सुरु अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ प्रशंसा अल्लाह के लिए है जिसने अपने बन्दे पर यह किताबअवतरित की और उसमें (अर्थात उस बन्दे में) कोई टेढ़ नहीं रखी, (1)
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☆ ठीक और दुरुस्त, ताकि एक कठोर आपदा से सावधान कर दे जो उसकी और से आ पड़ेगी। और मोमिनों को, जो अच्छे कर्म करते हैं, शुभ सूचना दे दे कि उनके लिए अच्छा बदला है; (2)
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☆ जिसमें वे सदैव रहेंगे। (3)
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☆ और उनको सावधान कर दे, जो कहते हैं, "अल्लाह सन्तानवालाहै।" (4)
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☆ इसका न उन्हें कोई ज्ञान है और न उनके बाप-दादा ही को था। बड़ी बात है जो उनके मुँह से निकलती है। वे केवल झूठ बोलते हैं। (5)
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☆ अच्छा, शायद उनके पीछे, यदिउन्होंने यह बात न मानी तो तुम अफ़सोस के मारे अपने प्राण ही खो दोगे! (6)
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☆ धरती पर जो कुछ है उसे तो हमने उसकी शोभा बनाई है, ताकि हम उनकी परीक्षा लें कि उनमेंकर्म की दृष्टि से कौन उत्तम है। (7)
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☆ और जो कुछ उसपर है उसे तो हम एक चटियल मैदान बना देनेवाले हैं। (8)
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☆ क्या तुम समझते हो कि गुफा और रक़ीमवाले हमारी अद्भुत निशानियों में से थे? (9)
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☆ जब उन नवयुवकों ने गुफा में जाकर शरण ली तो कहा,"हमारे रब! हमें अपने यहाँ से दयालुता प्रदान कर और हमारे लिए हमारे अपने मामले को ठीक कर दे।" (10)
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☆ फिर हमने उस गुफा में कई वर्षों के लिए उनके कानों पर परदा डाल दिया। (11)
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☆ फिर हमने उन्हें भेजा, ताकि मालूम करें कि दोनों गरोहों में से किसने याद रखा है कि कितनी अवधि तक वे रहे। (12)
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☆ हम तुम्हें ठीक-ठीक उनका वृत्तान्त सुनाते हैं। वे कुछ नवयुवक थे जो अपने रब पर ईमान लाए थे, और हमने उन्हें मार्गदर्शन में बढ़ोत्तरी प्रदान की। (13)
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☆ और हमने उनके दिलों को सुदृढ़ कर दिया। जब वे उठे तो उन्होंने कहा, "हमारा रब तो वही है जो आकाशों और धरती का रब है। हम उससे इतर किसी अन्य पूज्य को कदापि न पुकारेंगे। यदि हमने ऐसा किया तब तो हमारी बात हक़ से बहुत हटी हुई होगी। (14)
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☆ ये हमारी क़ौम के लोग हैं, जिन्होंने उससे इतर कुछ अन्य पूज्य-प्रभु बना लिए हैं। आख़िर ये उनके हक़ में कोई स्पष्ट प्रमाण क्यों नहीं लाते! भला उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो झूठ घड़कर अल्लाहपर थोपे? (15)
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☆ और जबकि इनसे तुम अलग हो गएहो और उनसे भी जिनको अल्लाह के सिवा ये पूजते हैं, तो गुफामें चलकर शरण लो। तुम्हारा रबतुम्हारे लिए अपनी दयालुता का दामन फैला देगा और तुम्हारे लिए तुम्हारे अपने काम के सम्बन्ध में सुगमता काउपकरण उपलब्ध कराएगा।" (16)
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☆ और तुम सूर्य को उसके उदित होते समय देखते तो दिखाई देताकि वह उनकी गुफा से दाहिनी ओर को बचकर निकल जाता है और जब अस्त होता है तो उनकी बाईं ओर कतराकर निकल जाता है। और वे हैं कि उस (गुफा) के एक विस्तृत स्थान में हैं। यह अल्लाह की निशानियों में से है। जिसे अल्लाह मार्ग दिखाए,वही मार्ग पानेवाला है और जिसे वह भटकता छोड़ दे उसका तुम कोई सहायक मार्गदर्शक कदापि न पाओगे।(17)
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☆ और तुम समझते कि वे जाग रहेहैं, हालाँकि वे सोए हुए होते। हम उन्हें दाएँ और बाएँफेरते और उनका कुत्ता ड्योढ़ी पर अपनी दोनों भुजाएँ फैलाए हुए होता। यदि तुम उन्हें कहीं झाँककर देखते तो उनके पास से उलटे पाँव भाग खड़े होते और तुममेंउनका भय समा जाता। (18)
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☆ और इसी तरह हमने उन्हें उठाखड़ा किया कि वे आपस में पूछताछ करें। उनमें एक कहनेवाले ने कहा, "तुम कितना ठहरे रहे?" वे बोले, "हम यही कोई एक दिन या एक दिन से भी कम ठहरे होंगे।" उन्होंने कहा,"जितना तुम यहाँ ठहरे हो उसे तुम्हारा रब ही भली-भाँति जानता है। अब अपने में से किसी को यह चाँदी का सिक्का देकर नगर की ओर भेजो। फिर वह देख ले कि उसमें सबसे अच्छा खाना किस जगह मिलता है। तो उसमें से वह तुम्हारे लिए कुछखाने को ले आए और चाहिए की वह नरमी और होशियारी से काम ले और किसी को तुम्हारी ख़बर न होने दे।(19)
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☆ यदि वे कहीं तुम्हारी ख़बरपा जाएँगे तो पथराव करके तुम्हें मार डालेंगे या तुम्हें अपने पंथ में लौटा लेजाएँगे और तब तो तुम कभी भी सफलता न पा सकोगे।" (20)
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☆ इस तरह हमने लोगों को उनकी सूचना दे दी, ताकि वे जान लें कि अल्लाह का वादा सच्चा है और यह कि क़ियामत की घड़ी में कोई सन्देह नहीं है। वह समय भी उल्लेखनीय है जब वे आपस में उनके मामले में छीन-झपट कर रहे थे। फिर उन्होंने कहा,"उनपर एक भवन बना दो। उनका रब उन्हें भली-भाँति जानता है।" और जो लोग उनके मामले में प्रभावी रहे उन्होंने कहा,"हम तो उनपर अवश्य एक उपासना गृह बनाएँगे।" (21)
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☆ अब वे कहेंगे, "वे तीन थे और उनमें चौथा उनका कुत्ता था।" और वे यह भी कहेंगे, "वे पाँच थे और उनमें छठा उनका कुत्ता था।" यह बिना निशाना देखे पत्थर चलाना है। और वे यह भी कहेंगे, "वे सात थे और उनमें आठवाँ उनका कुत्ता था।"कह दो, "मेरा रब उनकी संख्या को भली-भाँति जानता है।" उनकोतो थोड़े ही जानते हैं। तुम ज़ाहिरी बात के सिवा उनके सम्बन्ध में न झगड़ो और न उनमें से किसी से उनके विषय में कुछ पूछो। (22)
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☆ और न किसी चीज़ के विषय मेंकभी यह कहो, "मैं कल इसे कर दूँगा।" (23)
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☆ बल्कि अल्लाह की इच्छा ही लागू होती है। और जब तुम भूल जाओ तो अपने रब को याद कर लो और कहो, "आशा है कि मेरा रब इससे भी क़रीब सही बात की ओर मार्गदर्शन कर दे।" (24)
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☆ और वे अपनी गुफा में तीन सौवर्ष रहे और नौ वर्ष उससे अधिक। (25)
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☆ कह दो, "अल्लाह भली-भाँति जानता है जितना वे ठहरे।" आकाशों और धरती की छिपी बात का सम्बन्ध उसी से है। वह क्या ही देखनेवाला और सुननेवाला है! उससे इतर न तो उनका कोई संरक्षक है और न वह अपने प्रभुत्व और सत्ता में किसी को साझीदार बनाता है। (26)
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☆ अपने रब की किताब, जो कुछ तुम्हारी ओर प्रकाशना (वह्य) हुई, पढ़ो। कोई नहीं जो उसके बोलों को बदलनेवाला हो और न तुम उससे हटकर शरण लेने की जगह पाओगे।(27)
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☆ अपने आपको उन लोगों के साथ थाम रखो, जो प्रातःकाल और सायंकाल अपने रब को उसकी प्रसन्नता चाहते हुए पुकारतेहैं और सांसारिक जीवन की शोभाकी चाह में तुम्हारी आँखें उनसे न फिरें। और ऐसे व्यक्तिकी बात न मानना जिसके दिल को हमने अपनी याद से ग़ाफ़िल पाया है और वह अपनी इच्छा और वासना के पीछे लगा हुआ है और उसका मामला हद से आगे बढ़ गया है। (28)
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☆ कह दो, "यह सत्य है तुम्हारे रब की ओर से। तो अब जो कोई चाहे माने और जो चाहे इनकार कर दे।" हमने तो अत्याचारियों के लिए आग तैयार कर रखी है, जिसकी क़नातों ने उन्हें घेर लिया है। यदि वे फ़रियाद करेंगे तोफ़रियाद के प्रत्युत्तर में उन्हें ऐसा पानी मिलेगा जो तेल की तलछट जैसा होगा; वह उनके मुँह भून डालेगा। बहुत ही बुरा है वह पेय और बहुत ही बुरा है वह विश्रामस्थल!(29)
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☆ रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, तो निश्चय ही किसी ऐसे व्यक्ति का प्रतिदान जिसने अच्छा कर्म किया हो, हम अकारथ नहीं करते। (30)
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☆ ऐसे ही लोगों के लिए सदाबहार बाग़ हैं। उनके नीचे नहरें बह रही होंगी। वहाँ उन्हें सोने के कंगन पहनाए जाएँगे और वे हरे पतले और गाढ़े रेशमी कपड़े पहनेंगे और ऊँचे तख़्तों पर तकिया लगाए होंगे। क्या ही अच्छा बदला है और क्या ही अच्छा विश्रामस्थल! (31)
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☆ उनके समक्ष एक उपमा प्रस्तुत करो, दो व्यक्ति हैं। उनमें से एक को हमने अंगूरों के दो बाग़ दिए और उनके चारों ओर हमने खजूरों केवृक्षों की बाड़ लगाई और उन दोनों के बीच हमने खेती-बाड़ीरखी। (32)
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☆ दोनों में से प्रत्येक बाग़ अपने फल लाया और इसमें कोई कमी नहीं की। और उन दोनों के बीच हमने एक नहर भी प्रवाहित कर दी। (33)
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☆ उसे ख़ूब फल और पैदावार प्राप्त हुई। इसपर वह अपने साथी से, जबकि वह उससे बातचीत कर रहा था, कहने लगा, "मैं तुझसे माल और दौलत में बढ़कर हूँ और मुझे जनशक्ति भी अधिक प्राप्त है।" (34)
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☆ वह अपने हक़ में ज़ालिम बनकर बाग़ में प्रविष्ट हुआ। कहने लगा, "मैं ऐसा नहीं समझताकि वह कभी विनष्ट होगा। (35)
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☆ और मैं नहीं समझता कि वह (क़ियामत की) घड़ी कभी आएगी। और यदि मैं वास्तव में अपने रब के पास पलटा भी तो निश्चय ही पलटने की जगह इससे भी उत्तम पाऊँगा।" (36)
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☆ उसके साथी ने उससे बातचीत करते हुए कहा, "क्या तू उस सत्ता के साथ कुफ़्र करता है जिसने तुझे मिट्टी से, फिर वीर्य से पैदा किया, फिर तुझे एक पूरा आदमी बनाया? (37)
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☆ लेकिन मेरा रब तो वही अल्लाह है और मैं किसी को अपने रब के साथ साझीदार नहीं बनाता। (38)
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☆ और ऐसा क्यों न हुआ कि जब तूने अपने बाग़ में प्रवेश किया तो कहता, 'जो अल्लाह चाहे, बिना अल्लाह के कोई शक्ति नहीं?' यदि तू देखता है कि मैं धन और संतति में तुझसे कम हूँ, (39)
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☆ तो आशा है कि मेरा रब मुझे तेरे बाग़ से अच्छा प्रदान करे और तेरे इस बाग़ पर आकाश से कोई क़ुर्क़ी (आपदा) भेज दे। फिर वह साफ़ मैदान होकर रह जाए। (40)
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☆ या उसका पानी बिलकुल नीचे उतर जाए। फिर तू उसे ढूँढ़कर न ला सके।" (41)
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☆ हुआ भी यही कि उसका सारा फलघिराव में आ गया। उसने उसमें जो कुछ लागत लगाई थी, उसपर वह अपनी हथेलियों को नचाता रह गया, और स्थिति यह थी कि बाग़ अपनी टट्टियों पर ढहा पड़ा थाऔर वह कह रहा था, "क्या ही अच्छा होता कि मैंने अपने रब के साथ किसी को साझीदार न बनाया होता!" (42)
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☆ उसका कोई जत्था न हुआ जो उसके और अल्लाह के बीच पड़कर उसकी सहायता करता और न उसे स्वयं बदला लेने की सामर्थ्य प्राप्त थी। (43)
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☆ ऐसे अवसर पर काम बनाने का सारा अधिकार परम सत्य अल्लाह ही को प्राप्त है। वही बदला देने में सबसे अच्छा है और वही अच्छा परिणाम दिखाने की दृष्टि से भी सर्वोत्तम है। (44)
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☆ और उनके समक्ष सांसारिक जीवन की उपमा प्रस्तुत करो, यह ऐसी है जैसे पानी हो, जिसे हमने आकाश से उतारा तो उससे धरती की पौध घनी होकर परस्पर गुँथ गई। फिर वह चूरा-चूरा होकर रह गई, जिसे हवाएँ उड़ाए लिए फिरती हैं। अल्लाह को तो हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।(45)
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☆ माल और बेटे तो केवल सांसारिक जीवन की शोभा हैं, जबकि बाक़ी रहनेवाली नेकियाँही तुम्हारे रब के यहाँ परिणाम की दृष्टि से भी उत्तमहैं और आशा की दृष्टि से भी वही उत्तम हैं।(46)
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☆ जिस दिन हम पहाड़ों को चलाएँगे और तुम धरती को बिलकुल नग्न देखोगे और हम उन्हें इकट्ठा करेंगे तो उनमें से किसी एक को भी न छोड़ेंगे। (47)
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☆ वे तुम्हारे रब के सामने पंक्तिबद्ध उपस्थित किए जाएँगे - "तुम हमारे सामने आ पहुँचे, जैसा हमने तुम्हें पहली बार पैदा किया था। नहीं, बल्कि तुम्हारा तो यह दावा थाकि हम तुम्हारे लिए वादा कियाहुआ कोई समय लाएँगे ही नहीं।" (48)
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☆ किताब (कर्मपत्रिका) रखी जाएगी तो अपराधियों को देखोगे कि जो कुछ उसमें होगा उससे डर रहे हैं और कह रहे हैं, "हाय, हमारा दुर्भाग्य! यह कैसी किताब है कि यह न कोई छोटी बात छोड़ती है न बड़ी, बल्कि सभी को इसने अपने अन्दरसमाहित कर रखा है।" जो कुछ उन्होंने किया होगा सब मौजूद पाएँगे। तुम्हारा रब किसी पर ज़ुल्म न करेगा। (49)
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☆ याद करो जब हमने फ़रिश्तों से कहा, "आदम को सजदा करो।" तो इबलीस के सिवा सबने सजदा किया। वह जिन्नों में से था। तो उसने अपने रब के आदेश का उल्लंघन किया। अब क्या तुम मुझसे इतर उसे और उसकी सन्तानको संरक्षक मित्र बनाते हो? हालाँकि वे तुम्हारे शत्रु हैं। क्या ही बुरा विकल्प है, जो ज़ालिमों के हाथ आया!(50)
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☆ मैंने न तो आकाशों और धरती को उन्हें दिखाकर पैदा किया और न स्वयं उनको बनाने और पैदा करने के समय ही उन्हें बुलाया। मैं ऐसा नहीं हूँ कि गुमराह करनेवालों को अपनी बाहु-भुजा बनाऊँ। (51)
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☆ याद करो जिस दिन वह कहेगा,"बुलाओ मेरे साझीदारों को, जिनके साझीदार होने का तुम्हें दावा था।" तो वे उनको पुकारेंगे, किन्तु वे उन्हें कोई उत्तर न देंगे और हम उनके बीच सामूहिक विनाश-स्थल निर्धारित कर देंगे। (52)
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☆ अपराधी लोग आग को देखेंगे तो समझ लेंगे कि वे उसमें पड़नेवाले हैं और उससे बच निकलने की कोई जगह न पाएँगे। (53)
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☆ हमने लोगों के लिए इस क़ुरआन में हर प्रकार के उत्तम विषयों को तरह-तरह से बयान किया है, किन्तु मनुष्य सबसे बढ़कर झगड़ालू है। (54)
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☆ आख़िर लोगों को, जबकि उनके पास मार्गदर्शन आ गया, तो इस बात से कि वे ईमान लाते और अपने रब से क्षमा चाहते, इसके सिवा किसी चीज़ ने नहीं रोका कि उनके लिए वही कुछ सामने आए जो पूर्व जनों के सामने आ चुका है, यहाँ तक कि यातना उनके सामने आ खड़ी हो। (55)
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☆ रसूलों को हम केवल शुभ सूचना देनेवाले और सचेतकर्त्ता बनाकर भेजते हैं। किन्तु इनकार करनेवाले लोग हैं कि असत्य के सहारे झगड़ते हैं, ताकि सत्य को डिगा दें। उन्होंने मेरी आयतों का और जो चेतावनी उन्हें दी गई उसका मज़ाक बना लिया है। (56)
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☆ उस व्यक्ति से बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जिसे उसके रबकी आयतों के द्वारा समझाया गया, तो उसने उनसे मुँह फेर लिया और उसे भूल गया, जो सामानउसके हाथ आगे बढ़ा चुके हैं? निश्चय ही हमने उनके दिलों परपरदे डाल दिए हैं कि कहीं वे उसे समझ न लें और उनके कानों में बोझ डाल दिया (कि कहीं वे उसे सुन न लें) । यद्यपि तुम उन्हें सीधे मार्ग की ओर बुलाओ, वे कभी भी मार्ग नहीं पा सकते। (57)
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☆ तुम्हारा रब अत्यन्त क्षमाशील और दयावान है। यदि वह उन्हें उसपर पकड़ता जो कुछकि उन्होंने कमाया है तो उनपरशीघ्र ही यातना ला देता। नहीं, बल्कि उनके लिए तो वादे का एक समय निशिचत है। उससे हटकर वे बच निकलने का कोई मार्ग न पाएँगे। (58)
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☆ और ये बस्तियाँ वे हैं कि जब उन्होंने अत्याचार किया तो हमने उन्हें विनष्ट कर दिया, और हमने उनके विनाश के लिए एक समय निश्चित कर रखा था। (59)
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☆ याद करो, जब मूसा ने अपने युवक सेवक से कहा, "जब तक कि मैं दो दरियाओं के संगम तक न पहुँच जाऊँ चलना नहीं छोड़ूँगा, चाहे मैं यूँ ही दीर्घकाल तक सफ़र करता रहूँ।"(60)
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☆ फिर जब वे दोनों संगम पर पहुँचे तो वे अपनी मछली से ग़ाफ़िल हो गए और उस (मछली) ने दरिया में सुरंग बनाती अपनी राह ली। (61)
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☆ फिर जब वे वहाँ से आगे बढ़ गए तो उसने अपने सेवक से कहा,"लाओ, हमारा नाश्ता। अपने इस सफ़र में तो हमें बड़ी थकान पहुँची है।" (62)
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☆ उसने कहा, "ज़रा देखिए तो सही, जब हम उस चट्टान के पास ठहरे हुए थे तो मैं मछली को भूल ही गया - और शैतान ही ने उसको याद रखने से मुझे ग़ाफ़िल कर दिया - और उसने आश्चर्य रूप से दरिया में अपनी राह ली।" (63)
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☆ (मूसा ने) कहा, "यही तो है जिसे हम तलाश कर रहे थे।" फिर वे दोनों अपने पदचिन्हों को देखते हुए वापस हुए। (64)
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☆ फिर उन्होंने हमारे बन्दों में से एक बन्दे को पाया, जिसे हमने अपने पास से दयालुता प्रदान की थी और जिसेअपने पास से ज्ञान प्रदान किया था। (65)
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☆ मूसा ने उससे कहा, "क्या मैं आपके पीछे चलूँ, ताकि आप मुझे उस ज्ञान औऱ विवेक की शिक्षा दें, जो आपको दी गई है?" (66)
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☆ उसने कहा, "तुम मेरे साथ धैर्य न रख सकोगे, (67)
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☆ और जो चीज़ तुम्हारे ज्ञान-परिधि से बाहर हो, उस परतुम धैर्य कैसे रख सकते हो?" (68)
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☆ (मूसा ने) कहा, "यदि अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे धैर्यवान पाएँगे। और मैं किसी मामले में भी आपकी अवज्ञा नहीं करूँगा।" (69)
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☆ उसने कहा, "अच्छा, यदि तुम मेरे साथ चलते हो तो मुझसे किसी चीज़ के विषय में न पूछना, यहाँ तक कि मैं स्वयं ही तुमसे उसकी चर्चा करूँ।" (70)
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☆ अन्ततः दोनों चले, यहाँ तक कि जब नौका में सवार हुए तो उसने उसमें दरार डाल दी। (मूसा ने) कहा, "आपने इसमें दरार डाल दी, ताकि उसके सवारों को डुबो दें? आपने तो एक अनोखी हरकत कर डाली।" (71)
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☆ उसने कहा, "क्या मैंने कहा नहीं था कि तुम मेरे साथ धैर्य न रख सकोगे?" (72)
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☆ कहा, "जो भूल-चूक मुझसे हो गई उसपर मुझे न पकड़िए और मेरे मामले में मुझे तंगी मेंन डालिए।" (73)
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☆ फिर वे दोनों चले, यहाँ तक कि जब वे एक लड़के से मिले तो उसने उसे मार डाला। कहा, "क्याआपने एक अच्छी-भली जान की हत्या कर दी, बिना इसके कि किसी की हत्या का बदला लेना अभीष्ट हो? यह तो आपने बहुत हीबुरा किया!" (74)
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☆ उसने कहा, "क्या मैंने तुमसे कहा नहीं था कि तुम मेरे साथ धैर्य न रख सकोगे?" (75)
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☆ कहा, "इसके बाद यदि मैं आपसे कुछ पूछूँ तो आप मुझे साथ न रखें। अब तो मेरी ओर से आप पूरी तरह उज़्र को पहुँच चुके हैं।"(76)
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☆ फिर वे दोनों चले, यहाँ तक कि जब वे एक बस्तीवालों के पास पहुँचे और उनसे भोजन माँगा, किन्तु उन्होंने उनके आतिथ्य से इनकार कर दिया। फिरवहाँ उन्हें एक दीवार मिली जोगिरा चाहती थी, तो उस व्यक्ति ने उसको खड़ा कर दिया। (मूसा ने) कहा, "यदि आप चाहते तो इसकीकुछ मज़दूरी ले सकते थे।" (77)
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☆ उसने कहा, "यह मेरे और तुम्हारे बीच जुदाई का अवसर है। अब मैं तुमको उसकी वास्तविकता बताए दे रहा हूँ, जिसपर तुम धैर्य से काम न ले सके।" (78)
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☆ वह जो नौका थी, कुछ निर्धन लोगों की थी जो दरिया में काम करते थे, तो मैंने चाहा कि उसेऐबदार कर दूँ, क्योंकि आगे उनके परे एक सम्राट था, जो प्रत्येक नौका को ज़बरदस्ती छीन लेता था। (79)
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☆ और रहा वह लड़का, तो उसके माँ-बाप ईमान पर थे। हमें आशंका हुई कि वह सरकशी और कुफ़्र से उन्हें तंग करेगा। (80)
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☆ इसलिए हमने चाहा कि उनका रब उन्हें इसके बदले दूसरी संतान दे, जो आत्मविकास में इससे अच्छा हो और दया-करूणा से अधिक निकट हो। (81)
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☆ और रही यह दीवार तो यह दो अनाथ बालकों की है जो इस नगर में रहते हैं। और इसके नीचे उनका ख़जाना मौजूद है। और उनका बाप नेक था, इसलिए तुम्हारे रब ने चाहा कि वे अपनी युवावस्था को पहुँच जाएँ और अपना ख़जाना निकाल लें। यह तुम्हारे रब की दयालुता के कारण हुआ। मैंने तो अपने अधिकार से कुछ नहीं किया। यह है वास्तविकता उसकी जिसपर तुम धैर्य न रख सके।" (82)
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☆ वे तुमसे ज़ुलक़रनैन के विषय में पूछते हैं। कह दो,"मैं तुम्हें उसका कुछ वृत्तान्त सुनाता हूँ।" (83)
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☆ हमने उसे धरती में सत्ता प्रदान की थी और उसे हर प्रकार के संसाधन दिए थे। (84)
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☆ अतएव उसने एक अभियान का आयोजन किया। (85)
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☆ यहाँ तक कि जब वह सूर्यास्त-स्थल तक पहुँचा तो उसे मटमैले काले पानी के एक स्रोत में डूबते हुए पाया और उसके निकट उसे एक क़ौम मिली। हमने कहा, "ऐ ज़ुलक़रनैन! तुझेअधिकार है कि चाहे तकलीफ़ पहुँचाए और चाहे उनके साथ अच्छा व्यवहार करे।" (86)
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☆ उसने कहा, "जो कोई ज़ुल्म करेगा उसे तो हम दंड देंगे। फिर वह अपने रब की ओर पलटेगा और वह उसे कठोर यातना देगा। (87)
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☆ किन्तु जो कोई ईमान लाया औऱ अच्छा कर्म किया, उसके लिए तो अच्छा बदला है और हम उसे अपना सहज एवं मृदुल आदेश देंगे।" (88)
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☆ फिर उसने एक और अभियान का आयोजन किया। (89)
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☆ यहाँ तक कि जब वह सूर्योदय स्थल पर जा पहुँचा तो उसने उसे ऐसे लोगों पर उदित होते पाया जिनके लिए हमने सूर्य केमुक़ाबले में कोई ओट नहीं रखीथी। (90)
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☆ ऐसा ही हमने किया था और जो कुछ उसके पास था, उसकी हमें पूरी ख़बर थी। (91)
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☆ उसने फिर एक अभियान का आयोजन किया, (92)
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☆ यहाँ तक कि जब वह दो पर्वतों के बीच पहुँचा तो उसेउनके इस किनारे कुछ लोग मिले, जो ऐसा लगता नहीं था कि कोई बात समझ पाते हों।(93)
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☆ उन्होंने कहा, "ऐ ज़ुलक़रनैन! याजूज और माजूज इस भूभाग में उत्पात मचाते हैं। क्या हम तुम्हें कोई कर इस काम के लिए दें कि तुम हमारे और उनके बीच एक अवरोध निर्मित कर दो?"(94)
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☆ उसने कहा, "मेरे रब ने मुझेजो कुछ अधिकार एवं शक्ति दी है वह उत्तम है। तुम तो बस बल से मेरी सहायता करो। मैं तुम्हारे और उनके बीच एक सुदृढ़ दीवार बनाए देता हूँ। (95)
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☆ मुझे लोहे के टुकड़े ला दो।" यहाँ तक कि जब दोनों पर्वतों के बीच के रिक्त स्थान को पाटकर बराबर कर दियातो कहा, "धौंको!" यहाँ तक कि जबउसे आग कर दिया तो कहा, "मुझे पिघला हुआ ताँबा ला दो, ताकि मैं उसपर उँड़ेल दूँ।" (96)
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☆ तो न तो वे (याजूज, माजूज) उसपर चढ़कर आ सकते थे और न वे उसमें सेंध ही लगा सकते थे। (97)
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☆ उसने कहा, "यह मेरे रब की दयालुता है, किन्तु जब मेरे रब के वादे का समय आ जाएगा तो वह उसे ढाकर बराबर कर देगा, औरमेरे रब का वादा सच्चा है।" (98)
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☆ उस दिन हम उन्हें छोड़ देंगे कि वे एक-दूसरे से मौजों की तरह परस्पर गुत्मथ-गुत्था हो जाएँगे। और "सूर" फूँका जाएगा। फिर हम उन सबको एक साथ इकट्ठा करेंगे।(99)
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☆ और उस दिन जहन्नम को इनकार करनेवालों के सामने कर देंगे। (100)
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☆ जिनके नेत्र मेरी अनुस्मृति की ओर से परदे में थे और जो कुछ सुन भी नहीं सकतेथे। (101)
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☆ तो क्या इनकार करनेवाले इसख़याल में हैं कि मुझसे हटकर मेरे बन्दों को अपना हिमायती बना लें? हमने ऐसे इनकार करनेवालों के आतिथ्य-सत्कार के लिए जहन्नम तैयार कर रखा है। (102)
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☆ कहो, "क्या हम तुम्हें उन लोगों की ख़बर दें, जो अपने कर्मों की दृष्टि से सबसे बढ़कर घाटा उठानेवाले हैं? (103)
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☆ ये वे लोग हैं जिनका प्रयास सांसारिक जीवन में अकारथ गया और वे यही समझते हैं कि वे बहुत अच्छा कर्म कर रहे हैं। (104)
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☆ यही वे लोग हैं जिन्होंने अपने रब की आयतों का और उससे मिलन का इनकार किया। अतः उनकेकर्म जान को लागू हुए, तो हम क़ियामत के दिन उन्हें कोई वज़न न देंगे। (105)
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☆ उनका बदला वही जहन्नम है, इसलिए कि उन्होंने कुफ़्र की नीति अपनाई और मेरी आयतों और मेरे रसूलों का उपहास किया। (106)
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☆ निश्चय ही जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके आतिथ्य के लिए फ़िरदौस के बाग़ होंगे, (107)
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☆ जिनमें वे सदैव रहेंगे, वहाँ से हटना न चाहेंगे।" (108)
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☆ कहो, "यदि समुद्र मेरे रब के बोल को लिखने के लिए रोशनाई हो जाए तो इससे पहले कि मेरे रब के बोल समाप्त हों,समुद्र ही समाप्त हो जाएगा। यद्यपि हम उसके सदृश एक और भी समुद्र उसके साथ ला मिलाएँ।" (109)
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☆ कह दो, "मैं तो केवल तुम्हीं जैसा मनुष्य हूँ। मेरी ओर प्रकाशना की जाती है कि तुम्हारा पूज्य-प्रभु बस अकेला पूज्य-प्रभु है। अतः जोकोई अपने रब से मिलन की आशा रखता हो, उसे चाहिए कि अच्छा कर्म करे और अपने रब की बन्दगी में किसी को साझी न बनाए।" (110)
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