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65. अत-तलाक़ [ कुल आयतें - 12 ]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
☆ ऐ नबी! जब तुम लोग स्त्रियों को तलाक़ दो तो उन्हें तलाक़ उनकी इद्दत के हिसाब से दो। और इद्दत की गणना करो और अल्लाह का डर रखो,जो तुम्हारा रब है। उन्हें उनके घरों से न निकालो और न वेस्वयं निकलें, सिवाय इसके कि वे कोई स्पष्ट। अशोभनीय कर्म कर बैठें। ये अल्लाह की नियत की हुई सीमाएँ हैं - और जो अल्लाह की सीमाओं का उल्लंघन करे तो उसने स्वयं अपने आप पर ज़ुल्म किया - तुम नहीं जानते,कदाचित इस (तलाक़) के पश्चात अल्लाह कोई सूरत पैदा कर दे। (1)
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फिर जब वे अपनी नियत इद्दत को पहुँचें तो या तो उन्हें भली रीति से रोक लो या भली रीति से अलग कर दो। और अपने में से दो न्यायप्रिय आदमियों को गवाह बना लो और अल्लाह के लिए गवाही को दुरुस्त रखो। इसकी नसीहत उस व्यक्ति को की जाती है जो अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमानरखता हो। जो कोई अल्लाह का डर रखेगा उसके लिए वह (परेशानी से) निकलने की राह पैदा कर देगा।(2)
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और उसे वहाँ से रोज़ी देगा जिसका उसे गुमान भी न होगा। जो अल्लाह पर भरोसा करे तो वह उसके लिए काफ़ी है। निश्चय हीअल्लाह अपना काम पूरा करके रहता है। अल्लाह ने हर चीज़ का एक अन्दाज़ा नियत कर रखा है।(3)
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और तुम्हारी स्त्रियों में से जो मासिक धर्म से निराश हो चुकी हों, यदि तुम्हें संदेह हो तो उनकी इद्दत तीन मास है और इसी प्रकार उनकी भी जो अभी रजस्वला नहीं हुईं। और जो गर्भवती स्त्रियाँ हों उनकी इद्दत उनके शिशु-प्रसव तक है।जो कोई अल्लाह का डर रखेगा उसके मामले में वह आसानी पैदाकर देगा। (4)
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यह अल्लाह का आदेश है जो उसने तुम्हारी ओर उतारा है। और जो कोई अल्लाह का डर रखेगा उससे वह उसकी बुराइयाँ दूर करदेगा और उसके प्रतिदान को बड़ा कर देगा। (5)
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अपनी हैसियत के अनुसार जहाँ तुम स्वयं रहते हो उन्हें भी उसी जगह रखो। और उन्हें तंग करने के लिए उन्हें हानि न पहुँचाओ। और यदि वे गर्भवती हों तो उनपर ख़र्च करते रहो जब तक कि उनका शिशु-प्रसव न हो जाए। फिर यदि वे तुम्हारे लिए (शिशु को) दूधपिलाएँ तो तुम उन्हें उनका पारिश्रमिक दो और आपस में भलीरीति से परस्पर बातचीत के द्वारा कोई बात तय कर लो। और यदि तुम दोनों में कोई कठिनाईहो तो फिर कोई दूसरी स्त्री उसके लिए दूध पिला देगी।(6)
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चाहिए कि समाई (सामर्थ्य) वाला अपनी समाई के अनुसार ख़र्च करे और जिसे उसकी रोज़ीनपी-तुली मिली हो तो उसे चाहिए कि अल्लाह ने उसे जो कुछ भी दिया है उसी में से वह ख़र्च करे। जितना कुछ दिया हैउससे बढ़कर अल्लाह किसी व्यक्ति पर ज़िम्मेदारी का बोझ नहीं डालता। जल्द ही अल्लाह कठिनाई के बाद आसानी पैदा कर देगा। (7)
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कितनी ही बस्तियाँ हैं जिन्होंने रब और उसके रसूलों के आदेश के मुक़ाबले में सरकशी की, तो हमने उनकी सख़्त पकड़ की और उन्हें बुरी यातनादी। (8)
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अतः उन्होंने अपने किए के वबाल का मज़ा चख लिया और उनकी कार्य-नीति का परिणाम घाटा हीरहा। (9)
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अल्लाह ने उनके लिए कठोर यातना तैयार कर रखी है। अतः ऐ बुद्धि और समझवालो जो ईमान लाए हो! अल्लाह का डर रखो। अल्लाह ने तुम्हारी ओर एक याददिहानी उतार दी है (10)
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(अर्थात) एक रसूल, जो तुम्हें अल्लाह की स्पष्ट आयतें पढ़कर सुनाता है, ताकि वह उन लोगों को, जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, अँधेरों से निकालकर प्रकाश की ओर ले आए। जो कोई अल्लाह परईमान लाए और अच्छा कर्म करे, उसे वह ऐसे बाग़़ों में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी - ऐसे लोग उनमें सदैव रहेंगे - अल्लाह ने उनके लिए उत्तम रोज़ी रखी है। (11)
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अल्लाह ही है जिसने सात आकाश बनाए और उन्ही के सदृश धरती से भी। उनके बीच (उसका) आदेश उतरता रहता है, ताकि तुम जान लो कि अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है और यहकि अल्लाह हर चीज़ को अपनी ज्ञान-परिधि में लिए हुए है।(12)
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