सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ जब घटित होनेवाली (घड़ी) घटित हो जाएगी; (1)
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☆ उसके घटित होने में कुछ भी झुठ नहीं; (2)
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☆ पस्त करनेवाली होगी, ऊँचा करनेवाली भी; (3)
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☆ जब धरती थरथराकर काँप उठेगी; (4)
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☆ और पहाड़ टूटकर चूर्ण-विचूर्ण हो जाएँगे(5)
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☆ कि वे बिखरे हुए धूल होकर रह जाएँगे। (6)
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☆ और तुम लोग तीन प्रकार के हो जाओगे - (7)
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☆ तो दाहिने हाथ वाले (सौभाग्यशाली), कैसे होंगे दाहिने हाथ वाले! (8)
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☆ और बाएँ हाथ वाले (दुर्भाग्यशाली), कैसे होंगे बाएँ हाथ वाले! (9)
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☆ और आगे बढ़ जानेवाले तो आगे बढ़ जानेवाले ही हैं। (10)
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☆ वही (अल्लाह के) निकटवर्ती हैं;(11)
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☆ नेमत भरी जन्नतों में होंगे; (12)
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☆ अगलों में से तो बहुत-से होंगे, (13)
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☆ किन्तु पिछलों में से कम ही। (14)
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☆ जड़ित तख़्तों पर; (15)
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☆ तकिया लगाए आमने-सामने होंगे; (16)
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☆ उनके पास किशोर होंगे जो सदैव किशोरावस्था ही में रहेंगे, (17)
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☆ प्याले और आफ़ताबे (जग) और विशुद्ध पेय से भरा हुआ पात्रलिए फिर रहे होंगे (18)
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☆ जिस (के पीने) से न तो उन्हें सिर दर्द होगा और न उनकी बुद्धि में विकार आएगा। (19)
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☆ और स्वादिष्ट फल जो वे पसन्द करें; (20)
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☆ और पक्षी का मांस जो वे चाहें; (21)
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☆ और बड़ी आँखोंवाली हूरें, (22)
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☆ मानो छिपाए हुए मोती हों। (23)
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☆ यह सब उसके बदले में उन्हें प्राप्त होगा जो कुछ वे करते रहे। (24)
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☆ उसमें वे न कोई व्यर्थ बात सुनेंगे और न गुनाह की बात; (25)
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☆ सिवाय इस बात के कि "सलाम हो, सलाम हो!" (26)
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☆ रहे सौभाग्यशाली लोग, तो सौभाग्यशालियों का क्या कहना! (27)
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☆ वे वहाँ होंगे जहाँ बिन काँटों के बेर होंगे; (28)
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☆ और गुच्छेदार केले; (29)
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☆ दूर तक फैली हुई छाँव; (30)
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☆ बहता हुआ पानी; (31)
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☆ बहुत-सा स्वादिष्ट फल, (32)
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☆ जिसका सिलसिला टूटनेवाला न होगा और न उसपर कोई रोक-टोक होगी, (33)
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☆ उच्चकोटि के बिछौने होंगे;(34)
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☆ (और वहाँ उनकी पत्नियों को)निश्चय ही हमने एक विशेष उठानपर उठाया। (35)
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☆ और हमने उन्हे कुँवारियाँ बनाया; (36)
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☆ प्रेम दर्शानेवाली और समायु; (37)
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☆ सौभाग्यशाली लोगों के लिए;(38)
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☆ वे अगलों में से भी अधिक होंगे (39)
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☆ और पिछलों में से भी अधिक होंगे। (40) रहे दुर्भाग्यशाली लोग, तोकैसे होंगे दुर्भाग्यशाली लोग! (41)
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☆ गर्म हवा और खौलते हुए पानी में होंगे; (42)
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☆ और काले धुएँ की छाँव में, (43)
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☆ जो न ठंडी होगी और न उत्तम और लाभप्रद। (44)
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☆ वे इससे पहले सुख-सम्पन्न थे; (45)
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☆ और बड़े गुनाह पर अड़े रहते थे। (46)
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☆ कहते थे, "क्या जब हम मर जाएँगे और मिट्टी और हड्डियाँ होकर रह जाएँगे, तो क्या हम वास्तव में उठाए जाएँगे?(47)
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☆ और क्या हमारे पहले के बाप-दादा भी?" (48) _______________________________
☆ कह दो, "निश्चय ही अगले और पिछले भी (49)
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☆ एक नियत समय तक इकट्ठे कर दिए जाएँगे, जिसका दिन ज्ञात और नियत है।(50)
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☆ फिर तुम ऐ गुमराहो, झुठलानेवालो! (51) ज़क़्क़ूम के वृक्ष में से खाओगे;(52)
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☆ और उसी से पेट भरोगे; (53)
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☆ और उसके ऊपर से खौलता हुआ पानी पीओगे; (54)
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☆ "और तौंस लगे ऊँट की तरह पीओगे।" (55)
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☆ यह बदला दिए जाने के दिन उनका पहला सत्कार होगा। (56)
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☆ हमने तुम्हें पैदा किया; फिर तुम सच क्यों नहीं मानते? (57)
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☆ तो क्या तुमने विचार किया जो चीज़ तुम टपकाते हो? (58)
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☆ क्या तुम उसे आकार देते हो,या हम हैं आकार देनेवाले? (59)
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☆ हमने तुम्हारे बीच मृत्यु को नियत किया है। और हमारे बस से यह बाहर नहीं है (60)
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☆ कि हम तुम्हारे जैसों को बदल दें और तुम्हें ऐसी हालत में उठा खड़ा करें जिसे तुम जानते नहीं। (61)
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☆ तुम तो पहली पैदाइश को जान चुके हो, फिर तुम ध्यान क्यों नहीं देते? (62)
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☆ फिर क्या तुमने देखा जो कुछ तुम खेती करते हो? (63)
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☆ क्या उसे तुम उगाते हो या हम उसे उगाते हैं? (64)
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☆ यदि हम चाहें तो उसे चूर-चूर कर दें। फिर तुम बातें बनाते रह जाओ (65)
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☆ कि "हम पर उलटा डाँड पड़ गया, (66)
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☆ बल्कि हम वंचित होकर रह गए!" (67) फिर क्या तुमने उस पानी को देखा जिसे तुम पीते हो? (68)
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☆ क्या उसे बादलों से तुमने बरसाया या बरसानेवाले हम हैं?(69)
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☆ यदि हम चाहें तो उसे अत्यन्त खारा बनाकर रख दें। फिर तुम कृतज्ञता क्यों नहीं दिखाते? (70)
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☆ फिर क्या तुमने उस आग को देखा जिसे तुम सुलगाते हो? (71)
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☆ क्या तुमने उसके वृक्ष को पैदा किया है या पैदा करनेवाले हम हैं? (72)
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☆ हमने उसे एक अनुस्मृति और मरुभुमि के मुसाफ़िरों और ज़रूरतमन्दों के लिए लाभप्रदबनाया। (73)
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☆ अतः तुम अपने महान रब के नाम की तसबीह करो। (74)
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☆ अतः नहीं! मैं क़सम खाता हूँ सितारों की स्थितियों की - (75)
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☆ और यह बहुत बड़ी गवाही है, यदि तुम जानो - (76)
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☆ निश्चय ही यह प्रतिष्ठित क़ुरआन है। (77)
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☆ एक सुरक्षित किताब में अंकित है। (78) _______________________________
☆ उसे केवल पाक-साफ़ व्यक्तिही हाथ लगाते हैं। (79)
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☆ उसका अवतरण सारे संसार के रब की ओर से है। (80)
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☆ फिर क्या तुम उस वाणी के प्रति उपेक्षा दर्शाते हो? (81)
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☆ और तुम इसको अपनी वृत्ति बना रहे हो कि झुठलाते हो? (82)
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☆ फिर ऐसा क्यों नहीं होता, जबकि प्राण कंठ को आ लगते हैं (83)
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☆ और उस समय तुम देख रहे होतेहो - (84)
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☆ और हम तुम्हारी अपेक्षा उससे अधिक निकट होते हैं। किन्तु तुम देखते नहीं – (85)
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☆ फिर ऐसा क्यों नहीं होता कि यदि तुम अधीन नहीं हो (86) _______________________________
☆ तो उसे (प्राण को) लौटा दो, यदि तुम सच्चे हो। (87)
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☆ फिर यदि वह (अल्लाह के) निकटवर्तियों में से है; (88)
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☆ तो (उसके लिए) आराम, सुख-सामग्री और सुगंध है, और नेमतवाला बाग़ है। (89)
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☆ और यदि वह भाग्यशालियों में से है, (90)
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☆ तो "सलाम है तुम्हें कि तुम सौभाग्यशाली में से हो।" (91) _______________________________
☆ किन्तु यदि वह झुठलानेवालों, गुमराहों में से है; (92)
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☆ तो उसका पहला सत्कार खौलतेहुए पानी से होगा। (93) _______________________________
☆ फिर भड़कती हुई आग में उन्हें झोंका जाना है। (94)
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☆ निस्संदेह यही विश्वसनीय सत्य है। (95)
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☆ अतः तुम अपने महान रब की तसबीह करो। (96)
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