सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ किस चीज़ के विषय में वे आपस में पूछ-गच्छ कर रहे हैं? (1)
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☆ उस बड़ी ख़बर के सम्बन्ध में, (2)
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☆ जिसमें वे मतभेद रखते हैं।(3)
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☆ कदापि नहीं, शीघ्र ही वे जान लेंगे। (4)
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☆ फिर कदापि नहीं, शीघ्र ही वे जान लेंगे। (5)
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☆ क्या ऐसा नहीं है कि हमने धरती को बिछौना बनाया। (6)
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☆ और पहाड़ों को मेख़ें? (7)
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☆ और हमने तुम्हें जोड़-जोड़े पैदा किया, (8)
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☆ और तुम्हारी नींद को थकन दूर करनेवाली बनाया, (9)
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☆ रात को आवरण बनाया, (10)
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☆ और दिन को जीवन-वृत्ति के लिए बनाया। (11)
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☆ और तुम्हारे ऊपर सात सुदृढ़ आकाश निर्मित किए, (12)
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☆ और एक तप्त (गर्म) और प्रकाशमान प्रदीप बनाया, (13)
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☆ और बरस पड़नेवाली घटाओं सेहमने मूसलाधार पानी उतारा, (14)
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☆ ताकि हम उसके द्वारा अनाज और वनस्पति उत्पादित करें (15)
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☆ और सघन बाग़ भी। (16)
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☆ निस्संदेह फ़ैसले का दिन एक नियत समय है, (17)
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☆ जिस दिन नरसिंघा में फूँक मारी जाएगी, तो तुम गरोह के गरोह चले आओगे। (18)
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☆ और आकाश खोल दिया जाएगा तो द्वार ही द्वार हो जाएँगे; (19)
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☆ और पहाड़ चलाए जाएँगे, तो वे बिल्कुल मरीचिका होकर रह जाएँगे। (20)
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☆ वास्तव में जहन्नम एक घात-स्थल है; (21)
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☆ सरकशों का ठिकाना है। (22)
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☆ वस्तुस्थिति यह है कि वे उसमें मुद्दत पर मुद्दत बिताते रहेंगे। (23)
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☆ वे उसमें न किसी शीतलता का मज़ा चखेंगे और न किसी पेय का,(24)
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☆ सिवाय खौलते पानी और बहती पीप-रक्त के। (25)
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☆ यह बदले के रूप में उनके कर्मों के ठीक अनुकूल होगा। (26)
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☆ वास्तव में वे किसी हिसाब की आशा न रखते थे,(27)
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☆ और उन्होंने हमारी आयतों को ख़ूब झुठलाया, (28)
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☆ और हमने हर चीज़ लिखकर गिन रखी है। (29)
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☆ "अब चखो मज़ा कि यातना के अतिरिक्त हम तुम्हारे लिए किसी और चीज़ में बढ़ोत्तरी नहीं करेंगे। " (30)
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☆ निस्सन्देह डर रखनेवालों के लिए एक बड़ी सफलता है, (31)
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☆ बाग़ हैं और अंगूर, (32)
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☆ और नवयौवना समान उम्रवाली,(33)
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☆ और छलकता जाम।(34)
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☆ वे उसमें न तो कोई व्यर्थ बात सुनेंगे और न कोई झुठलानेकी बात। (35)
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☆ यह तुम्हारे रब की ओर से बदला होगा, हिसाब के अनुसार प्रदत्त। (36)
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☆ वह आकाशों और धरती का और जोकुछ उनके बीच है सबका रब है, अत्यन्त कृपाशील है, उसके सामने बात करना उनके बस में नहीं होगा। (37)
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☆ जिस दिन रूह और फ़रिश्ते पंक्तिबद्ध खड़े होंगे, वे बोलेंगे नहीं, सिवाय उस व्यक्ति के जिसे रहमान अनुमति दे और जो ठीक बात कहे। (38)
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☆ वह दिन सत्य है। अब जो कोई चाहे अपने रब की ओर रुजु करे। (39)
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☆ हमने तुम्हें निकट आ लगी यातना से सावधान कर दिया है। जिस दिन मनुष्य देख लेगा जो कुछ उसके हाथों ने आगे भेजा होगा, और इनकार करनेवाला कहेगा, "ऐ काश! कि मैं मिट्टी होता!" (40)
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