सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ वह घड़ी निकट आ लगी और चाँद फट गया; (1)
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☆ किन्तु हाल यह है कि यदि वेकोई निशानी देख भी लें तो टाल जाएँगे और कहेंगे, "यह तो जादूहै, पहले से चला आ रहा है!" (2)
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☆ उन्होंने झुठलाया और अपनी इच्छाओं का अनुसरण किया; किन्तु हर मामले के लिए एक नियत अवधि है। (3)
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☆ उनके पास अतीत की ऐसी ख़बरें आ चुकी हैं, जिनमें ताड़ना अर्थात पूर्णतः तत्वदर्शिता है। (4)
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☆ किन्तु चेतावनियाँ उनके कुछ काम नहीं आ रही हैं! - (5)
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☆ अतः उनसे रुख़ फेर लो - जिस दिन पुकारनेवाला एक अत्यन्त अप्रिय चीज़ की ओर पुकारेगा; (6)
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☆ वे अपनी झुकी हुई निगाहों के साथ अपनी क़ब्रों से निकल रहे होंगे, मानो वे बिखरी हुई टिड्डियाँ हैं;(7) द
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☆ दौड़ पड़ने को पुकारनेवाले की ओर। इनकार करनेवाले कहेंगे, "यह तो एक कठिन दिन है!" (8)
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☆ उनसे पहले नूह की क़ौम ने भी झुठलाया। उन्होंने हमारे बन्दे को झूठा ठहराया और कहा,"यह तो दीवाना है!" और वह बुरी तरह झिड़का गया। (9)
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☆ अन्त में उसने अपने रब को पुकारा कि "मैं दबा हुआ हूँ। अब तू बदला ले।" (10)
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☆ तब हमने मूसलाधार बरसते हुए पानी से आकाश के द्वार खोल दिए; (11)
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☆ और धरती को प्रवाहित स्रोतों में परिवर्तित कर दिया, और सारा पानी उस काम के लिए मिल गया जो नियत हो चुका था (12)
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☆ और हमने उसे एक तख़्तों और कीलोंवाली (नौका) पर सवार किया, (13)
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☆ जो हमारी निगाहों के सामनेचल रही थी - यह बदला था उस व्यक्ति के लिए जिसकी क़द्र नहीं की गई। (14)
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☆ हमने उसे एक निशानी बनाकर छोड़ दिया; फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला? (15)
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☆ फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरे डरावे? (16)
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☆ और हमने क़ुरआन को नसीहत केलिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला?(17)
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☆ आद ने भी झुठलाया, फिर कैसीरही मेरी यातना और मेरा डराना? (18)
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☆ निश्चय ही हमने एक निरन्तरअशुभ दिन में तेज़ प्रचंड ठंडी हवा भेजी, उसे उनपर मुसल्लत कर दिया, तो वह लोगों को उखाड़ फेंक रही थी। (19)
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☆ मानो वे उखड़े खजूर के तने हों। (20)
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☆ फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरे डरावे? (21)
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☆ और हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला? (22)
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☆ समूद ने चेतावनियों को झुठलाया; (23)
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☆ और कहने लगे, "एक अकेला आदमी, जो हम ही में से है, क्याहम उसके पीछे चलेंगे? तब तो वास्तव में हम गुमराही और दीवानापन में पड़ गए! (24)
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☆ क्या हमारे बीच उसी पर अनुस्मृति उतारी है? नहीं, बल्कि वह तो परले दरजे का झूठा, बड़ा आत्मश्लाघी है।" -(25)
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☆ "कल को ही वे जान लेंगे कि कौन परले दरजे का झूठा, बड़ा आत्मश्लाघी है। (26)
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☆ हम ऊँटनी को उनके लिए परीक्षा के रूप में भेज रहे हैं। अतः तुम उन्हें देखते जाओ और धैर्य से काम लो। (27)
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☆ "और उन्हें सूचित कर दो कि पानी उनके बीच बाँट दिया गया है। हर एक पीने की बारी पर बारीवाला उपस्थित होगा।"(28)
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☆ अन्ततः उन्होंने अपने साथी को पुकारा, तो उसने ज़िम्मा लिया फिर उसने उसकी कूचें काट दीं। (29)
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☆ फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरे डरावे? (30)
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☆ हमने उनपर एक धमाका छोड़ा, फिर वे बाड़ लगानेवाले की रौंदी हुई बाड़ की तरह चूरा होकर रह गए। (31)
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☆ हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्याकोई है नसीहतहासिल करनेवाला?(32)
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☆ लूत की क़ौम ने भी चेतावनियों को झुठलाया। (33)
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☆ हमने लूत के घरवालों के सिवा उनपर पथराव करनेवाली तेज़ वायु भेजी। (34)
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☆ हमने अपनी विशेष अनुकम्पा से प्रातःकाल उन्हें बचा लिया। हम इसी तरह उस व्यक्ति को बदला देते हैं जो कृतज्ञतादिखाए। (35)
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☆ उसने जो उन्हें हमारी पकड़से सावधान कर दिया था। किन्तुवे चेतावनियों के विषय में संदेह करते रहे। (36)
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☆ उन्होंने उसे फुसलाकर उसके पास से उसके अतिथियों कोबुलाना चाहा। अन्ततः हमने उनकी आँखें मेट दीं, "लो, अब चखो मज़ा मेरी यातना और चेतावनियों का!" (37)
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☆ सुबह सवेरे ही एक अटल यातना उनपर आ पहुँची, (38)
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☆ "लो, अब चखो मज़ा मेरी यातना और चेतावनियों का!" (39)
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☆ और हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला? (40)
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☆ और फ़िरऔनियों के पास चेतावनियाँ आईं; (41)
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☆ उन्होंने हमारी सारी निशानियों को झुठला दिया। अन्ततः हमने उन्हें पकड़ लिया, जिस प्रकार एक ज़बरदस्तप्रभुत्वशाली पकड़ता है। (42)
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☆ क्या तुम्हारे काफ़िर कुछ उन लोगों से अच्छे हैं या किताबों में तुम्हारे लिए कोई छुटकारा लिखा हुआ है?(43)
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☆ या वे कहते हैं, "और हम मुक़ाबले की शक्ति रखनेवाले एक जत्था हैं?" (44)
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☆ शीघ्र ही वह जत्था पराजित होकर रहेगा और वे पीठ दिखा जाएँगे। (45)
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☆ नहीं, बल्कि वह घड़ी है, जिसका समय उनके लिए नियत है और वह बड़ी आपदावाली और कटु घड़ी है! (46)
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☆ निस्संदेह, अपराधी लोग गुमराही और दीवानेपन में पड़े हुए हैं। (47)
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☆ जिस दिन वे अपने मुँह के बलआग में घसीटे जाएँगे, "चखो मज़ा आग की लपट का!" (48)
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☆ निश्चय ही हमने हर चीज़ एक अंदाज़े के साथ पैदा की है। (49)
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☆ और हमारा आदेश (और काम) तो बस एक दम की बात होती है जैसे आँख का झपकना। (50)
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☆ और हम तुम्हारे जैसे लोगोंको विनष्ट कर चुके हैं। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला? (51)
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☆ जो कुछ उन्होंने किया है, वह पन्नों में अंकित है। (52)
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☆ और हर छोटी और बड़ी चीज़ लिखित है। (53)
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☆ निश्चय ही डर रखनेवाले बाग़ों और नहरों के बीच होंगे, (54)
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☆ प्रतिष्ठित स्थान पर, प्रभुत्वशाली सम्राट के निकट। (55)
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