सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ क़ाफ़॰; गवाह है क़ुरआन मजीद! - (1)
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☆ बल्कि उन्हें तो इस बात पर आश्चर्य हुआ कि उनके पास उन्हीं में से एक सावधान करनेवाला आ गया। फिर इनकार करनेवाले कहने लगे, "यह तो आश्चर्य की बात है। (2)
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☆ क्या जब हम मर जाएँगे और मिट्टी हो जाएँगे (तो फिर हम जीवित होकर पलटेंगे)? यह पलटना तो बहुत दूर की बात है!" (3)
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☆ हम जानते हैं धरती उनमें जो कुछ कमी करती है और हमारे पास सुरक्षित रखनेवाली एक किताब भी है। (4)
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☆ बल्कि उन्होंने सत्य को झुठला दिया जब वह उनके पास आया। अतः वे एक उलझन भरी बात में पड़े हुए हैं। (5)
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☆ अच्छा तो क्या उन्होंने अपने ऊपर आकाश को नहीं देखा, हमने उसे कैसा बनाया और उसे सजाया। और उसमें कोई दरार नहीं। (6)
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☆ और धरती को हमने फैलाया और उसमे अटल पहाड़ डाल दिए। और हमने उसमें हर प्रकार की सुन्दर चीज़ें उगाईं, (7)
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☆ आँखें खोलने और याद दिलानेके उद्देश्य से, हर उस बन्दे के लिए जो रुजू करनेवाला हो। (8)
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☆ और हमने आकाश से बरकतवाला पानी उतारा, फिर उससे बाग़ और फ़सल के अनाज। (9)
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☆ और ऊँचे-ऊँचे खजूर के वृक्ष उगाए जिनके गुच्छे तह पर तह होते हैं, (10)
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☆ बन्दों की रोज़ी के लिए। और हमने उस (पानी) के द्वारा निर्जीव धरती को जीवन प्रदान किया। इसी प्रकार निकलना भी है।(11)
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☆ उनसे पहले नूह की क़ौम, 'अर्-रस' वाले, समूद, (12)
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☆ आद, फ़िरऔन , लूत के भाई, (13)
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☆ 'अल-ऐका' वाले और तुब्बा के लोग भी झुठला चुके हैं। प्रत्येक ने रसूलों को झुठलाया। अन्ततः मेरी धमकी सत्यापित होकर रही। (14)
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☆ क्या हम पहली बार पैदा करने से असमर्थ रहे? नहीं, बल्कि वे एक नई सृष्टि के विषय में सन्देह में पड़े हैं। (15)
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☆ हमने मनुष्य को पैदा किया है और हम जानते हैं जो बातें उसके जी में आती हैं। और हम उससे उसकी गरदन की रग से भी अधिक निकट हैं। (16)
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☆ जब दो प्राप्त करनेवाले (फ़रिशते) प्राप्त कर रहे होते हैं, दाएँ से और बाएँ से वे लगे बैठे होते हैं। (17)
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☆ कोई बात उसने कही नहीं कि उसके पास एक निरीक्षक तैयार रहता है। (18)
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☆ और मौत की बेहोशी ले आई विश्वसनीय चीज़! यही वह चीज़ है जिससे तू कतराता था। (19)
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☆ और नरसिंघा फूँक दिया गया।यही है वह दिन जिसकी धमकी दी गई थी। (20)
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☆ हर व्यक्ति इस दशा में आ गया कि उसके साथ एक लानेवाला है और एक गवाही देनेवाला। (21)
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☆ तू इस चीज़ की ओर से ग़फ़लतमें था। अब हमने तुझसे तेरा परदा हटा दिया, तो आज तेरी निगाह बड़ी तेज़ है। (22)
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☆ उसके साथी ने कहा, "यह है (तेरी सज़ा)! मेरे पास कुछ (सहायता के लिए) मौजूद नहीं।" (23)
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☆ "डाल दो, डाल दो, जहन्नम में! हर अकृतज्ञ द्वेष रखने वाले, (24)
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☆ भलाई से रोकनेवाले, सीमा का अतिक्रमण करनेवाले, सन्देहग्रस्त को (25)
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☆ जिसने अल्लाह के साथ किसी दूसरे को पूज्य-प्रभु ठहराया। तो डाल दो उसे कठोर यातना में।" (26)
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☆ उसका साथी बोला, "ऐ हमारे रब! मैंने उसे सरकश नहीं बनाया, बल्कि वह स्वयं ही परले दरजे की गुमराही में था।" (27)
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☆ कहा, "मेरे सामने मत झगड़ो। मैं तो तुम्हें पहले ही अपनी धमकी से सावधान कर चुका था। (28)
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☆ मेरे यहाँ बात बदला नहीं करती और न मैं अपने बन्दों पर तनिक भी अत्याचार करता हूँ।" (29)
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☆ जिस दिन हम जहन्नम से कहेंगे, "क्या तू भर गई?" और वहकहेगी, "क्या अभी और भी कुछ है?" (30)
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☆ और जन्नत डर रखनेवालों के लिए निकट कर दी गई, कुछ भी दूर न रही। (31)
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☆ "यह है वह चीज़ जिसका तुमसे वादा किया जाता था हर रुजू करनेवाले, बड़ी निगरानी रखनेवाले के लिए; (32)
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☆ जो रहमान से डरा परोक्ष में और आया रुजू रहनेवाला हृदय लेकर। (33)
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☆ "प्रवेश करो उस (जन्नत) मेंसलामती के साथ" वह शाश्वत दिवस है। (34)
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☆ उनके लिए उसमें वह सब कुछ है जो वे चाहें और हमारे पास उससे अधिक भी है।(35)
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☆ उनसे पहले हम कितनी ही नस्लों को विनष्ट कर चुके हैं। वे लोग शक्ति में उनसे कहीं बढ़-चढ़कर थे। (पनाह की तलाश में) उन्होंने नगरों को छान मारा, कोई है भागने को ठिकाना?(36)
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☆ निश्चय ही इसमें उस व्यक्ति के लिए शिक्षा-सामग्री है जिसके पास दिल हो या वह (दिल से) हाज़िर रहकर कान लगाए।(37)
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☆ हमने आकाशों और धरती को और जो कुछ उनके बीच है छः दिनों में पैदा कर दिया और हमें कोई थकान न छू सकी। (38)
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☆ अतः जो कुछ वे कहते हैं उसपर धैर्य से काम लो और अपने रब की प्रशंसा की तसबीह करो; सूर्योदय से पूर्व और सूर्यास्त के पूर्व, (39)
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☆ और रात की घड़ियों में फिर उसकी तसबीह करो और सजदों के पश्चात भी। (40)
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☆ और कान लगाकर सुन लेना जिस दिन पुकारनेवाला अत्यन्त निकट के स्थान से पुकारेगा, (41)
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☆ जिस दिन लोग भयंकर चीख़ को सत्यतः सुन रहे होंगे। वही दिन होगा निकलने का।- (42)
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☆ हम ही जीवन प्रदान करते और मृत्यु देते हैं और हमारी ही ओर अन्ततः आना है। - (43)
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☆ जिस दिन धरती उनपर से फट जाएगी और वे तेज़ी से निकल पड़ेंगे। यह इकट्ठा करना हमारे लिए अत्यन्त सरल है। (44)
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☆ हम जानते हैं जो कुछ वे कहते हैं, तुम उनपर कोई ज़बरदस्ती करनेवाले तो हो नहीं। अतः तुम क़ुरआन के द्वारा उसे नसीहत करो जो हमारी चेतावनी से डरे। (45)
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