटकर उसे बुला लो, जिसपर तुम्हारा बस चले।" (38)
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☆ बल्कि बात यह है कि जिस चीज़ के ज्ञान पर वे हावी न होसके, उसे उन्होंने झुठला दियाऔर अभी उसका परिणाम उनके सामने नहीं आया। इसी प्रकार उन लोगों ने भी झुठलाया था, जोइनसे पहले थे। फिर देख लो उन अत्याचारियों का कैसा परिणामहुआ! (39)
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☆ उनमें कुछ लोग उसपर ईमान रखनेवाले हैं और उनमें कुछ लोग उसपर ईमान लानेवाले नहीं हैं। और तुम्हारा रब बिगाड़ पैदा करनेवालों को भली-भाँति जानता है। (40)
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☆ और यदि वे तुझे झुठलाएँ तो कह दो, "मेरा कर्म मेरे लिए है और तुम्हारा कर्म तुम्हारे लिए। जो कुछ मैं करता हूँ उसकी ज़िम्मेदारी से तुम बरी हो और जो कुछ तुम करते हो उसकीज़िम्मेदारी से मैं बरी हूँ।"(41)
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☆ और उनमें बहुत-से ऐसे लोग हैं जो तेरी ओर कान लगाते हैं। किन्तु क्या तू बहरों कोसुनाएगा, चाहे वे समझ न रखते हों? (42)
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☆ और कुछ उनमें ऐसे हैं, जो तेरी ओर ताकते हैं, किन्तु क्या तू अंधों को मार्ग दिखाएगा, चाहे उन्हें कुछ सूझता न हो? (43)
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☆ अल्लाह तो लोगों पर तनिक भी अत्याचार नहीं करता, किन्तु लोग स्वयं ही अपने ऊपरअत्याचार करते हैं। (44)
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☆ जिस दिन वह उनको इकट्ठा करेगा तो ऐसा जान पड़ेगा जैसेवे दिन की एक घड़ी भर ठहरे थे।वे परस्पर एक-दूसरे को पहचानेंगे। वे लोग घाटे में पड़ गए, जिन्होंने अल्लाह से मिलने को झुठलाया और वे मार्गन पा सके। (45)
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☆ जिस चीज़ का हम उनसे वादा करते हैं उसमें से कुछ चाहे तुझे दिखा दें या हम तुझे (इससे पहले) उठा लें, उन्हें तो हमारी ओर लौटकर आना ही है। फिर जो कुछ वे कर रहे हैं उसपरअल्लाह गवाह है। (46)
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☆ प्रत्येक समुदाय के लिए एकरसूल है। फिर जब उनके पास उनका रसूल आ जाता है तो उनके बीच न्यायपूर्वक फ़ैसला कर दिया जाता है। उनपर कुछ भी अत्याचार नहीं किया जाता। (47)
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☆ वे कहते हैं, "यदि तुम सच्चे हो तो यह वादा कब पूरा होगा?" (48)
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☆ कहो, "मुझे अपने लिए न तो किसी हानि का अधिकार प्राप्त है और न लाभ का, बल्कि अल्लाह जो चाहता है वही होता है। हर समुदाय के लिए एक नियत समय है,जब उनका नियत समय आ जाता है तोवे न घड़ी भर पीछे हट सकते हैंऔर न आगे बढ़ सकते हैं।" (49)
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☆ कहो, "क्या तुमने यह भी सोचा कि यदि तुमपर उसकी यातनारातों रात या दिन को आ जाए तो (क्या तुम उसे टाल सकोगे?) वह आख़िर कौन-सी चीज़ होगी जिसकेलिए अपराधियों को जल्दी पड़ी हुई है? (50)
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☆ क्या फिर जब वह घटित हो जाएगी तब तुम उसे मानोगे? - क्या अब! इसी के लिए तो तुम जल्दी मचा रहे थे!" (51)
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☆ फिर अत्याचारी लोगों से कहा जाएगा, "स्थायी यातना का मज़ा चख़ो! जो कुछ तुम कमाते रहे हो, उसके सिवा तुम्हें और क्या बदला दिया जा सकता है?" (52)
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☆ वे तुम से चाहते हैं कि उन्हें ख़बर दो कि "क्या वह वास्तव में सत्य है?" कह दो,"हाँ, मेरे रब की क़सम! वह बिल्कुल सत्य है और तुम क़ाबूसे बाहर निकल जानेवाले नहीं हो।" (53)
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☆ यदि प्रत्येक अत्याचारी व्यक्ति के पास वह सब कुछ हो जो धरती में है, तो वह अर्थदंडके रूप में उसे दे डाले। जब वेयातना को देखेंगे तो मन ही मन में पछताएँगे। उनके बीच न्यायपूर्वक फ़ैसला कर दिया जाएगा और उनपर कोई अत्याचार नहोगा। (54)
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☆ सुन लो, जो कुछ आकाशों और धरती में है, अल्लाह ही का है।जान लो, निस्संदेह अल्लाह का वादा सच्चा है, किन्तु उनमें अधिकतर लोग जानते नहीं। (55)
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☆ वही जिलाता है और मारता है और उसी की ओर तुम लौटाए जा रहेहो। (56)
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☆ ऐ लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से उपदेश औऱ जो कुछ सीनों में (रोग) है, उसके लिए रोगमुक्ति और मोमिनों के लिए मार्गदर्शन और दयालुता आ चुकी है। (57)
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☆ कह दो, "यह अल्लाह के अनुग्रह और उसकी दया से है, अतः इस पर उन्हें प्रसन्न होना चाहिए। यह उन सब चीज़ों से उत्तम है, जिनको वे इकट्ठा करने में लगे हुए हैं।" (58)
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☆ कह दो, "क्या तुम लोगों ने यह भी देखा कि जो रोज़ी अल्लाह ने तुम्हारे लिए उतारी है उसमें से तुमने स्वयं ही कुछ को हराम और हलाल ठहरा लिया?" कहो, "क्या अल्लाहने तुम्हें इसकी अनुमति दी हैया तुम अल्लाह पर झूठ घड़कर थोप रहे हो?" (59)
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☆ जो लोग झूठ घड़कर उसे अल्लाह पर थोपते हैं, उन्होंने क़ियामत के दिन के विषय में क्या समझ रखा है? अल्लाह तो लोगों के लिए बड़ा अनुग्रहवाला है, किन्तु उनमें अधिकतर कृतज्ञता नहीं दिखलाते। (60)
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☆ तुम जिस दशा में भी होते हो और क़ुरआन से जो कुछ भी पढ़ते हो और तुम लोग जो काम भी करते हो हम तुम्हें देख रहे होते हैं, जब तुम उसमें लगे होते हो। और तुम्हारे रब से कण भर भी कोई चीज़ छिपी नहीं है, न धरती में न आकाश में और न उससेछोटी और न बड़ी कोई चीज़ ऐसी है जो एक स्पष्ट किताब में मौजूद न हो। (61)
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☆ सुन लो, अल्लाह के मित्रों को न तो कोई डर है और न वे शोकाकुल ही होंगे। (62)
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☆ ये वे लोग हैं जो ईमान लाए और डर कर रहे। (63)
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☆ उनके लिए सांसारिक जीवन में भी शुभ-सूचना है और आख़िरत में भी - अल्लाह के शब्द बदलते नहीं - यही बड़ी सफलता है। (64)
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☆ उनकी बात तुम्हें दुखी न करे, सारा प्रभुत्व अल्लाह हीके लिए है, वह सुनता, जानता है। (65)
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☆ जान रखो! जो कोई भी आकाशों में है और जो कोई धरती में है, अल्लाह ही का है। जो लोग अल्लाह को छोड़कर दूसरे साझीदारों को पुकारते हैं, वेआख़िर किसका अनुसरण करते हैं? वे तो केवल अटकल पर चलते हैं और वे निरे अटकलें दौड़ाते हैं। (66)
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☆ वही है जिसने तुम्हारे लिएरात बनाई ताकि तुम उसमें चैन पाओ और दिन को प्रकाशमान बनाया (ताकि तुम उसमें दौड़-धूप कर सको); निस्संदेह इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ हैं, जो सुनते हैं।(67)
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☆ वे कहते हैं, "अल्लाह औलाद रखता है।" महान और उच्च है वह! वह निरपेक्ष है, आकाशों और धरती में जो कुछ है उसी का है।तुम्हारे पास इसका कोई प्रमाण नहीं। क्या तुम अल्लाह से जोड़कर वह बात कहतेहो, जिसका तुम्हें ज्ञान नहीं?(68)
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☆ कह दो, "जो लोग अल्लाह पर थोपकर झूठ घड़ते हैं, वे सफल नहीं होते।" (69)
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☆ यह तो सांसारिक सुख है। फिर हमारी ओर ही उन्हें लौटनाहै, फिर जो इनकार वे करते रहे होंगे उसके बदले में हम उन्हें कठोर यातना का मज़ा चखाएँगे। (70)
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☆ उन्हें नूह का वृत्तान्त सुनाओ। जब उसने अपनी क़ौम से कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! यदिमेरा खड़ा होना और अल्लाह की आयतों के द्वारा नसीहत करना तुम्हें भारी हो गया है तो मेरा भरोसा अल्लाह पर है। तुमअपना मामला ठहरा लो और अपने ठहराए हुए साझीदारों को भी साथ ले लो, फिर तुम्हारा मामला तुम पर कुछ संदिग्ध न रहे; फिर मेरे साथ जो कुछ करनाहै, कर डालो और मुझे मुहलत न दो।"(71)
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☆ फिर यदि तुम मुँह फेरोगे तो मैंने तुमसे कोई बदला नहींमाँगा। मेरा बदला (पारिश्रमिक) बस अल्लाह के ज़िम्मे है, और आदेश मुझे मुस्लिम (आज्ञाकारी) होने का हुआ है। (72)
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☆ किन्तु उन्होंने उसे झुठलादिया, तो हमने उसे और उन लोगोंको, जो उसके साथ नौका में थे, बचा लिया और उन्हें उत्तराधिकारी बनाया, और उन लोगों को डूबो दिया, जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया था। अतः देख लो, जिन्हें सचेत किया गया था उनका क्या परिणाम हुआ!(73)
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☆ फिर उसके बाद कितने ही रसूल हमने उनकी क़ौम की ओर भेजे और वे उनके पास स्पष्ट निशानियां लेकर आए, किन्तु वेऐसे न थे कि जिसको पहले झुठला चुके हॊं, उसे मानते। इसी तरह अतिक्रमणकारियों कॆ दिलों परहम मुहर लगा देते हैं। (74)
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☆ फिर उनके बाद हमने मूसा और हारून को अपनी आयतों के साथ फ़िरऔन और उसके सरदारों के पास भेजा। किन्तु उन्होंने घमंड किया, वे थे ही अपराधी लोग। (75)
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☆ अतः जब हमारी ओर से सत्य उनके सामने आया तो वे कहने लगे, "यह तो खुला जादू है।" (76)
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☆ मूसा ने कहा, "क्या तुम सत्य के विषय में ऐसा कहते हो,जबकि यह तुम्हारे सामने आ गयाहै? क्या यह कोई जादू है? जादूगर तो सफल नहीं हुआ करते।" (77)
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☆ उन्होंने कहा, "क्या तू हमारे पास इसलिए आया है कि हमें उस चीज़ से फेर दे जिसपर हमने अपना बाप-दादा का पाया है और धरती में तुम दोनों की बड़ाई स्थापित हो जाए? हम तो तुम्हें माननेवाले नहीं।" (78)
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☆ फ़िरऔन ने कहा, "हर कुशल जादूगर को मेरे पास लाओ।" (79)
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☆ फिर जब जादूगर आ गए तो मूसाने उनसे कहा, "जो कुछ तुम डालते हो, डालो।" (80)
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☆ फिर जब उन्होंने डाला तो मूसा ने कहा, "तुम जो कुछ लाए हो, जादू है। अल्लाह अभी उसे मलियामेट किए देता है। निस्संदेह अल्लाह बिगाड़ पैदा करनेवालों के कर्म को फलीभूत नहीं होने देता। (81)
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☆ अल्लाह अपने शब्दों से सत्य को सत्य कर दिखाता है, चाहे अपराधी नापसन्द ही करें।" (82)
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☆ फिर मूसा की बात उसकी क़ौम की संतति में से बस कुछ ही लोगों ने मानी; फ़िरऔन और उनके अपने सरदारों के भय से कि कहीं उन्हें किसी फ़ितने में न डाल दें। फ़िरऔन था भी धरती में बहुत सिर उठाए हुए, औऱ निश्चय ही वह हद से आगे बढ़गया था। (83)
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☆ मूसा ने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! यदि तुम अल्लाह पर ईमान रखते हो तो उसपर भरोसा करो, यदि तुम आज्ञाकारी हो।" (84)
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☆ इसपर वे बोले, "हमने अल्लाह पर भरोसा किया। ऐ हमारे रब! तू हमें अत्याचारी लोगों के हाथों आज़माइश में नडाल। (85)
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☆ और अपनी दयालुता से हमें इनकार करनेवालों से छुटकारा दिला।"(86)
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☆ हमने मूसा और उसके भाई की ओर प्रकाशना की कि "तुम दोनों अपने लोगों के लिए मिस्र में कुछ घर निश्चित कर लो औऱ अपने घरों को क़िबला बना लो। और नमाज़ क़ायम करो और ईमानवालों को शुभसूचना दे दो।" (87)
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☆ मूसा ने कहा, "हमारे रब! तूने फ़िरऔन और उसके सरदारों को सांसारिक जीवन में शोभा-सामग्री और धन दिए हैं, हमारे रब, इसलिए कि वे तेरे मार्ग से भटकाएँ! हमारे रब, उनके धन नष्ट कर दे और उनके हृदय कठोर कर दे कि वे ईमान न लाएँ, ताकि वे दुखद यातना देख लें।" (88)
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☆ कहा, "तुम दोनों की प्रार्थना स्वीकृत हो चुकी। अतः तुम दोनों जमे रहो और उन लोगों के मार्ग पर कदापि न चलना, जो जानते नहीं।" (89)
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☆ और हमने इसराईलियों को समुद्र पार करा दिया। फिर फ़िरऔन और उसकी सेनाओं ने सरकशी और ज़्यादती के साथ उनका पीछा किया, यहाँ तक कि जबवह डूबने लगा तो पुकार उठा,"मैं ईमान ले आया कि उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं, जिस पर इसराईल की सन्तान ईमान लाई। अब मैं आज्ञाकारी हूँ।" (90)
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☆ "क्या अब? हालाँकि इससे पहले तूने अवज्ञा की और बिगाड़ पैदा करनेवालों में से था।(91)
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☆ अतः आज हम तेरे शरीर को बचालेगें, ताकि तू अपने बादवालोंके लिए एक निशानी हो जाए। निश्चय ही, बहुत-से लोग हमारी निशानियों के प्रति असावधान ही रहते हैं।" (92)
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☆ और हमने इसराईल की सन्तान को अच्छा, सम्मानित ठिकाना दिया और उन्हें अच्छी आजीविका प्रदान की। फिर उन्होंने उस समय विभेद किया, जबकि ज्ञान उनके पास आ चुका था। निश्चय ही तुम्हारा रब क़ियामत के दिन उनके बीच उस चीज़ का फ़ैसला कर देगा, जिसमें वे विभेद करते रहे हैं। (93)
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☆ अतः यदि तुम्हें उस चीज़ के बारे में कोई संदेह हो, जो हमने तुम्हारी ओर अवतरित की है, तो उनसे पूछ लो जो तुमसे पहले से किताब पढ़ रहे हैं। तुम्हारे पास तो तुम्हारे रब की ओर से सत्य आ चुका। अतः तुमकदापि सन्देह करनेवाले न हो। (94)
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☆ और न उन लोगों में सम्मिलित होना जिन्होंने अल्लाह की आयतों को झुठलाया, अन्यथा तुम घाटे में पड़कर रहोगे। (95)
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☆ निस्संदेह जिन लोगों के विषय में तुम्हारे रब की बात सच्ची होकर रही वे ईमान नहीं लाएँगे, (96)
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☆ जब तक कि वे दुखद यातना न देख लें, चाहे प्रत्येक निशानी उनके पास आ जाए। (97)
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☆ फिर ऐसी कोई बस्ती क्यों न हुई कि वह ईमान लाती और उसका ईमान उसके लिए लाभप्रद सिद्ध होता? हाँ, यूनुस की क़ौम के लोग इसके लिए अपवाद हैं। जब वे ईमान लाए तो हमने सांसारिकजीवन में अपमानजनक यातना को उनपर से टाल दिया और उन्हें एक अवधि तक सुखोपभोग का अवसर प्रदान किया। (98)
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☆ यदि तुम्हारा रब चाहता तो धरती में जितने लोग हैं वे सब के सब ईमान ले आते, फिर क्या तुम लोगों को विवश करोगे कि वे मोमिन हो जाएँ? (99)
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☆ हालाँकि किसी व्यक्ति के लिए यह सम्भव नहीं कि अल्लाह की अनुज्ञा के बिना कोई व्यक्ति ईमान लाए। वह तो उन लोगों पर गन्दगी डाल देता है, जो बुद्धि से काम नहीं लेते।(100)
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☆ कहो, "देख लो, आकाशों और धरती में क्या कुछ है!" किन्तुनिशानियाँ और चेतावनियाँ उन लोगों के कुछ काम नहीं आतीं, जो ईमान न लाना चाहें। (101)
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☆ अतः वे तो उस तरह के दिन की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिस तरह के दिन वे लोग देख चुके हैं जो उनसे पहले गुज़रे हैं।कह दो, "अच्छा, प्रतीक्षा करो, मैं भी तुम्हारे साथ प्रतीक्षा करता हूँ।" (102)
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☆ फिर हम अपने रसूलों और उन लोगों को बचा लेते रहे हैं, जोईमान ले आए। ऐसी ही हमारी रीति है, हमपर यह हक़ है कि ईमानवालों को बचा लें। (103)
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☆ कह दो, "ऐ लोगो! यदि तुम मेरे धर्म के विषय में किसी सन्देह में हो तो मैं तो उनकी बन्दगी नहीं करता जिनकी तुम अल्लाह से हटकर बन्दगी करते हो, बल्कि मैं उस अल्लाह की बन्दगी करता हूँ जो तुम्हें मृत्यु देता है। और मुझे आदेशहै कि मैं ईमानवालों में से होऊँ। (104)
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☆ और यह कि हर ओर से एकाग्र होकर अपना रुख़ इस धर्म की ओर कर लो और मुशरिकों में कदापि सम्मिलित न हो, (105)
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☆ और अल्लाह से हटकर उसे न पुकारो जो न तुम्हें लाभ पहुँचाए और न तुम्हें हानि पहुँचा सके और न तुम्हारा बुरा कर सके, क्योंकि यदि तुमने ऐसा किया तो उस समय तुम अत्याचारी होगे। (106)
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☆ यदि अल्लाह तुम्हें किसी तकलीफ़ में डाल दे तो उसके सिवा कोई उसे दूर करनेवाला नहीं। और यदि वह तुम्हारे लिएकिसी भलाई का इरादा कर ले तो कोई उसके अनुग्रह को फेरनेवाला भी नहीं। वह इसे अपने बन्दों में से जिस तक चाहता है, पहुँचाता है और वह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है।" (107)
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☆ कह दो, "ऐ लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से सत्य आ चुका है। अब जो कोई मार्ग पर आएगा, तो वह अपने ही लिए मार्ग पर आएगा, और जो कोई पथभ्रष्ट होगा तो वह अपने ही बुरे के लिए पथभ्रष्ट होगा। मैं तुम्हारे ऊपर कोई हवालेदार तो हूँ नहीं।" (108)
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☆ जो कुछ तुमपर प्रकाशना की जा रही है, उसका अनुसरण करो औरधैर्य से काम लो, यहाँ तक कि अल्लाह फ़ैसला कर दे, और वह सबसे अच्छा फ़ैसला करनेवाला है। (109)
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