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76. अद-दहर (अल-इनसान) [ कुल आयतें - 31 ]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
क्या मनुष्य पर काल-खंड का ऐसा समय भी बीता है कि वह कोई ऐसी चीज़ न था जिसका उल्लेख किया जाता? (1)
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हमने मनुष्य को एक मिश्रितवीर्य से पैदा किया, उसे उलटते-पलटते रहे, फिर हमने उसे सुनने और देखनेवाला बना दिया। (2)
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हमने उसे मार्ग दिखाया, अब चाहे वह कृतज्ञ बने या अकृतज्ञ। (3)
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हमने इनकार करनेवालों के लिए ज़ंजीरें और तौक़ और भड़कती हुई आग तैयार कर रखी है। (4)
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निश्चय ही वफ़ादार लोग ऐसेजाम से पिएँगे जिसमें काफ़ूर का मिश्रण होगा, (5)
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उस स्रोत का क्या कहना! जिसपर बैठकर अल्लाह के बन्दे पिएँगे, इस तरह कि उसे बहा-बहाकर (जहाँ चाहेंगे) ले जाएँगे। (6)
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वे नज़र (मन्नत) पूरी करते हैं और उस दिन से डरते हैं जिसकी आपदा व्यापक होगी, (7)
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और वे मुहताज, अनाथ और क़ैदी को खाना उसकी चाहत रखतेहुए खिलाते हैं, (8)
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"हम तो केवल अल्लाह की प्रसन्नता के लिए तुम्हें खिलाते हैं, तुमसे न कोई बदला चाहते हैं और न कृतज्ञता ज्ञापन। (9)
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हमें तो अपने रब की ओर से एक ऐसे दिन का भय है जो त्योरीपर बल डाले हुए अत्यन्त क्रूरहोगा।" (10)
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अतः अल्लाह ने उन्हें उस दिन की बुराई से बचा लिया और उन्हें ताज़गी और ख़ुशी प्रदान की, (11)
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और जो उन्होंने धैर्य से काम लिया, उसके बदले में उन्हें जन्नत और रेशमी वस्त्र प्रदान किया। (12)
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उसमें वे तख़्तों पर टेक लगाए होंगे, वे उसमें न तो सख़्त धूप देखेंगे औ न सख़्त ठंड। (13)
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और उस (बाग़) के साए उनपर झुके होंगे और उसके फलों के गुच्छे बिलकुल उनके वश में होंगे। (14)
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और उनके पास चाँदी के बरतन गर्दिश में होंगे और प्याले (15)
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जो बिल्कुल शीशे हो रहे होंगे, शीशे भी चाँदी के जो ठीक अन्दाज़े करके रखे गए होंगे (16)
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और वहाँ वे एक और जाम पिएँगे जिसमें सोंठ का मिश्रण होगा। (17)
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क्या कहना उस स्रोत का जो उसमें होगा, जिसका नाम सल-सबील है। (18)
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उनकी सेवा में ऐसे किशोर दौड़ते रहे होंगे जो सदैव किशोर ही रहेंगे। जब तुम उन्हें देखोगे तो समझोगे कि बिखरे हुए मोती हैं। (19)
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जब तुम वहाँ देखोगे तो तुम्हें बड़ी नेमत और विशाल राज्य दिखाई देगा। (20)
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उनके ऊपर हरे बारीक रेशमी वस्त्र और गाढ़े रेशमी कपड़े होंगे, और उन्हें चाँदी के कंगन पहनाए जाएँगे और उनका रबउन्हें पवित्र पेय पिलाएगा। (21)
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"यह है तुम्हारा बदला और तुम्हारा प्रयास क़द्र करने के योग्य है।" (22)
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निश्चय ही हमने अत्यन्त व्यवस्थित ढंग से तुमपर क़ुरआन अवतरित किया है; (23)
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अतः अपने रब के हुक्म और फ़ैसले के लिए धैर्य से काम लो और उनमें से किसी पापी या कृतघ्न का आज्ञापालन न करना। (24)
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और प्रातःकाल और संध्या समय अपने रब के नाम का स्मरण करो। (25)
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और रात के कुछ हिस्से में भी उसे सजदा करो, लम्बी-लम्बी रात तक उसकी तसबीह करते रहो। (26)
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निस्संदेह ये लोग शीघ्र प्राप्त होनेवाली चीज़ (संसार) से प्रेम रखते हैं और एक भारी दिन को अपने परे छोड़ रहे हैं।(27)
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हमने उन्हें पैदा किया और उनके जोड़-बन्द मज़बूत किेए और हम जब चाहें उन जैसों को पूर्णतः बदल दें।(28)
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निश्चय ही यह एक अनुस्मृतिहै, अब जो चाहे अपने रब की ओर मार्ग ग्रहण कर ले। (29)
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और तुम नहीं चाह सकते सिवाय इसके कि अल्लाह चाहे। निस्संदेह अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है। (30)
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वह जिसे चाहता है अपनी दयालुता में दाख़िल करता है। रहे ज़ालिम, तो उनके लिए उसने दुखद यातना तैयार कर रखी है। (31)
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