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26. अश-शुअरा    [ कुल आयतें - 227 ]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
  ता॰ सीन॰ मीम॰ (1)
_______________________________
ये स्पष्ट किताब की आयतें हैं। (2)
_______________________________
शायद इसपर कि वे ईमान नहीं लाते, तुम अपने प्राण ही खो बैठोगे। (3)
_______________________________
यदि हम चाहें तो उनपर आकाश से एक निशानी उतार दें। फिर उनकी गर्दनें उसके आगे झुकी रह जाएँ। (4)
_______________________________
उनके पास रहमान की ओर से जोनवीन अनुस्मृति भी आती है, वे उससे मुँह फेर ही लेते हैं। (5)
_______________________________
अब जबकि वे झुठला चुके हैं,तो शीघ्र ही उन्हें उसकी हक़ीकत मालूम हो जाएगी, जिसकावे मज़ाक़ उड़ाते रहे हैं। (6)
_______________________________
क्या उन्होंने धरती को नहीं देखा कि हमने उसमें कितने ही प्रकार की उमदा चीज़ें पैदा की हैं? (7)
_______________________________
निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है, इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं। (8)
_______________________________
और निश्चय ही तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है। (9)
_______________________________
   और जबकि तुम्हारे रब ने मूसा को पुकारा कि "ज़ालिम लोगों के पास जा - (10)
_______________________________
फ़िरऔन की क़ौम के पास - क्या वे डर नहीं रखते?" (11)
_______________________________
उसने कहा, "ऐ मेरे रब! मुझे डर है कि वे मुझे झुठला देंगे,(12)
_______________________________
और मेरा सीना घुटता है और मेरी ज़बान नहीं चलती। इसलिए हारून की ओर भी संदेश भेज दे। (13)
_______________________________
और मुझपर उनके यहाँ के एक गुनाह का बोझ भी है। इसलिए मैं डरता हूँ कि वे मुझे मार डालेंगे।" (14)
_______________________________
कहा, "कदापि नहीं, तुम दोनों हमारी निशानियाँ लेकर जाओ। हम तुम्हारे साथ हैं, सुनने को मौजूद हैं। (15)
_______________________________
अतः तुम दोनो फ़िरऔन को पास जाओ और कहो कि ‘हम सारे संसार के रब के भेजे हुए हैं। (16)
_______________________________
कि तू इसराईल की सन्तान को हमारे साथ जाने दे’।" (17)
_______________________________
(फ़िरऔन ने) कहा, "क्या हमने तुझे जबकि तू बच्चा था, अपने यहाँ पाला नहीं था? और तूअपनी अवस्था के कई वर्षों तक हमारे साथ रहा, (18)
_______________________________
और तूने अपना वह काम किया, जो किया। तू बड़ा ही कृतघ्न है।" (19)
_______________________________
कहा, “ऐसा तो मुझसे उस समय हुआ जबकि मैं चूक गया था। (20)
_______________________________
फिर जब मुझे तुम्हारा भय हुआ तो मैं तुम्हारे यहाँ से भाग गया। फिर मेरे रब ने मुझे निर्णय-शक्ति प्रदान की और मुझे रसूलों में सम्मिलित किया। (21)
_______________________________
यही वह उदार अनुग्रह है जिसका एहसान तू मुझपर जताता है कि तूने इसराईल की सन्तान को ग़ुलाम बना रखा है।" (22)
_______________________________
फ़िरऔन ने कहा, "और यह सारेसंसार का रब क्या होता है?" (23)
_______________________________
उसने कहा, "आकाशों और धरती का रब और जो कुछ इन दोनों के मध्य है उसका भी, यदि तुम्हें यक़ीन हो।"(24)
_______________________________
उसने अपने आस-पासवालों से कहा, "क्या तुम सुनते नहीं हो?" (25)
_______________________________
कहा, "तुम्हारा रब और तुम्हारे अगले बाप-दादा का रब।" (26)
_______________________________
बोला, "निश्चय ही तुम्हारायह रसूल, जो तुम्हारी ओर भेजा गया है, बिलकुल ही पागल है।" (27)
_______________________________
उसने कहा, "पूर्व और पश्चिम का रब और जो कुछ उनके बीच है उसका भी, यदि तुम कुछ बुद्धि रखते हो।" (28)
_______________________________
बोला, "यदि तूने मेरे सिवा किसी और को पूज्य एवं प्रभु बनाया, तो मैं तुझे बन्दी बनाकर रहूँगा।" (29)
_______________________________
उसने कहा, "क्या यदि मैं तेरे पास एक स्पष्ट चीज़ ले आऊँ तब भी?" (30)
_______________________________
बोलाः “अच्छा वह ले आ; यदि तू सच्चा है” । (31)
_______________________________
फिर उसने अपनी लाठी डाल दी,तो अचानक क्या देखते हैं कि वह एक प्रत्यक्ष अजगर है। (32)
_______________________________
और उसने अपना हाथ बाहर खींचा तो फिर क्या देखते हैं कि वह देखनेवालों के सामने चमक रहा है। (33)
_______________________________
उसने अपने आस-पास के सरदारों से कहा, "निश्चय ही यहएक बड़ा ही प्रवीण जादूगर है।(34)
_______________________________
चाहता है कि अपने जादू से तुम्हें तुम्हारी अपनी भूमि से निकाल बाहर करे; तो अब तुम क्या कहते हो?"(35)
_______________________________
उन्होंने कहा, "इसे और इसके भाई को अभी टाले रखिए और एकत्र करनेवालों को नगरों में भेज दीजिए। (36)
_______________________________
कि वे प्रत्येक प्रवीण जादूगर को आपके पास ले आएँ।" (37)
_______________________________
अतएव एक निश्चित दिन के नियत समय पर जादूगर एकत्र कर लिए गए। (38)    _______________________________
और लोगों से कहा गया, "क्यातुम भी एकत्र होते हो?" (39)
_______________________________
  कदाचित हम जादूगरों ही के अनुयायी रह जाएँ, यदि वे विजयी हुए। (40)
_______________________________
फिर जब जादूगर आए तो उन्होंने फ़िरऔन से कहा,"क्या हमारे लिए कोई प्रतिदान भी है, यदि हम प्रभावी रहे?" (41)
_______________________________
उसने कहा, "हाँ, और निश्चितही तुम तो उस समय निकटतम लोगों में से हो जाओगे।" (42)
_______________________________
मूसा ने उनसे कहा, "डालो, जो कुछ तुम्हें डालना है।" (43)
_______________________________
तब उन्होंने अपनी रस्सियाँऔर लाठियाँ डाल दीं और बोले,"फ़िरऔन के प्रताप से हम ही विजयी रहेंगे।"(44)
_______________________________
फिर मूसा ने अपनी लाठी फेंकी तो क्या देखते हैं कि वह उस स्वाँग को, जो वे रचा करते हैं, निगलती जा रही है। (45)
_______________________________
इसपर जादूगर सजदे में गिर पड़े। (46)
_______________________________
वे बोल उठे, "हम सारे संसारके रब पर ईमान ले आए - (47)
_______________________________
मूसा और हारून के रब पर!" (48)
_______________________________
उसने कहा, "तुमने उसको मान लिया, इससे पहले कि मैं तुम्हें अनुमति देता। निश्चयही वह तुम सबका प्रमुख है, जिसने तुमको जादू सिखाया है। अच्छा, शीघ्र ही तुम्हें मालूम हुआ जाता है! मैं तुम्हारे हाथ और पाँव विपरीत दिशाओं से कटवा दूँगा और तुम सभी को सूली पर चढ़ा दूँगा।" (49)
_______________________________
उन्होंने कहा, "कुछ हरज नहीं; हम तो अपने रब ही की ओर पलटकर जानेवाले हैं। (50)
_______________________________
हमें तो इसी की लालसा है कि हमारा रब हमारी ख़ताओं को क्षमा कर दे, क्योंकि हम सबसे पहले ईमान लाए।"(51)
_______________________________
हमने मूसा की ओर प्रकाशना की, "मेरे बन्दों को लेकर रातों-रात निकल जा। निश्चय हीतुम्हारा पीछा किया जाएगा।" (52)
_______________________________
इसपर फ़िरऔन ने एकत्र करनेवालों को नगर में भेजा। (53)
_______________________________
कि "यह गिरे-पड़े थोड़े लोगों का एक गिरोह है, (54)
_______________________________
और ये हमें क्रुद्ध कर रहे हैं। (55)
_______________________________
और हम चौकन्ना रहनेवाले लोग हैं।" (56)
_______________________________
इस प्रकार हम उन्हें बाग़ों और स्रोतों(57)
_______________________________
और ख़जानों और अच्छे स्थानसे निकाल लाए। (58)
_______________________________
ऐसा ही हम करते हैं और इनकावारिस हमने इसराईल की सन्तान को बना दिया। (59)
_______________________________
सुबह-तड़के उन्होंने उनका पीछा किया। (60)
_______________________________
फिर जब दोनों गिरोहों ने एक-दूसरे को देख लिया तो मूसा के साथियों ने कहा, "हम तो पकड़े गए!" (61)
_______________________________
उसने कहा, "कदापि नहीं, मेरे साथ मेरा रब है। वह अवश्य मेरा मार्गदर्शन करेगा।" (62)
_______________________________
   तब हमने मूसा की ओर प्रकाशना की, "अपनी लाठी सागर पर मार।" तो वह फट गया और (उसका) प्रत्येक टुकड़ा एक बड़े पहाड़ की भाँति हो गया। (63)
_______________________________
और हम दूसरों को भी निकट लेआए। (64)
_______________________________
हमने मूसा को और उन सबको जोउसके साथ थे, बचा लिया। (65)
_______________________________
और दूसरों को डूबो दिया। (66)
_______________________________
निस्संदेह इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं। (67)
_______________________________
और निश्चय ही तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है। (68)
_______________________________
और उन्हें इबराहीम का वृत्तान्त सुनाओ, (69)
_______________________________
जबकि उसने अपने बाप और अपनी क़ौम के लोगों से कहा,"तुम क्या पूजते हो?" (70)
_______________________________
उन्होंने कहा, "हम बुतों की पूजा करते हैं, हम तो उन्हीं की सेवा में लगे रहेंगे।" (71)
_______________________________
उसने कहा, "क्या ये तुम्हारी सुनते हैं, जब तुम पुकारते हो, (72)
_______________________________
या ये तुम्हें कुछ लाभ या हानि पहुँचाते हैं?" (73)
_______________________________
उन्होंने कहा, "नहीं, बल्कि हमने तो अपने बाप-दादा को ऐसा ही करते पाया है।" (74)
_______________________________
उसने कहा, "क्या तुमने उनपर विचार भी किया कि जिन्हें तुम पूजते हो, (75)
_______________________________
तुम और तुम्हारे पहले के बाप-दादा? (76)
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वे सब तो मेरे शत्रु हैं, सिवाय सारे संसार के रब के, (77)
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जिसने मुझे पैदा किया और फिर वही मेरा मार्गदर्शन करता है। (78)
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   और वही है जो मुझे खिलाता और पिलाता है। (79)
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और जब मैं बीमार होता हूँ, तो वही मुझे अच्छा करता है। (80)
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और वही है जो मुझे मारेगा, फिर मुझे जीवित करेगा। (81)
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और वही है जिससे मुझे इसकी आशा है कि बदला दिए जाने के दिन वह मेरी ख़ता माफ़ कर देगा। (82)
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ऐ मेरे रब! मुझे निर्णय-शक्ति प्रदान कर और मुझे योग्य लोगों के साथ मिला। (83)
_______________________________
और बाद के आनेवालों में मुझे सच्ची ख्याति प्रदान कर। (84)
_______________________________
   और मुझे नेमत भरी जन्नत के वारिसों में सम्मिलित कर। (85)
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और मेरे बाप को क्षमा कर दे। निश्चय ही वह पथभ्रष्ट लोगों में से है। (86)
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और मुझे उस दिन रुसवा न कर, जब लोग जीवित करके उठाए जाएँगे। (87)
_______________________________
जिस दिन न माल काम आएगा और न औलाद, (88)
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सिवाय इसके कि कोई भला-चंगा दिल लिए हुए अल्लाह के पास आया हो।" (89)
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और डर रखनेवालों के लिए जन्नत निकट लाई जाएगी। (90)
_______________________________
और भड़कती आग पथभ्रष्ट लोगों के लिए प्रकट कर दी जाएगी।(91)
_______________________________
और उनसे कहा जाएगा, "कहाँ हैं वे जिन्हें तुम अल्लाह कोछोड़कर पूजते रहे हो? (92)
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क्या वे तुम्हारी कुछ सहायता कर रहे हैं या अपना ही बचाव कर सकते हैं?" (93)
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फिर वे उसमें औंधे झोक दिए जाएँगे, वे और बहके हुए लोग (94)
_______________________________
और इबलीस की सेनाएँ, सबके सब। (95)    _______________________________
वे वहाँ आपस में झगड़ते हुए कहेंगे, (96)
_______________________________
"अल्लाह की क़सम! निश्चय ही हम खुली गुमराही में थे। (97)
_______________________________
जबकि हम तुम्हें सारे संसार के रब के बराबर ठहरा रहे थे। (98)
_______________________________
और हमें तो बस उन अपराधियों ने ही पथभ्रष्ट किया। (99)
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   अब न हमारा कोई सिफ़ारिशी है, (100)
_______________________________
और न घनिष्ट मित्र। (101)
_______________________________
   क्या ही अच्छा होता कि हमें एक बार फिर पलटना होता, तो हम मोमिनों में से हो जाते!" (102)
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निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं।(103)
_______________________________
और निस्संदेह तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है। (104)
_______________________________
नूह की क़ौम ने रसूलों को झुठलाया; (105)
_______________________________
जबकि उनसे उनके भाई नूह ने कहा, "क्या तुम डर नहीं रखते? (106)
_______________________________
निस्संदेह मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ। (107)
_______________________________
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरा कहा मानो। (108)
_______________________________
मैं इस काम के बदले तुमसे कोई बदला नहीं माँगता। मेरा बदला तो बस सारे संसार के रब के ज़िम्मे है। (109)
_______________________________
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो।" (110)
_______________________________
उन्होंने कहा, "क्या हम तेरी बात मान लें, जबकि तेरे पीछे तो अत्यन्त नीच लोग चल रहे हैं?" (111)
_______________________________
उसने कहा, "मुझे क्या मालूम कि वे क्या करते रहे हैं? (112)
_______________________________
उनका हिसाब तो बस मेरे रब के ज़िम्मे है। क्या ही अच्छाहोता कि तुममें चेतना होती। (113)
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और मैं ईमानवालों को धुत्कारनेवाला नहीं हूँ। (114)
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मैं तो बस स्पष्ट रूप से एकसावधान करनेवाला हूँ।" (115)
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उन्होंने कहा, "यदि तू बाज़ न आया ऐ नूह, तो तू संगसार होकर रहेगा।" (116)
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उसने कहा, "ऐ मेरे रब! मेरी क़ौम के लोगों ने तो मुझे झुठला दिया। (117)
_______________________________
अब मेरे और उनके बीच दो टूकफ़ैसला कर दे और मुझे और जो ईमानवाले मेरे साथ हैं, उन्हें बचा ले!" (118)
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अतः हमने उसे और जो उसके साथ भरी हुई नौका में थे बचा लिया। (119)
_______________________________
और उसके पश्चात शेष लोगों को डुबो दिया। (120)
_______________________________
निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं। (121)
_______________________________
और निस्संदेह तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है। (122)
_______________________________
आद ने रसूलों को झूठलाया। (123)
_______________________________
जबकि उनके भाई हूद ने उनसे कहा, "क्या तुम डर नहीं रखते? (124)
_______________________________
मैं तो तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ। (125)
_______________________________
अतः तुम अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा मानो। (126)
_______________________________
मैं इस काम पर तुमसे कोई प्रतिदान नहीं माँगता। मेरा प्रतिदान तो बस सारे संसार केरब के ज़िम्मे है।(127)
_______________________________
क्या तुम प्रत्येक उच्च स्थान पर व्यर्थ एक स्मारक कानिर्माण करते रहोगे? (128)
_______________________________
और भव्य महल बनाते रहोगे, मानो तुम्हें सदैव रहना है? (129)
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और जब किसी पर हाथ डालते होतो बिलकुल निर्दय अत्याचारी बनकर हाथ डालते हो! (130)
_______________________________
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो। (131)
_______________________________
उसका डर रखो जिसने तुम्हें वे चीज़ें पहुँचाईं जिनको तुम जानते हो।(132)
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उसने तुम्हारी सहायता की चौपायों और बेटों से, (133)
_______________________________
और बाग़ों और स्रोतों से। (134)
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निश्चय ही मुझे तुम्हारे बारे में एक बड़े दिन की यातना का भय है।" (135)
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उन्होंने कहा, "हमारे लिए बराबर है चाहे तुम नसीहत करो या नसीहत करने वाले न बनो। (136)
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यह तो बस पहले लोगों की पुरानी आदत है। (137)
_______________________________
और हमें कदापि यातना न दी जाएगी।" (138)
_______________________________
अन्ततः उन्होंने उन्हें झुठला दिया तो हमने उनको विनष्ट कर दिया। बेशक इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं। (139)
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और बेशक तुम्हारा रब ही है,जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है। (140)
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समूद ने रसूलों को झुठलाया,(141)
_______________________________
जबकि उसके भाई सालेह नेउनसेकहा, "क्या तुम डर नहीं रखते?(142)
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निस्संदेह मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ। (143)
_______________________________
अतः तुम अल्लाह का डर रखो और मेरी बात मानो। (144)
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मैं इस काम पर तुमसे कोई बदला नहीं माँगता। मेरा बदला तो बस सारे संसार के रब के ज़िम्मे है। (145)
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क्या तुम यहाँ जो कुछ है उसके बीच, निश्चिन्त छोड़ दिएजाओगे, (146)
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बाग़ों और स्रोतों (147)
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और खेतों और उन खजूरों में जिनके गुच्छे तरो ताज़ा और गुँथे हुए हैं? (148)
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तुम पहाड़ों को काट-काटकर इतराते हुए घर बनाते हो? (149)
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अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो। (150)
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और उन हद से गुज़र जानेवालों की आज्ञा का पालन नकरो, (151)
_______________________________
  जो धरती में बिगाड़ पैदा करते हैं, और सुधार का काम नहीं करते।" (152)
_______________________________
उन्होंने कहा, "तू तो बस जादू का मारा हुआ है।(153)
_______________________________
तू बस हमारे ही जैसा एक आदमी है। यदि तू सच्चा है, तो कोई निशानी ले आ।" (154)
_______________________________
उसने कहा, "यह ऊँटनी है। एकदिन पानी पीने की बारी इसकी है और एक नियत दिन की बारी पानी लेने की तुम्हारी है। (155)
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तकलीफ़ पहुँचाने के लिए इसे हाथ न लगाना, अन्यथा एक बड़े दिन की यातना तुम्हें आ लेगी।" (156)
_______________________________
किन्तु उन्होंने उसकी कूचें काट दीं। फिर पछताते रहगए।(157)
_______________________________
अन्ततः यातना ने उन्हें आ दबोचा। निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं। (158)
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और निस्संदेह तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयाशील है। (159)
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लूत की क़ौम के लोगों ने रसूलों को झुठलाया; (160)
_______________________________
जबकि उनके भाई लूत ने उनसे कहा, "क्या तुम डर नहीं रखते? (161)
_______________________________
मैं तो तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ। (162)
_______________________________
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो (163)
_______________________________
  मैं इस काम पर तुमसे कोई प्रतिदान नहीं माँगता, मेरा प्रतिदान तो बस सारे संसार केरब के ज़िम्मे है (164)
_______________________________
क्या सारे संसारवालों में से तुम ही ऐसे हो जो पुरुषों के पास जाते हो, (165)
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और अपनी पत्नियों को, जिन्हें तुम्हारे रब ने तुम्हारे लिए पैदा किया, छोड़देते हो? इतना ही नहीं, बल्कि तुम हद से आगे बढ़े हुए लोग हो।" (166)
_______________________________
उन्होंने कहा, "यदि तू बाज़न आया, ऐ लूत! तो तू अवश्य ही निकाल बाहर किया जाएगा।"(167)
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उसने कहा, "मैं तुम्हारे कर्म से अत्यन्त विरक्त हूँ। (168)
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   ऐ मेरे रब! मुझे और मेरे लोगों को, जो कुछ ये करते हैं उसके परिणाम से, बचा ले।" (169)
_______________________________
अन्ततः हमने उसे और उसके सारे लोगों को बचा लिया; (170)
_______________________________
सिवाय एक बुढ़िया के जो पीछे रह जानेवालों में थी। (171)
_______________________________
फिर शेष दूसरे लोगों को हमने विनष्ट कर दिया। (172)
_______________________________
  और हमने उनपर एक बरसात बरसाई। और यह चेताए हुए लोगोंकी बहुत ही बुरी वर्षा थी। (173)
_______________________________
निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं। (174)
_______________________________
और निश्चय ही तुम्हारा रब बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है। (175)
_______________________________
अल-ऐकावालों ने रसूलों को झुठलाया। (176)
_______________________________
जबकि शुऐब ने उनसे कहा,"क्या तुम डर नहीं रखते? (177)
_______________________________
मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ। (178)
_______________________________
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो। (179)
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  मैं इस काम पर तुमसे कोई प्रतिदान नहीं माँगता। मेरा प्रतिदान तो बस सारे संसार केरब के ज़िम्मे है। (180)
_______________________________
तुम पूरा-पूरा पैमाना भरो और घाटा न दो। (181)
_______________________________
और ठीक तराज़ू से तौलो। (182)
_______________________________
और लोगों को उनकी चीज़ों में घाटा न दो और धरती में बिगाड़ और फ़साद मचाते मत फिरो। (183)
_______________________________
उसका डर रखो जिसने तुम्हेंऔर पिछली नस्लों को पैदा कियाहै।" (184)
_______________________________
उन्होंने कहा, "तू तो बस जादू का मारा हुआ है। (185)
_______________________________
और तू बस हमारे ही जैसा एक आदमी है और हम तो तुझे झूठा समझते हैं। (186)
_______________________________
फिर तू हमपर आकाश का कोई टुकड़ा गिरा दे, यदि तू सच्चा है।" (187)
_______________________________
उसने कहा, " मेरा रब भली-भाँति जानता है जो कुछ तुम कर रहे हो।" (188)
_______________________________
किन्तु उन्होंने उसे झुठला दिया। फिर छायावाले दिन की यातना ने आ लिया। निश्चय ही वह एक बड़े दिन की यातना थी। (189)
_______________________________
निस्संदेह इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं। (190)
_______________________________
और निश्चय ही तुम्हारा रब ही है, जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है। (191)
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निश्चय ही यह (क़ुरआन) सारेसंसार के रब की अवतरित की हुई चीज़ है। (192)
_______________________________
इसको स्पष्ट अरबी भाषा में लेकर तुम्हारे हृदय पर (193)
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एक विश्वसनीय आत्मा उतरी है,(194)
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ताकि तुम सावधान करनेवाले हो।(195)
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और निस्संदेह यह पिछले लोगों की किताबों में भी मौजूद है। (196)
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क्या यह उनके लिए कोई निशानी नहीं है कि इसे बनी इसराईल के विद्वान जानते हैं?(197)
_______________________________
  यदि हम इसे ग़ैर-अरबी भाषी पर भी उतारते, (198)
_______________________________
और वह इसे उन्हें पढ़कर सुनाता तब भी वे इसे माननेवाले न होते। (199)
_______________________________
इसी प्रकार हमने इसे अपराधियों के दिलों में पैठाया है। (200)
_______________________________
वे इसपर ईमान लाने को नहीं,जब तक कि दुखद यातना न देख लें। (201)
_______________________________
फिर जब वह अचानक उनपर आ जाएगी और उन्हें ख़बर भी न होगी, (202)
_______________________________
तब वे कहेंगे, "क्या हमें कुछ मुहलत मिल सकती है?" (203)
_______________________________
तो क्या वे लोग हमारी यातना के लिए जल्दी मचा रहे हैं? (204)
_______________________________
क्या तुमने कुछ विचार किया? यदि हम उन्हें कुछ वर्षों तक सुख भोगने दें; (205)
_______________________________
फिर उनपर वह चीज़ आ जाए, जिससे उन्हें डराया जाता रहा है; (206)
_______________________________
तो जो सुख उन्हें मिला होगा वह उनके कुछ काम न आएगा। (207)
_______________________________
हमने किसी बस्ती को भी इसके बिना विनष्ट नहीं किया कि उसके लिए सचेत करनेवाले याददिहानी के लिए मौजूद रहे हैं। (208)
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हम कोई ज़ालिम नहीं हैं। (209)
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इसे शैतान लेकर नहीं उतरे हैं। (210)
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न यह उन्हें फबता ही है और न ये उनके बस का ही है। (211)
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वे तो इसके सुनने से भी दूररखे गए हैं । (212)
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अतः अल्लाह के साथ दूसरे इष्ट-पूज्य को न पुकारना, अन्यथा तुम्हें भी यातना दी जाएगी। (213)
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और अपने निकटतम नातेदारों को सचेत करो। (214)
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और जो ईमानवाले तुम्हारे अनुयायी हो गए हैं, उनके लिए अपनी भुजाएँ बिछाए रखो। (215)
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किन्तु यदि वे तुम्हारी अवज्ञा करें तो कह दो, "जो कुछ तुम करते हो, उसकी ज़िम्मेदारी से में बरी हूँ।"(216)
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और उस प्रभुत्वशाली और दयाकरनेवाले पर भरोसा रखो (217)
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जो तुम्हें देख रहा होता है, जब तुम खड़े होते हो। (218)
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और सजदा करनेवालों में तुम्हारी चलत-फिरत को भी वह देखता है।(219)
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निस्संदेह वह भली-भाँति सुनता-जानता है। (220)
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क्या मैं तुम्हें बताऊँ किशैतान किसपर उतरते हैं? (221)
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वे प्रत्येक ढोंग रचनेवाले गुनाहगार पर उतरते हैं। (222)
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वे कान लगाते हैं और उनमें से अधिकतर झूठे होते हैं। (223)
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रहे कवि, तो उनके पीछे बहकेहुए लोग ही चला करते हैं।- (224)
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क्या तुमने देखा नहीं कि वे हर घाटी में बहके फिरते हैं, (225)
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और कहते वह हैं जो करते नहीं? - (226)
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वे नहीं जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए और अल्लाह को अधिक याद किया। औऱ इसके बाद कि उनपर ज़ुल्म कियागया तो उन्होंने उसका प्रतिकार किया और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया, उन्हें जल्द ही मालूम हो जाएगा कि वे किस जगह पलटते हैं। (227)
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