सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ साक्षी है उषाकाल, (1) _______________________________
☆ साक्षी हैं दस रातें, (2) _______________________________
☆ साक्षी हैं युग्म और अयुग्म, (3) _______________________________
☆ साक्षी है रात जब वह चले। (4) _______________________________
☆ क्या इसमें बुद्धिमान के लिए बड़ी गवाही है? (5)
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☆ क्या तुमने देखा नहीं कि तुम्हारे रब ने क्या किया आद के साथ, (6)
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☆ स्तम्भों वाले 'इरम' के साथ? (7)
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☆ वे ऐसे थे जिनके सदृश बस्तियों में पैदा नहीं हुए। (8)
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☆ और समूद के साथ, जिन्होंने घाटी में चट्टानें तराशी थीं,(9)
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☆ और मेख़ोंवाले फ़िरऔन के साथ? (10)
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☆ वे लोग कि जिन्होंने देशोंमें सरकशी की, (11)
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☆ और उनमें बहुत बिगाड़ पैदाकिया। (12)
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☆ अन्ततः तुम्हारे रब ने उनपर यातना का कोड़ा बरसा दिया। (13)
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☆ निस्संदेह तुम्हारा रब घात में रहता है। (14)
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☆ किन्तु मनुष्य का हाल यह है कि जब उसका रब इस प्रकार उसकी परीक्षा लेता है कि उसे प्रतिष्ठा और नेमत प्रदान करता है, तो वह कहता है, "मेरे रब ने मुझे प्रतिष्ठित किया।"(15)
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☆ किन्तु जब कभी वह उसकी परीक्षा इस प्रकार लेता है किउसकी रोज़ी नपी-तुली कर देता है, तो वह कहता है, "मेरे रब ने मेरा अपमान किया।" (16)
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☆ कदापि नहीं, बल्कि तुम अनाथ का सम्मान नहीं करते, (17)
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☆ और न मुहताज को खिलाने पर एक-दूसरे को उभारते हो, (18)
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☆ और सारी मीरास समेट-समेटकरखा जाते हो, (19)
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☆ और धन से उत्कट प्रेम रखते हो। (20)
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☆ कुछ नहीं, जब धरती कूट-कूटकर चूर्ण-विचूर्ण कर दी जाएगी,(21)
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☆ और तुम्हारा रब और फ़रिश्ता (बन्दों की) एक-एक पंक्ति के पास आएगा, (22)
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☆ और जहन्नम को उस दिन लाया जाएगा, उस दिन मनुष्य चेतेगा, किन्तु कहाँ है उसके लिए लाभप्रद उस समय का चेतना?(23)
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☆ वह कहेगा, "ऐ काश! मैंने अपने जीवन के लिए कुछ करके आगे भेजा होता।" (24)
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☆ फिर उस दिन कोई नहीं जो उसकी जैसी यातना दे, (25)
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☆ और कोई नहीं जो उसकी जकड़बन्द की तरह बाँधे। (26)
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☆ "ऐ संतुष्ट आत्मा! (27)
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☆ लौट अपने रब की ओर, इस तरह कि तू उससे राज़ी है, वह तुझसेराज़ी है। -(28)
_______________________________ ☆ अतः मेरे बन्दों में सम्मिलित हो जा। (29)
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☆ और प्रवेश कर मेरी जन्नत में।" (30)
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