सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ साक्षी है सूर्य और उसकी प्रभा, (1 )
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☆ और चन्द्रमा, जबकि वह उसके पीछे आए,(2)
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☆ और दिन, जबकि वह उसे प्रकट कर दे, (3)
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☆ और रात, जबकि वह उसको ढाँक ले। (4)
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☆ और आकाश और जैसा कुछ उसे उठाया, (5)
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☆ और धरती और जैसा कुछ उसे बिछाया। (6)
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☆ और आत्मा और जैसा कुछ उसे सँवारा। (7)
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☆ फिर उसके दिल में डाली उसकी बुराई और उसकी परहेज़गारी। (8)
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☆ सफल हो गया जिसने उसे विकसित किया। (9)
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☆ और असफल हुआ जिसने उसे दबा दिया। (10)
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☆ समूद ने अपनी सरकशी से झुठलाया, (11)
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☆ जब उनमें का सबसे बड़ा दुर्भाग्यशाली उठ खड़ा हुआ, (12)
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☆ तो अल्लाह के रसूल ने उनसे कहा, "सावधान, अल्लाह की ऊँटनीऔर उसके पिलाने (की बारी) से।" (13)
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☆ किन्तु उन्होंने उसे झुठलाया और उस ऊँटनी की कूचेंकाट डालीं। अन्ततः उनके रब नेउनके गुनाह के कारण उनपर तबाही डाल दी और उन्हें बराबरकर दिया। (14)
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☆ और उसे उसके परिणाम का कोई भय नहीं। (15)
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