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83. अल-मुतफ़्फ़िफ़ीन [ कुल आयतें - 36 ]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ तबाही है घटानेवालों के लिए, (1)
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जो नापकर लोगों पर नज़र जमाए हुए लेते हैं तो पूरा-पूरा लेते हैं, (2)
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किन्तु जब उन्हें नापकर यातौलकर देते हैं तो घटाकर देतेहैं। (3)
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क्या वे समझते नहीं कि उन्हें (जीवित होकर) उठना है, (4)
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एक भारी दिन के लिए, (5)
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जिस दिन लोग सारे संसार के रब के सामने खड़े होंगे? (6)
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कुछ नहीं, निश्चय ही दुराचारियों का काग़ज़ 'सिज्जीन' में है।(7)
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तुम्हें क्या मालूम कि 'सिज्जीन' क्या है? (8)
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मुहर लगा हुआ काग़ज़।(9)
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तबाही है उस दिन झुठलाने-वालों की, (10)
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जो बदले के दिन को झुठलाते हैं। (11)
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और उसे तो बस प्रत्येक वह व्यक्ति ही झुठलाता है जो सीमा का उल्लंघन करनेवाला, पापी है। (12)
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जब हमारी आयतें उसे सुनाई जाती हैं तो कहता है, "ये तो पहलों की कहानियाँ हैं।" (13)
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कुछ नहीं, बल्कि जो कुछ वे कमाते रहे हैं वह उनके दिलों पर चढ़ गया है। (14)
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कुछ नहीं, अवश्य ही वे उस दिन अपने रब से ओट में होंगे, (15)
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फिर वे भड़कती आग में जा पड़ेंगे। (16)
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फिर कहा जाएगा, "यह वही है जिसे तुम झुठलाते थे" (17)
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कुछ नहीं, निस्संदेह वफ़ादार लोगों का काग़ज़ 'इल्लीयीन' (उच्च श्रेणी के लोगों) में है।- (18)
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  और तुम क्या जानो कि 'इल्लीयीन' क्या है? - (19)
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लिखा हुआ रजिस्टर (20)
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जिसे देखने के लिए सामीप्यप्राप्त लोग उपस्थित होंगे, (21)
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निस्संदेह अच्छे लोग नेमतों में होंगे, (22)
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ऊँची मसनदों पर से देख रहे होंगे। (23)
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उनके चेहरों से तुम्हें नेमतों की ताज़गी और आभा का बोध हो रहा होगा,(24)
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उन्हें मुहरबंद विशुद्ध पेय पिलाया जाएगा, (25)
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मुहर उसकी मुश्क की होगी - जो लोग दूसरों पर बाज़ी ले जाना चाहते हों वे इस चीज़ को प्राप्त करने में बाज़ी ले जाने का प्रयास करें -(26)
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और उसमें 'तसनीम' का मिश्रणहोगा, (27)
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हाल यह है कि वह एक स्रोत है, जिसपर बैठकर सामीप्य प्राप्त लोग पिएँगे। (28)
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 जो अपराधी हैं वे ईमान लानेवालों पर हँसते थे, (29)
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और जब उनके पास से गुज़रते तो आपस में आँखों और भौंहों से इशारे करते थे, (30)
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और जब अपने लोगों की ओर पलटते थे तो चहकते, इतराते हुए पलटते थे,(31)
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और जब उन्हें देखते तो कहते, "ये तो भटके हुए हैं।" (32)
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हालाँकि वे उनपर कोई निगरानी करनेवाले बनाकर नहींभेजे गए थे। (33)
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तो आज ईमान लानेवाले, इनकार करनेवालों पर हँस रहे हैं, (34)
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ऊँची मसनदों पर से देख रहे हैं। (35)
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क्या मिल गया बदला इनकार करनेवालों को उसका जो कुछ वे करते रहे हैं? (36)
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