सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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☆ यह एक (महत्वपूर्ण) सूरा है,जिसे हमने उतारा है। और इसे हमने अनिवार्य किया है, और इसमें हमने स्पष्ट आयतें (आदेश) अवतरित की हैं। कदाचित तुम शिक्षा ग्रहण करो। (1)
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☆ व्यभिचारिणी और व्यभिचारी- इन दोनों में से प्रत्येक कोसौ कोड़े मारो और अल्लाह के धर्म (क़ानून) के विषय में तुम्हें उनपर तरस न आए, यदि तुम अल्लाह और अन्तिम दिन को मानते हो। और उन्हें दंड देतेसमय मोमिनों में से कुछ लोगोंको उपस्थित रहना चाहिए। (2)
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☆ व्यभिचारी किसी व्यभिचारिणी या बहुदेववादी स्त्री से ही निकाह करता है। और (इसी प्रकार) व्यभिचारिणी, किसी व्यभिचारी या बहुदेववादी से ही निकाह करती है। और यह मोमिनों पर हराम है।(3)
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☆ और जो लोग शरीफ़ और पाकदामन स्त्री पर तोहमत लगाएँ, फिर चार गवाह न लाएँ, उन्हें अस्सी कोड़े मारो और उनकी गवाही कभी भी स्वीकार न करो - वही हैं जो अवज्ञाकारी हैं। - (4)
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☆ सिवाय उन लोगों के जो इसके पश्चात तौबा कर लें और सुधार कर लें। तो निश्चय ही अल्लाह बहुत क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है। (5)
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☆ और जो लोग अपनी पत्नियों पर दोषारोपण करें और उनके पासस्वयं उनके अपने सिवा गवाह मौजूद न हों, तो उनमें से एक (अर्थात पति) चार बार अल्लाह की क़सम खाकर यह गवाही दे कि वह बिलकुल सच्चा है। (6)
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☆ और पाँचवी बार यह गवाही दे कि यदि वह झूठा हो तो उसपर अल्लाह की फिटकार हो। (7)
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☆ पत्ऩी से भी सज़ा को यह बातटाल सकती है कि वह चार बार अल्लाह की क़सम खाकर गवाही देकि वह बिलकुल झूठा है। (8)
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☆ और पाँचवी बार यह कहे कि उसपर (उस स्त्री पर) अल्लाह काप्रकोप हो, यदि वह सच्चा हो।(9)
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☆ यदि तुम पर अल्लाह की उदार कृपा और उसकी दया न होती (तो तुम संकट में पड़ जाते), और यह कि अल्लाह बड़ा तौबा क़बूल करनेवाला,अत्यन्त तत्वदर्शी है। (10)
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☆ जो लोग तोहमत घड़ लाए हैं वे तुम्हारे ही भीतर की एक टोली है। तुम उसे अपने लिए बुरा मत समझो, बल्कि वह भी तुम्हारे लिए अच्छा ही है। उनमें से प्रत्येक व्यक्ति के लिए उतना ही हिस्सा है जितना गुनाह उसने कमाया, और उनमें से जिस व्यक्ति ने उसकीज़िम्मेदारी का एक बड़ा हिस्सा अपने सिर लिया उसके लिए बड़ी यातना है। (11)
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☆ ऐसा क्यों न हुआ कि जब तुम लोगों ने उसे सुना था, तब मोमिन पुरुष और मोमिन स्त्रियाँ अपने आपसे अच्छा गुमान करते और कहते कि "यह तो खुली तोहमत है?" (12)
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☆ आख़िर वे इसपर चार गवाह क्यों न लाए? अब जबकि वे गवाह नहीं लाए, तो अल्लाह की दृष्टि में वही झूठे हैं। (13)
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☆ यदि तुमपर दुनिया और आख़िरत में अल्लाह की उदार कृपा और उसकी दयालुता न होती तो जिस बात में तुम पड़ गए उसके कारण तुम्हें एक बड़ी यातना आ लेती। (14)
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☆ सोचो, जब तुम एक-दूसरे से उस (झूठ) को अपनी ज़बानों पर लेते जा रहे थे और तुम अपने मुँह से वह कुछ कहे जा रहे थे, जिसके विषय में तुम्हें कोई ज्ञान न था और तुम उसे एक साधारण बात समझ रहे थे; हालाँकि अल्लाह के निकट वह एकभारी बात थी। (15)
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☆ और ऐसा क्यों न हुआ कि जब तुमने उसे सुना था तो कह देते,"हमारे लिए उचित नहीं कि हम ऐसी बात ज़बान पर लाएँ। महान और उच्च है तू (अल्लाह)! यह तो एक बड़ी तोहमत है?" (16)
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☆ अल्लाह तुम्हें नसीहत करता है कि फिर कभी ऐसा न करना, यदि तुम मोमिन हो। (17)
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☆ अल्लाह तो आयतों को तुम्हारे लिए खोल-खोलकर बयान करता है। अल्लाह तो सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है। (18)
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☆ जो लोग चाहते हैं कि उन लोगों में जो ईमान लाए हैं, अश्लीलता फैले, उनके लिए दुनिया और आख़िरत (लोक-परलोक) में दुखद यातना है। और अल्लाहजानता है और तुम नहीं जानते। (19)
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☆ और यदि तुमपर अल्लाह का उदार अनुग्रह और उसकी दयालुता न होती (तॊ अवश्य ही तुमपर यातना आ जाती) और यह कि अल्लाह बड़ा करुणामय, अत्यन्त दयावान है। (20)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! शैतान के पद-चिन्हों पर न चलो। जो कोई शैतान के पद-चिन्हों पर चलेगातो वह तो उसे अश्लीलता औऱ बुराई का आदेश देगा। और यदि अल्लाह का उदार अनुग्रह और उसकी दयालुता तुमपर न होती तोतुममें से कोई भी आत्म-विकास को प्राप्त न कर सकता। किन्तुअल्लाह जिसे चाहता है, सँवारता-निखारता है। अल्लाह तो सब कुछ सुनता, जानता है। (21)
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☆ तुममें जो बड़ाईवाले और सामर्थ्यवान हैं, वे नातेदारों, मुहताजों और अल्लाह की राह में घरबार छोड़नेवालों को देने से बाज़ रहने की क़सम न खा बैठें। उन्हें चाहिए कि क्षमा कर देंऔर उनसे दरगुज़र करें। क्या तुम यह नहीं चाहते कि अल्लाह तुम्हें क्षमा करे? अल्लाह बहुत क्षमाशील,अत्यन्त दयावान है। (22)
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☆ निस्संदेह जो लोग शरीफ़, पाकदामन, भोली-भाली बेख़बर ईमानवाली स्त्रियों पर तोहमतलगाते हैं उनपर दुनिया और आख़िरत में फिटकार है। और उनके लिए एक बड़ी यातना है। (23)
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☆ जिस दिन कि उनकी ज़बानें और उनके हाथ और उनके पाँव उनके विरुद्ध उसकी गवाही देंगे, जो कुछ वे करते रहे थे, (24)
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☆ उस दिन अल्लाह उन्हें उनकाठीक बदला पूरी तरह दे देगा जिसके वे पात्र हैं। और वे जान लेंगे कि निस्संदेह अल्लाह ही सत्य है खुला हुआ, प्रकट कर देनेवाला। (25)
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☆ गन्दी चीज़ें गन्दें लोगोंके लिए हैं और गन्दे लोग गन्दी चीज़ों के लिए, और अच्छी चीज़ें अच्छे लोगों के लिए हैं और अच्छे लोग अच्छी चीज़ों के लिए। वे लोग उन बातों से बरी हैं, जो वे कह रहे हैं। उनके लिए क्षमा और सम्मानित आजीविका है।(26)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! अपने घरों के सिवा दूसरे घऱों में प्रवेश न करो, जब तक कि रज़ामन्दी हासिल न कर लो और उन घरवालों को सलाम न कर लो। यही तुम्हारे लिए उत्तम है, कदाचित तुम ध्यान रखो। (27)
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☆ फिर यदि उनमें किसी को न पाओ, तो उनमें प्रवेश न करो जबतक कि तुम्हें अनुमति प्राप्त न हो। और यदि तुमसे कहा जाए कि वापस हो जाओ तो वापस हो जाओ, यही तुम्हारे लिए अधिक अच्छी बात है। अल्लाह भली-भाँति जानता है जोकुछ तुम करते हो। (28)
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☆ इसमें तुम्हारे लिए कोई दोष नहीं है कि तुम ऐसे घरों में प्रवेश करो जिनमें कोई न रहता हो, जिनमें तुम्हारे फ़ायदे की कोई चीज़ हो। और अल्लाह जानता है जो कुछ तुम प्रकट करते हो और जो कुछ छिपाते हो। (29)
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☆ ईमानवाले पुरुषों से कह दोकि अपनी निगाहें बचाकर रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। यही उनके लिए अधिक अच्छी बात है। अल्लाह को उसकीपूरी ख़बर रहती है, जो कुछ वे किया करते हैं। (30)
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☆ और ईमानवाली स्त्रियों से कह दो कि वे भी अपनी निगाहें बचाकर रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। और अपने श्रृंगार प्रकट न करें, सिवाय उसके जो उनमें खुला रहता है। और अपने सीनों (वक्षस्थलों) पर अपने दुपट्टेडाले रहें और अपना श्रृंगार किसी पर ज़ाहिर न करें सिवाय अपने पतियों के या अपने बापोंके या अपने पतियों के बापों के या अपने बेटों के या अपने पतियों के बेटों के या अपने भाइयों के या अपने भतीजों के या अपने भांजों के या मेल-जोल की स्त्रियों के या जो उनकी अपनी मिल्कियत में हो उनके, या उन अधीनस्थ पुरुषों के जो उस अवस्था को पार कर चुके हों जिसमें स्त्री की ज़रूरत होती है, या उन बच्चों के जो स्त्रियों के परदे की बातों से परिचित न हों। और स्त्रियाँ अपने पाँव धरती पर मारकर न चलें कि अपना जो श्रृंगार छिपा रखा हो, वह मालूम हो जाए। ऐ ईमानवालो! तुम सब मिलकर अल्लाह से तौबा करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो।(31)
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☆ तुममें जो बेजोड़े के हों और तुम्हारे ग़ुलामों और तुम्हारी लौंडियों मे जो नेक और योग्य हों, उनका विवाह कर दो। यदि वे ग़रीब होंगे तो अल्लाह अपने उदार अनुग्रह से उन्हें समृद्ध कर देगा। अल्लाह बड़ी समाईवाला, सर्वज्ञ है। (32)
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☆ और जो विवाह का अवसर न पा रहे हों उन्हें चाहिए कि पाकदामनी अपनाए रहें, यहाँ तककि अल्लाह अपने उदार अनुग्रह से उन्हें समृद्ध कर दे। और जिन लोगों पर तुम्हें स्वामित्व का अधिकार प्राप्तहो उनमें से जो लोग लिखा-पढ़ी के इच्छुक हो उनसे लिखा-पढ़ी कर लो, यदि तुम्हें मालूम हो कि उनमें भलाई है। और उन्हें अल्लाह के माल में से दो, जो उसने तुम्हें प्रदान किया है। और अपनी लौंडियों को सांसारिक जीवन-सामग्री की चाह में व्यविचार के लिए बाध्य न करो, जबकि वे पाकदामन रहना भी चाहती हों। औऱ इसके लिए जो कोई उन्हें बाध्य करेगा, तो निश्चय ही अल्लाह उनके बाध्य किए जाने के पश्चात अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है। (33)
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☆ हमने तुम्हारी ओर खुली हुईआयतें उतार दी हैं और उन लोगों की मिसालें भी पेश कर दी हैं, जो तुमसे पहले गुज़रे हैं, और डर रखनेवालों के लिए नसीहत भी। (34)
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☆ अल्लाह आकाशों और धरती का प्रकाश है। (मोमिन के दिल में)उसके प्रकाश की मिसाल ऐसी है जैसे एक ताक़ है, जिसमें एक चिराग़ है - वह चिराग़ एक फ़ानूस में है। वह फ़ानूस ऐसाहै मानो चमकता हुआ कोई तारा है। - वह चिराग़ ज़ैतून के एक बरकतवाले वृक्ष के तेल से जलाया जाता है, जो न पूर्वी हैन पश्चिमी। उसका तेल आप ही आप भड़का पड़ता है, यद्यपि आग उसे न भी छुए। प्रकाश पर प्रकाश! - अल्लाह जिसे चाहता है अपने प्रकाश के प्राप्त होने का मार्ग दिखा देता है। अल्लाह लोगों के लिए मिसालें प्रस्तुत करता है। अल्लाह तो हर चीज़ जानता है।- (35)
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☆ उन घरों में जिनको ऊँचा करने और जिनमें अपने नाम के याद करने का अल्लाह ने हुक्म दिया है, (36)
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☆ उनमें ऐसे लोग प्रभात काल और संध्या समय उसकी तसबीह करते हैं जिन्हें अल्लाह की याद और नमाज़ें क़ायम करने और ज़कात देने से न तो व्यापार ग़ाफ़िल करता है और न क्रय-विक्रय। वे उस दिन से डरते रहते हैं जिसमें दिल और आँखें विकल हो जाएँगी। (37)
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☆ ताकि अल्लाह उन्हें बदला प्रदान करे। उनके अच्छे से अच्छे कामों का, और अपने उदार अनुग्रह से उन्हें और अधिक प्रदान करें। अल्लाह जिसे चाहता है बेहिसाब देता है। (38)
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☆ रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया उनके कर्म चटियल मैदान में मरीचिका की तरह हैंकि प्यासा उसे पानी समझता है, यहाँ तक कि जब वह उसके पास पहुँचा तो उसे कुछ भी न पाया। अलबत्ता अल्लाह ही को उसके पास पाया, जिसने उसका हिसाब पूरा-पूरा चुका दिया। और अल्लाह बहुत जल्द हिसाब करता है। (39)
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☆ या फिर जैसे एक गहरे समुद्र में अँधेरे, लहर के ऊपर लहर छा रही है; उसके ऊपर बादल है, अँधेरे हैं एक पर एक।जब वह अपना हाथ निकाले तो उसे वह सुझाई देता प्रतीत न हो। जिसे अल्लाह ही प्रकाश न दे फिर उसके लिए कोई प्रकाश नहीं। (40)
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☆ क्या तुमने नहीं देखा कि जो कोई भी आकाशों और धरती में है, अल्लाह की तसबीह (गुणगान) कर रहा है और पंख पसारे हुए पक्षी भी? हर एक अपनी नमाज़ औरतसबीह से परिचित है। अल्लाह भली-भाँति जानता है जो कुछ वे करते हैं। (41)
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☆ अल्लाह ही के लिए है आकाशों और धरती का राज्य। और अल्लाह ही की ओर लौटकर जाना है। (42)
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☆ क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह बादल को चलाता है। फिरउनको परस्पर मिलाता है। फिर उसे तह पर तह कर देता है। फिर तुम देखते हो कि उसके बीच से मेह बरसता है? और आकाश से- उसमें जो पहाड़ हैं (बादल जो पहाड़ जैसे प्रतीत होते हैं उनसे) - ओले बरसाता है। फिर जिस पर चाहता है गिराता है, औरजिसे चाहता है उसे हटा देता है। ऐसा प्रतीत होता है कि बिजली की चमक निगाहों को उचक ले जाएगी। (43)
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☆ अल्लाह ही रात और दिन का उलट-फेर करता है। निश्चय ही आँखें रखनेवालों के लिए इसमें एक शिक्षा है। (44)
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☆ अल्लाह ने हर जीवधारी को पानी से पैदा किया, तो उनमें से कोई अपने पेट के बल चलता हैऔर कोई उनमें दो टाँगों पर चलता है और कोई चार (टाँगों) पर चलता है। अल्लाह जो चाहता है, पैदा करता है। निस्संदेह अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है। (45)
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☆ हमने सत्य को प्रकट कर देनेवाली आयतें उतार दी हैं। आगे अल्लाह जिसे चाहता है सीधे मार्ग की ओर लगा देता है। (46)
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☆ वे मुनाफ़िक लोग कहते हैं कि "हम अल्लाह और रसूल पर ईमानलाए और हमने आज्ञापालन स्वीकार किया।" फिर इसके पश्चात उनमें से एक गिरोह मुँह मोड़ जाता है। ऐसे लोग मोमिन नहीं हैं। (47)
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☆ जब उन्हें अल्लाह और उसके रसूल की ओर बुलाया जाता है, ताकि वह उनके बीच फ़ैसला करे तो क्या देखते हैं कि उनमें से एक गिरोह कतरा जाता है;(48)
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☆ किन्तु यदि हक़ उन्हें मिलनेवाला हो तो उसकी ओर बड़ेआज्ञाकारी बनकर चले आएँ। (49)
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☆ क्या उनके दिलों में रोग है या वे सन्देह में पड़े हुए हैं या उनको यह डर है कि अल्लाह औऱ उसका रसूल उनके साथअन्याय करेंगे? नहीं, बल्कि बात यह है कि वही लोग अत्याचारी हैं। (50)
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☆ मोमिनों की बात तो बस यह होती है कि जब अल्लाह और उसके रसूल की ओर बुलाए जाएँ, ताकि वह उनके बीच फ़ैसला करे, तो वेकहें, "हमने सुना और आज्ञापालन किया।" और वही सफलता प्राप्त करनेवाले हैं।(51)
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☆ और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करे और अल्लाह से डरे और उसकी सीमाओंका ख़याल रखे, तो ऐसे ही लोग सफल हैं। (52)
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☆ वे अल्लाह की कड़ी-कड़ी क़समें खाते हैं कि यदि तुम उन्हें हुक्म दो तो वे अवश्य निकल खड़े होंगे। कह दो,"क़समें न खाओ। सामान्य नियम के अनुसार आज्ञापालन ही वास्तविक चीज़ है। तुम जो कुछकरते हो अल्लाह उसकी ख़बर रखता है।"(53)
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☆ कहो, "अल्लाह का आज्ञापालनकरो और उसके रसूल का कहा मानो। परन्तु यदि तुम मुँह मोड़ते हो तो उसपर तो बस वही ज़िम्मेदारी है जिसका बोझ उसपर डाला गया है, और तुम उसकेज़िम्मेदार हो जिसका बोझ तुमपर डाला गया है। और यदि तुम आज्ञा का पालन करोगे तो मार्ग पा लोगे। और रसूल पर तो बस साफ़-साफ़ (संदेश) पहुँचा देने ही की ज़िम्मेदारी है। (54)
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☆ अल्लाह ने उन लोगों से जो तुममें से ईमान लाए और उन्होने अच्छे कर्म किए, वादाकिया है कि वह उन्हें धरती में अवश्य सत्ताधिकार प्रदानकरेगा, जैसे उसने उनसे पहले के लोगों को सत्ताधिकार प्रदान किया था। औऱ उनके लिए अवश्य उनके उस धर्म को जमाव प्रदान करेगा जिसे उसने उनके लिए पसन्द किया है। और निश्चयही उनके वर्तमान भय के पश्चातउसे उनके लिए शान्ति और निश्चिन्तता में बदल देगा। वे मेरी बन्दगी करते हैं, मेरे साथ किसी चीज़ को साझी नहीं बनाते। और जो कोई इसके पश्चात इनकार करे, तो ऐसे ही लोग अवज्ञाकारी हैं। (55)
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☆ नमाज़ का आयोजन करो और ज़कात दो और रसूल की आज्ञा का पालन करो, ताकि तुमपर दया की जाए। (56)
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☆ यह कदापि न समझो कि इनकार की नीति अपनानेवाले धरती में क़ाबू से बाहर निकल जानेवाले हैं। उनका ठिकाना आग है, और वहबहुत ही बुरा ठिकाना है। (57)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! जो तुम्हारी मिल्कियत में हों और तुममें जो अभी युवावस्था को नहीं पहुँचे हैं, उनको चाहिए कि तीन समयों में तुमसेअनुमति लेकर तुम्हारे पास आएँ: प्रभात काल की नमाज़ से पहले और जब दोपहर को तुम (आरामके लिए) अपने कपड़े उतार रखते हो और रात्रि की नमाज़ के पश्चात - ये तीन समय तुम्हारे लिए परदे के हैं। इनके पश्चातन तो तुमपर कोई गुनाह है और न उनपर। वे तुम्हारे पास अधिक चक्कर लगाते हैं। तुम्हारे ही कुछ अंश परस्पर कुछ अंश के पास आकर मिलते हैं। इस प्रकारअल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को स्पष्ट करता है। अल्लाह भली-भाँति जाननेवाला, तत्वदर्शी है। (58)
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☆ और जब तुममें से बच्चे युवावस्था को पहुँच जाएँ तो उन्हें चाहिए कि अनुमति ले लिया करें जैसे उनसे पहले लोगअनुमति लेते रहे हैं। इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को स्पष्ट करता है। अल्लाह भली-भाँति जाननेवाला, तत्वदर्शी है। (59)
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☆ जो स्त्रियाँ युवावस्था सेगुज़रकर बैठ चुकी हों, जिन्हें विवाह की आशा न रह गई हो, उनपर कोई दोष नहीं कि वे अपने कपड़े (चादरें) उतारकर रख दें जबकि वे श्रृंगार का प्रदर्शन करनेवाली न हों। फिर भी वे इससे बचें तो उनके लिए अधिक अच्छा है। अल्लाह भली-भाँति सुनता, जानता है।(60)
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☆ न अंधे के लिए कोई हरज है, न लँगड़े के लिए कोई हरज है और नरोगी के लिए कोई हरज है और न तुम्हारे अपने लिए इस बात मेंकि तुम अपने घरों से खाओ या अपने बापों के घरों से या अपनी माँओ के घरों से या अपने भाइयों के घरों से या अपनी बहनों के घरों से या अपने चाचाओं के घरों से या अपनी फूफियों (बुआओं) के घरों से याअपने मामाओं के घरों से या अपनी ख़ालाओं के घरों से या जिसकी कुंजियों के मालिक हुए हो या अपने मित्र के यहाँ। इसमें तुम्हारे लिए कोई हरज नहीं कि तुम मिलकर खाओ या अलग-अलग। हाँ, अलबत्ता जब घरों में जाया करो तो अपने लोगों को सलाम किया करो, अभिवादन अल्लाह की ओर से नियतकिया हुआ, बरकतवाला और अत्यधिक पाक। इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को स्पष्ट करता है, ताकि तुम बुद्धि से काम लो।(61)
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☆ मोमिन तो बस वही हैं जो अल्लाह और उसके रसूल पर पक्काईमान रखते हैं। और जब किसी सामूहिक मामले के लिए उसके साथ हों तो चले न जाएँ जब तक कि उससे अनुमति न प्राप्त कर लें। (ऐ नबी!) जो लोग (आवश्यकतापड़ने पर) तुमसे अनुमति ले लेते हैं, वही लोग अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखते हैं, तो जब वे अपने किसी काम के लिएअनुमति चाहें तो उनमें से जिसको चाहो अनुमति दे दिया करो, और उन लोगों के लिए अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना किया करो। निस्संदेह अल्लाह बहुत क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।(62)
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☆ अपने बीच रसूल के बुलाने को तुम आपस में एक-दूसरे जैसा बुलाना न समझना। अल्लाह उन लोगों को भली-भाँति जानता है जो तुममें से ऐसे हैं कि (एक-दूसरे की) आड़ लेकर चुपके से खिसक जाते हैं। अतः उनको, जो उसके आदेश की अवहेलना करतेहैं, डरना चाहिए कि कहीं ऐसा नहो कि उनपर कोई आज़माइश आ पड़े या उनपर कोई दुखद यातना आ जाए। (63)
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☆ सुन लो! आकाशों और धरती मेंजो कुछ भी है, अल्लाह का है। वह जानता है तुम जिस (नीति) पर हो। और जिस दिन वे उसकी ओर पलटेंगे, तो जो कुछ उन्होंने किया होगा, वह उन्हें बता देगा। अल्लाह तो हर चीज़ को जानता है। (64)
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