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एक आदमी के पास एक गद्धा और एक घोरा था,
वे सरक पर चले जा रहे थे।
गद्दे ने घोरे से कहा मुझपर बहोत ज्यादा बोझ लदा हुआ है, मैं इसे नहीं लेजा पाउंगा थोड़ा सा तु ले-ले।
घोरे ने उसकी बात नहीं मानी बहोत ज्यादा बोझ के कारण गद्धा गीरकर मर गया।
मालिक ने गद्धे के पीठ का बोझ उतार कर घोरे पर रख दिया और गद्धे का खाल छीलकर उस खाल को भी घोरे के उपर लाद दीया तब घोड़ा बहोत दुखी होकर कहने लगा
ओह मैं बेचारा किस्मत का मारा!
मैंने गद्दे का थोड़ा सा बोझ लेना अपनी पीठ पर लेने से इनकार करदीया...

छुपी होती है
लफ्जों में बातें दिल की...
लोग शायरी समझ के
बस मुस्कुरा देते हैं...
Mazhar ...✍
...
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