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☆ और जब तुम धरती में यात्रा करो, तो इसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं कि नमाज़ को कुछ संक्षिप्त कर दो; यदि तुम्हेंइस बात का भय हो कि विधर्मी लोग तुम्हें सताएँगे और कष्ट पहुँचाएँगे। निश्चय ही विधर्मी लोग तुम्हारे खुले शत्रु हैं। (101)
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☆ और जब तुम उनके बीच हो और (लड़ाई की दशा में) उन्हें नमाज़ पढ़ाने के लिए खड़े हो, तो चाहिए कि उनमें से एक गरोह के लोग तुम्हारे साथ खड़े हो जाएँ और अपने हथियार साथ लिए रहें, और फिर जब वे सजदा कर लें तो उन्हें चाहिए कि वे हटकर तुम्हारे पीछे हो जाएँ और दूसरे गरोह के लोग, जिन्होंने अभी नमाज़ नहीं पढ़ी, आएँ और तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़ें, और उन्हें भी चाहिए कि वे भी अपने बचाव के सामान और हथियार लिए रहें। विधर्मी चाहते ही हैं कि तुम अपने हथियारों और सामान से असावधान हो जाओ तो वे तुम पर एक साथ टूट पड़ें। यदि वर्षा के कारण तुम्हें तकलीफ़ होती हो या तुम बीमार हो, तो तुम्हारे लिए कोई गुनाह नहीं कि अपने हथियार रख दो, फिर भी अपनी सुरक्षा का सामान लिए रहो। अल्लाह ने विधर्मियों के लिए अपमानजनक यातना तैयार कर रखी है। (102)
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☆ फिर जब तुम नमाज़ अदा कर चुको तो खड़े, बैठे या लेटे अल्लाह को याद करते रहो। फिर जब तुम्हें इतमीनान हो जाए तोविधिवत रूप से नमाज़ पढ़ो। निस्संदेह ईमानवालों पर समय की पाबन्दी के साथ नमाज़ पढनाअनिवार्य है। (103)
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☆ और उन लोगों का पीछा करने में सुस्ती न दिखाओ। यदि तुम्हें दुख पहुँचता है; तो उन्हें भी तो दुख पहुँचता है, जिस तरह तुमको दुख पहुँचता है। और तुम अल्लाह से उस चीज़ की आशा करते हो, जिस चीज़ की वे आशा नहीं करते। अल्लाह तो सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है। (104)
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☆ निस्संदेह हमने यह किताब हक़ के साथ उतारी है, ताकि अल्लाह ने जो कुछ तुम्हें दिखाया है उसके अनुसार लोगों के बीच फ़ैसला करो। और तुम विश्वासघाती लोगों की ओर से झगड़नेवाले न बनो। (105)
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☆ अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करो। निस्संदेह अल्लाह बहुत क्षमाशील, दयावान है। (106)
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☆ और तुम उन लोगों की ओर से न झगड़ो जो स्वयं अपनों के साथ विश्वासघात करते हैं। अल्लाहको ऐसा व्यक्ति प्रिय नहीं हैजो विश्वासघाती, हक़ मारनेवाला हो। (107)
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☆ वे लोगों से तो छिपते हैं, परन्तु अल्लाह से नहीं छिपते। वह तो (उस समय भी) उनके साथ होता है, जब वे रातों में उस बात की गुप्त-मंत्रणा करतेहैं जो उनकी इच्छा के विरुद्धहोती है। जो कुछ वे करते हैं, वह अल्लाह (के ज्ञान) से आच्छादित है। (108)
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☆ हाँ, ये तुम ही हो, जिन्होंने सांसारिक जीवन मेंउनकी ओर से झगड़ लिया, परन्तु क़ियामत के दिन उनकी ओर से अल्लाह से कौन झगड़ेगा या कौनउनका वकील होगा? (109)
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☆ और जो कोई बुरा कर्म कर बैठे या अपने-आप पर अत्याचार करे, फिर अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करे, तो वह अल्लाह को बड़ा क्षमाशील, दयावान पाएगा। (110)
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☆ और जो व्यक्ति गुनाह कमाए, तो वह अपने ही लिए कमाता है। अल्लाह तो सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है। (111)
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☆ और जो व्यक्ति कोई ग़लती या गुनाह की कमाई करे, फिर उसेकिसी निर्दोष पर थोप दे, तो उसने एक बड़े लांछन और खुले गुनाह का बोझ अपने ऊपर ले लिया। (112)
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☆ यदि तुम पर अल्लाह का उदार अनुग्रह और उसकी दयालुता न होती तो उनमें से कुछ लोग तो यह निश्चय कर ही चुके थे कि तुम्हें राह से भटका दें, हालाँकि वे अपने आप ही को पथभ्रष्ट कर रहे हैं, और तुम्हें वे कोई हानि नहीं पहुँचा सकते। अल्लाह ने तुमपर किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) उतारी है और उसने तुम्हें वह कुछ सिखाया है जो तुम जानते न थे। अल्लाह का तुमपर बहुत बड़ा अनुग्रह है। (113)
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☆ उनकी अधिकतर काना-फूसियों में कोई भलाई नहीं होती। हाँ, जो व्यक्ति सदक़ा देने या भलाई करने या लोगों के बीच सुधार के लिए कुछ कहे, तो उसकीबात और है। और जो कोई यह काम अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्तकरने के लिए करेगा, उसे हम निश्चय ही बड़ा प्रतिदान प्रदान करेंगे। (114)
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☆ और जो व्यक्ति, इसके पश्चात भी कि मार्गदर्शन खुलकर उसके सामने आ गया है, रसूल का विरोध करेगा और ईमानवालों के मार्ग के अतिरिक्त किसी और मार्ग पर चलेगा तो उसे हम उसी पर चलने देंगे, जिसको उसने अपनाया होगा और उसे जहन्नम में झोंक देंगे, और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है। (115)
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☆ निस्संदेह अल्लाह इस चीज़ को क्षमा नहीं करेगा कि उसके साथ किसी को शामिल किया जाए। हाँ, इससे नीचे दर्जे के अपराध को, जिसके लिए चाहेगा, क्षमा कर देगा। जो अल्लाह के साथ किसी को साझी ठहराता है, तो वह भटककर बहुत दूर जा पड़ा। (116)
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☆ वे अल्लाह से हटकर बस कुछ देवियों को पुकारते हैं और वेतो बस सरकश शैतान को पुकारते हैं; (117)
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☆ जिसपर अल्लाह की फिटकार है। उसने कहा था, "मैं तेरे बन्दों में से एख निश्चित हिस्सा लेकर रहूँगा। (118)
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☆ और उन्हें अवश्य ही भटकाऊँगा और उन्हें कामनाओं में उलझाऊँगा, और उन्हें हुक्म दूँगा तो वे चौपायों केकान फाड़ेंगे, और उन्हें मैं सुझाव दूँगा तो वे अल्लाह की संरचना में परिवर्तन करेंगे।" और जिसने अल्लाह से हटकर शैतान को अपना संरक्षक और मित्र बनाया, वह खुले घाटे में पड़ गया। (119)
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☆ वह उनसे वादा करता है और उन्हें कामनाओं में उलझाए रखता है, हालाँकि शैतान उनसे जो कुछ वादा करता है वह एक धोके के सिवा कुछ भी नहीं होता। (120)
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☆ वही लोग हैं जिनका ठिकाना जहन्नम है और वे उससे अलग होने की कोई जगह न पाएँगे। (121)
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☆ रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उन्हें हम जल्द ही ऐसे बाग़ोंमें दाख़िल करेंगे, जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी, जहाँ वे सदैव रहेंगे। अल्लाह का वादा सच्चा है, और अल्लाह से बढ़कर बात का सच्चा कौन हो सकता है? (122)
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☆ बात न तुम्हारी कामनाओं कीहै और न किताबवालों की कामनाओं की। जो भी बुराई करेगा उसे उसका फल मिलेगा और वह अल्लाह से हटकर न तो कोई मित्र पाएगा और न ही सहायक। (123)
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☆ किन्तु जो अच्छे कर्म करेगा, चाहे पुरुष हो या स्त्री, यदि वह ईमानवाला है तो ऐसे लोग जन्नत में दाख़िल होंगे। और उनका हक़ रत्ती भर भी मारा नहीं जाएगा। (124)
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☆ और दीन (धर्म) की दृष्टि से उस व्यक्ति से अच्छा कौन हो सकता है, जिसने अपने आपको अल्लाह के आगे झुका दिया और वह अत्यन्त सतकर्मी भी हो और इबराहीम के तरीक़े का अनुसरण करे, जो सबसे कटकर एक का हो गया था? अल्लाह ने इबराहीम को अपना घनिष्ठ मित्र बनाया था। (125)
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☆ जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है, वह अल्लाह हीका है और अल्लाह हर चीज़ को घेरे हुए है। (126)
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☆ लोग तुमसे स्त्रियों के विषय में पूछते हैं, कहो,"अल्लाह तुम्हें उनके विषय में हुक्म देता है और जो आयतें तुमको इस किताब में पढ़कर सुनाई जाती हैं, वे उन स्त्रियों के अनाथों के विषय में भी हैं, जिनके हक़ तुम अदानहीं करते। और चाहते हो कि तुम उनके साथ विवाह कर लो और कमज़ोर यतीम बच्चों के बारे में भी यही आदेश है। और इस विषय में भी कि तुम अनाथों के विषय में इनसाफ़ पर क़ायम रहो। जो भलाई भी तुम करोगे तो निश्चय ही, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता होगा।" (127)
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☆ यदि किसी स्त्री को अपने पति की ओर से दुर्व्यवहार या बेरुख़ी का भय हो, तो इसमें उनके लिए कोई दोष नहीं कि वे दोनों आपस में मेल-मिलाप की कोई राह निकाल लें। और मेल-मिलाप अच्छी चीज़ है। और मन तो लोभ एवं कृपणता के लिए उद्यत रहता है। परन्तु यदि तुम अच्छा व्यवहार करो और (अल्लाह का) भय रखो, तो अल्लाह को निश्चय ही जो कुछ तुम करोगे उसकी ख़बर रहेगी।(128)
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☆ और चाहे तुम कितना ही चाहो,तुममें इसकी सामर्थ्य नहीं हो सकती कि औरतों के बीच पूर्ण रूप से न्याय कर सको। तो ऐसा भी न करो कि किसी से पूर्णरूप से फिर जाओ, जिसके परिणामस्वरूप वह ऐसी हो जाए, जैसे उसका पति खो गया हो। परन्तु यदि तुम अपना व्यवहार ठीक रखो और (अल्लाह से) डरते रहो, तो निस्संदेह अल्लाह भी बड़ा क्षमाशील, दयावान है। (129)
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☆ और यदि दोनों अलग ही हो जाएँ तो अल्लाह अपनी समाई से एक को दूसरे से बेपरवाह कर देगा। अल्लाह बड़ी समाईवाला, तत्वदर्शी है। (130)
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☆ आकाशों और धरती में जो कुछ है, सब अल्लाह ही का है। तुमसेपहले जिन्हें किताब दी गई थी, उन्हें और तुम्हें भी हमने ताकीद की है कि "अल्लाह का डर रखो।" यदि तुम इनकार करते हो, तो इससे क्या होने का? आकाशों और धरती में जो कुछ है, सब अल्लाह ही का रहेगा। अल्लाह तो निस्पृह, प्रशंसनीय है। (131)
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☆ हाँ, आकाशों और धरती में जोकुछ है, अल्लाह ही का है और अल्लाह कार्यसाधक की हैसियत से काफ़ी है। (132)
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☆ ऐ लोगो! यदि वह चाहे तो तुम्हें हटा दे और तुम्हारी जगह दूसरों को ले आए। अल्लाह को इसकी पूरी सामर्थ्य है। (133)
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☆ जो कोई दुनिया का बदला चाहता है, तो अल्लाह के पास दुनिया का बदला भी है और आख़िरत का भी। अल्लाह सब कुछ सुनता, देखता है। (134)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह के लिए गवाही देते हुए इनसाफ़पर मज़बूती के साथ जमे रहो, चाहे वह स्वयं तुम्हारे अपने या माँ-बाप और नातेदारों के विरुद्ध ही क्यों न हो। कोई धनवान हो या निर्धन (जिसके विरुद्ध तुम्हें गवाही देनी पड़े) अल्लाह को उनसे (तुमसे कहीं बढ़कर) निकटता का सम्बन्ध है, तो तुम अपनी इच्छा के अनुपालन में न्याय से न हटो, क्योंकि यदि तुम हेर-फेर करोगे या कतराओगे, तो जो कुछ तुम करते हो अल्लाह को उसकी ख़बर रहेगी। (135)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह पर ईमान लाओ और उसके रसूल पर और उस किताब पर जो उसने अपने रसूल पर उतारी है और उस किताब पर भी, जिसको वह इसके पहले उतार चुका है। और जिस किसी ने भी अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों और अन्तिम दिन का इनकार किया, तो वह भटककर बहुत दूर जा पड़ा। (136)
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☆ रहे वे लोग जो ईमान लाए, फिर इनकार किया; फिर ईमान लाए,फिर इनकार किया; फिर इनकार की दशा में बढ़ते चले गए तो अल्लाह उन्हें कदापि क्षमा नहीं करेगा और न उन्हें राह दिखाएगा। (137)
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☆ मुनाफ़िक़ों (कपटाचारियों) को मंगल-सूचना दे दो कि उनके लिए दुखद यातना है; (138)
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☆ जो ईमानवालों को छोड़कर इनकार करनेवालों को अपना मित्र बनाते हैं। क्या उन्हें उनके पास प्रतिष्ठा की तलाश है? प्रतिष्ठा तो सारी की सारी अल्लाह ही के लिए है। (139)
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☆ वह 'किताब' में तुमपर यह हुक्म उतार चुका है कि जब तुम सुनो कि अल्लाह की आयतों का इनकार किया जा रहा है और उसका उपहास किया जा रहा है, तो जब तक वे किसी दूसरी बात में न लगा जाएँ, उनके साथ न बैठो, अन्यथा तुम भी उन्हीं के जैसेहोगे। निश्चय ही अल्लाह कपटाचारियों और इनकार करनेवालों - सबको जहन्नम में एकत्र करनेवाला है। (140)
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☆ जो तुम्हारे मामले में प्रतीक्षा करते हैं, यदि अल्लाह की ओर से तुम्हारी विजय़ हुई तो कहते हैं, "क्या हम तुम्हारे साथ न थे?" और यदिविधर्मियों के हाथ कुछ लगा तोकहते हैं, "क्या हमने तुम्हें घेर नहीं लिया था और तुम्हें ईमानवालों से बचाया नहीं?" अतः अल्लाह क़ियामत के दिन तुम्हारे बीच फ़ैसला कर देगा,और अल्लाह विधर्मियों को ईमानवालों के मुक़ाबले में कोई राह नहीं देगा। (141)
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☆ कपटाचारी अल्लाह के साथ धोखेबाज़ी कर रहे हैं, हालाँकि उसी ने उन्हें धोखे में डाल रखा है। जब वे नमाज़ के लिए खड़े होते हैं तो कसमसाते हुए, लोगों को दिखानेके लिए खड़े होते हैं। और अल्लाह को थोड़े ही याद करते हैं। (142)
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☆ इसी के बीच डाँवाडोल हो रहे हैं, न इन (ईमानवालों) की तरफ़ के हैं, न इन (इनकार करनेवालों) की तरफ़ के। जिसे अल्लाह ही भटका दे, उसके लिए तो तुम कोई राह नहीं पा सकते। (143)
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☆ ऐ ईमान लानेवालो! ईमानवालों से हटकर इनकार करनेवालों को अपना मित्र न बनाओ। क्या तुम चाहते हो कि अल्लाह का स्पष्ट तर्क अपने विरुद्ध जुटाओ? (144)
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☆ निस्संदेह कपटाचारी आग (जहन्नम) के सबसे निचले खंड में होंगे, और तुम कदापि उनका कोई सहायक न पाओगे। (145)
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☆ उन लोगों की बात और है जिन्होंने तौबा कर ली और अपनेको सुधार लिया और अल्लाह को मज़बूती से पकड़ लिया और अपनेदीन (धर्म) में अल्लाह ही के हो रहे। ऐसे लोग ईमानवालों केसाथ हैं और अल्लाह ईमानवालों को शीघ्र ही बड़ा प्रतिदान प्रदान करेगा। (146)
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☆ अल्लाह को तुम्हें यातना देकर क्या करना है, यदि तुम कृतज्ञता दिखलाओ और ईमान लाओ?अल्लाह गुणग्राहक, सब कुछ जाननेवाला है। (147)
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☆ अल्लाह बुरी बात खुल्लम-खुल्ला कहने को पसन्द नहीं करता, मगर उसकी बात और है जिसपर ज़ुल्म किया गया हो। अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है। (148)
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☆ यदि तुम खुले रूप में नेकी और भलाई करो या उसे छिपाओ या किसी बुराई को क्षमा कर दो, तोअल्लाह भी क्षमा करनेवाला, सामर्थ्यवान है। (149)
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☆ जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों का इनकार करते हैं और चाहते हैं कि अल्लाह और उसके रसूलों के बीच विच्छेद करें, और कहते हैं कि "हम कुछ को मानते हैं और कुछ को नहीं मानते" और इस तरह वे चाहते हैंकि बीच की कोई राह अपनाएँ; (150)
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☆ वही लोग पक्के इनकार करनेवाले हैं और हमने इनकार करनेवालों के लिए अपमानजनक यातना तैयार कर रखी है। (151)
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☆ रहे वे लोग जो अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान रखते हैंऔर उनमें से किसी को उस सम्बन्ध में पृथक नहीं करते जो उनके बीच पाया जाता है, ऐसेलोगों को अल्लाह शीघ्र ही उनके प्रतिदान प्रदान करेगा।अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है। (152)
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☆ किताबवालों की तुमसे माँग है कि तुम उनपर आकाश से कोई किताब उतार लाओ, तो वे तो मूसासे इससे भी बड़ी माँग कर चुके हैं। उन्होंने कहा था, "हमें अल्लाह को प्रत्यक्ष दिखा दो," तो उनके इस अपराध पर बिजली की कड़क ने उन्हें आ दबोचा। फिर वे बछड़े को अपना उपास्य बना बैठे, हालाँकि उनके पास खुली-खुली निशानियाँ आ चुकी थीं। फिर हमने उसे भी क्षमा कर दिया और मूसा को स्पष्ट बल एवं प्रभावप्रदान किया। (153)
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☆ और उन लोगों से वचन लेने केसाथ तूर (पहाड़) को उनपर उठा दिया और उनसे कहा, "दरवाज़े में सजदा करते हुए प्रवेश करो।" और उनसे कहा, "सब्त (सामूहिक इबादत का दिन) के विषय में ज़्यादती न करना।" और हमने उनसे बहुत-ही दृढ़ वचन लिया था। (154)
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☆ फिर उनके अपने वचन भंग करने और अल्लाह की आयतों का इनकार करने के कारण और नबियोंको नाहक़ क़त्ल करने और उनके यह कहने के कारण कि "हमारे हृदय आवरणों में सुरक्षित हैं" - नहीं, बल्कि वास्तव मेंउनके इनकार के कारण अल्लाह नेउनके दिलों पर ठप्पा लगा दियाहै। तो ये ईमान थोड़े ही लाते हैं। (155)
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☆ और उनके इनकार के कारण और मरयम के ख़िलाफ ऐसी बात कहने पर जो एक बड़ा लांछन था - (156)
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☆ और उनके इस कथन के कारण कि हमने मरयम के बेटे ईसा मसीह, अल्लाह के रसूल, को क़त्ल कर डाला - हालाँकि न तो इन्होंने उसे क़त्ल किया और न उसे सूली पर चढ़ाया, बल्कि मामला उनके लिए संदिग्ध हो गया। और जो लोग इसमें विभेद कर रहे हैं, निश्चय ही वे इस मामले में सन्देह में थे। अटकल पर चलने के अतिरिक्त उनके पास कोई ज्ञान न था। निश्चय ही उन्होंने उसे (ईसा को) क़त्ल नहीं किया, (157)
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☆ बल्कि उसे अल्लाह ने अपनी ओर उठा लिया। और अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है। (158)
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☆ किताबवालों में से कोई ऐसान होगा, जो उसकी मृत्यु से पहले उसपर ईमान न ले आए। वह क़ियामत के दिन उनपर गवाह होगा। (159)
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☆ सारांश यह कि यहूदियों के अत्याचार के कारण हमने बहुत-सी अच्छी पाक चीज़ें उनपर हराम कर दीं, जो उनके लिएहलाल थीं और उनके प्रायः अल्लाह के मार्ग से रोकने के कारण; (160)
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☆ और उनके ब्याज लेने के कारण, जबकि उन्हें इससे रोका गया था। और उनके अवैध रूप से लोगों के माल खाने के कारण ऐसा किया गया और हमने उनमें से जिन लोगों ने इनकार किया उनके लिए दुखद यातना तैयार कररखी है। (161)
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☆ परन्तु उनमें से जो लोग ज्ञान में पक्के हैं और ईमानवाले हैं, वे उस पर ईमान रखते हैं जो तुम्हारी ओर उतारा गया है और जो तुमसे पहले उतारा गया था, और जो विशेष रूप से नमाज़ क़ायम करते हैं, ज़कात देते और अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमानरखते हैं। यही लोग हैं जिन्हें हम शीघ्र ही बड़ा प्रतिदान प्रदान करेंगे। (162)
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☆ हमने तुम्हारी ओर उसी प्रकार वह्य की है जिस प्रकारनूह और उसके बाद के नबियों की ओर वह्य की। और हमने इबराहीम, इसमाईल, इसहाक़ और याक़ूब और उसकी सन्तान और ईसा और अय्यूबऔर यूनुस और हारून और सुलैमानकी ओर भी वह्य की। और हमने दाऊद को ज़बूर प्रदान किया। (163)
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☆ और कितने ही रसूल हुए जिनका वृतान्त पहले हम तुमसे बयान कर चुके हैं और कितने ही ऐसे रसूल हुए जिनका वृतान्त हमने तुमसे बयान नहीं किया। और मूसा से अल्लाह ने बातचीत की, जिस प्रकार बातचीत की जाती है। (164)
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☆ रसूल शुभ समाचार देनेवाले और सचेत करनेवाले बनाकर भेजे गए हैं, ताकि रसूलों के पश्चात लोगों के पास अल्लाह के मुक़ाबले में (अपने निर्दोष होने का) कोई तर्क न रहे। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।(165)
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☆ परन्तु अल्लाह गवाही देता है कि उसके द्वारा जो उसने तुम्हारी ओर उतारा है कि उसे उसने अपने ज्ञान के साथ उताराहै और फ़रिश्ते भी गवाही देतेहैं, यद्यपि अल्लाह का गवाह होना ही काफ़ी है। (166)
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☆ निश्चय ही, जिन लोगों ने इनकार किया और अल्लाह के मार्ग से रोका, वे भटककर बहुत दूर जा पड़े। (167)
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☆ जिन लोगों ने इनकार किया और ज़ुल्म पर उतर आए, उन्हें अल्लाह कदापि क्षमा नहीं करेगा और न उन्हें कोई मार्ग दिखाएगा। (168)
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☆ सिवाय जहन्नम के मार्ग के, जिसमें वे सदैव पड़े रहेंगे। और यह अल्लाह के लिए बहुत-ही सहज बात है। (169)
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☆ ऐ लोगो! रसूल तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से सत्य लेकर आ गया है। अतः तुम उस भलाई को मानो जो तुम्हारे लिएजुटाई गई है। और यदि तुम इनकार करते हो तो आकाशों और धरती में जो कुछ है, वह अल्लाहही का है। और अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है। (170)
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☆ ऐ किताबवालो! अपने धर्म मेंहद से आगे न बढ़ो और अल्लाह सेजोड़कर सत्य के अतिरिक्त कोई बात न कहो। मरयम का बेटा मसीह-ईसा इसके अतिरिक्त कुछ नहीं कि अल्लाह का रसूल है और उसका एक 'कलिमा' है, जिसे उसने मरयम की ओर भेजा था। और उसकी ओर से एक रूह है। तो तुम अल्लाह पर और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और "तीन" न कहो - बाज़आ जाओ! यह तुम्हारे लिए अच्छा है - अल्लाह तो केवल अकेला पूज्य है। यह उसकी महानता के प्रतिकूल है कि उसका कोई बेटाहो। आकाशों और धरती में जो कुछ है, उसी का है। और अल्लाह कार्यसाधक की हैसियत से काफ़ी है।(171)
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☆ मसीह ने कदापि अपने लिए बुरा नहीं समझा कि वह अल्लाह का बन्दा हो और न निकटवर्ती फ़रिश्तों ने ही (इसे बुरा समझा)। और जो कोई अल्लाह की बन्दगी को अपने लिए बुरा समझेगा और घमंड करेगा, तो वह (अल्लाह) उन सभी लोगों को अपनेपास इकट्ठा करके रहेगा। (172)
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☆ अतः जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, तो अल्लाह उन्हें उनका पूरा-पूरा बदला देगा और अपने उदार अनुग्रह से उन्हें और अधिक प्रदान करेगा। और जिन लोगों ने बन्दगी को बुरा समझाऔर घमंड किया, तो उन्हें वह दुखद यातना देगा। और वे अल्लाह से बच सकने के लिए न अपना कोई निकट का समर्थक पाएँगे और न ही कोई सहायक। (173)
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☆ ऐ लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से खुला प्रमाण आ चुका है और हमने तुम्हारी ओर एक स्पष्ट प्रकाश उतारा है। (174)
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☆ तो रहे वे लोग जो अल्लाह परईमान लाए और उसे मज़बूती के साथ पकड़े रहे, उन्हें वह शीघ्र ही अपनी दयालुता और अपने उदार अनुग्रह के क्षेत्र में दाख़िल करेगा और उन्हें अपनी ओर का सीधा मार्गदिखा देगा। (175)
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☆ वे तुमसे आदेश मालूम करना चाहते हैं। कह दो, "अल्लाह तुम्हें ऐसे व्यक्ति के विषय में, जिसका कोई वारिस न हो, आदेश देता है - यदि किसी पुरुषकी मृत्यु हो जाए जिसकी कोई सन्तान न हो, परन्तु उसकी एक बहन हो, तो जो कुछ उसने छोड़ा है उसका आधा हिस्सा उस बहन का होगा। और भाई बहन का वारिस होगा, यदि उस (बहन) की कोई सन्तान न हो। और यदि (वारिस) दो बहनें हों, तो जो कुछ उसने छोड़ा है, उसमें से उनके लिए दो-तिहाई होगा। और यदि कई भाई-बहन (वारिस) हों तो एक पुरुष का हिस्सा दो स्त्रियों के बराबर होगा।" अल्लाह तुम्हारे लिए आदेशों को स्पष्ट करता है, ताकि तुम नभटको। और अल्लाह को हर चीज़ का पूरा ज्ञान है। (176)
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