सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ हा॰ मीम॰ (1)
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☆ गवाह है स्पष्ट किताब। (2)
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☆ निस्संदेह हमने उसे एक बरकत भरी रात में अवतरित कियाहै। - निश्चय ही हम सावधान करनेवाले हैं।- (3)
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☆ उस (रात) में तमाम तत्वदर्शिता युक्त मामलों काफ़ैसला किया जाता है, (4)
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☆ हमारे यहाँ से आदेश के रूप में। निस्संदेह रसूलों को भेजनेवाले हम ही हैं। - (5)
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☆ तुम्हारे रब की दयालुता केकारण। निस्संदेह वही सब कुछ सुननेवाला, जाननेवाला है। (6)
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☆ आकाशों और धरती का रब और जोकुछ उन दोनों के बीच है उसका भी, यदि तुम विश्वास रखनेवालेहो (तो विश्वास करो कि किताब का अवतरण अल्लाह की दयालुता है) (7)
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☆ उसके अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं; वही जीवित करता और मारता है; तुम्हारा रब और तुम्हारे अगले बाप-दादों का रब है। (8)
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☆ बल्कि वे संदेह में पड़े खेल रहे हैं। (9)
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☆ अच्छा तो तुम उस दिन की प्रतीक्षा करो, जब आकाश प्रत्यक्ष धुँआ लाएगा। (10)
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☆ वह लोगों को ढाँक लेगा। यह है दुखद यातना! (11)
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☆ वे कहेंगे, "ऐ हमारे रब! हमपर से यातना हटा दे। हम ईमान लाते हैं।" (12)
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☆ अब उनके होश में आने का मौक़ा कहाँ बाक़ी रहा। उनका हाल तो यह है कि उनके पास साफ़-साफ़ बतानेवाला एक रसूल आ चुका है। (13)
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☆ फिर उन्होंने उसकी ओर से मुँह मोड़ लिया और कहने लगे,"यह तो एक सिखाया-पढ़ाया दीवाना है।" (14)
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☆ "हम यातना थोड़ा हटा देते हैं तो तुम पुनः फिर जाते हो। (15)
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☆ याद रखो, जिस दिन हम बड़ी पकड़ पकड़ेंगे, तो निश्चय ही हम बदला लेकर रहेंगे। (16)
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☆ उनसे पहले हम फ़िरऔन की क़ौम के लोगों को परीक्षा मेंडाल चुके हैं, जबकि उनके पास एक अत्यन्त सज्जन रसूल आया (17)
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☆ कि "तुम अल्लाह के बन्दों को मेरे हवाले कर दो। निश्चय ही मैं तुम्हारे लिए एक विश्वसनीय रसूल हूँ। (18)
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☆ और अल्लाह के मुक़ाबले मेंसरकशी न करो, मैं तुम्हारे लिए एक स्पष्ट प्रमाण लेकर आया हूँ। (19)
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☆ और मैं इससे अपने रब और तुम्हारे रब की शरण ले चुका हूँ कि तुम मुझ पर पथराव करके मार डालो। (20)
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☆ किन्तु यदि तुम मेरी बात नहीं मानते तो मुझसे अलग हो जाओ!" (21)
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☆ अन्ततः उसने अपने रब को पुकारा कि "ये अपराधी लोग हैं।" (22) _______________________________
☆ "अच्छा तुम रातों रात मेरेबन्दों को लेकर चले जाओ। निश्चय ही तुम्हारा पीछा किया जाएगा (23)
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☆ और सागर को स्थिर छोड़ दो। वे तो एक सेना दल हैं, डूब जानेवाले।" (24)
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☆ वे छोड़ गये कितनॆ ही बाग़ औरस्रोत। (25)
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☆ और खेतियां और उत्तम आवास-(26)
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☆ और सुख सामग्री जिनमें वे मज़े कर रहे थे। (27) _______________________________
☆ हम ऐसा ही मामला करते हैं, और उन चीज़ों का वारिस हमने दूसरे लोगों को बनाया। (28)
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☆ फिर न तो आकाश और धरती ने उनपर विलाप किया और न उन्हें मुहलत ही मिली। (29)
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☆ इस प्रकार हमने इसराईल की सन्तान को अपमानजनक यातना से। (30)
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☆ अर्थात फ़िरऔन से छुटकारा दिया। निश्चय ही वह मर्यादाहीन लोगों में से बड़ा ही सरकश था। (31)
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☆ और हमने (उनकी स्थिति को) जानते हुए उन्हें सारे संसारवालों के मुक़ाबले में चुन लिया। (32)
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☆ और हमने उन्हें निशानियों के द्वारा वह चीज़ दी जिसमें स्पष्ट परीक्षा थी। (33)
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☆ ये लोग बड़ी दृढ़तापूर्वक कहते हैं, (34)
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☆ "बस यह हमारी पहली मृत्यु ही है, हम दोबारा उठाए जानेवाले नहीं हैं। (35)
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☆ तो ले आओ हमारे बाप-दादा को, यदि तुम सच्चे हो!" (36)
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☆ क्या वे अच्छे हैं या तुब्बा की क़ौम या वे लोग जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं? हमने उन्हें विनष्ट कर दिया, निश्चय ही वे अपराधी थे। (37)
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☆ हमने आकाशों और धरती को और जो कुछ उनके बीच है उन्हें खेल नहीं बनाया। (38)
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☆ हमने उन्हें हक़ के साथ पैदा किया, किन्तु उनमें से अधिकतर लोग जानते नहीं। (39)
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☆ निश्चय ही फ़ैसले का दिन उन सबका नियत समय है, (40)
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☆ जिस दिन कोई अपना किसी अपने के कुछ काम न आएगा और न उन्हें कोई सहायता पहुँचेगी,(41)
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☆ सिवाय उस व्यक्ति के जिसपरअल्लाह दया करे। निश्चय ही वहप्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है। (42)
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☆ निस्संदेह ज़क़्क़ूम का वृक्ष (43)
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☆ गुनहगार का भोजन होगा, (44)
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☆ तेल की तलछट जैसा, वह पेटोंमें खौलता होगा, (45)
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☆ जैसे गर्म पानी खौलता है। (46)
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☆ "पकड़ो उसे, और भड़कती हुई आग के बीच तक घसीट ले जाओ, (47)
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☆ फिर उसके सिर पर खौलते हुए पानी की यातना उंडेल दो!" (48)
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☆ "मज़ा चख, तू तो बड़ा बलशाली, सज्जन और आदरणीय है! (49)
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☆ यही तो है जिसके विषय में तुम संदेह करते थे।" (50)
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☆ निस्संदेह डर रखनेवाले निश्चिन्तता की जगह होंगे, (51)
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☆ बाग़ों और स्रोतों में। (52)
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☆ बारीक और गाढ़े रेशम के वस्त्र पहने हुए, एक-दूसरे के आमने-सामने उपस्थित होंगे। (53)
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☆ ऐसा ही उनके साथ मामला होगा। और हम साफ़ गोरी, बड़ी नेत्रोंवाली स्त्रियों से उनका विवाह कर देंगे। (54)
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☆ वे वहाँ निश्चिन्तता के साथ हर प्रकार के स्वादिष्ट फल मँगवाते होंगे। (55)
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☆ वहाँ वे मृत्यु का मज़ा कभी न चखेंगे। बस पहली मृत्युजो हुई, सो हुई। और उसने उन्हें भड़कती हुई आग की यातना से बचा लिया। (56)
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☆ यह सब तुम्हारे रब के विशेष उदार अनुग्रह के कारण होगा, वही बड़ी सफलता है। (57)
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☆ हमने तो इस (क़ुरआन) को बस तुम्हारी भाषा में सहज एवं सुगम बना दिया है। ताकि वे याददिहानी प्राप्त करें। (58)
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☆ अच्छा तुम भी प्रतीक्षा करो, वे भी प्रतीक्षा में हैं। (59)
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