सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ ऐ ईमानवालो! अल्लाह और उसकेरसूल से आगे न बढ़ो और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह सुनता, जानता है।(1)
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☆ ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो! तुम अपनी आवाज़ों को नबी की आवाज़से ऊँची न करो। और जिस तरह तुमआपस में एक-दूसरे से ज़ोर से बोलते हो, उनसे ऊँची आवाज़ में बात न करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे कर्म अकारथ हो जाएँ और तुम्हें ख़बर भी न हो।(2)
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☆ वे लोग जो अल्लाह के रसूल के समक्ष अपनी आवाज़ों को दबीरखते हैं, वही लोग हैं जिनके दिलों को अल्लाह ने परहेज़गारी के लिए जाँचकर चुन लिया है। उनके लिए क्षमा और बड़ा बदला है। (3)
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☆ जो लोग (ऐ नबी) तुम्हें कमरों के बाहर से पुकारते हैंउनमें से अधिकतर बुद्धि से काम नहीं लेते। (4)
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☆ यदि वे धैर्य से काम लेते यहाँ तक कि तुम स्वयं निकलकर उनके पास आ जाते तो यह उनके लिए अच्छा होता। किन्तु अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है। (5)
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☆ ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो! यदिकोई अवज्ञाकारी तुम्हारे पासकोई ख़बर लेकर आए तो उसकी छानबीन कर लिया करो। कहीं ऐसान हो कि तुम किसी गरोह को अनजाने में तकलीफ़ और नुक़सान पहुँचा बैठो, फिर अपने किए पर पछताओ। (6)
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☆ जान लो कि तुम्हारे बीच अल्लाह का रसूल मौजूद है। बहुत-से मामलों में यदि वह तुम्हारी बात मान ले तो तुम कठिनाई में पड़ जाओ। किन्तु अल्लाह ने तुम्हारे लिए ईमान को प्रिय बना दिया और उसे तुम्हारे दिलों में सुन्दरतादे दी और इनकार, उल्लंघन और अवज्ञा को तुम्हारे लिए बहुत अप्रिय बना दिया। (7)
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☆ ऐसे ही लोग अल्लाह के उदार अनुग्रह और अनुकम्पा से सूझबूझवाले हैं। और अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है। (8)
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☆ यदि मोमिनों में से दो गरोहआपस में लड़ पड़ें तो उनके बीच सुलह करा दो। फिर यदि उनमें से एक गरोह दूसरे पर ज़्यादती करे, तो जो गरोह ज़्यादती कर रहा हो उससे लड़ो, यहाँ तक कि वह अल्लाह केआदेश की ओर पलट आए। फिर यदि वहपलट आए तो उनके बीच न्याय के साथ सुलह करा दो, और इनसाफ़ करो। निश्चय ही अल्लाह इनसाफ़ करनेवालों को पसन्द करता है।(9)
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☆ मोमिन तो भाई-भाई ही हैं। अतः अपने दो भाइयों के बीच सुलह करा दो और अल्लाह का डर रखो, ताकि तुमपर दया की जाए। (10)
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☆ ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो! न पुरुषों का कोई गरोह दूसरे पुरुषों की हँसी उड़ाए, सम्भवहै वे उनसे अच्छे हों और न स्त्रियाँ स्त्रियों की हँसीउड़ाएँ, सम्भव है वे उनसे अच्छी हों, और न अपनों पर तानेकसो और न आपस में एक-दूसरे को बुरी उपाधियों से पुकारो। ईमान के पश्चात अवज्ञाकारी का नाम जुड़ना बहुत ही बुरा है। और जो व्यक्ति बाज़ न आए, तो ऐसे ही व्यक्ति ज़ालिम हैं।(11)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! बहुत से गुमानों से बचो, क्योंकि कतिपय गुमान गुनाह होते हैं। और न टोह में पड़ो और न तुममेंसे कोई किसी की पीठ पीछे निन्दा करे - क्या तुममें से कोई इसको पसन्द करेगा कि वह मरे हुए भाई का मांस खाए? वह तो तुम्हें अप्रिय होगा ही। - और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है।(12)
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☆ ऐ लोगो! हमनें तुम्हें एक पुरुष और एक स्त्री से पैदा किया और तुम्हें बिरादरियों और क़बिलों का रूप दिया, ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो। वास्तव में अल्लाह के यहाँ तुममें सबसे अधिक प्रतिष्ठितवह है, जो तुममें सबसे अधिक डररखता है। निश्चय ही अल्लाह सबकुछ जाननेवाला, ख़बर रखनेवाला है।(13)
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☆ बद्दुओं ने कहा कि, "हम ईमान लाए।" कह दो, "तुम ईमान नहीं लाए। किन्तु यूँ कहो, 'हमतो आज्ञाकारी हुए' ईमान तो अभी तुम्हारे दिलों में दाख़िल ही नहीं हुआ। यदि तुम अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञाका पालन करो तो वह तुम्हारे कर्मों में से तुम्हारे लिए कुछ कम न करेगा। निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।" (14)
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☆ मोमिन तो बस वही लोग हैं जोअल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए, फिर उन्होंने कोई सन्देहनहीं किया और अपने मालों और अपनी जानों से अल्लाह के मार्ग में जिहाद किया। वही लोग सच्चे हैं। (15)
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☆ कहो, "क्या तुम अल्लाह को अपने धर्म की सूचना दे रहे हो। हालाँकि जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है, अल्लाह सब जानता है? अल्लाह को हर चीज़ का ज्ञान है।" (16)
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☆ वे तुमपर एहसान जताते हैं कि उन्होंने इस्लाम क़बूल कर लिया। कह दो, "मुझ पर अपने इस्लाम का एहसान न रखो, बल्कि यदि तुम सच्चे हो तो अल्लाह ही तुमपर एहसान रखता है कि उसने तुम्हें ईमान की राह दिखाई।- (17)
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☆ "निश्चय ही अल्लाह आकाशों और धरती के अदृष्ट को जानता है। और अल्लाह देख रहा है जो कुछ तुम करते हो।" (18)
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