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53. अन-नज्म    [ कुल आयतें - 62 ]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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गवाह है तारा, जब वह नीचे कोआए। (1)
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तुम्हारा साथी (मुहम्मद सल्ल॰) न गुमराह हुआ और न बहका; (2)
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और न वह अपनी इच्छा से बोलता है; (3)
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वह तो बस एक प्रकाशना है, जो की जा रही है। (4)
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उसे बड़ी शक्तियोंवाले ने सिखाया, (5)
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  स्थिर रीतिवाले ने। (6)
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अतः वह भरपूर हुआ, इस हाल में कि वह क्षितिज के उच्चतम छोर पर है। (7)
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फिर वह निकट हुआ और उतर गया। (8)
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अब दो कमानों के बराबर या उससे भी अधिक निकट हो गया। (9)
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तब उसने अपने बन्दे की ओर प्रकाशना की, जो कुछ प्रकाशनाकी। (10)
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दिल ने कोई धोखा नहीं दिया,जो कुछ उसने देखा; (11)
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अब क्या तुम उस चीज़ पर उससे झगड़ते हो, जिसे वह देख रहा है? - (12)
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और निश्चय ही वह उसे एक बारऔर (13)
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'सिदरतुल मुन्तहा' (परली सीमा की बेर) के पास उतरते देखचुका है। (14)
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उसी के निकट 'जन्नतुल मावा'(ठिकानेवाली जन्नत) है। - (15)
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जबकि छा रहा था उस बेर पर, जो कुछ छा रहा था। (16)
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निगाह न तो टेढ़ी हुई और न हद से आगे बढ़ी। (17)
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निश्चय ही उसने अपने रब की बड़ी-बड़ी निशानियाँ देखीं। (18)
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तो क्या तुमने लात और उज़्ज़ा (19)
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और तीसरी एक और (देवी) मनात पर विचार किया? (20)
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क्या तुम्हारे लिए तो बेटे हैं और उसके लिए बेटियाँ?(21)
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तब तो यह बहुत बेढंगा और अन्यायपूर्ण बँटवारा हुआ! (22)
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  वे तो बस कुछ नाम हैं जो तुमने और तुम्हारे बाप-दादा ने रख लिए हैं। अल्लाह ने उनके लिए कोई सनद नहीं उतारी।वे तो केवल अटकल के पीछे चल रहे हैं और उसके पीछे जो उनके मन की इच्छा होती है। हालाँकिउनके पास उनके रब की ओर से मार्गदर्शन आ चुका है।(23)
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   (क्या उनकी देवियाँ उन्हेंलाभ पहुँचा सकती हैं) या मनुष्य वह कुछ पा लेगा, जिसकी वह कामना करता है? (24)
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आख़िरत और दुनिया का मालिकतो अल्लाह ही है। (25)
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आकाशों में कितने ही फ़रिश्ते हैं, उनकी सिफ़ारिश कुछ काम नहीं आएगी; यदि काम आ सकती है तो इसके पश्चात ही कि अल्लाह अनुमति दे, जिसे चाहे और पसन्द करे। (26)
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जो लोग आख़िरत को नहीं मानते, वे फ़रिश्तों को देवियों के नाम से अभिहित करते हैं, (27)
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हालाँकि इस विषय में उन्हें कोई ज्ञान नहीं। वे केवल अटकल के पीछे चलते हैं, हालाँकि सत्य से जो लाभ पहुँचता है वह अटकल से कदापि नहीं पहुँच सकता। (28)
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अतः तुम उसको ध्यान में न लाओ जो हमारे ज़िक्र से मुँह मोड़ता है और सांसारिक जीवन के सिवा उसने कुछ नहीं चाहा। (29)
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ऐसे लोगों के ज्ञान की पहुँच बस यहीं तक है। निश्चय ही तुम्हारा रब ही उसे भली-भाँति जानता है जो उसके मार्ग से भटक, गया और वही उसे भी भली-भाँति जानता है जिसने सीधा मार्ग अपनाया। (30)
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अल्लाह ही का है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है, ताकि जिन लोगों ने बुराई की वह उन्हें उनके किए का बदला दे। और जिन लोगों ने भलाई की उन्हें अच्छा बदला दे; (31)
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वे लोग जो बड़े गुनाहों और अश्लील कर्मों से बचते हैं, यह और बात है कि संयोगवश कोई छोटी बुराई उनसे हो जाए। निश्चय ही तुम्हारा रबक्षमाशीलता में बड़ा व्यापक है। वह तुम्हें उस समय से भली-भाँति जानता है, जबकि उसने तुम्हें धरती से पैदा किया और जबकि तुम अपनी माँओ के पेटों में भ्रूण अवस्था में थे। अतः अपने मन की पवित्रता और निखार का दावा न करो। वह उस व्यक्ति को भली-भाँति जानता है, जिसने डर रखा।(32)
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क्या तुमने उस व्यक्ति को देखा जिसने मुँह फेरा, (33)
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और थोड़ा-सा देकर रुक गया; (34)
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क्या उसके पास परोक्ष का ज्ञान है कि वह देख रहा है; (35)
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या उसको उन बातों की ख़बर नहीं पहुँची, जो मूसा की किताबों में है। (36)
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और इबराहीम की (किताबों मेंहै), जिसने (अल्लाह की बन्दगी का) पूरा-पूरा हक़ अदा कर दिया?(37)
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यह कि कोई बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ न उठाएगा; (38)
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और यह कि मनुष्य के लिए बस वही है जिसके लिए उसने प्रयासकिया; (39)
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और यह कि उसका प्रयास शीघ्र ही देखा जाएगा। (40)
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   फिर उसे पूरा बदला दिया जाएगा; (41)
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और यह कि अन्त में पहुँचना तुम्हारे रब ही की ओर है; (42)
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और यह कि वही है जो हँसाता और रुलाता है; (43)
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और यह कि है वही जो मारता और जिलाता है; (44)
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और यह कि वही है जिसने नर और मादा के जोड़े पैदा किए, (45)
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एक बूँद से, जब वह टपकाई जाती है; (46)
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और यह कि उसी के ज़िम्मे दोबारा उठाना भी है; (47)
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और यह कि वही है जिसने धनी और पूँजीपति बनाया; (48)
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और यह कि वही है जो शेअरा (नामक तारे) का रब है। (49)
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और यह कि उसी ने प्राचीन आदको विनष्ट किया; (50)
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और समूद को भी। फिर किसी कोबाक़ी न छोड़ा। (51)
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और उससे पहले नूह की क़ौम को भी। बेशक वे ज़ालिम और सरकश थे। (52)
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उलट जानेवाली बस्ती को भी फेंक दिया। (53)
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तो ढँक लिया उसे जिस चीज़ ने ढँक लिया; (54)
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फिर तू अपने रब के चमत्कारों में से किस-किस के विषय में संदेह करेगा? (55)
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यह पहले के सावधान-कर्ताओंके सदृश एक सावधान करनेवाला है। (56)
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निकट आनेवाली (क़ियामत की घड़ी) निकट आ गई। (57)
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अल्लाह के सिवा कोई नहीं जो उसे प्रकट कर दे। (58)
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अब क्या तुम इस वाणी पर आश्चर्य करते हो; (59)
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और हँसते हो और रोते नहीं? (60)
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जबकि तुम घमंडी और ग़ाफिल हो। (61)
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अतः अल्लाह को सजदा करो और बन्दगी करो। (62)
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