सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ गवाह हैं वे (हवाएँ) जो ज़ोरसे उखाड़ फैंकें, (1)
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☆ और गवाह हैं वे (हवाएँ) जो नर्मी के साथ चलें, (2)
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☆ और गवाह हैं वे जो वायुमंडल में तैरें, (3)
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☆ फिर एक-दूसरे से अग्रसर हों, (4)
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☆ और मामले की तदबीर करें। (5)
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☆ जिस दिन हिला डालेगी हिला डालनेवाली घटना, (6)
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☆ उसके पीछे घटित होगी दूसरी(घटना)। (7)
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☆ कितने ही दिल उस दिन काँप रहे होंगे, (8)
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☆ उनकी निगाहें झुकी होंगी। (9)
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☆ वे कहते हैं, "क्या वास्तव में हम पहली हालत में फिर लौटाए जाएँगे? (10)
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☆ क्या जब हम खोखली गली हुई हड्डियाँ हो चुके होंगे?" (11)
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☆ वे कहते हैं, "तब तो यह लौटना बड़े ही घाटे का होगा।" (12)
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☆ वह तो बस एक ही झिड़की होगी, (13)
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☆ फिर क्या देखेंगे कि वे एक समतल मैदान में उपस्थित हैं। (14)
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☆ क्या तुम्हें मूसा की ख़बरपहुँची है? (15)
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☆ जबकि उसके रब ने पवित्र घाटी 'तुवा' में उसे पुकारा था (16)
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☆ कि "फ़िरऔन के पास जाओ, उसने बहुत सिर उठा रखा है। (17)
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☆ और कहो, क्या तू यह चाहता है कि स्वयं को पाक-साफ़ कर ले, (18)
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☆ और मैं तेरे रब की ओर तेरा मार्गदर्शन करूँ कि तु (उससे) डरे?" (19)
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☆ फिर उसने (मूसा ने) उसको बड़ी निशानी दिखाई, (20)
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☆ किन्तु उसने झुठला दिया औरकहा न माना, (21)
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☆ फिर सक्रियता दिखाते हुए पलटा, (22)
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☆ फिर (लोगों को) एकत्र किया और पुकारकर कहा, (23)
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☆ "मैं तुम्हारा उच्चकोटि का स्वामी हूँ!" (24)
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☆ अन्ततः अल्लाह ने उसे आख़िरत और दुनिया की शिक्षाप्रद यातना में पकड़ लिया। (25)
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☆ निस्संदेह इसमें उस व्यक्ति के लिए बड़ी शिक्षा है जो डरे! (26)
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☆ क्या तुम्हें पैदा करना अधिक कठिन कार्य है या आकाश को? अल्लाह ने उसे बनाया, (27)
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☆ उसकी ऊँचाई को ख़ूब ऊँचा करके उसे ठीक-ठाक किया; (28)
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☆ और उसकी रात को अन्धकारमय बनाया और उसका दिवस-प्रकाश प्रकट किया। (29)
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☆ और धरती को देखो! इसके पश्चात उसे फैलाया; (30)
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☆ उसमें से उसका पानी और उसका चारा निकाला। (31)
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☆ और पहाड़ों को देखो! उन्हें उस (धरती) में जमा दिया- (32)
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☆ तुम्हारे लिए और तुम्हारे मवेशियों के लिए जीवन-सामग्री के रूप में। (33)
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☆ फिर जब वह महाविपदा आएगी, (34)
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☆ उस दिन मनुष्य जो कुछ भी उसने प्रयास किया होगा उसे याद करेगा। (35)
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☆ और भड़कती आग (जहन्नम) देखनेवालों के लिए खोल दी जाएगी। (36)
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☆ तो जिस किसी ने सरकशी की (37)
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☆ और सांसारिक जीवन को प्राथमिकता दी होगी, (38)
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☆ तो निस्संदेह भड़कती आग हीउसका ठिकाना है। (39)
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☆ और रहा वह व्यक्ति जिसने अपने रब के सामने खड़े होने का भय रखा और अपने जी को बुरी इच्छा से रोका, (40)
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☆ तो जन्नत ही उसका ठिकाना है। (41)
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☆ वे तुमसे उस घड़ी के विषय में पूछते हैं कि वह कब आकर ठहरेगी? (42)
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☆ उसके बयान करने से तुम्हारा क्या सम्बन्ध? (43)
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☆ उसकी अन्तिम पहुँच तो तेरेरब से ही सम्बन्ध रखती है। (44)
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☆ तुम तो बस उस व्यक्ति को सावधान करनेवाले हो जो उससे डरे। (45)
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☆ जिस दिन वे उसे देखेंगे तो (ऐसा लगेगा) मानो वे (दुनिया में) बस एक शाम या उसकी सुबह ही ठहरे हैं। (46)
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