सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! प्रतिबन्धों (प्रतिज्ञाओं, समझौतों आदि) का पूर्ण रूप से पालन करो। तुम्हारे लिए चौपायों की जाति के जानवर हलाल हैं सिवाय उनके जो तुम्हें बताए जा रहे हैं; (हलाल जानवरों को खाओ) लेकिन जब तुम इहराम की दशा में हो तोशिकार को हलाल न समझना। निस्संदेह अल्लाह जो चाहता है, आदेश देता है। (1)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह कीनिशानियों का अनादर न करो; न आदर के महीनों का, न क़ुरबानी के जानवरों का और न उन जानवरों का जिनकी गरदनों में पट्टे पड़े हों और न उन लोगों का जो अपने रब के अनुग्रह और उसकी प्रसन्नता की चाह में प्रतिष्ठित गृह (काबा) को जाते हों। और जब इहराम की दशा से बाहर हो जाओ तो शिकार करो। और ऐसा न हो कि एक गरोह की शत्रुता, जिसने तुम्हारे लिए प्रतिष्ठित घर का रास्ता बन्द कर दिया था, तुम्हें इस बात पर उभार दे कि तुम ज़्यादती करने लगो। हक़ अदा करने और ईश-भय के काम में तुम एक-दूसरे का सहयोग करो और हक़ मारने और ज़्यादती के काम मेंएक-दूसरे का सहयोग न करो। अल्लाह का डर रखो; निश्चय ही अल्लाह बड़ा कठोर दंड देनेवाला है।(2)
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☆ तुम्हारे लिए हराम हुआ मुर्दार रक्त, सूअर का मांस और वह जानवर जिसपर अल्लाह के अतिरिक्त किसी और का नाम लियागया हो और वह जो घुटकर या चोट खाकर या ऊँचाई से गिरकर या सींग लगने से मरा हो या जिसे किसी हिंसक पशु ने फाड़ खाया हो - सिवाय उसके जिसे तुमने ज़बह कर लिया हो - और वह किसी थान पर ज़बह किया गया हो। और यह भी (तुम्हारे लिए हराम है) कि तीरों के द्वारा क़िस्मत मालूम करो। यह आज्ञा का उल्लंघन है - आज इनकार करनेवाले तुम्हारे धर्म की ओर से निराश हो चुके हैं तो तुम उनसे न डरो, बल्कि मुझसे डरो। आज मैंने तुम्हारे धर्म को पूर्ण कर दिया और तुमपर अपनी नेमत पूरी कर दी और मैंने तुम्हारे धर्म के रूप में इस्लाम को पसन्द किया - तोजो कोई भूख से विवश हो जाए, परन्तु गुनाह की ओर उसका झुकाव न हो, तो निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है। (3)
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☆ वे तुमसे पूछते हैं कि"उनके लिए क्या हलाल है?" कह दो, "तुम्हारे लिए सारी अच्छी स्वच्छ चीज़ें हलाल हैं और जिन शिकारी जानवरों को तुमने सधे हुए शिकारी जानवर के रूप में सधा रखा हो - जिनको जैसे अल्लाह ने तुम्हें सिखाया है,सिखाते हो - वे जिस शिकार को तुम्हारे लिए पकड़े रखें, उसको खाओ और उसपर अल्लाह का नाम लो। और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह जल्द हिसाब लेनेवाला है।"(4)
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☆ आज तुम्हारे लिए अच्छी स्वच्छ चीज़ें हलाल कर दी गईंऔर जिन्हें किताब दी गई उनका भोजन भी तुम्हारे लिए हलाल हैऔर तुम्हारा भोजन उनके लिए हलाल है और शरीफ़ और स्वतंत्रईमानवाली स्त्रियाँ भी, और वेशरीफ़ और स्वतंत्र ईमानवाली स्त्रियाँ भी जो तुमसे पहले के किताबवालों में से हों, जबकि तुम उनका हक़ (मेह्र्) देकर उन्हें निकाह में लाओ। नतो यह काम स्वछन्द कामतृप्ति के लिए हो और न चोरी-छिपे याराना करने को। और जिस किसी ने ईमान से इनकार किया, उसका सारा किया-धरा अकारथ गया और वह आख़िरत में भी घाटे में रहेगा।(5)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! जब तुम नमाज़ के लिए उठो तो अपने चेहरों को और हाथों को कुहनियों तक धो लिया करो और अपने सिरों पर हाथ फेर लो और अपने पैरों को भी टख़नों तक धो लो। और यदि नापाक हो तो अच्छी तरह पाक हो जाओ। परन्तु यदि बीमार हो या सफ़र में हो या तुममें से कोई शौच करके आया हो या तुमने स्त्रियों को हाथलगाया हो, फिर पानी न मिले तो पाक मिट्टी से काम लो। उसपर हाथ मारकर अपने मुँह और हाथोंपर फेर लो। अल्लाह तुम्हें किसी तंगी में नहीं डालना चाहता। अपितु वह चाहता है कि तुम्हें पवित्र करे और अपनी नेमत तुमपर पूरी कर दे, ताकि तुम कृतज्ञ बनो। (6)
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☆ और अल्लाह के उस अनुग्रह कोयाद करो जो उसने तुमपर किया है और उस प्रतिज्ञा को भी जो उसने तुमसे की है, जबकि तुमने कहा था - "हमने सुना और माना।" और अल्लाह का डर रखो। अल्लाह जो कुछ सीनों (दिलों) में है, उसे भी जानता है।(7)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह के लिए ख़ूब उठनेवाले, इनसाफ़ की निगरानी करनेवाले बनो और ऐसा न हो कि किसी गरोह की शत्रुता तुम्हें इस बात पर उभार दे कि तुम इनसाफ़ करना छोड़ दो। इनसाफ़ करो, यही धर्मपरायणता से अधिक निकट है। अल्लाह का डर रखो, निश्चय ही जो कुछ तुम करते हो, अल्लाहको उसकी ख़बर है। (8)
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☆ जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनसे अल्लाह का वादा है कि उनके लिए क्षमा और बड़ा प्रतिदान है। (9)
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☆ रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया और हमारी आयतों कोझुठलाया, वही भड़कती आग में पड़नेवाले हैं। (10)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह केउस अनुग्रह को याद करो जो उसने तुमपर किया है, जबकि कुछ लोगों ने तुम्हारी ओर हाथ बढ़ाने का निश्चय कर लिया था तो उसने उनके हाथ तुमसे रोक दिए। अल्लाह का डर रखो, और ईमानवालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।(11)
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☆ अल्लाह ने इसराईल की सन्तान से वचन लिया था और हमने उनमें से बारह सरदार नियुक्त किए थे। और अल्लाह नेकहा, "मैं तुम्हारे साथ हूँ, यदि तुमने नमाज़ क़ायम रखी, ज़कात देते रहे, मेरे रसूलों पर ईमान लाए और उनकी सहायता की और अल्लाह को अच्छा ऋण दिया तो मैं अवश्य तुम्हारी बुराइयाँ तुमसे दूर कर दूँगा और तुम्हें निश्चय ही ऐसे बाग़ों में दाख़िल करूँगा, जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। फिर इसके पश्चात तुममें से जिसने इनकार किया, तो वास्तव में वह ठीक और सही रास्ते से भटक गया।"(12)
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☆ फिर उनके बार-बार अपने वचन को भंग कर देने के कारण हमने उनपर लानत की और उनके हृदय कठोर कर दिए। वे शब्दों को उनके स्थान से फेरकर कुछ का कुछ कर देते हैं और जिसके द्वारा उन्हें याद दिलाया गया था, उसका एक बड़ा भाग वे भुला बैठे। और तुम्हें उनके किसी न किसी विश्वासघात का बराबर पता चलता रहेगा। उनमें ऐसा न करनेवाले थोड़े लोग हैं, तो तुम उन्हें क्षमा कर दो और उन्हें छोड़ो। निश्चय ही अल्लाह को वे लोग प्रिय हैं जो उत्तमकर्मी हैं।(13)
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☆ और हमने उन लोगों से भी दृढ़ वचन लिया था, जिन्होंने कहा था कि हम नसारा (ईसाई) हैं,किन्तु जो कुछ उन्हें जिसके द्वारा याद कराया गया था उसकाएक बड़ा भाग भुला बैठे। फिर हमने उनके बीच क़ियामत तक के लिए शत्रुता और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा, जो कुछ वे बनाते रहे थे। (14)
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☆ ऐ किताबवालो! हमारा रसूल तुम्हारे पास आ गया है। किताबकी जो कुछ बातें तुम छिपाते थे, उसमें से बहुत-सी बातें वहतुम्हारे सामने खोल रहा है औरबहुत-सी बातों को छोड़ देता है। तुम्हारे पास अल्लाह की ओर से प्रकाश और एक स्पष्ट किताब आ गई है,(15)
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☆ जिसके द्वारा अल्लाह उस व्यक्ति को जो उसकी प्रसन्नता का अनुगामी है, सलामती की राहें दिखा रहा है और अपनी अनुज्ञा से ऐसे लोगोंको अँधेरों से निकालकर उजाले की ओर ला रहा है और उन्हें सीधे मार्ग पर चला रहा है। (16)
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☆ निश्चय ही उन लोगों ने इनकार किया, जिन्होंने कहा,"अल्लाह तो वही मरयम का बेटा मसीह है।" कहो, "अल्लाह के आगेकिसका कुछ बस चल सकता है, यदि वह मरयम का पुत्र मसीह को और उसकी माँ (मरयम) को और समस्त धरतीवालों को विनष्ट करना चाहे? और अल्लाह ही के लिए है बादशाही आकाशों और धरती की ओरजो कुछ उनके मध्य है उसकी भी। वह जो चाहता है पैदा करता है। और अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।" (17)
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☆ यहूदी और ईसाई कहते हैं,"हम तो अल्लाह के बेटे और उसके चहेते हैं।" कहो, "फिर वह तुम्हें तुम्हारे गुनाहों परदंड क्यों देता है? बात यह नहीं है, बल्कि तुम भी उसके पैदा किए हुए प्राणियों में से एक मनुष्य हो। वह जिसे चाहे क्षमा करे और जिसे चाहे दंड दे।" और अल्लाह ही के लिए है बादशाही आकाशों और धरती कीऔर जो कुछ उनके बीच है वह भी, और जाना भी उसी की ओर है। (18)
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☆ ऐ किताबवालो! हमारा रसूल ऐसे समय में तुम्हारे पास आयाहै और तुम्हारे लिए (हमारा आदेश) खोल-खोलकर बयान करता है,जबकि रसूलों के आने का सिलसिला एक मुद्दत से बन्द था, ताकि तुम यह न कह सको कि"हमारे पास कोई शुभ-समाचार देनेवाला और सचेत करनेवाला नहीं आया।" तो देखो! अब तुम्हारे पास शुभ-समाचार देनेवाला और सचेत करनेवाला आ गया है। अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है। (19)
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☆ और याद करो जब मूसा ने अपनीक़ौम के लोगों से कहा था, "ऐ मेरे लोगो! अल्लाह की उस नेमत को याद करो जो उसने तुम्हें प्रदान की है। उसनें तुममें नबी पैदा किए और तुम्हें शासकबनाया और तुमको वह कुछ दिया जो संसार में किसी को नहीं दिया था। (20)
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☆ "ऐ मेरे लोगो! इस पवित्र भूमि में प्रवेश करो, जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दी है। और पीछे न हटो, अन्यथा, घाटे में पड़ जाओगे।" (21)
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☆ उन्होंने कहा, "ऐ मूसा! उसमें तो बड़े शक्तिशाली लोग रहते हैं। हम तो वहाँ कदापि नहीं जा सकते, जब तक कि वे वहाँ से निकल नहीं जाते। हाँ, यदि वे वहाँ से निकल जाएँ, तो हम अवश्य प्रविष्ट हो जाएँगे।" (22)
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☆ उन डरनेवालों में से ही दो व्यक्ति ऐसे भी थे जिनपर अल्लाह का अनुग्रह था। उन्होंने कहा, "उन लोगों के मुक़ाबले में दरवाज़े से प्रविष्ट हो जाओ। जब तुम उसमें प्रविष्टि हो जाओगे, तोतुम ही प्रभावी होगे। अल्लाह पर भरोसा रखो, यदि तुम ईमानवाले हो।" (23)
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☆ उन्होंने कहा, "ऐ मूसा! जब तक वे लोग वहाँ हैं, हम तो कदापि वहाँ नहीं जाएँगे। ऐसा ही है तो जाओ तुम और तुम्हारा रब, और दोनों लड़ो। हम तो यहींबैठे रहेंगे।" (24)
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☆ उसने कहा, "मेरे रब! मेरा स्वयं अपने और अपने भाई के अतिरिक्त किसी पर अधिकार नहीं है। अतः तू हमारे और इन अवज्ञाकारी लोगों के बीच अलगाव पैदा कर दे।" (25)
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☆ कहा, "अच्छा तो अब यह भूमि चालीस वर्ष तक इनके लिए वर्जित है। ये धरती में मारे-मारे फिरेंगे तो तुम इन अवज्ञाकारी लोगों के प्रति शोक न करो।" (26)
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☆ और इन्हें आदम के दो बेटों का सच्चा वृत्तान्त सुना दो। जब दोनों ने क़ुरबानी की, तो उनमें से एक की क़ुरबानी स्वीकृत हुई और दूसरे की स्वीकृत न हुई। उसने कहा, "मैंतुझे अवश्य ही मार डालूँगा।" दूसरे ने कहा, "अल्लाह तो उन्हीं की (क़ुरबानी) स्वीकृतकरता है, जो डर रखनेवाले हैं।(27)
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☆ यदि तू मेरी हत्या करने के लिए मेरी ओर हाथ बढ़ाएगा तो मैं तेरी हत्या करने के लिए तेरी ओर अपना हाथ नहीं बढ़ाऊँगा। मैं तो अल्लाह से डरता हूँ, जो सारे संसार का रबहै। (28)
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☆ मैं तो चाहता हूँ कि मेरा गुनाह और अपना गुनाह तू ही अपने सिर ले ले, फिर आग (जहन्नम) में पड़नेवालों में से हो जाए, और वही अत्याचारियों का बदला है।" (29)
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☆ अन्ततः उसके जी ने उसे अपने भाई की हत्या के लिए उद्यत कर दिया, तो उसने उसकी हत्या कर डाली और घाटे में पड़ गया। (30)
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☆ तब अल्लाह ने एक कौआ भेजा जो भूमि कुरेदने लगा, ताकि उसे दिखा दे कि वह अपने भाई केशव को कैसे छिपाए। कहने लगा,"अफ़सोस मुझ पर! क्या मैं इस कौए जैसा भी न हो सका कि अपने भाई का शव छिपा देता?" फिर वह लज्जित हुआ। (31)
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☆ इसी कारण हमने इसराईल की सन्तान के लिए लिख दिया था कि जिसने किसी व्यक्ति को किसी के ख़ून का बदला लेने या धरती में फ़साद फैलाने के अतिरिक्त किसी और कारण से मारडाला तो मानो उसने सारे ही इनसानों की हत्या कर डाली। औरजिसने उसे जीवन प्रदान किया, उसने मानो सारे इनसानों को जीवन दान किया। उनके पास हमारे रसूल स्पष्ट प्रमाण ला चुके हैं, फिर भी उनमें बहुत-से लोग धरती में ज़्यादतियाँ करनेवाले ही हैं। (32)
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☆ जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ते हैं और धरती में बिगाड़ पैदा करने के लिए दौड़-धूप करते हैं, उनका बदला तो बस यही है कि बुरी तरह से क़त्ल किए जाएँ या सूली पर चढ़ाए जाएँ या उनके हाथ-पाँव विपरीत दिशाओं में काट डाले जाएँ या उन्हें देश से निष्कासित कर दिया जाए। यह अपमान और तिरस्कार उनके लिए दुनिया में है और आख़िरत में उनके लिए बड़ी यातना है। (33)
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☆ किन्तु जो लोग, इससे पहले कि तुम्हें उनपर अधिकार प्राप्त हो, पलट आएँ (अर्थात तौबा कर लें) तो ऐसी दशा में तुम्हें मालूम होना चाहिए कि अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है। (34)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखो और उसका सामीप्य प्राप्त करो और उसके मार्ग में जी-तोड़ संघर्ष करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो। (35)
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☆ जिन लोगों ने इनकार किया यदि उनके पास वह सब कुछ हो जो सारी धरती में है और उतना ही उसके साथ और भी हो कि वह उसे देकर क़ियामत के दिन की यातनासे बच जाएँ; तब भी उनकी ओर से यह सब दी जानेवाली वस्तुएँ स्वीकार न की जाएँगी। उनके लिए दुखद यातना ही है। (36)
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☆ वे चाहेंगे कि आग (जहन्नम) से निकल जाएँ, परन्तु वे उससे न निकल सकेंगे। उनके लिए चिरस्थायी यातना है। (37)
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☆ और चोर चाहे स्त्री हो या पुरुष दोनों के हाथ काट दो। यह उनकी कमाई का बदला है और अल्लाह की ओर से शिक्षाप्रद दंड। अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है। (38)
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☆ फिर जो व्यक्ति अत्याचार करने के बाद पलट आए और अपने कोसुधार ले, तो निश्चय ही वह अल्लाह की कृपा का पात्र होगा। निस्संदेह, अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है। (39)
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☆ क्या तुम नहीं जानते कि अल्लाह ही आकाशों और धरती के राज्य का अधिकारी है? वह जिसे चाहे यातना दे और जिसे चाहे क्षमा कर दे। अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है। (40)
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☆ ऐ रसूल! जो लोग अधर्म के मार्ग में दौड़ते हैं, उनके कारण तुम दुखी न होना; वे जिन्होंने अपने मुँह से कहा कि "हम ईमान ले आए," किन्तु उनके दिल ईमान नहीं लाए; और वेजो यहूदी हैं, वे झूठ के लिए कान लगाते हैं और उन दूसरे लोगों की भली-भाँति सुनते हैं, जो तुम्हारे पास नहीं आए,शब्दों को उनका स्थान निश्चित होने के बाद भी उनके स्थान से हटा देते हैं। कहते हैं, "यदि तुम्हें यह (आदेश) मिले, तो इसे स्वीकार करना और यदि न मिले तो बचना।" जिसे अल्लाह ही आपदा में डालना चाहे उसके लिए अल्लाह के यहाँतुम्हारी कुछ भी नहीं चल सकती। ये वही लोग हैं जिनके दिलों को अल्लाह ने स्वच्छ करना नहीं चाहा। उनके लिए संसार में भी अपमान और तिरस्कार है और आख़िरत में भीबड़ी यातना है। (41)
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☆ वे झूठ के लिए कान लगाते रहनेवाले और बड़े हराम खानेवाले हैं। अतः यदि वे तुम्हारे पास आएँ, तो या तुम उनके बीच फ़ैसला कर दो या उन्हें टाल जाओ। यदि तुम उन्हें टाल गए तो वे तुम्हाराकुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। परन्तु यदि फ़ैसला करो तो उनके बीच इनसाफ़ के साथ फ़ैसला करो। निश्चय ही अल्लाह इनसाफ़ करनेवालों से प्रेम करता है। (42)
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☆ वे तुमसे फ़ैसला कराएँगे भी कैसे, जबकि उनके पास तौरात है, जिसमें अल्लाह का हुक्म मौजूद है! फिर इसके पश्चात भी वे मुँह मोड़ते हैं। वे तो ईमान ही नहीं रखते।(43)
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☆ निस्संदेह हमने तौरात उतारी, जिसमें मार्गदर्शन और प्रकाश था। नबी जो आज्ञाकारी थे, उसको यहूदियों के लिए अनिवार्य ठहराते थे कि वे उसका पालन करें और इसी प्रकारअल्लाहवाले और शास्त्रवेत्ता भी। क्योंकि उन्हें अल्लाह की किताब की सुरक्षा का आदेश दिया गया था और वे उसके संरक्षक थे। तो तुम लोगों से न डरो, बल्कि मुझही से डरो और मेरी आयतों के बदले थोड़ा मूल्य प्राप्त करने का मामला न करना। जो लोग उस विधान के अनुसार फ़ैसला न करें, जिसे अल्लाह ने उतारा है, तो ऐसे ही लोग विधर्मी हैं।(44)
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☆ और हमने उस (तौरात) में उनकेलिए लिख दिया था कि जान जान केबराबर है, आँख आँख के बराबर है, नाक नाक के बराबर है, कान कान के बराबर, दाँत दाँत के बराबर और सब आघातों के लिए इसी तरह बराबर का बदला है। तो जो कोई उसे क्षमा कर दे तो यह उसके लिए प्रायश्चित होगा और जो लोग उस विधान के अनुसार फ़ैसला न करें, जिसे अल्लाह ने उतारा है तो ऐसे ही लोग अत्याचारी हैं।(45)
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☆ और उनके पीछे उन्हीं के पद-चिन्हों पर हमने मरयम के बेटे ईसा को भेजा जो पहले से उसके सामने मौजूद किताब 'तौरात' की पुष्टि करनेवाला था। और हमने उसे इनजील प्रदानकी, जिसमें मार्गदर्शन और प्रकाश था। और वह अपनी पूर्ववर्ती किताब तौरात की पुष्टि करनेवाली थी, और वह डर रखनेवालों के लिए मार्गदर्शनऔर नसीहत थी। (46)
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☆ अतः इनजील वालों को चाहिए कि उस विधान के अनुसार फ़ैसलाकरें, जो अल्लाह ने उस इनजील में उतारा है। और जो उसके अनुसार फ़ैसला न करें, जो अल्लाह ने उतारा है, तो ऐसे हीलोग उल्लंघनकारी हैं। (47)
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☆ और हमने तुम्हारी ओर यह किताब हक़ के साथ उतारी है, जोउस किताब की पुष्टि करती है जो उसके पहले से मौजूद है और उसकी संरक्षक है। अतः लोगों के बीच तुम मामलों में वही फ़ैसला करना जो अल्लाह ने उतारा है और जो सत्य तुम्हारेपास आ चुका है उसे छोड़कर उनकी इच्छाओं का पालन न करना।हमने तुममें से प्रत्येक के लिए एक ही घाट (शरीअत) और एक हीमार्ग निश्चित किया है। यदि अल्लाह चाहता तो तुम सबको एक समुदाय बना देता। परन्तु जो कुछ उसने तुम्हें दिया है, उसमें वह तुम्हारी परीक्षा करनी चाहता है। अतः भलाई के कामों में एक-दूसरे से आगे बढ़ो। तुम सबको अल्लाह ही की ओर लौटना है। फिर वह तुम्हें बता देगा, जिसमें तुम विभेद करते रहे हो। (48)
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☆ और यह कि तुम उनके बीच वही फ़ैसला करो जो अल्लाह ने उतारा है और उनकी इच्छाओं का पालन न करो और उनसे बचते रहो कि कहीं ऐसा न हो कि वे तुम्हें फ़रेब में डालकर जो कुछ अल्लाह ने तुम्हारी ओर उतारा है उसके किसी भाग से वे तुम्हें हटा दें। फिर यदि वे मुँह मोड़ें तो जान लो कि अल्लाह ही उनके गुनाहों के कारण उन्हें संकट में डालना चाहता है। निश्चय ही अधिकांश लोग उल्लंघनकारी हैं।(49)
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☆ अब क्या वे अज्ञान का फ़ैसला चाहते हैं? तो विश्वासकरनेवाले लोगों के लिए अल्लाह से अच्छा फ़ैसला करनेवाला कौन हो सकता है? (50)
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☆ "ऐ ईमान लानेवालो! तुम यहूदियों और ईसाइयों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाओ। वे (तुम्हारे विरुद्ध) परस्पर एक-दूसरे के मित्र हैं। तुममें से जो कोई उनको अपना मित्र बनाएगा, वह उन्हीं लोगों में से होगा। निस्संदेह अल्लाह अत्याचारियों को मार्ग नहीं दिखाता। (51)
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☆ तो तुम देखते हो कि जिन लोगों के दिलों में रोग है, वेउनके यहाँ जाकर उनके बीच दौड़-धूप कर रहे हैं। वे कहते हैं, "हमें भय है कि कहीं हम किसी संकट में न ग्रस्त हो जाएँ।" तो सम्भव है कि जल्द हीअल्लाह (तुम्हे) विजय प्रदान करे या उसकी ओर से कोई और बात प्रकट हो। फिर तो ये लोग जो कुछ अपने जी में छिपाए हुए हैं, उसपर लज्जित होंगे। (52)
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☆ उस समय ईमानवाले कहेंगे,"क्या ये वही लोग हैं जो अल्लाह की कड़ी-कड़ी क़समें खाकर विश्वास दिलाते थे कि हमतुम्हारे साथ हैं?" इनका किया-धरा सब अकारथ गया और ये घाटे में पड़कर रहे। (53)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! तुममें से जो कोई अपने धर्म से फिरेगा तो अल्लाह जल्द ही ऐसेलोगों को लाएगा जिनसे उसे प्रेम होगा और जो उससे प्रेम करेंगे। वे ईमानवालों के प्रति नरम और अविश्वासियों के प्रति कठोर होंगे। अल्लाह की राह में जी-तोड़ कोशिश करेंगे और किसी भर्त्सना करनेवाले की भर्त्सना से न डरेंगे। यह अल्लाह का उदार अनुग्रह है, जिसे चाहता है प्रदान करता है। अल्लाह बड़ी समाईवाला, सर्वज्ञ है। (54)
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☆ तुम्हारे मित्र तो केवल अल्लाह और उसका रसूल और वे ईमानवाले हैं जो विनम्रता के साथ नमाज़ क़ायम करते और ज़कात देते हैं।(55)
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☆ अब जो कोई अल्लाह और उसके रसूल और ईमानवालों को अपना मित्र बनाए, तो निश्चय ही अल्लाह का गिरोह प्रभावी होकर रहेगा। (56)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! तुमसे पहले जिनको किताब दी गई थी, जिन्होंने तुम्हारे धर्म को हँसी-खेल बना लिया है, उन्हें और इनकार करनेवालों को अपना मित्र न बनाओ। और अल्लाह का डर रखो यदि तुम ईमानवाले हो। (57)
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☆ जब तुम नमाज़ के लिए पुकारते हो तो वे उसे हँसी और खेल बना लेते हैं। इसका कारण यह है कि वे बुद्धिहीन लोग हैं। (58)
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☆ कहो, "ऐ किताबवालो! क्या इसके सिवा हमारी कोई और बात तुम्हें बुरी लगती है कि हम अल्लाह और उस चीज़ पर ईमान लाए, जो हमारी ओर उतारी गई, और जो पहले उतारी जा चुकी है? और यह कि तुममें से अधिकांश लोग अवज्ञाकारी हैं।" (59)
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☆ कहो, "क्या मैं तुम्हें बताऊँ कि अल्लाह के यहाँ परिणाम की दृष्टि से इससे भी बुरी नीति क्या है? कौन गिरोह है जिसपर अल्लाह की फिटकार पड़ी और जिसपर अल्लाह का प्रकोप हुआ और जिसमें से उसनेबन्दर और सूअर बनाए और जिसने बढ़े हुए फ़सादी (ताग़ूत) की बन्दगी की, वे लोग (तुमसे भी) निकृष्ट दर्जे के थे। और वे (तुमसे भी अधिक) सीधे मार्ग सेभटके हुए थे।" (60)
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☆ जब वे (यहूदी) तुम लोगों के पास आते हैं तो कहते हैं, "हम ईमान ले आए।" हालाँकि वे इनकार के साथ आए थे और उसी के साथ चले गए। अल्लाह भली-भाँतिजानता है जो कुछ वे छिपाते हैं। (61)
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☆ तुम देखते हो कि उनमें से बहुतेरे लोग हक़ मारने, ज़्यादती करने और हरामख़ोरी में बड़ी तेज़ी दिखाते हैं। निश्चय ही बहुत ही बुरा है, जोवे कर रहे हैं। (62)
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☆ उनके सन्त और धर्मज्ञाता उन्हें गुनाह की बात बकने और हराम खाने से क्यों नहीं रोकते? निश्चय ही बहुत बुरा है जो काम वे कर रहे हैं। (63)
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☆ और यहूदी कहते हैं,"अल्लाह का हाथ बँध गया है।" उन्हीं के हाथ-बँधे हैं, और फिटकार है उनपर, उस बकबास के कारण जो वे करते हैं, बल्कि उसके दोनो हाथ तो खुले हुए हैं। वह जिस तरह चाहता है, ख़र्च करता है। जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर उतारा गया है, उससे अवश्य ही उनके अधिकतर लोगों की सरकशी और इनकार ही में अभिवृद्धि होगी। और हमने उनके बीच क़ियामत तक के लिए शत्रुता और द्वेष डाल दिया है। वे जब भी युद्ध की आग भड़काते हैं, अल्लाह उसे बुझादेता है। वे धरती में बिगाड़ फैलाने के लिए प्रयास कर रहे हैं, हालाँकि अल्लाह बिगाड़ फैलानेवालों को पसन्द नहीं करता। (64)
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☆ और यदि किताबवाले ईमान लाते और (अल्लाह का) डर रखते तो हम उनकी बुराइयाँ उनसे दूरकर देते और उन्हें नेमत भरी जन्नतों में दाख़िल कर देते। (65)
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☆ और यदि वे तौरात और इनजील को और जो कुछ उनके रब की ओर से उनकी ओर उतारा गया है, उसे क़ायम रखते, तो उन्हें अपने ऊपर से भी खाने को मिलता और अपने पाँव के नीचे से भी। उनमें से एक गिरोह सीधे मार्गपर चलनेवाला भी है, किन्तु उनमें से अधिकतर ऐसे हैं कि जो भी करते हैं बुरा होता है। (66)
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☆ ऐ रसूल! तुम्हारे रब की ओर से तुम पर जो कुछ उतारा गया है, उसे पहुँचा दो। यदि ऐसा न किया तो तुमने उसका सन्देश नहीं पहुँचाया। अल्लाह तुम्हें लोगों (की बुराइयों) से बचाएगा। निश्चय ही अल्लाह इनकार करनेवाले लोगों को मार्ग नहीं दिखाता। (67)
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☆ कह दो, "ऐ किताबवालो! तुम किसी भी चीज़ पर नहीं हो, जब तक कि तौरात और इनजील को और जोकुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर अवतरित हुआ है, उसे क़ायम न रखो।" किन्तु (ऐ नबी!) तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर जो कुछ अवतरित हुआ है, वह अवश्य ही उनमें से बहुतों की सरकशी और इनकार मेंअभिवृद्धि करनेवाला है। अतः तुम इनकार करनेवाले लोगों की दशा पर दुखी न होना। (68)
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☆ निस्संदेह वे लोग जो ईमान लाए हैं और जो यहूदी हुए हैं और साबई और ईसाई, उनमें से जो कोई भी अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाए और अच्छा कर्म करे तो ऐसे लोगों को न तो कोई डर होगा और न वे शोकाकुल होंगे। (69)
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☆ हमने इसराईल की सन्तान से दृढ़ वचन लिया और उनकी ओर रसूल भेजे। उनके पास जब भी कोई रसूल वह कुछ लेकर आया जो उन्हें पसन्द न था, तो कितनों को तो उन्होंने झुठलाया और कितनों की हत्या करने लगे। (70)
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☆ और उन्होंने समझा कि कोई आपदा न आएगी; इसलिए वे अंधे औरबहरे बन गए। फिर अल्लाह ने उनपर दयादृष्टि की, फिर भी उनमें से बहुत-से अंधे और बहरे हो गए। अल्लाह देख रहा है, जो कुछ वे करते हैं। (71)
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☆ निश्चय ही उन्होंने (सत्य का) इनकार किया, जिन्होंने कहा, "अल्लाह मरयम का बेटा मसीह ही है।" जब मसीह ने कहा था, "ऐ इसराईल की सन्तान! अल्लाह की बन्दगी करो, जो मेरा भी रब है और तुम्हारा भी रब है। जो कोई अल्लाह का साझी ठहराएगा, उसपर तो अल्लाह ने जन्नत हराम कर दी है और उसका ठिकाना आग है। अत्याचारियों का कोई सहायक नहीं।" (72)
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☆ निश्चय ही उन्होंने इनकार किया, जिन्होंने कहा, "अल्लाह तीन में का एक है।" हालाँकि अकेले पूज्य के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं। जो कुछ वे कहते हैं यदि इससे बाज़ न आएँ तो उनमें से जिन्होंने इनकार किया है, उन्हें दुखद यातना पहुँचकर रहेगी। (73)
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☆ फिर क्या वे लोग अल्लाह की ओर नहीं पलटेंगे और उससे क्षमा याचना नहीं करेंगे, जबकि अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है। (74)
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☆ मरयम का बेटा मसीह एक रसूल के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं। उससे पहले भी बहुत-से रसूल गुज़र चुके हैं। उसकी माँ अत्यन्त सत्यवती थी। दोनों ही भोजन करते थे। देखो, हम किसप्रकार उनके सामने निशानियाँस्पष्ट करते हैं; फिर देखो, येकिस प्रकार उलटे फिरे जा रहे हैं! (75)
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☆ कह दो, "क्या तुम अल्लाह सेहटकर उसकी बन्दगी करते हो जो न तुम्हारी हानि का अधिकारी है, न लाभ का? हालाँकि सुननेवाला, जाननेवाला अल्लाहही है।" (76)
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☆ कह दो, "ऐ किताबवालो! अपने धर्म में नाहक़ हद से आगे न बढ़ो और उन लोगों की इच्छाओं का पालन न करो, जो इससे पहले स्वयं पथभ्रष्ट हुए और बहुतों को पथभ्रष्ट किया और सीधे मार्ग से भटक गए। (77)
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☆ इसराईल की सन्तान में से जिन लोगों ने इनकार किया, उनपर दाऊद और मरयम के बेटे ईसा की ज़बान से फिटकार पड़ी, क्योंकि उन्होंने अवज्ञा की और वे हद से आगे बढ़े जा रहे थे। (78)
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☆ जो बुरा काम वे करते थे, उससे वे एक-दूसरे को रोकते न थे। निश्चय ही बहुत ही बुरा था, जो वे कर रहे थे। (79)
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☆ तुम उनमें से बहुतेरे लोगों को देखते हो जो इनकार करनेवालों से मित्रता रखते हैं। निश्चय ही बहुत बुरा है, जो उन्होंने अपने आगे रखा है।अल्लाह का उनपर प्रकोप हुआ औरयातना में वे सदैव ग्रस्त रहेंगे। (80)
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☆ और यदि वे अल्लाह और नबी परऔर उस चीज़ पर ईमान लाते, जो उसकी ओर अवतरित हुई तो वे उनको मित्र न बनाते। किन्तु उनमें अधिकतर अवज्ञाकारी हैं। (81)
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☆ तुम ईमानवालों का शत्रु सबलोगों से बढ़कर यहूदियों और बहुदेववादियों को पाओगे। और ईमान लानेवालों के लिए मित्रता में सबसे निकट उन लोगों को पाओगे, जिन्होंने कहा कि 'हम नसारा हैं।' यह इस कारण है कि उनमें बहुत-से धर्मज्ञाता और संसार-त्यागी सन्त पाए जाते हैं। और इस कारण कि वे अहंकार नहीं करते।(82)
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☆ जब वे उसे सुनते हैं जो रसूल पर अवतरित हुआ तो तुम देखते हो कि उनकी आँखे आँसुओंसे छलकने लगती हैं। इसका कारणयह है कि उन्होंने सत्य को पहचान लिया। वे कहते हैं,"हमारे रब! हम ईमान ले आए। अतएवतू हमारा नाम गवाही देनेवालों में लिख ले। (83)
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☆ और हम अल्लाह पर और जो सत्यहमारे पास पहुँचा है उसपर ईमान क्यों न लाएँ, जबकि हमें आशा है कि हमारा रब हमें अच्छे लोगों के साथ (जन्नत में) प्रविष्ट करेगा।" (84)
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☆ फिर अल्लाह ने उनके इस कथन के कारण उन्हें ऐसे बाग़ प्रदान किए, जिनके नीचे नहरेंबहती हैं, जिनमें वे सदैव रहेंगे। और यही सत्कर्मी लोगों का बदला है।(85)
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☆ रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया और हमारी आयतों कोझुठलाया, वे भड़कती आग (में पड़ने) वाले हैं। (86)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! जो अच्छी पाक चीज़ें अल्लाह ने तुम्हारे लिए हलाल की हैं, उन्हें हराम न कर लो और हद से आगे न बढ़ो। निश्चय ही अल्लाहको वे लोग प्रिय नहीं हैं, जो हद से आगे बढ़ते हैं। (87)
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☆ जो कुछ अल्लाह ने हलाल और पाक रोज़ी तुम्हें दी है, उसे खाओ और अल्लाह का डर रखो, जिसपर तुम ईमान लाए हो। (88)
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☆ तुम्हारी उन क़समों पर अल्लाह तुम्हें नहीं पकड़ता जो यूँ ही असावधानी से ज़बान से निकल जाती हैं। परन्तु जो तुमने पक्की क़समें खाई हों, उनपर वह तुम्हें पकड़ेगा। तो इसका प्रायश्चित दस मुहताजोंको औसत दर्जे का वह खाना खिला देना है, जो तुम अपने बाल-बच्चों को खिलाते हो या फिर उन्हें कपड़े पहनाना या एक ग़ुलाम आज़ाद करना होगा। और जिसे इसकी सामर्थ्य न हो, तो उसे तीन दिन के रोज़े रखने होंगे। यह तुम्हारी क़समों का प्रायश्चित है, जबकि तुम क़सम खा बैठो। तुम अपनी क़समों की हिफ़ाज़त किया करो। इस प्रकार अल्लाह अपनी आयतें तुम्हारे सामने खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ। (89)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! ये शराब और जुआ और देवस्थान और पाँसे तो गन्दे शैतानी काम हैं। अतःतुम इनसे अलग रहो, ताकि तुम सफल हो। (90)
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☆ शैतान तो बस यही चाहता है कि शराब और जुए के द्वारा तुम्हारे बीच शत्रुता और द्वेष पैदा कर दे और तुम्हें अल्लाह की याद से और नमाज़ से रोक दे, तो क्या तुम बाज़ न आओगे? (91)
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☆ अल्लाह की आज्ञा का पालन करो और रसूल की आज्ञा का पालन करो और बचते रहो, किन्तु यदि तुमने मुँह मोड़ा तो जान लो कि हमारे रसूल पर केवल स्पष्टरूप से (संदेश) पहुँचा देने कीज़िम्मेदारी है। (92)
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☆ जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वे पहले जो कुछ खा-पी चुके उसके लिए उनपर कोई गुनाह नहीं; जबकि वे डर रखें और ईमान पर क़ायम रहें और अच्छे कर्म करें। फिर डर रखें और ईमान लाएँ, फिर डर रखें और अच्छे सेअच्छा कर्म करें। अल्लाह सत्कर्मियों से प्रेम करता है। (93)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह उस शिकार के द्वारा तुम्हारी अवश्य परीक्षा लेगा जिस तक तुम्हारे हाथ और नेज़े पहुँच सकें, ताकि अल्लाह यह जान ले कि उससे बिन देखे कौन डरता है। फिर इसके पश्चात जिसने ज़्यादती की, उसके लिए दुखद यातना है। (94)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! इहराम की हालत में तुम शिकार न मारो। तुम में जो कोई जान-बूझकर उसे मारे, तो उसने जो जानवर मारा हो, चौपायों में से उसी जैसा एक जानवर - जिसका फ़ैसला तुम्हारे दो न्यायप्रिय व्यक्ति कर दें - काबा पहुँचाकर क़ुरबान किया जाए, या प्रायश्चित के रूप में मुहताजों को भोजन कराना होगा या उसके बराबर रोज़े रखने होंगे, ताकि वह अपने किए का मज़ा चख ले। जो पहले हो चुका उसे अल्लाह ने क्षमा कर दिया; परन्तु जिस किसी ने फिर ऐसा किया तो अल्लाह उससे बदला लेगा। अल्लाह प्रभुत्वशाली, बदला लेनेवाला है। (95)
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☆ तुम्हारे लिए जल का शिकार और उसका खाना हलाल है कि तुम उससे फ़ायदा उठाओ और मुसाफ़िर भी। किन्तु थलीय शिकार जब तक तुम इहराम में हो,तुमपर हराम है। और अल्लाह से डरते रहो, जिसकी ओर तुम इकट्ठा होगे। (96)
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☆ अल्लाह ने आदरणीय घर काबा को लोगों के लिए क़ायम रहने का साधन बनाया और आदरणीय महीनों और क़ुरबानी के जानवरों और उन जानवरों को भी जिनके गले में पट्टे बँधे हों, यह इसलिए कि तुम जान लो कि अल्लाह जानता है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। और यह कि अल्लाह हर चीज़ से अवगत है।(97)
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☆ जान लो अल्लाह कठोर दंड देनेवाला है और यह कि अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है। (98)
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☆ रसूल पर (सन्देश) पहुँचा देने के अतिरिक्त और कोई ज़िम्मेदारी नहीं। अल्लाह तोजानता है, जो कुछ तुम प्रकट करते हो और जो कुछ तुम छिपाते हो। (99)
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☆ कह दो, "बुरी चीज़ और अच्छीचीज़ समान नहीं होतीं, चाहे बुरी चीज़ों की बहुतायत तुम्हें प्रिय ही क्यों न लगे।" अतः ऐ बुद्धि और समझवालो! अल्लाह का डर रखो, ताकि तुम सफल हो सको। (100)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! ऐसी चीज़ों के विषय में न पूछो कि वे यदि तुम पर स्पष्ट कर दी जाएँ, तो तुम्हें बुरी लगें। यदि तुम उन्हें ऐसे समय में पूछोगे, जबकि क़ुरआन अवतरित हो रहा है, तो वे तुमपर स्पष्टकर दी जाएँगी। अल्लाह ने उसे क्षमा कर दिया। अल्लाह बहुत क्षमा करनेवाला, सहनशील है। (101)
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☆ तुमसे पहले कुछ लोग इस तरह के प्रश्न कर चुके हैं, फिर वेउसके कारण इनकार करनेवाले हो गए। (102)
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☆ अल्लाह ने न कोई 'बहीरा' ठहराया है और न 'सायबा' और न 'वसीला' और न 'हाम', परन्तु इनकार करनेवाले अल्लाह पर झूठ का आरोपण करते हैं और उनमें अधिकतर बुद्धि से काम नहीं लेते। (103)
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☆ और जब उनसे कहा जाता है कि उस चीज़ की ओर आओ जो अल्लाह नेअवतरित की है और रसूल की ओर, तो वे कहते हैं, "हमारे लिए तो वही काफ़ी है, जिस पर हमने अपने बाप-दादा को पाया है।" क्या यद्यपि उनके बाप-दादा कुछ भी न जानते रहे हों और न सीधे मार्ग पर रहे हों? (104)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! तुमपर अपनी चिन्ता अनिवार्य है, जब तुम रास्ते पर हो, तो जो कोई भटक जाए वह तुम्हारा कुछ नहींबिगाड़ सकता। अल्लाह की ओर तुम सबको लौटकर जाना है। फिर वह तुम्हें बता देगा, जो कुछ तुम करते रहे होगे। (105)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! जब तुममें से किसी की मृत्यु का समय आ जाए तो वसीयत के समय तुममें से दो न्यायप्रिय व्यक्ति गवाह हों, या तुम्हारे ग़ैर लोगों में से दूसरे दो व्यक्ति गवाह बन जाएँ, यह उस समय कि यदि तुम कहीं सफ़र में गए हो और मृत्यु तुमपर आ पहुँचे। यदि तुम्हें कोई सन्देह हो तो नमाज़ के पश्चात उन दोनों को रोक लो, फिर वे दोनों अल्लाह की क़समें खाएँ कि "हम इसके बदले कोई मूल्य स्वीकार करनेवाले नहीं हैं चाहे कोई नातेदार ही क्यों न हो और न हमअल्लाह की गवाही छिपाते हैं। निस्सन्देह ऐसा किया तो हम गुनाहगार ठहरेंगे।" (106)
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☆ फिर यदि पता चल जाए कि उन दोनों ने हक़ मारकर अपने को गुनाह में डाल लिया है, तो उनकी जगह दूसरे दो व्यक्ति उनलोगों में से खड़े हो जाएँ, जिनका हक़ पिछले दोनों ने मारना चाहा था, फिर वे दोनों अल्लाह की क़समें खाएँ कि "हम दोनों की गवाही उन दोनों की गवाही से अधिक सच्ची है और हमने कोई ज़्यादती नहीं की है। निस्सन्देह हमने ऐसा किया तो अत्याचारियों में से होंगे।" (107)
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☆ इसमें इसकी अधिक सम्भावना है कि वे ठीक-ठीक गवाही देंगे या डरेंगे कि उनकी क़समों के पश्चात क़समें ली जाएँगी। अल्लाह का डर रखो और सुनो। अल्लाह अवज्ञाकारी लोगों को मार्ग नहीं दिखाता। (108)
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☆ जिस दिन अल्लाह रसूलों को इकट्ठा करेगा, फिर कहेगा,"तुम्हें क्या जवाब मिला?" वे कहेंगे, "हमें कुछ नहीं मालूम। तू ही छिपी बातों को जानता है।" (109)
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☆ जब अल्लाह कहेगा, "ऐ मरयम के बेटे ईसा! मेरे उस अनुग्रह को याद करो जो तुमपर और तुम्हारी माँ पर हुआ है। जब मैंने पवित्र आत्मा से तुम्हें शक्ति प्रदान की; तुमपालने में भी लोगों से बात करते थे और बड़ी अवस्था को पहुँचकर भी। और याद करो, जबकि मैंने तुम्हें किताब और हिकमत और तौरात और इनजील की शिक्षा दी थी। और याद करो जब तुम मेरे आदेश से मिट्टी से पक्षी का प्रारूपण करते थे; फिर उसमें फूँक मारते थे, तो वह मेरे आदेश से उड़नेवाली बनजाती थी। और तुम मेरे आदेश से अंधे और कोढ़ी को अच्छा कर देते थे और जबकि तुम मेरे आदेश से मुर्दों को जीवित निकाल खड़ा करते थे। और याद करो जबकि मैंने तुमसे इसराईलियों को रोके रखा, जबकितुम उनके पास खुली-खुली निशानियाँ लेकर पहुँचे थे, तोउनमें से जो इनकार करनेवाले थे, उन्होंने कहा, यह तो बस खुला जादू है।" (110)
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☆ और याद करो, जब मैंने हवारियों (साथियों और शागिर्दों) के दिल में डाला कि "मुझपर और मेरे रसूल पर ईमान लाओ, तो उन्होंने कहा,"हम ईमान लाए और तुम गवाह रहो कि हम मुस्लिम हैं।" (111)
_______________________________
☆ और याद करो जब हवारियों ने कहा, "ऐ मरयम के बेटे ईसा! क्यातुम्हारा रब आकाश से खाने से भरा थाल उतार सकता है?" कहा,"अल्लाह से डरो, यदि तुम ईमानवाले हो।" (112)
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☆ वे बोले, "हम चाहते हैं कि उनमें से खाएँ और हमारे हृदय सन्तुष्ट हों और हमें मालूम हो जाए कि तूने हमसे सच कहा औरहम उसपर गवाह रहें।" (113)
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☆ मरयम के बेटे ईसा ने कहा,"ऐ अल्लाह, हमारे रब! हमपर आकाशसे खाने से भरा थाल उतार, जो हमारे लिए और हमारे अगलों और हमारे पिछलों के लिए ख़ुशी काकारण बने और तेरी ओर से एक निशानी हो, और हमें आहार प्रदान कर। तू सबसे अच्छा प्रदान करनेवाला है।" (114)
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☆ अल्लाह ने कहा, "मैं उसे तुमपर उतारूँगा, फिर उसके पश्चात तुममें से जो कोई इनकार करेगा तो मैं अवश्य उसेऐसी यातना दूँगा जो सम्पूर्ण संसार में किसी को न दूँगा।" (115)
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☆ और याद करो जब अल्लाह कहेगा, "ऐ मरयम के बेटे ईसा! क्या तुमने लोगों से कहा था कि अल्लाह के अतिरिक्त दो और पूज्य मुझे और मेरी माँ को बना लो?" वह कहेगा, "महिमावान है तू! मुझसे यह नहीं हो सकता कि मैं यह बात कहूँ, जिसका मुझे कोई हक़ नहीं है। यदि मैंने यह कहा होता तो तुझे मालूम ही होता। तू जानता है, जो कुछ मेरे मन में है। परन्तु मैं नहीं जानता जो कुछतेरे मन में है। निश्चय ही, तूछिपी बातों का भली-भाँति जाननेवाला है।(116)
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☆ मैंने उनसे उसके सिवा और कुछ नहीं कहा, जिसका तूने मुझे आदेश दिया था, यह कि अल्लाह की बन्दगी करो, जो मेरा भी रब है और तुम्हारा भी रब है। और जब तक मैं उनमें रहाउनकी ख़बर रखता था, फिर जब तूने मुझे उठा लिया तो फिर तू ही उनका निरीक्षक था। और तू ही हर चीज़ का साक्षी है। (117)
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☆ यदि तू उन्हें यातना दे तो वे तो तेरे बन्दे ही हैं और यदि तू उन्हें क्षमा कर दे, तोनिस्सन्देह तू अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।" (118)
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☆ अल्लाह कहेगा, "यह वह दिन है कि सच्चों को उनकी सच्चाई लाभ पहुँचाएगी। उनके लिए ऐसे बाग़ हैं, जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी, उनमें वे सदैव रहेंगे। अल्लाह उनसे राज़ी हुआ और वे उससे राज़ी हुए। यही सबसे बड़ी सफलता है।" (119)
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☆ आकाशों और धरती और जो कुछ उनके बीच है, सबपर अल्लाह ही की बादशाही है और उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है। (120)
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