सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ साक्षी है रात जबकि वह छा जाए, (1)
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☆ और दिन जबकि वह प्रकाशमान हो, (2)
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☆ और नर और मादा का पैदा करना, (3)
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☆ कि तुम्हारा प्रयास भिन्न-भिन्न है। (4)
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☆ तो जिस किसी ने दिया और डर रखा, (5)
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☆ और अच्छी चीज़ की पुष्टि की, (6)
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☆ हम उसे सहज ढंग से उस चीज़ का पात्र बना देंगे, जो सहज औरमृदुल (सुख-साध्य) है। (7)
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☆ रहा वह व्यक्ति जिसने कंजूसी की और बेपरवाही बरती, (8)
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☆ और अच्छी चीज़ को झुठला दिया, (9)
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☆ हम उसे सहज ढंग से उस चीज़ का पात्र बना देंगे, जो कठिन चीज़ (कष्ट-साध्य) है। (10)
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☆ और उसका माल उसके कुछ काम नआएगा, जब वह (सिर के बल) खड्ड में गिरेगा। (11)
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☆ निस्संदेह हमारे ज़िम्मे है मार्ग दिखाना। (12)
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☆ और वास्तव में हमारे ही अधिकार में है आख़िरत और दुनिया भी। (13)
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☆ अतः मैंने तुम्हें दहकती आग से सावधान कर दिया। (14)
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☆ इसमें बस वही पड़ेगा जो बड़ा ही अभागा होगा, (15)
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☆ जिसने झुठलाया और मुँह फेरा। (16)
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☆ और उससे बच जाएगा वह अत्यन्त परहेज़गार व्यक्ति, (17)
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☆ जो अपना माल देकर अपने आपको निखारता है। (18)
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☆ और हाल यह है कि किसी का उसपर उपकार नहीं कि उसका बदलादिया जा रहा हो, (19)
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☆ बल्कि इससे अभीष्ट केवल उसके अपने उच्च रब के मुख (प्रसन्नता) की चाह है। (20)
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☆ और वह शीघ्र ही राज़ी हो जाएगा। (21)
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