सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
☆ ता॰ सीन॰ मीम॰ (1)
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☆ (जो आयतें अवतरित हो रही हैं) वे स्पष्ट किताब की आयतें हैं। (2)
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☆ हम तुम्हें मूसा और फ़िरऔनका कुछ वृत्तान्त ठीक-ठीक सुनाते हैं, उन लोगों के लिए जो ईमान लाना चाहें। (3)
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☆ निस्संदेह फ़िरऔन ने धरती में सरकशी की और उसके निवासियों को विभिन्न गिरोहों में विभक्त कर दिया। उनमें से एक गरोह को कमज़ोर कर रखा था। वह उनके बेटों की हत्या करता और उनकी स्त्रियों को जीवित रहने देता। निश्चय ही वह बिगाड़ पैदा करनेवालों में से था। (4)
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☆ और हम यह चाहते थे कि उन लोगों पर उपकार करें, जो धरती में कमज़ोर पड़े थे और उन्हेंनायक बनाएँ और उन्हीं को वारिस बनाएँ। (5)
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☆ और धरती में उन्हें सत्ताधिकार प्रदान करें और उनकी ओर से फ़िरऔन और हामान और उनकी सेनाओं को वह कुछ दिखाएँ, जिसकी उन्हें आशंका थी। (6)
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☆ हमने मूसा की माँ को संकेत किया कि "उसे दूध पिला फिर जब तुझे उसके विषय में भय हो, तो उसे दरिया में डाल दे और न तुझे कोई भय हो और न तू शोकाकुल हो। हम उसे तेरे पास लौटा लाएँगे और उसे रसूल बनाएँगे।" (7)
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☆ अन्ततः फ़िरऔन के लोगों नेउसे उठा लिया, ताकि परिणामस्वरूप वह उनका शत्रु और उनके लिए दुख बने। निश्चय ही फ़िरऔन और हामान और उनकी सेनाओं से बड़ी चूक हुई। (8)
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☆ फ़िरऔन की स्त्री ने कहा,"यह मेरी और तुम्हारी आँखों कीठंडक है। इसकी हत्या न करो, कदाचित यह हमें लाभ पहुँचाए या हम इसे अपना बेटा ही बना लें।" और वे (परिणाम से) बेख़बर थे। (9)
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☆ और मूसा की माँ का हृदय विचलित हो गया। निकट था कि वह उसको प्रकट कर देती, यदि हम उसके दिल को इस ध्येय से न सँभालते कि वह मोमिनों में सेहो। (10)
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☆ उसने उसकी बहन से कहा, "तू उसके पीछे-पीछे जा।" अतएव वह उसे दूर ही दूर से देखती रही और वे महसूस नहीं कर रहे थे। (11)
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☆ हमने पहले ही से दूध पिलानेवालियों को उसपर हराम कर दिया। अतः उसने (मूसा की बहन ने) कहा कि "क्या मैं तुम्हें ऐसे घरवालों का पता बताऊँ जो तुम्हारे लिए इसके पालन-पोषण का ज़िम्मा लें और इसके शुभ-चिंतक हों?" (12)
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☆ इस प्रकार हम उसे उसकी माँ के पास लौटा लाए, ताकि उसकी आँख ठंडी हो और वह शोकाकुल न हो और ताकि वह जान ले कि अल्लाह का वादा सच्चा है, किन्तु उनमें से अधिकतर लोग जानते नहीं।(13)
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☆ और जब वह अपनी जवानी को पहुँचा और भरपूर हो गया, तो हमने उसे निर्णय-शक्ति और ज्ञान प्रदान किया। और सुकर्मी लोगों को हम इसी प्रकार बदला देते हैं। (14)
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☆ उसने नगर में ऐसे समय प्रवेश किया जबकि वहाँ के लोगबेख़बर थे। उसने वहाँ दो आदमियों को लड़ते पाया। यह उसके अपने गरोह का था और यह उसके शत्रुओं में से था। जो उसके गरोह में से था उसने उसके मुक़ाबले में, जो उसके शत्रुओं में से था, सहायता के लिए उसे पुकारा। मूसा ने उसे घूँसा मारा और उसका काम तमाम कर दिया। कहा, "यह शैतान की कार्यवाई है। निश्चय ही वह खुला पथभ्रष्ट करनेवाला शत्रु है।" (15)
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☆ उसने कहा, "ऐ मेरे रब, मैंने अपने आपपर ज़ुल्म किया। अतः तू मुझे क्षमा कर दे।" अतएव उसने उसे क्षमा कर दिया। निश्चय ही वही बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है। (16)
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☆ उसने कहा, "ऐ मेरे रब! जैसे तूने मुझपर अनुकम्पा दर्शाई है, अब मैं भी कभी अपराधियों का सहायक नहीं बनूँगा।" (17)
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☆ फिर दूसरे दिन वह नगर में डरता, टोह लेता हुआ प्रविष्ट हुआ। इतने में अचानक क्या देखता है कि वही व्यक्ति जिसने कल उससे सहायता चाही थी, उसे पुकार रहा है। मूसा नेउससे कहा, "तू तो प्रत्यक्ष बहका हुआ व्यक्ति है।" (18)
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☆ फिर जब उसने इरादा किया कि उस व्यक्ति को पकड़े, जो उन लोगों का शत्रु था, तो वह बोल उठा, "ऐ मूसा, क्या तू चाहता हैकि मुझे मार डाले, जिस प्रकार तूने कल एक व्यक्ति को मार डाला? धरती में बस तू निर्दय अत्याचारी बनकर रहना चाहता है और यह नहीं चाहता कि सुधार करनेवाला हो।" (19)
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☆ इसके पश्चात एक आदमी नगर के परले सिरे से दौड़ता हुआ आया। उसने कहा, "ऐ मूसा, सरदार तेरे विषय में परामर्श कर रहेहैं कि तुझे मार डालें। अतः तू निकल जा! मैं तेरा हितैषी हूँ।" (20)
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☆ फिर वह वहाँ से डरता और ख़तरा भाँपता हुआ निकल खड़ा हुआ। उसने कहा, "ऐ मेरे रब! मुझे ज़ालिम लोगों से छुटकारा दे।" (21)
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☆ जब उसने मदयन का रुख़ किया तो कहा, "आशा है, मेरा रब मुझे ठीक रास्ते पर डाल देगा।" (22)
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☆ और जब वह मदयन के पानी पर पहुँचा तो उसने उसपर पानी पिलाते लोगों को एक गरोह पाया। और उनसे हटकर एक ओर दो स्त्रियों को पाया, जो अपने जानवरों को रोक रही थीं। उसनेकहा, "तुम्हारा क्या मामला है?" उन्होंने कहा, "हम उस समय तक पानी नहीं पिला सकते, जब तकये चरवाहे अपने जानवर निकाल नले जाएँ, और हमारे बाप बहुत हीबूढ़े हैं।" (23)
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☆ तब उसने उन दोनों के लिए पानी पिला दिया। फिर छाया की ओर पलट गया और कहा, "ऐ मेरे रब, जो भलाई भी तू मेरी ओर उतार दे, मैं उसका ज़रूरतमंद हूँ।" (24)
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☆ फिर उन दोनों में से एक लजाती हुई उसके पास आई। उसने कहा, "मेरे बाप आपको बुला रहे हैं, ताकि आपने हमारे लिए (जानवरों को) जो पानी पिलाया है, उसका बदला आपको दें।" फिर जब वह उसके पास पहुँचा और उसे अपने सारे वृत्तान्त सुनाए तो उसने कहा, "कुछ भय न करो। तुम ज़ालिम लोगों से छुटकारा पा गए हो।" (25)
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☆ उन दोनों स्त्रियों में सेएक ने कहा, "ऐ मेरे बाप! इसको मज़दूरी पर रख लीजिए। अच्छा व्यक्ति, जिसे आप मज़दूरी पर रखें, वही है जो बलवान, अमानतदार हो।" (26)
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☆ उसने कहा, "मैं चाहता हूँ कि अपनी इन दोनों बेटियों मेंसे एक का विवाह तुम्हारे साथ इस शर्त पर कर दूँ कि तुम आठ वर्ष तक मेरे यहाँ नौकरी करो।और यदि तुम दस वर्ष पूरे कर दो, तो यह तुम्हारी ओर से होगा। मैं तुम्हें कठिनाई में डालना नहीं चाहता। यदि अल्लाह ने चाहा तो तुम मुझे नेक पाओगे।" (27)
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☆ कहा, "यह मेरे और आपके बीच निश्चय हो चुका। इन दोनों अवधियों में से जो भी मैं पूरी कर दूँ, तो तुझपर कोई ज़्यादती नहीं होगी। और जो कुछ हम कह रहे हैं, उसके विषय में अल्लाह पर भरोसा काफ़ी है।" (28)
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☆ फिर जब मूसा ने अवधि पूरी कर दी और अपने घरवालों को लेकर चला तो तूर की ओर उसने एकआग-सी देखी। उसने अपने घरवालों से कहा, "ठहरो, मैंने एक आग का अवलोकन किया है। कदाचित मैं वहाँ से तुम्हारे पास कोई ख़बर ले आऊँ या उस आग से कोई अंगारा ही, ताकि तुम ताप सको।" (29)
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☆ फिर जब वह वहाँ पहुँचा तो दाहिनी घाटी के किनारे से शुभक्षेत्र में वृक्ष से आवाज़ आई, "ऐ मूसा! मैं ही अल्लाह हूँ, सारे संसार का रब!" (30)
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☆ और यह कि "डाल दे अपनी लाठी।" फिर जब उसने देखा कि वहबल खा रही है, जैसे कोई साँप हो तो वह पीठ फेरकर भागा और पीछे मुड़कर भी न देखा। "ऐ मूसा! आगे आ और भय न कर। निस्संदेह तेरे लिए कोई भय कीबात नहीं। (31)
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☆ अपना हाथ अपने गिरेबान में डाल। बिना किसी ख़राबी के चमकता हुआ निकलेगा। और भय के समय अपनी भुजा को अपने से मिलाए रख। ये दो निशानियाँ हैं तेरे रब की ओर से फ़िरऔन और उसके दरबारियों के पास लेकर जाने के लिए। निश्चय ही वे बड़े अवज्ञाकारी लोग हैं।"(32)
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☆ उसने कहा, "ऐ मेरे रब! मुझसे उनके एक आदमी की जान गई है। इसलिए मैं डरता हूँ कि वे मुझे मार डालेंगे। (33)
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☆ मेरे भाई हारून की ज़बान मुझसे बढ़कर धाराप्रवाह है। अतः उसे मेरे साथ सहायक के रूप में भेज कि वह मेरी पुष्टि करे। मुझे भय है कि वे मुझे झुठलाएँगे।" (34)
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☆ कहा, "हम तेरे भाई के द्वारा तेरी भुजा मज़बूत करेंगे, और तुम दोनों को एक ओजप्रदान करेंगे कि वे फिर तुम तक न पहुँच सकेंगे। हमारी निशानियों के कारण तुम दोनों और जो तुम्हारे अनुयायी होंगे वे ही प्रभावी होंगे।" (35)
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☆ फिर जब मूसा उनके पास हमारी खुली-खुली निशानियाँ लेकर आया तो उन्होंने कहा, "यहतो बस घड़ा हुआ जादू है। हमने तो यह बात अपने अगले बाप-दादा में कभी सुनी ही नहीं।" (36)
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☆ मूसा ने कहा, "मेरा रब उस व्यक्ति को भली-भाँति जानता है जो उसके यहाँ से मार्गदर्शन लेकर आया है, और उसको भी जिसके लिए अंतिम घर है। निश्चय ही ज़ालिम सफल नहीं होते।" (37)
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☆ फ़िरऔन ने कहा, "ऐ दरबारवालो, मैं तो अपने सिवा तुम्हारे किसी प्रभु को नहीं जानता। अच्छा तो ऐ हामान! तू मेरे लिए ईटें आग में पकवा। फिर मेरे लिए एक ऊँचा महल बना कि मैं मूसा के प्रभु को झाँक आऊँ। मैं तो उसे झूठा समझता हूँ।" (38)
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☆ उसने और उसकी सेनाओं ने धरती में नाहक़ घमंड किया और समझा कि उन्हें हमारी ओर लौटना नहीं है। (39)
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☆ अन्ततः हमने उसे औऱ उसकी सेनाओं को पकड़ लिया और उन्हें गहरे पानी में फेंक दिया। अब देख लो कि ज़ालिमों का कैसा परिणाम हुआ। (40)
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☆ और हमने उन्हें आग की ओर बुलानेवाले पेशवा बना दिया और क़ियामत के दिन उन्हें कोईसहायता प्राप्त न होगी। (41)
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☆ और हमने इस दुनिया में उनकेपीछे लानत लगा दी और क़ियामत के दिन वही बदहाल होंगे।(42)
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☆ और अगली नस्लों को विनष्ट कर देने के पश्चात हमने मूसा को किताब प्रदान की, लोगों के लिए अन्तर्दृष्टियों की सामग्री, मार्गदर्शन और दयालुता बनाकर, ताकि वे ध्यानदें। (43)
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☆ तुम तो (नगर के) पश्चिमी किनारे पर नहीं थे, जब हमने मूसा को बात की निर्णित सूचनादी थी, और न तुम गवाहों में से थे। (44)
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☆ लेकिन हमने बहुत-सी नस्लेंउठाईं और उनपर बहुत समय बीत गया। और न तुम मदयनवालों में रहते थे कि उन्हें हमारी आयतें सुना रहे होते, किन्तु रसूलों को भेजनेवाले हम ही रहे हैं। (45)
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☆ और तुम तूर के अंचल में भी उपस्थित न थे जब हमने पुकारा था, किन्तु यह तुम्हारे रब की दयालुता है - ताकि तुम ऐसे लोगों को सचेत कर दो जिनके पास तुमसे पहले कोई सचेत करनेवाला नहीं आया, ताकि वे ध्यान दें। (46)
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☆ (हम रसूल बनाकर न भेजते) यदि यह बात न होती कि जो कुछ उनके हाथ आगे भेज चुके हैं उसके कारण जब उनपर कोई मुसीबतआए तो वे कहने लगें, "ऐ हमारे रब, तूने क्यों न हमारी ओर कोईरसूल भेजा कि हम तेरी आयतों का (अनुसरण) करते और मोमिन होते?" (47)
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☆ फिर जब उनके पास हमारे यहाँसे सत्य आ गया तो वे कहने लगे कि "जो चीज़ मूसा को मिली थी उसी तरह की चीज़ इसे क्यों न मिली?" क्या वे उसका इनकार नहीं कर चुके हैं, जो इससे पहले मूसा को प्रदान किया गयाथा? उन्होंने कहा, "दोनों जादू हैं जो एक-दूसरे की सहायता करते हैं।" और कहा, "हमतो हरेक का इनकार करते हैं।"(48)
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☆ कहो, "अच्छा तो लाओ अल्लाह के यहाँ से कोई ऐसी किताब, जो इन दोनों से बढ़कर मार्गदर्शन करनेवाली हो कि मैं उसका अनुसरण करूँ, यदि तुम सच्चे हो?" (49)
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☆ अब यदि वे तुम्हारी माँग पूरी न करें तो जान लो कि वे केवल अपनी इच्छाओं के पीछे चलते हैं। और उस व्यक्ति से बढ़कर भटका हुआ कौन होगा जो अल्लाह की ओर से किसी मार्गदर्शन के बिना अपनी इच्छा पर चले? निश्चय ही अल्लाह ज़ालिम लोगों को मार्ग नहीं दिखाता। (50)
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☆ और हम उनके लिए वाणी बराबर अवतरित करते रहे, शायद वे ध्यान दें। (51)
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☆ जिन लोगों को हमने इससे पूर्व किताब दी थी, वे इसपर ईमान लाते हैं। (52)
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☆ और जब यह उनको पढ़कर सुनाया जाता है तो वे कहते हैं, "हम इसपर ईमान लाए। निश्चय ही यह सत्य है हमारे रब की ओर से। हम तो इससे पहले ही से मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं।" (53)
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☆ ये वे लोग हैं जिन्हें उनकाप्रतिदान दुगना दिया जाएगा, क्योंकि वे जमे रहे और भलाई के द्वारा बुराई को दूर करते हैं और जो कुछ रोज़ी हमने उन्हें दी है, उसमें से ख़र्च करते हैं।(54)
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☆ और जब वे व्यर्थ बात सुनते हैं तो यह कहते हुए उससे किनारा खींच लेते हैं कि"हमारे लिए हमारे कर्म हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म हैं। तुमको सलाम है! जाहिलों को हम नहीं चाहते।"(55)
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☆ तुम जिसे चाहो राह पर नहीं ला सकते, किन्तु अल्लाह जिसे चाहता है राह दिखाता है, और वही राह पानेवालों को भली-भाँति जानता है। (56)
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☆ वे कहते हैं, "यदि हम तुम्हारे साथ इस मार्गदर्शन का अनुसरण करें तो अपने भू-भाग से उचक लिए जाएँगे।" क्या ख़तरों से सुरक्षित हरम में हमने उन्हें ठिकाना नहीं दिया, जिसकी ओर हमारी ओर से रोज़ी के रूप में हर चीज़ की पैदावार खिंची चली आती है? किन्तु उनमें से अधिकतर जानते नहीं। (57)
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☆ हमने कितनी ही बस्तियों कोविनष्ट कर डाला, जिन्होंने अपनी गुज़र-बसर के संसाधन पर इतराते हुए अकृतज्ञता दिखाई।तो वे हैं उनके घर, जो उनके बाद आबाद थोड़े ही हुए। अन्ततः हम ही वारिस हुए। (58)
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☆ तेरा रब तो बस्तियों को विनष्ट करनेवाला नहीं जब तक कि उनकी केन्द्रीय बस्ती में कोई रसूल न भेज दे, जो उन्हें हमारी आयतें सुनाए। और हम बस्तियों को विनष्ट करनेवालेनहीं सिवाय इस स्थिति के कि वहाँ के रहनेवाले ज़ालिम हों। (59)
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☆ जो चीज़ भी तुम्हें प्रदानकी गई है वह तो सांसारिक जीवन की सामग्री और उसकी शोभा है। और जो कुछ अल्लाह के पास है वहउत्तम और शेष रहनेवाला है, तो क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते? (60)
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☆ भला वह व्यक्ति जिससे हमनेअच्छा वादा किया है और वह उसे पानेवाला भी हो, वह उस व्यक्ति की तरह हो सकता है जिसे हमने सांसारिक जीवन की सामग्री दे दी हो, फिर वह क़ियामत के दिन पकड़कर पेश किया जानेवाला हो? (61)
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☆ ख़याल करो, जिस दिन वह उन्हें पुकारेगा और कहेगा,"कहाँ हैं मेरे वे साझीदार जिनका तुम्हें दावा था?" (62)
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☆ जिनपर बात पूरी हो चुकी होगी, वे कहेंगे, "ऐ हमारे रब! ये वे लोग हैं जिन्हें हमने बहका दिया था। जैसे हम स्वयं बहके थे, इन्हें भी बहकाया। हमने तेरे आगे स्पष्ट कर दियाकि इनसे हमारा कोई सम्बन्ध नहीं। ये हमारी बन्दगी तो करते नहीं थे?" (63)
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☆ कहा जाएगा, "पुकारो, अपने ठहराए हुए साझीदारों को!" तो वे उन्हें पुकारेंगे, किन्तु वे उनको कोई उत्तर न देंगे। और वे यातना देखकर रहेंगे। काश वे मार्ग पानेवाले होते! (64)
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☆ और ख़याल करो, जिस दिन वह उन्हें पुकारेगा और कहेगा,"तुमने रसूलों को क्या उत्तर दिया था?" (65)
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☆ उस दिन उन्हें बातें न सूझेंगी, फिर वे आपस में भी पूछताछ न करेंगे। (66)
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☆ अलबत्ता जिस किसी ने तौबा कर ली और वह ईमान ले आया और अच्छा कर्म किया, तो आशा है किवह सफल होनेवालों में से होगा। (67)
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☆ तेरा रब पैदा करता है जो कुछ चाहता है और ग्रहण करता है जो चाहता है। उन्हें कोई अधिकार प्राप्त नहीं। अल्लाहमहान और उच्च है उस शिर्क से, जो वे करते हैं। (68)
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☆ और तेरा रब जानता है जो कुछउनके सीने छिपाते हैं और जो कुछ वे लोग व्यक्त करते हैं। (69)
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☆ और वही अल्लाह है, उसके सिवा कोई इष्ट -पूज्य नहीं। सारी प्रशंसा उसी के लिए है पहले और पिछले जीवन में फ़ैसले का अधिकार उसी को है और उसी की ओर तुम लौटकर जाओगे। (70)
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☆ कहो, "क्या तुमने विचार किया कि यदि अल्लाह क़ियामत के दिन तक सदैव के लिए तुमपर रात कर दे तो अल्लाह के सिवा दूसरा कौन इष्ट-प्रभु है जो तुम्हारे पास प्रकाश लाए? तो क्या तुम सुनते नहीं?" (71)
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☆ कहो, "क्या तुमने विचार किया? यदि अल्लाह क़ियामत के दिन तक सदैव के लिए तुमपर दिन कर दे तो अल्लाह के सिवा दूसरा कौन इष्ट-पूज्य है जो तुम्हारे लिए रात लाए जिसमें तुम आराम पाते हो? तो क्या तुमदेखते नहीं? (72)
_______________________________☆ उसने अपनी दयालुता से तुम्हारे लिए रात और दिन बनाए, ताकि तुम उसमें (रात में) आराम पाओ और ताकि तुम (दिन में) उसका अनुग्रह (रोज़ी) तलाश करो और ताकि तुम कृतज्ञता दिखाओ।" (73)
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☆ ख़याल करो, जिस दिन वह उन्हें पुकारेगा और कहेगा,"कहाँ हैं मेरे वे साझीदार, जिनका तुम्हे दावा था?" (74)
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☆ और हम प्रत्येक समुदाय मेंसे एक गवाह निकाल लाएँगे और कहेंगे, "लाओ अपना प्रमाण।" तब वे जान लेंगे कि सत्य अल्लाह की ओर से है और जो कुछ वे घड़ते थे, वह सब उनसे गुम होकर रह जाएगा। (75)
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☆ निश्चय ही क़ारून मूसा की क़ौम में से था, फिर उसने उनकेविरुद्ध सिर उठाया और हमने उसे इतने ख़जाने दे रखे थे कि उनकी कुंजियाँ एक बलशाली दल को भारी पड़ती थीं। जब उससे उसकी क़ौम के लोगों ने कहा,"इतरा मत, अल्लाह इतरानेवालों के पसन्द नहीं करता।(76)
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☆ जो कुछ अल्लाह ने तुझे दिया है, उसमें आख़िरत के घर का निर्माण कर और दुनिया में से अपना हिस्सा न भूल, और भलाईकर, जैसा कि अल्लाह ने तेरे साथ भलाई की है, और धरती में बिगाड़ मत चाह। निश्चय ही अल्लाह बिगाड़ पैदा करनेवालों को पसन्द नहीं करता।" (77)
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☆ उसने कहा, "मुझे तो यह मेरेअपने व्यक्तिगत ज्ञान के कारण मिला है।" क्या उसने यह नहीं जाना कि अल्लाह उससे पहले कितनी ही नस्लों को विनष्ट कर चुका है जो शक्ति में उससे बढ़-चढ़कर और बाहुल्य में उससे अधिक थीं? अपराधियों से तो (उनकी तबाही के समय) उनके गुनाहों के विषय में पूछा भी नहीं जाता। (78)
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☆ फिर वह अपनी क़ौम के सामने अपने ठाठ-बाट में निकला। जो लोग सांसारिक जीवन के चाहनेवाले थे, उन्होंने कहा,"क्या ही अच्छा होता जैसा कुछ क़ारून को मिला है, हमें भी मिला होता! वह तो बड़ा ही भाग्यशाली है।" (79)
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☆ किन्तु जिनको ज्ञान प्राप्त था, उन्होंने कहा,"अफ़सोस तुमपर! अल्लाह का प्रतिदान उत्तम है, उस व्यक्ति के लिए जो ईमान लाए और अच्छा कर्म करे, और यह बात उन्ही के दिलों में पड़ती है जो धैर्यवान होते हैं।" (80)
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☆ अन्ततः हमने उसको और उसके घर को धरती में धँसा दिया। और कोई ऐसा गरोह न हुआ जो अल्लाह के मुक़ाबले में उसकी सहायता करता, और न वह स्वयं अपना बचावकर सका। (81)
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☆ अब वही लोग, जो कल उसके पद की कामना कर रहे थे, कहने लगे,"अफ़सोस हम भूल गए थे कि अल्लाह अपने बन्दों में से जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा करता है और जिसे चाहताहै नपी-तुली देता है। यदि अल्लाह ने हमपर उपकार न किया होता तो हमें भी धँसा देता। अफ़सोस हम भूल गए थे कि इनकार करनेवाले सफल नहीं हुआ करते।"(82)
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☆ आख़िरत का घर हम उन लोगों के लिए ख़ास कर देंगे जो न धरती में अपनी बड़ाई चाहते हैं और न बिगाड़। परिणाम तो अन्ततः डर रखनेवालों के पक्ष में है। (83)
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☆ जो कोई अच्छा आचारण लेकर आया उसे उससे उत्तम प्राप्त होगा, और जो बुरा आचरण लेकर आया तो बुराइयाँ करनेवालों को तो बस वही मिलेगा जो वे करते थे। (84)
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☆ जिसने इस क़ुरआन की ज़िम्मेदारी तुमपर डाली है, वह तुम्हें उसके (अच्छे) अंजाम तक ज़रूर पहुँचाएगा। कहो, "मेरा रब उसे भली-भाँति जानता है जो मार्गदर्शन लेकर आया, और उसे भी जो खुली गुमराही में पड़ा है।" (85)
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☆ तुम तो इसकी आशा नहीं रखते थे कि तुम्हारी ओर किताब उतारी जाएगी। इसकी संभावना तो केवल तुम्हारे रब की दयालुता के कारण हुई। अतः तुमइनकार करनेवालों के पृष्ठपोषक न बनो। (86)
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☆ और वे तुम्हें अल्लाह की आयतों से रोक न पाएँ, इसके पश्चात कि वे तुमपर अवतरित होचुकी हैं। और अपने रब की ओर बुलाओ और बहुदेववादियों में कदापि सम्मिलित न होना। (87)
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☆ और अल्लाह के साथ किसी और इष्ट-पूज्य को न पुकारना। उसके सिवा कोई इष्ट-पूज्य नहीं। हर चीज़ नाशवान है सिवाय उसके स्वरूप के। फ़ैसला और आदेश का अधिकार उसीको प्राप्त है और उसी की ओर तुम सबको लौटकर जाना है। (88)
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