सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ तसबीह (महिमागान) करो, अपने सर्वोच्च रब के नाम की, (1)
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☆ जिसने पैदा किया, फिर ठीक-ठाक किया, (2)
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☆ जिसने निर्धारित किया, फिरमार्ग दिखाया, (3)
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☆ जिसने वनस्पति उगाई, (4)
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☆ फिर उसे ख़ूब घना और हरा-भरा कर दिया। (5)
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☆ हम तुम्हें पढ़ा देंगे, फिर तुम भूलोगे नहीं। (6)
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☆ बात यह है कि अल्लाह की इच्छा ही क्रियान्वित है। निश्चय ही वह जानता है खुले को भी और उसे भी जो छिपा रहे। (7)
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☆ हम तुम्हें सहज ढंग से उस चीज़ का पात्र बना देंगे जो सहज एवं मृदुल (आरामदायक) है।(8)
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☆ अतः नसीहत करो, यदि नसीहत लाभप्रद हो! (9)
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☆ नसीहत हासिल कर लेगा जिसकोडर होगा, (10)
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☆ किन्तु उससे कतराएगा वह अत्यन्त दुर्भाग्यवाला, (11)
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☆ जो बड़ी आग में पड़ेगा, (12)
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☆ फिर वह उसमें न मरेगा न जिएगा। (13)
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☆ सफल हो गया वह जिसने अपने आपको निखार लिया, (14)
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☆ और अपने रब के नाम का स्मरणकिया, अतः नमाज़ अदा की। (15)
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☆ नहीं, बल्कि तुम तो सांसारिक जीवन को प्राथमिकतादेते हो, (16)
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☆ हालाँकि आख़िरत अधिक उत्तम और शेष रहनेवाली है। (17)
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☆ निस्संदेह यही बात पहले कीकिताबों में भी है; (18)
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☆ इबराहीम और मूसा की किताबों में। (19)
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