सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ हा॰ मीम॰ (1)
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☆ यह अवतरण है बड़े कृपाशील, अत्यन्त दयावान की ओर से, (2)
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☆ एक किताब, जिसकी आयतें खोल-खोलकर बयान हुई हैं; अरबी क़ुरआन के रूप में, उन लोगों के लिए जो जानना चाहें; (3)
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☆ शुभ सूचक एवं सचेतकर्त्ता किन्तु उनमें से अधिकतर कतरा गए तो वे सुनते ही नहीं। (4) _______________________________
☆ और उनका कहना है कि "जिसकी ओर तुम हमें बुलाते हो उसके लिए तो हमारे दिल आवरणों में हैं। और हमारे कानों में बोझ है। और हमारे और तुम्हारे बीचएक ओट है; अतः तुम अपना काम करो, हम तो अपना काम करते हैं।" (5)
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☆ कह दो, "मैं तो तुम्हीं जैसा मनुष्य हूँ। मेरी ओर प्रकाशना की जाती है कि तुम्हारा पूज्य-प्रभु बस अकेला पूज्य-प्रभु है। अतः तुम सीधे उसी का रुख़ करो और उसी से क्षमा-याचना करो - साझीठहरानेवालों के लिए तो बड़ी तबाही है, (6)
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☆ जो ज़कात नहीं देते और वही हैं जो आख़िरत का इनकार करते हैं। - (7)
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☆ रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उनके लिए ऐसा बदला है जिसका क्रम टूटनेवाला नहीं।" (8)
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☆ कहो, "क्या तुम उसका इनकार करते हो, जिसने धरती को दो दिनों (काल) में पैदा किया और तुम उसके समकक्ष ठहराते हो? वह तो सारे संसार का रब है। (9)
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☆ और उसने उस (धरती) में उसके ऊपर से पहाड़ जमाए और उसमें बरकत रखी और उसमें उसकी ख़ुराकों को ठीक अंदाज़े से रखा। माँग करनेवालों के लिए समान रूप से, यह सब चार दिन में हुआ। (10)
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☆ फिर उसने आकाश की ओर रुख़ किया, जबकि वह मात्र धुआँ था- और उसने उससे और धरती से कहा, 'आओ, स्वेच्छा के साथ या अनिच्छा के साथ।' उन्होंने कहा, 'हम स्वेच्छा के साथ आए।' - (11)
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☆ फिर दो दिनों में उनको अर्थात सात आकाशों को बनाकर पूरा किया और प्रत्येक आकाश में उससे सम्बन्धित आदेश की प्रकाशना कर दी और दुनिया के (निकटवर्ती) आकाश को हमने दीपों से सजाया (रात के यात्रियों के दिशा-निर्देश आदि के लिए) और सुरक्षित करने के उद्देश्य से। यह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, सर्वज्ञ का ठहराया हुआ है।" (12)
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☆ अब यदि वे लोग ध्यान में न लाएँ तो कह दो, "मैं तुम्हें उसी तरह के कड़के (वज्रवात) सेडराता हूँ, जैसा कड़का आद और समूद पर हुआ था।" (13)
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☆ जब उनके पास रसूल उनके आगे और उनके पीछे से आए कि "अल्लाहके सिवा किसी की बन्दगी न करो।" तो उन्होंने कहा, "यदि हमारा रब चाहता तो फ़रिश्तों को उतार देता। अतः जिस चीज़ के साथ तुम्हें भेजा गया है, हम उसे नहीं मानते।" (14)
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☆ रहे आद, तो उन्होंने नाहक़ धरती में घमंड किया और कहा,"कौन हमसे शक्ति में बढ़कर है?" क्या उन्होंने नहीं देखाकि अल्लाह, जिसने उन्हें पैदाकिया, वह उनसे शक्ति में बढ़कर है? वे तो हमारी आयतों का इनकार ही करते रहे। (15)
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☆ अन्ततः हमने कुछ अशुभ दिनों में उनपर एक शीत-झंझावात चलाई, ताकि हम उन्हें सांसारिक जीवन में अपमान और रुसवाई की यातना का मज़ा चखा दें। और आख़िरत की यातना तो इससे कहीं बढ़कर रुसवा करनेवाली है। और उनको कोई सहायता भी न मिल सकेगी। (16)
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☆ और रहे समूद, तो हमने उनके सामने सीधा मार्ग दिखाया, किन्तु मार्गदर्शन के मुक़ाबले में उन्होंने अन्धारहना ही पसन्द किया। परिणामतः जो कुछ वे कमाई करतेरहे थे उसके बदले में अपमानजनक यातना के कड़के ने उन्हें आ पकड़ा। (17)
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☆ और हमने उन लोगों को बचा लिया जो ईमान लाए थे और डर रखते थे। (18)
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☆ और विचार करो जिस दिन अल्लाह के शत्रु आग की ओर एकत्र करके लाए जाएँगे, फिर उन्हें श्रेणियों में क्रमबद्ध किया जाएगा, यहाँ तककि जब वे उसके पास पहुँच जाएँगे (19)
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☆ तो उनके कान और उनकी आँखें और उनकी खालें उनके विरुद्ध उन बातों की गवाही देंगी, जो कुछ वे करते रहे होंगे। (20)
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☆ वे अपनी खालों से कहेंगे,"तुमने हमारे विरुद्ध क्यों गवाही दी?" वे कहेंगी, "हमें उसी अल्लाह ने वाक्-शक्ति प्रदान की है, जिसने प्रत्येकचीज़ को वाक्-शक्ति प्रदान की।" - उसी ने तुम्हें पहली बार पैदा किया और उसी की ओर तुम्हें लौटना है। (21)
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☆ तुम इस भय से छिपते न थे कि तुम्हारे कान तुम्हारे विरुद्ध गवाही देंगे, और न इसलिए कि तुम्हारी आँखें गवाही देंगी और न इस कारण से कि तुम्हारी खालें गवाही देंगी, बल्कि तुमने तो यह समझ रखा था कि अल्लाह तुम्हारे बहुत-से कामों को जानता ही नहीं। (22)
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☆ और तुम्हारे उस गुमान ने तुम्हें बरबाद किया जो तुमने अपने रब के साथ किया; अतः तुम घाटे में पड़कर रहे। (23)
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☆ अब यदि वे धैर्य दिखाएँ तब भी आग ही उनका ठिकाना है। और यदि वे किसी प्रकार (उसके) क्रोध को दूर करना चाहें, तब भी वे ऐसे नहीं कि वे राज़ी करसकें। (24)
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☆ हमने उनके लिए कुछ साथी नियुक्त कर दिए थे। फिर उन्होंने उनके आगे और उनके पीछे जो कुछ था उसे सुहाना बनाकर उन्हें दिखाया। अन्ततःउनपर भी जिन्नों और मनुष्यों के उन गरोहों के साथ फ़ैसला सत्यापित होकर रहा, जो उनसे पहले गुज़र चुके थे। निश्चय ही वे घाटा उठानेवाले थे। (25)
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☆ जिन लोगों ने इनकार किया उन्होंने कहा, "इस क़ुरआन को सुनो ही मत और इसके बीच में शोर-ग़ुल मचाओ, ताकि तुम प्रभावी रहो।" (26)
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☆ अतः हम अवश्य ही उन लोगों को, जिन्होंने इनकार किया, कठोर यातना का मज़ा चखाएँगे, और हम अवश्य उन्हें उसका बदलादेंगे जो निकृष्टतम कर्म वे करते रहे हैं। (27)
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☆ वह है अल्लाह के शत्रुओं काबदला - आग। उसी में उनका सदा का घर है, उसके बदले में जो वे हमारी आयतों का इनकार करते रहे।(28)
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☆ और जिन लोगों ने इनकार कियावे कहेंगे, "ऐ हमारे रब! हमें दिखा दे उन जिन्नों और मनुष्यों को, जिन्होंने हमको पथभ्रष्ट किया कि हम उन्हें अपने पैरों तले डाल दें ताकि वे सबसे नीचे जा पड़ें।(29)
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☆ जिन लोगों ने कहा कि"हमारा रब अल्लाह है।" फिर इस पर दृढ़तापूर्वक जमे रहे, उनपर फ़रिश्ते उतरते हैं कि"न डरो और न शोकाकुल हो, और उस जन्नत की शुभ सूचना लो जिसका तुमसे वादा किया गया है। (30)
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☆ हम सांसारिक जीवन में भी तुम्हारे सहचर मित्र हैं और आख़िरत में भी। और वहाँ तुम्हारे लिए वह सब कुछ है, जिसकी इच्छा तुम्हारे जी को होगी। और वहाँ तुम्हारे लिए वह सब कुछ होगा, जिसकी तुम माँग करोगे। (31)
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☆ आतिथ्य के रूप में क्षमाशील, दयावान सत्ता की ओरसे।" (32)
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☆ और उस व्यक्ति से बात में अच्छा कौन हो सकता है जो अल्लाह की ओर बुलाए और अच्छे कर्म करे और कहे, "निस्संदेह मैं मुस्लिम (आज्ञाकारी) हूँ?" (33)
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☆ भलाई और बुराई समान नहीं हैं। तुम (बुरे आचरण की बुराई को) अच्छे से अच्छे आचरण के द्वारा दूर करो। फिर क्या देखोगे कि वही व्यक्ति तुम्हारे और जिसके बीच वैर पड़ा हुआ था, जैसे वह कोई घनिष्ट मित्र है।(34)
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☆ किन्तु यह चीज़ केवल उन लोगों को प्राप्त होती है जो धैर्य से काम लेते हैं, और यह चीज़ केवल उसको प्राप्त होती है जो बड़ा भाग्यशाली होता है। (35)
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☆ और यदि शैतान की ओर से कोई उकसाहट तुम्हें चुभे तो अल्लाह की शरण माँग लो। निश्चय ही वह सब कुछ सुनता, जानता है। (36)
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☆ रात और दिन और सूर्य और चन्द्रमा उसकी निशानियों मेंसे हैं। तुम न तो सूर्य को सजदा करो और न चन्द्रमा को, बल्कि अल्लाह को सजदा करो जिसने उन्हें पैदा किया, यदि तुम उसी की बन्दगी करनेवाले हो। (37)
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☆ लेकिन यदि वे घमंड करें (औरअल्लाह को याद न करें), तो जो फ़रिश्ते तुम्हारे रब के पास हैं वे तो रात और दिन उसकी तसबीह करते ही रहते हैं और वे उकताते नहीं। (38)
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☆ और यह चीज़ भी उसकी निशानियों में से है कि तुम देखते हो कि धरती दबी पड़ी है;फिर ज्यों ही हमने उसपर पानी बरसाया कि वह फबक उठी और फूल गई। निश्चय ही जिसने उसे जीवित किया, वही मुर्दों को जीवित करनेवाला है। निस्संदेह उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है। (39)
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☆ जो लोग हमारी आयतों में कुटिलता की नीति अपनाते हैं वे हमसे छिपे हुए नहीं हैं, तोक्या जो व्यक्ति आग में डाला जाए वह अच्छा है या वह जो क़ियामत के दिन निश्चिन्त होकर आएगा? जो चाहो कर लो, तुम जो कुछ करते हो वह तो उसे देख ही रहा है। (40)
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☆ जिन लोगों ने अनुस्मृति काइनकार किया, जबकि वह उनके पास आई, हालाँकि वह एक प्रभुत्वशाली किताब है, (तो न पूछो कि उनका कितना बुरा परिणाम होगा) (41)
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☆ असत्य उस तक न उसके आगे से आ सकता है और न उसके पीछे से; अवतरण है उसकी ओर से जो अत्यन्त तत्वदर्शी, प्रशंसा के योग्य है। (42)
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☆ तुम्हें बस वही कहा जा रहा है, जो उन रसूलों को कहा जा चुका है, जो तुमसे पहले गुज़रे हैं। निस्संदेह तुम्हारा रब बड़ा क्षमाशील है और दुखद दंड देनेवाला भी। (43)
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☆ यदि हम उसे ग़ैर अरबी क़ुरआन बनाते तो वे कहते कि"उसकी आयतें क्यों नहीं (हमारीभाषा में) खोलकर बयान की गईं? यह क्या कि वाणी तो ग़ैर अरबी है और व्यक्ति अरबी?" कहो, "वह उन लोगों के लिए जो ईमान लाए मार्गदर्शन और आरोग्य है, किन्तु जो लोग ईमान नहीं ला रहे हैं उनके कानों में बोझ है और वह (क़ुरआन) उनके लिए अन्धापन (सिद्ध हो रहा) है, वे ऐसे हैं जिनको किसी दूर के स्थान से पुकारा जा रहा हो।" (44)
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☆ हमने मूसा को भी किताब प्रदान की थी, फिर उसमें भी विभेद किया गया। यदि तुम्हारे रब की ओर से पहले ही से एक बात निश्चित न हो चुकी होती तो उनके बीच फ़ैसला चुकादिया जाता। हालाँकि वे उसकी ओर से उलझन में डाल देनेवाले सन्देह में पड़े हुए हैं। (45)
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☆ जिस किसी ने अच्छा कर्म किया तो अपने ही लिए और जिस किसी ने बुराई की, तो उसका वबाल भी उसी पर पड़ेगा। वास्तव में तुम्हारा रब अपने बन्दों पर तनिक भी ज़ुल्म नहीं करता। (46)
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☆ उस घड़ी का ज्ञान अल्लाह की ओर फिरता है। जो फल भी अपनेकोषों से निकलते हैं और जो मादा भी गर्भवती होती है और बच्चा जनती है, अनिवार्यतः उसे इन सबका ज्ञान होता है। जिस दिन वह उन्हें पुकारेगा,"कहाँ हैं मेरे साझीदार?" वे कहेंगे, "हम तेरे समक्ष खुल्लम-ख़ुल्ला कह चुके हैं कि हममें से कोई भी इसका गवाह नहीं।" (47)
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☆ और जिन्हें वे पहले पुकाराकरते थे वे उनसे गुम हो जाएँगे। और वे समझ लेंगे कि उनके लिए कोई भी भागने की जगह नहीं है। (48)
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☆ मनुष्य भलाई माँगने से नहीं उकताता, किन्तु यदि उसे कोई तकलीफ़ छू जाती है तो वह निराश होकर आस छोड़ बैठता है।(49)
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☆ और यदि उस तकलीफ़ के बाद, जो उसे पहुँची, हम उसे अपनी दयालुता का आस्वादन करा दें तो वह निश्चय ही कहेगा, "यह तो मेरा हक़ ही है। मैं तो यह नहीं समझता कि वह, क़ियामत की घड़ी, घटित होगी और यदि मैं अपने रब की ओर लौटाया भी गया तो अवश्य ही उसके पास मेरे लिए अच्छा पारितोषिक होगा।" फिर हम उन लोगों को जिन्होंनेइनकार किया, अवश्य बताकर रहेंगे, जो कुछ उन्होंने कियाहोगा। और हम उन्हें अवश्य ही कठोर यातना का मज़ा चखाएँगे। (50)
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☆ जब हम मनुष्य पर अनुकम्पा करते हैं तो वह ध्यान में नहीं लाता और अपना पहलू फेर लेता है। किन्तु जब उसे तकलीफ़ छू जाती है, तो वह लम्बी-चौड़ी प्रार्थनाएँ करने लगता है। (51)
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☆ कह दो, "क्या तुमने विचार किया, यदि वह (क़ुरआन) अल्लाह की ओर से ही हुआ और तुमने उसकाइनकार किया तो उससे बढ़कर भटका हुआ और कौन होगा जो विरोध में बहुत दूर जा पड़ा हो?" (52)
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☆ शीघ्र ही हम उन्हें अपनी निशानियाँ बाह्य क्षेत्रों में दिखाएँगे और स्वयं उनके अपने भीतर भी, यहाँ तक कि उनपरस्पष्ट हो जाएगा कि वह (क़ुरआन) सत्य है। क्या तुम्हारा रब इस दृष्टि, से काफ़ी नहीं कि वह हर चीज़ का साक्षी है। (53)
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☆ जान लो कि वे लोग अपने रब से मिलन के बारे में संदेह में पड़े हुए हैं। जान लो कि निश्चय ही वह हर चीज़ को अपने घेरे में लिए हुए है। (54)
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