सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
www.achhiblog.blogspot.in
« सूरह (अध्याय ) « Go To
« पिछला » « अगला » (अध्याय)
« Next » « Privew »
●═══════════════════✒
☆ऐ कपड़े में लिपटनेवाले! (1)
_______________________________
☆ रात को उठकर (नमाज़ में) खड़े रहा करो - सिवाय थोड़ा हिस्सा - (2)
_______________________________
☆ आधी रात (3)
_______________________________
☆ या उससे कुछ थोड़ा कम कर लोया उससे कुछ अधिक बढ़ा लो और क़ुरआन को भली-भाँति ठहर-ठहरकर पढ़ो। - (4)
_______________________________
☆ निश्चय ही हम तुमपर एक भारी बात डालनेवाले हैं। (5)
_______________________________
☆ निस्संदेह रात का उठना अत्यन्त अनुकूलता रखता है और बात भी उसमें अत्यन्त सधी हुईहोती है। (6)
_______________________________
☆ निश्चय ही तुम्हारे लिए दिन में भी (तसबीह की) बड़ी गुंजाइश है। - (7)
_______________________________
☆ और अपने रब के नाम का ज़िक्र किया करो और सबसे कटकरउसी के हो रहो। (8)
_______________________________
☆ वह पूर्व और पश्चिम का रब है, उसके सिवा कोई इष्ट-पूज्य नहीं, अतः तुम उसी को अपना कार्यसाधक बना लो। (9)
_______________________________
☆ और जो कुछ वे कहते हैं उसपरधैर्य से काम लो और भली रीति से उनसे अलग हो जाओ। (10)
_______________________________
☆ और तुम मुझे और झुठलानेवाले सुख-सम्पन्न लोगों को छोड़ दो और उन्हें थोड़ी मुहलत दो। (11)
_______________________________
☆ निश्चय ही हमारे पास बेड़ियाँ हैं और भड़कती हुई आग। (12)
_______________________________
☆ और गले में अटकनेवाला भोजनहै और दुखद यातना, (13)
_______________________________
☆ जिस दिन धरती और पहाड़ काँप उठेंगे, और पहाड़ रेत के ऐसे ढेर होकर रह जाएँगे जो बिखरे जा रहे होंगे। (14)
_______________________________
☆ निश्चय ही हमने तुम्हारी ओर एक रसूल तुमपर गवाह बनाकर भेजा है, जिस प्रकार हमने फ़िरऔन की ओर एक रसूल भेजा था। (15)
_______________________________
☆ किन्तु फ़िरऔन ने रसूल की अवज्ञा की, तो हमने उसे पकड़ लिया और यह पकड़ सख़्त वबाल थी। (16)
_______________________________
☆ यदि तुमने इनकार किया तो उस दिन से कैसे बचोगे जो बच्चों को बूढ़ा कर देगा? (17)
_______________________________
☆ आकाश उसके कारण फटा पड़ रहा है, उसका वादा तो पूरा ही होना है। (18)
_______________________________
☆ निश्चय ही यह एक अनुस्मृतिहै। अब जो चाहे अपने रब की ओर मार्ग ग्रहण कर ले। (19)
_______________________________
☆ निस्संदेह तुम्हारा रब जानता है कि तुम लगभग दो तिहाई रात, आधी रात और एक तिहाई रात तक (नमाज़ में) खड़ेरहते हो, और एक गिरोह उन लोगोंमें से भी जो तुम्हारे साथ है,खड़ा होता है। और अल्लाह रात और दिन की घट-बढ़ नियत करता है। उसे मालूम है कि तुम सब उसका निर्वाह न कर सकोगे, अतः उसने तुमपर दया-दृष्टि की। अबजितना क़ुरआन आसानी से हो सकेपढ़ लिया करो। उसे मालूम है कि तुममें से कुछ बीमार भी होंगे, और कुछ दूसरे लोग अल्लाह के उदार अनुग्रह (रोज़ी) को ढूँढते हुए धरती में यात्रा करेंगे, कुछ दूसरेलोग अल्लाह के मार्ग में युद्ध करेंगे। अतः उसमें से जितना आसानी से हो सके पढ़ लिया करो, और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात देते रहो, और अल्लाह को ऋण दो, अच्छा ऋण। तुम जो भलाई भी अपने लिए (आगे) भेजोगेउसे अल्लाह के यहाँ अत्युत्तम और प्रतिदान की दृष्टि से बहुत बढ़कर पाओगे। और अल्लाह से माफ़ी माँगते रहो। बेशक अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है। (20)
●═══════════════════✒
www.achhiblog.blogspot.in
« सूरह (अध्याय ) « Go To
« पिछला » « अगला » (अध्याय)
« Next » « Privew »
Currently have 0 comment plz: