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48. अल-फ़तह [ कुल आयतें - 29]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
निश्चय ही हमने तुम्हारे लिए एक खुली विजय प्रकट की, (1)
_______________________________
ताकि अल्लाह तुम्हारे अगले और पिछले गुनाहों को क्षमा कर दे और तुमपर अपनी अनुकम्पा पूर्ण कर दे और तुम्हें सीधे मार्ग पर चलाए, (2)
_______________________________
और अल्लाह तुम्हें प्रभावकारी सहायता प्रदान करे। (3)
_______________________________
वही है जिसने ईमानवालों के दिलों में सकीना (प्रशान्ति) उतारी, ताकि अपने ईमान के साथ वे और ईमान की अभिवृद्धि करें- आकाशों और धरती की सभी सेनाएँ अल्लाह ही की हैं, और अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है। -(4)
_______________________________
ताकि वह मोमिन पुरुषों और मोमिन स्त्रियों को ऐसे बाग़ों में दाख़िल करे जिनके नीचे नहरें बहती होंगी कि वे उनमें सदैव रहें और उनसे उनकीबुराइयाँ दूर कर दे - यह अल्लाह के यहाँ बड़ी सफलता है। -(5)
_______________________________
और कपटाचारी पुरुषों और कपटाचारी स्त्रियों और बहुदेववादी पुरुषों और बहुदेववादी स्त्रियों को, जो अल्लाह के बारे में बुरा गुमान रखते हैं, यातना दे। उन्हीं पर बुराई की गर्दिश है। उनपर अल्लाह का क्रोध हुआऔर उसने उनपर लानत की, और उसनेउनके लिए जहन्नम तैयार कर रखाहै, और वह अत्यन्त बुरा ठिकाना है! (6)
_______________________________
आकाशों और धरती की सब सेनाएँ अल्लाह ही की हैं। अल्लाह प्रभुत्वशाली, अत्यन्त तत्वदर्शी है। (7)
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  निश्चय ही हमने तुम्हें गवाही देनेवाला और शुभ सूचना देनेवाला और सचेतकर्त्ता बनाकर भेजा, (8)
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ताकि तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ, उसे सहायता पहुँचाओ और उसका आदर करो, और प्रातःकाल और संध्या समय उसकी तसबीह करते रहो। (9)
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(ऐ नबी) वे लोग जो तुमसे बैअत करते हैं वे तो वास्तव में अल्लाह ही से बैअत करते हैं। उनके हाथों के ऊपर अल्लाह का हाथ होता है। फिर जिस किसी ने वचन भंग किया तो वह वचन भंग करके उसका वबाल अपने ही सिर लेता है, किन्तु जिसने उस प्रतिज्ञा को पूरा किया जो उसने अल्लाह से की है तो उसे वह बड़ा बदला प्रदान करेगा। (10)
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जो बद्‌दू पीछे रह गए थे, वेअब तुमसे कहेंगे, "हमारे माल और हमारे घरवालों ने हमें व्यस्त कर रखा था; तो आप हमारेलिए क्षमा की प्रार्थना कीजिए।" वे अपनी ज़बानों से वे बातें कहते हैं जो उनके दिलों में नहीं। कहना कि, "कौनहै जो अल्लाह के मुक़ाबले मेंतुम्हारे लिए किसी चीज़ का अधिकार रखता है, यदि वह तुम्हें कोई हानि पहुँचानी चाहे या वह तुम्हें कोई लाभ पहुँचाने का इरादा करे? बल्किजो कुछ तुम करते हो अल्लाह उसकी ख़बर रखता है। -(11)
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"नहीं, बल्कि तुमने यह समझा कि रसूल और ईमानवाले अपने घरवालों की ओर लौटकर कभीन आएँगे और यह तुम्हारे दिलोंको अच्छा लगा। तुमने तो बहुत बुरे गुमान किए और तुम्हीं लोग हुए तबाही में पड़नेवाले।" (12)
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और जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान न लाया, तो हमने भी इनकार करनेवालों के लिए भड़कती आग तैयार कर रखी है। (13)
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अल्लाह ही की है आकाशों और धरती की बादशाही। वह जिसे चाहे क्षमा करे और जिसे चाहे यातना दे। और अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है। (14)
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जब तुम ग़नीमतों को प्राप्त करने के लिए उनकी ओर चलोगे तो पीछे रहनेवाले कहेंगे, "हमें भी अनुमति दी जाए कि हम तुम्हारे साथ चलें।" वे चाहते हैं कि अल्लाह के कथन को बदल दें। कह देना, "तुम हमारे साथ कदापि नहीं चल सकते। अल्लाह ने पहलेही ऐसा कह दिया है।" इसपर वे कहेंगे, "नहीं, बल्कि तुम हमसेईर्ष्या कर रहे हो।" नहीं, बल्कि वे लोग समझते थोड़े ही हैं। (15)
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पीछे रह जानेवाले बद्‌दूओं से कहना, "शीघ्र ही तुम्हें ऐसे लोगों की ओर बुलाया जाएगा जो बड़े युद्धवीर हैं कि तुम उनसे लड़ो या वे आज्ञाकारी हो जाएँ। तो यदि तुम आज्ञापालन करोगे तो अल्लाह तुम्हें अच्छा बदला प्रदान करेगा। किन्तु यदि तुम फिर गए, जैसे पहले फिर गए थे, तो वह तुम्हेंदुखद यातना देगा।" (16)
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न अन्धे के लिए कोई हरज है, न लँगड़े के लिए कोई हरज है और न बीमार के लिए कोई हरज है। जोभी अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करेगा, उसे वह ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेगा,जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी, किन्तु जो मुँह फेरेगाउसे वह दुखद यातना देगा। (17)
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निश्चय ही अल्लाह मोमिनों से प्रसन्न हुआ, जब वे वृक्ष के नीचे तुमसे बैअत कर रहे थे। उसने उसे जान लिया जो कुछ उनके दिलों में था। अतः उनपर उसने सकीना (प्रशान्ति) उतारीऔर बदले में उन्हें शीघ्र मिलनेवाली विजय निश्चित कर दी; (18)
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  और बहुत-सी ग़नीमतें भी, जिन्हें वे प्राप्त करेंगे। अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है। (19)
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अल्लाह ने तुमसे बहुत-सी गनीमतों का वादा किया है, जिन्हें तुम प्राप्त करोगे। यह विजय तो उसने तुम्हें तात्कालिक रूप से निश्चित कर दी। और लोगों के हाथ तुमसे रोक दिए (कि वे तुमपर आक्रमण करने का साहस न कर सकें) और ताकि ईमानवालों के लिए एक निशानी हो। और वह सीधे मार्ग की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन करे। (20)
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इसके अतिरिक्त दूसरी और विजय का भी वादा है, जिसकी सामर्थ्य अभी तुम्हें प्राप्त नहीं, उन्हें अल्लाह ने घेर रखा है। अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।(21)
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यदि (मक्का के) इनकार करनेवाले तुमसे लड़ते तो अवश्य ही पीठ फेर जाते। फिर यह भी कि वे न तो कोई संरक्षक पाएँगे और न कोई सहायक। (22)
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यह अल्लाह की उस रीति के अनुकूल है जो पहले से चली आई है, और तुम अल्लाह की रीति मेंकदापि कोई परिवर्तन न पाओगे। (23)
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वही है जिसने उसके हाथ तुमसे और तुम्हारे हाथ उनसे मक्के की घाटी में रोक दिए, इसके पश्चात कि वह तुम्हें उनपर प्रभावी कर चुका था। अल्लाह उसे देख रहा था जो कुछ तुम कर रहे थे। (24)
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ये वही लोग तो हैं जिन्होंने इनकार किया और तुम्हें मस्जिदे हराम (काबा) से रोक दिया और क़ुरबानी के बँधे हुए जानवरों को भी इससे रोके रखा कि वे अपने ठिकाने पर पहुँचें। यदि यह ख़याल न होता कि बहुत-से मोमिन पुरुष और मोमिन स्त्रियाँ (मक्का में) मौजूद हैं, जिन्हें तुम नहीं जानते, उन्हें कुचल दोगे, फिर उनके सिलसिले में अनजाने तुमपर इल्ज़ाम आएगा (तो युद्ध की अनुमति दे दी जाती, अनुमति इसलिए नहीं दी गई) ताकि अल्लाह जिसे चाहे अपनी दयालुता में दाख़िल कर ले। यदि वे ईमानवाले अलग हो गए होते तो उनमें से जिन लोगों ने इनकार किया उनको हम अवश्य दुखद यातना देते।(25)
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याद करो जब इनकार करनेवाले लोगों ने अपने दिलों में हठ को जगह दी, अज्ञानपूर्ण हठ को;तो अल्लाह ने अपने रसूल पर और ईमानवालों पर सकीना (प्रशान्ति) उतारी और उन्हें परहेज़गारी (धर्मपरायणता) की बात का पाबन्द रखा। वे इसके ज़्यादा हक़दार और इसके योग्य भी थे। अल्लाह तो हर चीज़ जानता है।(26)
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निश्चय ही अल्लाह ने अपने रसूल को हक़ के साथ सच्चा स्वप्न दिखाया, "यदि अल्लाह ने चाहा तो तुम अवश्य मस्जिदेहराम (काबा) में प्रवेश करोगे बेखटके, अपने सिर के बाल मुड़ाते और कतरवाते हुए, तुम्हें कोई भय न होगा।" हुआ यह कि उसने वह बात जान ली जो तुमने नहीं जानी। अतः इससे पहले उसने शीघ्र प्राप्त होनेवाली विजय तुम्हारे लिए निश्चित कर दी। (27)
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वही है जिसने अपने रसूल को मार्गदर्शन और सत्यधर्म के साथ भेजा, ताकि उसे पूरे के पूरे धर्म पर प्रभुत्व प्रदान करे और गवाह की हैसियतसे अल्लाह काफ़ी है।(28)
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अल्लाह के रसूल मुहम्मद औरजो लोग उनके साथ हैं, वे इनकारकरनेवालों पर भारी हैं, आपस में दयालु हैं। तुम उन्हें रुकू में, सजदे में, अल्लाह काउदार अनुग्रह और उसकी प्रसन्नता चाहते हुए देखोगे।वे अपने चहरों से पहचाने जातेहैं जिनपर सजदों का प्रभाव है। यही उनकी विशेषता तौरात में और उनकी विशेषता इंजील में उस खेती की तरह उल्लिखित है जिसने अपना अंकुर निकाला; फिर उसे शक्ति पहुँचाई तो वह मोटा हुआ और वह अपने तने पर सीधा खड़ा हो गया। खेती करनेवालों को भा रहा है, ताकि उनसे इनकार करनेवालों का जी जलाए। उनमें से जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनसे अल्लाह ने क्षमा और बदले का वादा किया है। (29)
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