सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
www.achhiblog.blogspot.in
« सूरह (अध्याय ) « Go To
« पिछला » « अगला » (अध्याय)
« Next » « Privew »
●═══════════════════✒
☆ नहीं, मैं क़सम खाता हूँ क़ियामत के दिन की, (1)
_______________________________
☆ और नहीं! मैं क़सम खाता हूँमलामत करनेवाली आत्मा की। (2)
_______________________________
☆ क्या मनुष्य यह समझता है कि हम कदापि उसकी हड्डियों कोएकत्र न करेंगे? (3)
_______________________________
☆ क्यों नहीं, हम उसकी पोरों को ठीक-ठाक करने की सामर्थ्य रखते हैं। (4)
_______________________________
☆ बल्कि मनुष्य चाहता है कि अपने आगे ढिठाई करता रहे। (5)
_______________________________
☆ पूछता है, "आख़िर क़ियामत का दिन कब आएगा?" (6)
_______________________________
☆ तो जब निगाह चौंधिया जाएँगी, (7)
_______________________________
☆ और चन्द्रमा को ग्रहण लग जाएगा, (8)
_______________________________
☆ और सूर्य और चन्द्रमा इकट्ठे कर दिए जाएँगे, (9)
_______________________________
☆ उस दिन मनुष्य कहेगा,"कहाँ जाऊँ भागकर?" (10)
_______________________________
☆ कुछ नहीं, कोई शरण-स्थल नहीं! (11)
_______________________________
☆ उस दिन तुम्हारे रब ही की ओर जाकर ठहरना है। (12)
_______________________________
☆ उस दिन मनुष्य को बता दिया जाएगा जो कुछ उसने आगे बढ़ाया और पीछे टाला। (13)
_______________________________
☆ नहीं, बल्कि मनुष्य स्वयं अपने हाल पर निगाह रखता है, (14)
_______________________________
☆ यद्यपि उसने अपने कितने हीबहाने पेश किए हों। (15)
_______________________________
☆ तू उसे शीघ्र पाने के लिए उसके प्रति अपनी ज़बान को न चला। (16)
_______________________________
☆ हमारे ज़िम्मे है उसे एकत्र करना और उसका पढ़ाना, (17)
_______________________________
☆ अतः जब हम उसे पढ़ें तो उसके पठन का अनुसरण कर, (18)
_______________________________
☆ फिर हमारे ज़िम्मे है उसकास्पष्टीकरण करना। (19)
_______________________________
☆ कुछ नहीं, बल्कि तुम लोग शीघ्र मिलनेवाली चीज़ (दुनिया) से प्रेम रखते हो, (20)
_______________________________
☆ और आख़िरत को छोड़ रहे हो। (21)
_______________________________
☆ कितने ही चेहरे उस दिन तरो ताज़ा और प्रफुल्लित होंगे,(22)
_______________________________
☆ अपने रब की ओर देख रहे होंगे। (23)
_______________________________
☆ और कितने ही चेहरे उस दिन उदास और बिगड़े हुए होंगे, (24)
_______________________________
☆ समझ रहे होंगे कि उनके साथ कमर तोड़ देनेवाला मामला किया जाएगा। (25)
_______________________________
☆ कुछ नहीं, जब प्राण कंठ को आ लगेंगे, (26)
_______________________________
☆ और कहा जाएगा, "कौन हैं झाड़-फूँक करनेवाला?" (27)
_______________________________
☆ और वह समझ लेगा कि वह जुदाई(का समय) है। (28)
_______________________________
☆ और पिंडली से पिंडली लिपट जाएगी, (29)
_______________________________
☆ तुम्हारे रब की ओर उस दिन प्रस्थान होगा। (30)
_______________________________
☆ किन्तु उसने न तो सत्य माना और न नमाज़ अदा की, (31)
_______________________________
☆ लेकिन झुठलाया और मुँह मोड़ा, (32)
_______________________________
☆ फिर अकड़ता हुआ अपने लोगोंकी ओर चल दिया। (33)
_______________________________
☆ अफ़सोस है तुझपर और अफ़सोसहै! (34)
_______________________________
☆ फिर अफ़सोस है तुझपर और अफ़सोस है! (35)
_______________________________
☆ क्या मनुष्य समझता है कि वह यूँ ही स्वतंत्र छोड़ दियाजाएगा? (36)
_______________________________
☆ क्या वह केवल टपकाए हुए वीर्य की एक बूँद न था? (37)
_______________________________
☆ फिर वह रक्त की एक फुटकी हुआ, फिर अल्लाह ने उसे रूप दिया और उसके अंग-प्रत्यंग ठीक-ठाक किए। (38)
_______________________________
☆ और उसकी दो जातियाँ बनाईं -पुरुष और स्त्री। (39)
_______________________________
☆ क्या उसे यह सामर्थ्य प्राप्त नहीं कि वह मुर्दों को जीवित कर दे? (40)
●═══════════════════✒
www.achhiblog.blogspot.in
« सूरह (अध्याय ) « Go To
« पिछला » « अगला » (अध्याय)
« Next » « Privew »
Currently have 0 comment plz: