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19. मरयम    [ कुल आयतें - 98 ]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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●═══════════════════✒
   काफ़॰ हा॰ या॰ ऐन॰ साद॰ (1)
_______________________________
    वर्णन है तेरे रब की दयालुता का, जो उसने अपने बन्दे ज़करीया पर दर्शाई, (2)
_______________________________
    जबकि उसने अपने रब को चुपके से पुकारा। (3)
_______________________________
    उसने कहा, "मेरे रब! मेरी हड्डियाँ कमज़ोर हो गईं और सिर बुढ़ापे से भड़क उठा। और मेरे रब! तुझे पुकारकर मैं कभी बेनसीब नहीं रहा। (4)
_______________________________
    मुझे अपने पीछे अपने भाई-बन्धुओं की ओर से भय है औरमेरी पत्नी बाँझ है। अतः तू मुझे अपने पास से एक उत्तराधिकारी प्रदान कर, (5)
_______________________________
    जो मेरा भी उत्तराधिकारी हो और याक़ूब के वशंज का भी उत्तराधिकारी हो। और उसे मेरे रब! वांछनीय बना।" (6)
_______________________________
    (उत्तर मिला,) "ऐ ज़करीया! हम तुझे एक लड़के की शुभ सूचना देते हैं, जिसका नाम यह्या होगा। हमने उससे पहले किसी को उसके जैसा नहीं बनाया।" (7)
_______________________________
    उसने कहा, "मेरे रब! मेरे लड़का कहाँ से होगा, जबकि मेरी पत्नी बाँझ है और मैं बुढ़ापे की अन्तिम अवस्था को पहुँच चुका हूँ?" (8)
_______________________________
    कहा, "ऐसा ही होगा। तेरे रबने कहा है कि यह मेरे लिए सरल है। इससे पहले मैं तुझे पैदा कर चुका हूँ, जबकि तू कुछ भी न था।" (9)
_______________________________
    उसने कहा, "मेरे रब! मेरे लिए कोई निशानी निश्चित कर दे।" कहा, "तेरी निशानी यह है कि तू भला-चंगा रहकर भी तीन रात (और दिन) लोगों से बात न करे।" (10)
_______________________________
    अतः वह मेहराब से निकलकर अपने लोगों के पास आया और उनसे संकेतों में कहा,"प्रातः काल और सन्ध्या समय तसबीह करते रहो।" (11)
_______________________________
    "ऐ यह्या! किताब को मज़बूत थाम ले।" हमने उसे बचपन ही मेंनिर्णय-शक्ति प्रदान की, (12)
_______________________________
    और अपने पास से नरमी और शौक़ और आत्मविश्वास। और वह बड़ा डरनेवाला था। (13)
_______________________________
    और अपने माँ-बाप का हक़ पहचाननेवाला था। और वह सरकश अवज्ञाकारी न था । (14)
_______________________________
    "सलाम उस पर, जिस दिन वह पैदा हुआ और जिस दिन उसकी मृत्यु हो और जिस दिन वह जीवित करके उठाया जाए!" (15)
_______________________________
    और इस किताब में मरयम की चर्चा करो, जबकि वह अपने घरवालों से अलग होकर एक पूर्वी स्थान पर चली गई। (16)
_______________________________
   फिर उसने उनसे परदा कर लिया। तब हमने उसके पास अपनी रूह (फ़रिश्ते) को भेजा और वह उसके सामने एक पूर्ण मनुष्य के रूप में प्रकट हुआ। (17)
_______________________________
    वह बोल उठी, "मैं तुझसे बचने के लिए रहमान की पनाह माँगती हूँ; यदि तू (अल्लाह का) डर रखनेवाला है (तो यहाँ से हट जाएगा) ।" (18)
_______________________________
    उसने कहा, "मैं तो केवल तेरे रब का भेजा हुआ हूँ, ताकितुझे नेकी और भलाई से बढ़ा हुआ लड़का दूँ।" (19)
_______________________________
    वह बोली, "मेरे कहाँ से लड़का होगा, जबकि मुझे किसी आदमी ने छुआ तक नहीं और न मैं कोई बदचलन हूँ?" (20)
_______________________________
    उसने कहा, "ऐसा ही होगा। रबने कहा है कि यह मेरे लिए सहज है। और ऐसा इसलिए होगा (ताकि हम तुझे) और ताकि हम उसे लोगोंके लिए एक निशानी बनाएँ और अपनी ओर से एक दयालुता। यह तो एक ऐसी बात है जिसका निर्णय हो चुका है।" (21)
_______________________________
    फिर उसे उस (बच्चे) का गर्भ रह गया और वह उसे लिए हुए एक दूर के स्थान पर अलग चली गई। (22)
_______________________________
    अन्ततः प्रसव पीड़ा उसे एकखजूर के तने के पास ले आई। वह कहने लगी, "क्या ही अच्छा होताकि मैं इससे पहले ही मर जाती और भूली-बिसरी हो गई होती!" (23)
_______________________________
    उस समय उसे उसके नीचे से पुकारा, "शोकाकुल न हो। तेरे रब ने तेरे नीचे एक स्रोत प्रवाहित कर रखा है। (24)
_______________________________
    तू खजूर के उस वृक्ष के तनेको पकड़कर अपनी ओर हिला। तेरेऊपर ताज़ा पकी-पकी खजूरें टपकपड़ेंगी। (25)
_______________________________
   अतः तू उसे खा और पी और आँखें ठंडी कर। फिर यदि तू किसी आदमी को देखे तो कह देना,मैंने तो रहमान के लिए रोज़े की मन्नत मानी है। इसलिए मैं आज किसी मनुष्य से न बोलूँगी।" (26)
_______________________________
    फिर वह उस बच्चे को लिए हुएअपनी क़ौम के लोगों के पास आई। वे बोले, "ऐ मरयम, तूने तो बड़ा ही आश्चर्य का काम कर डाला! (27)
_______________________________
    हे हारून की बहन! न तो तेरा बाप ही कोई बुरा आदमी था और न तेरी माँ ही बदचलन थी।" (28)
_______________________________
    तब उसने उस (बच्चे) की ओर संकेत किया। वे कहने लगे, "हम उससे कैसे बात करें जो पालने में पड़ा हुआ एक बच्चा है?" (29)
_______________________________
    उसने कहा, "मैं अल्लाह का बन्दा हूँ। उसने मुझे किताब दी और मुझे नबी बनाया (30)
_______________________________
    और मुझे बरकतवाला किया जहाँ भी मैं रहूँ, और मुझे नमाज़ और ज़कात की ताकीद की, जब तक कि मैं जीवित रहूँ। (31)
_______________________________
  और अपनी माँ का हक़ अदा करनेवाला बनाया। और उसने मुझे सरकश और बेनसीब नहीं बनाया। (32)
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    सलाम है मुझपर जिस दिन कि मैं पैदा हुआ और जिस दिन कि मैं मरूँ और जिस दिन कि जीवित करके उठाया जाऊँ!" (33)
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   सच्ची और पक्की बात की दृष्टि से यह है कि मरयम का बेटा ईसा, जिसके विषय में वे सन्देह में पड़े हुए हैं। (34)
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  अल्लाह ऐसा नहीं कि वह किसी को अपना बेटा बनाए। महानऔर उच्च है वह! जब वह किसी चीज़ का फ़ैसला करता है तो बस उसे कह देता है, "हो जा!" तो वह हो जाती है। - (35)
_______________________________
   "और निस्संदेह अल्लाह मेरा रब भी है और तुम्हारा रब भी। अतः तुम उसी की बन्दगी करो यही सीधा मार्ग है।" (36)
_______________________________
    किन्तु उनमें कितने ही गरोहों ने पारस्परिक वैमनस्यके कारण विभेद किया, तो जिन लोगों ने इनकार किया उनके लिएबड़ी तबाही है एक बड़े दिन की उपस्थिति से। (37)
_______________________________
    भली-भाँति सुननेवाले और भली-भाँति देखनेवाले होंगे, जिस दिन वे हमारे सामने आएँगे! किन्तु आज ये ज़ालिम खुली गुमराही में पड़े हुए हैं। (38)
_______________________________
    उन्हें पश्चात्ताप के दिन से डराओ, जबकि मामले का फ़ैसला कर दिया जाएगा, और उनका हाल यह है कि वे ग़फ़लत में पड़े हुए हैं और वे ईमान नहीं ला रहे हैं। (39)
_______________________________
   धरती और जो भी उसके ऊपर है उसके वारिस हम ही रह जाएँगे और हमारी ही ओर उन्हें लौटना होगा। (40)
_______________________________
    और इस किताब में इबराहीम की चर्चा करो। निस्संदेह वह एक सत्यवान नबी था। (41)
_______________________________
    जबकि उसने अपने बाप से कहा,"ऐ मेरे बाप! आप उस चीज़ को क्यों पूजते हो, जो न सुने और न देखे और न आपके कुछ काम आए? (42)
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    ऐ मेरे बाप! मेरे पास ज्ञानआ गया है जो आपके पास नहीं आया। अतः आप मेरा अनुसरण करें, मैं आपको सीधा मार्ग दिखाऊँगा। (43)
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    ऐ मेरे बाप! शैतान की बन्दगी न कीजिए। शैतान तो रहमान का अवज्ञाकारी है। (44)
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   ऐ मेरे बाप! मैं डरता हूँ कि कहीं आपको रहमान की कोई यातना न आ पकड़े और आप शैतान के साथी होकर रह जाएँ।" (45)
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    उसने कहा, "ऐ इबराहीम! क्यातू मेरे उपास्यों से फिर गया है? यदि तू बाज़ न आया तो मैं तुझपर पथराव कर दूँगा। तू अलगहो जा मुझसे मुद्दत के लिए!" (46)
_______________________________
  कहा, "सलाम है आपको! मैं आपके लिए अपने रब से क्षमा की प्रार्थना करूँगा। वह तो मुझपर बहुत मेहरबान है।(47)
_______________________________
    मैं आप लोगों को छोड़ता हूँ और उनको भी जिन्हें अल्लाह से हटकर आप लोग पुकाराकरते हैं। मैं तो अपने रब को पुकारूँगा। आशा है कि मैं अपने रब को पुकारकर बेनसीब नहीं रहूँगा।" (48)
_______________________________
    फिर जब वह उन लोगों से और जिन्हें वे अल्लाह के सिवा पूजते थे उनसे अलग हो गया, तो हमने उसे इसहाक़ और याक़ूब प्रदान किए और हर एक को हमने नबी बनाया। (49)
_______________________________
    और उन्हें अपनी दयालुता सेहिस्सा दिया। और उन्हें एक सच्ची उच्च ख्याति प्रदान की। (50)
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  और इस किताब में मूसा की चर्चा करो। निस्संदेह वह चुना हुआ था और एक रसूल, नबी था। (51)
_______________________________
    हमने उसे 'तूर' के मुबारक छोर से पुकारा और रहस्य की बातें करने के लिए हमने उसे समीप किया। (52)
_______________________________
    और अपनी दयालुता से उसके भाई हारून को नबी बनाकर उसे दिया। (53)
_______________________________
    और इस किताब में इसमाईल की चर्चा करो। निस्संदेह वह वादे का सच्चा और वह एक रसूल, नबी था। (54)
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  और अपने लोगों को नमाज़ और ज़कात का हुक्म देता था। और वह अपने रब के यहाँ प्रीतिकर व्यक्ति था। (55)
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   और इस किताब में इदरीस की भी चर्चा करो। वह अत्यन्त सत्यवान, एक नबी था। (56)
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    हमने उसे उच्च स्थान पर उठाया था। (57)
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    ये वे पैग़म्बर हैं जो अल्लाह के कृपापात्र हुए, आदमकी सन्तान में से और उन लोगों के वंशज में से जिनको हमने नूह के साथ सवार किया, और इबराहीम और इसराईल के वंशज में से और उनमें से जिनको हमने सीधा मार्ग दिखाया और चुन लिया। जब उन्हें रहमान कीआयतें सुनाई जातीं तो वे सजदाकरते और रोते हुए गिर पड़ते थे। (58)
_______________________________
    फिर उनके पश्चात ऐसे बुरे लोग उनके उत्तराधिकारी हुए, जिन्होंने नमाज़ को गँवाया और मन की इच्छाओं के पीछे पड़े। अतः जल्द ही वे गुमराही(के परिणाम) से दोचार होंगे। (59)
_______________________________
    किन्तु जो तौबा करे और ईमान लाए और अच्छा कर्म करे, तो ऐसे लोग जन्नत में प्रवेश करेंगे। उनपर कुछ भी ज़ुल्म नहोगा। (60)
_______________________________
   अदन (रहने) के बाग़ जिनका रहमान ने अपने बन्दों से परोक्ष में होते हुए वादा किया है। निश्चय ही उसके वादेपर उपस्थित होना है। - (61)
_______________________________
    वहाँ वे 'सलाम' के सिवा कोई व्यर्थ बात नहीं सुनेंगे। उनकी रोज़ी उन्हें वहाँ प्रातः और सन्ध्या समय प्राप्त होती रहेगी। (62)
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    यह है वह जन्नत जिसका वारिस हम अपने बन्दों में से हर उस व्यक्ति को बनाएँगे, जो डर रखनेवाला हो। (63)
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    हम तुम्हारे रब की आज्ञा के बिना नहीं उतरते। जो कुछ हमारे आगे है और जो कुछ हमारे पीछे है और जो कुछ इसके मध्य है सब उसी का है, और तुम्हारा रब भूलनेवाला नहीं है। (64)
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    आकाशों और धरती का रब है औरउसका भी जो इन दोनों के मध्य है। अतः तुम उसी की बन्दगी करो और उसकी बन्दगी पर जमे रहो। क्या तुम्हारे ज्ञान में उस जैसा कोई है? (65)
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    और मनुष्य कहता है, "क्या जब मैं मर गया तो फिर जीवित करके निकाला जाऊँगा?" (66)
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    क्या मनुष्य याद नहीं करताकि हम उसे इससे पहले पैदा कर चुके हैं, जबकि वह कुछ भी न था?(67)
_______________________________
    अतः तुम्हारे रब की क़सम! हम अवश्य उन्हें और शैतानों को भी इकट्ठा करेंगे। फिर हम उन्हें जहन्नम के चतुर्दिक इस दशा में ला उपस्थित करेंगेकि वे घुटनों के बल झुके होंगे। (68)
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    फिर प्रत्येक गरोह में से हम अवश्य ही उसे छाँटकर अलग करेंगे जो उनमें से रहमान (कृपाशील प्रभु) के मुक़ाबले में सबसे बढ़कर सरकश रहा होगा। (69)
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    फिर हम उन्हें भली-भाँति जानते हैं जो उसमें झोंके जाने के सर्वाधिक योग्य हैं। (70)
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    तुममें से प्रत्येक को उसपर पहुँचना ही है। यह एक निश्चय पाई हुई बात है, जिसे पूरा करना तेरे रब के ज़िम्मेहै। (71)
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    फिर हम डर रखनेवालों को बचा लेंगे और ज़ालिमों को उसमें घुटनों के बल छोड़ देंगे। (72)
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    जब उन्हें हमारी खुली हुई आयतें सुनाई जाती हैं तो जिन लोगों ने कुफ़्र किया, वे ईमान लानेवालों से कहते हैं,"दोनों गरोहों में स्थान की दृष्टि से कौन उत्तम है और कौन मजलिस की दृष्टि से अधिक अच्छा है?" (73)
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    हालाँकि उनसे पहले हम कितनी ही नसलों को विनष्ट कर चुके हैं जो सामग्री और बाह्यभव्यता में इनसे कहीं अच्छी थीं! (74)
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    कह दो, "जो गुमराही में पड़ा हुआ है उसके प्रति तो यही चाहिए कि रहमान उसकी रस्सी ख़ूब ढीली छोड़ दे, यहाँ तक कि जब ऐसे लोग उस चीज़को देख लेंगे जिसका उनसे वादाकिया जाता है - चाहे यातना हो या क़ियामत की घड़ी - तो वे उस समय जान लेंगे कि अपने स्थान की दृष्टि से कौन निकृष्ट और जत्थे की दृष्टि से अधिक कमज़ोर है।" (75)
_______________________________
    और जिन लोगों ने मार्ग पा लिया है, अल्लाह उनके मार्गदर्शन में अभिवृद्धि प्रदान करता है और शेष रहनेवाली नेकियाँ ही तुम्हारे रब के यहाँ बदले और अन्तिम परिणाम की दृष्टि से उत्तम हैं। (76)
_______________________________
   फिर क्या तुमने उस व्यक्तिको देखा जिसने हमारी आयतों काइनकार किया और कहा, "मुझे तो अवश्य ही धन और सन्तान मिलने को है?" (77)
_______________________________
    क्या उसने परोक्ष को झाँककर देख लिया है, या उसने रहमान से कोई वचन ले रखा है? (78)
_______________________________
    कदापि नहीं, हम लिखेंगे जो कुछ वह कहता है और उसके लिए हमयातना को दीर्घ करते चले जाएँगे। (79)
_______________________________
   और जो कुछ वह बताता है उसकेवारिस हम होंगे और वह अकेला ही हमारे पास आएगा। (80)
_______________________________
    और उन्होंने अल्लाह से इतरअपने कुछ पूज्य-प्रभु बना लिएहैं, ताकि वे उनके लिए शक्ति का कारण बनें। (81)
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   कुछ नहीं, ये उनकी बन्दगी का इनकार करेंगे और उनके विरोधी बन जाएँगे। - (82)
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    क्या तुमने देखा नहीं कि हमने शैतानों को छोड़ रखा है, जो इनकार करनेवालों पर नियुक्त हैं? (83)
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    अतः तुम उनके लिए जल्दी न करो। हम तो बस उनके लिए (उनकी बातें) गिन रहे हैं। (84)
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    याद करो जिस दिन हम डर रखनेवालों को सम्मानित गरोह के रूप में रहमान के पास इकट्ठा करेंगे। (85)
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    और अपराधियों को जहन्नम केघाट की ओर प्यासा हाँक ले जाएँगे। (86)
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    उन्हें सिफ़ारिश का अधिकार प्राप्त न होगा। सिवाय उसके, जिसने रहमान के यहाँ से अनुमोदन प्राप्त कर लिया हो। (87)
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    वे कहते हैं, "रहमान ने किसी को अपना बेटा बनाया है।" (88)
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    अत्यन्त भारी बात है, जो तुम घड़ लाए हो! (89)
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    निकट है कि आकाश इससे फट पड़े और धरती टुकड़े-टुकड़े हो जाए और पहाड़ धमाके के साथ गिर पड़ें, (90)
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    इस बात पर कि उन्होंने रहमान के लिए बेटा होने का दावा किया! (91)
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    जबकि रहमान की प्रतिष्ठा के प्रतिकूल है कि वह किसी को अपना बेटा बनाए। (92)
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    आकाशों और धरती में जो कोई भी है एक बन्दे के रूप में रहमान के पास आनेवाला है। (93)
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  उसने उनका आकलन कर रखा है और उन्हें अच्छी तरह गिन रखा है। (94)
_______________________________
    और उनमें से प्रत्येक क़ियामत के दिन उस अकेले (रहमान) के सामने उपस्थित होगा। (95)
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    निस्संदेह जो लोग ईमान लाएऔर उन्होंने अच्छे कर्म किए शीघ्र ही रहमान उनके लिए प्रेम उत्पन्न कर देगा । (96)
_______________________________
    अतः हमने इस वाणी को तुम्हारी भाषा में इसी लिए सहज एवं उपयुक्त बनाया है, ताकि तुम इसके द्वारा डर रखनेवालों को शुभ सूचना दो औरउन झगड़ालू लोगों को इसके द्वारा डराओ । (97)
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उनसे पहले कितनी ही नसलों को हम विनष्ट कर चुके हैं। क्या उनमें किसी की आहट तुम पाते हो या उनकी कोई भनक सुनते हो? (98)
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1. अल-फ़ातिहा [ कुल आयतें - 7 ]

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<TITLE> <FONT SIZE = "1">MY BLOOD BROUP <FONT></BR>
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<TITLE> MY BLOOD BROUP
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<MARQUEE BRHAVIOR="ALTERNATE" DIRECTION="UP"HE5GHT="100" WIDTH="500" BGCOLOR = "RED">
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सुरु अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
</u><Bx/FONT> </MARQUEE>
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●═══════════════════✒
सारी प्रशंसाएँ अल्लाह ही के लिए हैं, जो सारे संसार का रब है।(1)
_____________________________
»»  बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है। (2)
_____________________________
»»  बदला दिए जाने के दिन का मालिक है।(3)
_____________________________
»»   हम तेरी ही बन्दगी करते हैं और तुझी से मदद माँगते हैं। (4)
_____________________________
»»   हमें सीधे मार्ग पर चला। (5)
_____________________________
»»   उन लोगों के मार्ग पर जो तेरे कृपापात्र हुए, (6)
_____________________________
»»   जो न प्रकोप के भागी हुए औरन पथभ्रष्ट। (7)
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111. अल-लहब [ कुल आयतें - 5]

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सुरु अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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टूट गए अबू लहब के दोनों हाथ और वह स्वयं भी विनष्ट हो गया! (1)
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  न उसका माल उसके काम आया औरन वह कुछ जो उसने कमाया। (2)
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वह शीघ्र ही प्रज्वलित भड़कती आग में पड़ेगा, (3)
_______________________________
और उसकी स्त्री भी ईंधन लादनेवाली, (4)
_______________________________
उसकी गरदन में खजूर के रेशों की बटी हुई रस्सी पड़ी है। (5)
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2.1 अल-बक़रा    [ कुल आयतें - 286 ]

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सुरु अल्लाह के नाम से
जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
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    अलिफ़॰ लाम॰ मीम॰ (1)
_______________________________
   वह किताब यही है, (जिसका वादा किया गया था) जिसमें कोई सन्देह नहीं, मार्गदर्शन है डर रखनेवालों के लिए,(2)
_______________________________
   जो अनदेखे ईमान लाते हैं, नमाज़ क़ायम करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से ख़र्च करते हैं;(3)
_______________________________
  और जो उस पर ईमान लाते हैं जो तुम पर उतरा और जो तुमसे पहले अवतरित हुआ है और आख़िरतपर वही लोग विश्वास रखते हैं;(4)
_______________________________
   वही लोग हैं जो अपने रब के सीधे मार्ग पर हैं और वही सफलता प्राप्त करनेवाले हैं । (5)
_______________________________
    जिन लोगों ने कुफ़्र (इनकार) किया उनके लिए बराबर रहा, चाहे तुमने उन्हें सचेत किया हो या सचेत न किया हो, वे ईमान नहीं ला रहे हैं । (6)
_______________________________
    अल्लाह ने उनके दिलों पर और कानों पर मुहर लगा दी है औरउनकी आँखों पर परदा पड़ा है, और उनके लिए बड़ी यातना है।(7)
_______________________________
  कुछ लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि हम अल्लाह और अन्तिम दिन (आख़िरत) पर ईमान रखते हैं, हालाँकि वे ईमान नहीं रखते। (8)
_______________________________
    वे अल्लाह और ईमानवालों केसाथ धोखेबाज़ी कर रहे हैं, हालाँकि धोखा वे स्वयं अपने-आपको ही दे रहे हैं, परन्तु वे इसको महसूस नहीं करते। (9)
_______________________________
    उनके दिलों में रोग था तो अल्लाह ने उनके रोग को और बढ़ा दिया और उनके झूठ बोलते रहने के कारण उनके लिए एक दुखद यातना है। (10)
_______________________________
    और जब उनसे कहा जाता है कि"ज़मीन में बिगाड़ पैदा न करो", तो कहते हैं, "हम तो केवलसुधारक हैं।" (11)
_______________________________
    जान लो! वही हैं जो बिगाड़ पैदा करते हैं, परन्तु उन्हेंएहसास नहीं होता। (12)
_______________________________
    और जब उनसे कहा जाता है,"ईमान लाओ जैसे लोग ईमान लाए हैं", कहते हैं, "क्या हम ईमान लाएँ जैसे कम समझ लोग ईमान लाए हैं?" जान लो, वही कम समझ हैं परन्तु जानते नहीं। (13)
_______________________________
    और जब ईमान लानेवालों से मिलते हैं तो कहते हैं, "हम भी ईमान लाए हैं," और जब एकान्त में अपने शैतानों के पास पहुँचते हैं, तो कहते हैं, "हम तो तुम्हारे साथ हैं और यह तो हम केवल परिहास कर रहे हैं।" (14)
_______________________________
    अल्लाह उनके साथ परिहास कररहा है और उन्हें उनकी सरकशी में ढील दिए जाता है, वे भटकतेफिर रहे हैं। (15)
_______________________________
    यही वे लोग हैं, जिन्होंने मार्गदर्शन के बदले में गुमराही मोल ली, किन्तु उनके इस व्यापार ने न कोई लाभ पहुँचाया, और न ही वे सीधा मार्ग पा सके। (16)
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    उनकी मिसाल ऐसी है जैसे किसी व्यक्ति ने आग जलाई, फिर जब उसने वातावरण को प्रकाशित कर दिया, तो अल्लाह ने उनका प्रकाश ही छीन लिया और उन्हेंअँधेरों में छोड़ दिया जिससे उन्हें कुछ सुझाई नहीं दे रहाहै। (17)
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    वे बहरे हैं, गूँगे हैं, अन्धे हैं, अब वे लौटने के नहीं। (18)
_______________________________
    या (उनकी मिसाल ऐसी है) जैसे आकाश से वर्षा हो रही हो जिसके साथ अँधेरे हों और गरज और चमक भी हो, वे बिजली की कड़क के कारण मृत्यु के भय से अपने कानों में उँगलियाँ दे ले रहे हों - और अल्लाह ने तो इनकार करनेवालों को घेर रखा है।(19)
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    मानो शीघ्र ही बिजली उनकी आँखों की रौशनी उचक लेने को है; जब भी वह उन पर चमक जाती हो, उसमें वे चल पड़ते हों और जब उनपर अँधेरा छा जाता हो तो खड़े हो जाते हों; अगर अल्लाह चाहता तो उनकी सुनने और देखनेकी शक्ति बिलकुल ही छीन लेता।निस्सन्देह, अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है। (20)
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    ऐ लोगो! बन्दगी करो अपने रबकी जिसने तुम्हें और तुमसे पहले के लोगों को पैदा किया, ताकि तुम बच सको। (21)
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   वही है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन को फ़र्श और आकाश को छत बनाया, और आकाश से पानी उतारा,फिर उसके द्वारा हर प्रकार कीपैदावार और फल तुम्हारी रोज़ी के लिए पैदा किए, अतः जब तुम जानते हो तो अल्लाह के समकक्षन ठहराओ।(22)
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    और अगर उसके विषय में, जो हमने अपने बन्दे पर उतारा है, तुम किसी सन्देह में हो तो उस जैसी कोई सूरा ले आओ और अल्लाह से हटकर अपने सहायकों को बुला लो, जिनके आ मौजूद होने पर तुम्हें विश्वास है, यदि तुम सच्चे हो। (23)
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    फिर अगर तुम ऐसा न कर सको और तुम कदापि नहीं कर सकते, तोडरो उस आग से जिसका ईंधन इनसान और पत्थर हैं, जो इनकार करनेवालों के लिए तैयार की गईहै। (24)
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    जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उन्हें शुभ सूचना दे दो कि उनके लिए ऐसे बाग़ हैं जिनके नीचे नहरें बह रहीं होंगी; जब भी उनमें से कोई फल उन्हें रोज़ी के रूप में मिलेगा, तो कहेंगे, "यह तो वही है जो पहले हमें मिला था," और उन्हें मिलता-जुलता ही (फल) मिलेगा; उनके लिए वहाँ पाक-साफ़ जोड़े होंगे, और वे वहाँ सदैव रहेंगे। (25)
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    निस्संदेह अल्लाह नहीं शरमाता कि वह कोई मिसाल पेश करे चाहे वह हो मच्छर की, बल्कि उससे भी बढ़कर किसी तुच्छ चीज़ की। फिर जो ईमान लाए हैं वे तो जानते हैं कि वहउनके रब की ओर से सत्य है; रहे इनकार करनेवाले तो वे कहते हैं, "इस मिसाल से अल्लाह का अभिप्राय क्या है?" इससे वह बहुतों को भटकने देता है और बहुतों को सीधा मार्ग दिखा देता है, मगर इससे वह केवल अवज्ञाकारियों ही को भटकने देता है। (26)
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    जो अल्लाह की प्रतिज्ञा कोउसे सुदृढ़ करने के पश्चात भंग कर देते हैं और जिसे अल्लाह ने जोड़ने का आदेश दिया है उसे काट डालते हैं, औरज़मीन में बिगाड़ पैदा करते हैं, वही हैं जो घाटे में हैं।(27)
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    तुम अल्लाह के साथ अविश्वास की नीति कैसे अपनाते हो, जबकि तुम निर्जीव थे तो उसने तुम्हें जीवित किया, फिर वही तुम्हें मौत देता है, फिर वही तुम्हें जीवित करेगा, फिर उसी की ओर तुम्हें लौटना है? (28)
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    वही तो है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन की सारी चीज़ें पैदाकीं, फिर आकाश की ओर रुख़ कियाऔर ठीक तौर पर सात आकाश बनाए और वह हर चीज़ को जानता है। (29)
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    और याद करो जब तुम्हारे रब ने फ़रिश्तों से कहा कि "मैं धरती में (मनुष्य को) ख़लीफ़ा (सत्ताधारी) बनानेवाला हूँ।" उन्होंने कहा, "क्या उसमें उसको रखेगा, जो उसमें बिगाड़ पैदा करे और रक्तपात करे और हम तेरा गुणगान करते और तुझे पवित्र कहते हैं?" उसने कहा,"मैं जानता हूँ जो तुम नहीं जानते।" (30)
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    उसने (अल्लाह ने) आदम को सारे नाम सिखाए, फिर उन्हें फ़रिश्तों के सामने पेश किया और कहा, "अगर तुम सच्चे हो तो मुझे इनके नाम बताओ।" (31)
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    वे बोले, "पाक और महिमावान है तू! तूने जो कुछ हमें बतायाउसके सिवा हमें कोई ज्ञान नहीं। निस्संदेह तू सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है।" (32)
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    उसने (अल्लाह ने) कहा, "ऐ आदम! उन्हें उन लोगों के नाम बताओ।" फिर जब उसने उन्हें उनके नाम बता दिए तो (अल्लाह ने) कहा, "क्या मैंने तुमसे कहा न था कि मैं आकाशों और धरती की छिपी बातों को जानता हूँ और मैं जानता हूँ जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो और जो कुछ छिपाते हो।" (33)
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    और याद करो जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि "आदम को सजदा करो" तो, उन्होंने सजदा किया सिवाय इबलीस के; उसने इनकार कर दिया और लगा बड़ा बनने और काफ़िर हो रहा। (34)
_______________________________
    और हमने कहा, "ऐ आदम! तुम औरतुम्हारी पत्नी जन्नत में रहो और वहाँ जी भर बेरोक-टोक जहाँ से तुम दोनों का जी चाहे खाओ, लेकिन इस वृक्ष के पास न जाना, अन्यथा तुम ज़ालिम ठहरोगे।" (35)
_______________________________
    अन्ततः शैतान ने उन्हें वहाँ से फिसला दिया, फिर उन दोनों को वहाँ से निकलवाकर छोड़ा, जहाँ वे थे। हमने कहा कि "उतरो, तुम एक-दूसरे के शत्रु होगे और तुम्हें एक समयतक धरती में ठहरना और बिलसना है।" (36)
_______________________________
    फिर आदम ने अपने रब से कुछ शब्द पा लिए, तो अल्लाह ने उसकी तौबा क़बूल कर ली; निस्संदेह वही तौबा क़बूल करने वाला, अत्यन्त दयावान है। (37)
_______________________________
   हमने कहा, "तुम सब यहाँ से उतरो, फिर यदि तुम्हारे पास मेरी ओर से कोई मार्गदर्शन पहुँचे तो जिस किसी ने मेरे मार्गदर्शन का अनुसरण किया, तो ऐसे लोगों को न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे।" (38)
_______________________________
    और जिन लोगों ने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वही आग में पड़नेवाले हैं, वे उसमें सदैवरहेंगे। (39)
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   ऐ इसराईल की सन्तान! याद करो मेरे उस अनुग्रह को जो मैंने तुमपर किया था। और मेरीप्रतिज्ञा को पूरा करो, मैं तुमसे की हुई प्रतिज्ञा को पूरा करूँगा, और हाँ, मुझी से डरो। (40)
_______________________________
    और ईमान लाओ उस चीज़ पर जो मैंने उतारी है, जो उसकी पुष्टि में है, जो तुम्हारे पास है, और सबसे पहले तुम ही उसके इनकार करनेवाले न बनो। और मेरी आयतों को थोड़ा मूल्यप्राप्त करने का साधन न बनाओ, मुझसे ही तुम डरो। (41)
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    और सत्य में असत्य का घाल-मेल न करो और जानते-बूझते सत्य को मत छिपाओ । (42)
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   और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो और (मेरे समक्ष) झुकनेवालों के साथ झुको (43)
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    क्या तुम लोगों को तो नेकी और एहसान का उपदेश देते हो और अपने आपको भूल जाते हो, हालाँकि तुम किताब भी पढ़ते हो? फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते? (44)
_______________________________
   धैर्य और नमाज़ से मदद लो, और निस्संदेह यह (नमाज़) बहुत कठिन है, किन्तु उन लोगों के लिए नहीं जो विनम्र होते हैं;(45)
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    जो समझते हैं कि उन्हें अपने रब से मिलना है और उसी कीओर उन्हें पलटकर जाना है। (46)
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  ऐ इसराईल की सन्तान! याद करो मेरे उस अनुग्रह को जो मैंने तुमपर किया था और इसे भी कि मैंने तुम्हें सारे संसार पर श्रेष्ठता प्रदान की थी; (47)
_______________________________
    और डरो उस दिन से जब न कोई किसी की ओर से कुछ तावान भरेगा और न किसी की ओर से कोई सिफ़ारिश ही क़बूल की जाएगी और न किसी की ओर से कोई फ़िद्या (अर्थदंड) लिया जाएगाऔर न वे सहायता ही पा सकेंगे। (48)
_______________________________
    और याद करो जब हमने तुम्हें फ़िरऔनियों से छुटकारा दिलाया, जो तुम्हें अत्यन्त बुरी यातना देते थे, तुम्हारे बेटों को मार डालते थे और तुम्हारी स्त्रियों को जीवित रहने देते थे; और इसमें तुम्हारे रब की ओर से बड़ा अनुग्रह था। (49)
_______________________________
    याद करो जब हमने तुम्हें सागर में अलग-अलग चौड़े रास्ते से ले जाकर छुटकारा दिया और फ़िरऔनियों को तुम्हारी आँखों के सामने डूबो दिया। (50)
_______________________________
    और याद करो जब हमने मूसा सेचालीस रातों का वादा ठहराया तो उसके पीछे तुम बछड़े को अपना देवता बना बैठे, तुम अत्याचारी थे। (51)
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    फिर इसके पश्चात भी हमने तुम्हें क्षमा किया, ताकि तुमकृतज्ञता दिखलाओ। (52)
_______________________________
   और याद करो जब मूसा को हमनेकिताब और कसौटी प्रदान की, ताकि तुम मार्ग पा सको। (53)
_______________________________
   और जब मूसा ने अपनी क़ौम सेकहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! बछड़े को देवता बनाकर तुमने अपने ऊपर ज़ुल्म किया है, तो तुम अपने पैदा करनेवाले की ओरपलटो, अतः अपने लोगों को स्वयं क़त्ल करो। यही तुम्हारे पैदा करनेवाले की द्रष्टि में तुम्हारे लिए अच्छा है, फिर उसने तुम्हारी तौबा क़बूल कर ली। निस्संदेह वह बड़ा तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है।" (54)
_______________________________
    और याद करो जब तुमने कहा था, "ऐ मूसा, हम तुमपर ईमान नहीं लाएँगे जब तक अल्लाह को खुल्लम-खुल्ला न देख लें।" फिर एक कड़क ने तुम्हें आ दबोचा और तुम देखते रहे। (55)
_______________________________
    फिर तुम्हारे निर्जीव हो जाने के पश्चात हमने तुम्हें जिला उठाया, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ। (56)
_______________________________
   और हमने तुमपर बादलों की छाया की और तुमपर 'मन्न' और 'सलवा' उतारा - "खाओ, जो अच्छी पाक चीज़ें हमने तुम्हें प्रदान की हैं।" उन्होंने हमारा तो कुछ भी नहीं बिगाड़ा, बल्कि वे अपने ही ऊपर अत्याचार करते रहे। (57)
_______________________________
    और जब हमने कहा था, "इस बस्ती में प्रवेश करो, फिर उसमें से जहाँ से चाहो जी भर खाओ, और बस्ती के द्वार में सजदागुज़ार बनकर प्रवेश करो और कहो, "छूट है।" हम तुम्हारीख़ताओं को क्षमा कर देंगे और अच्छे से अच्छा काम करनेवालों पर हम और अधिक अनुग्रह करेंगे।" (58)
_______________________________
    फिर जो बात उनसे कही गई थी ज़ालिमों ने उसे दूसरी बात सेबदल दिया। अन्ततः ज़ालिमों पर हमने, जो अवज्ञा वे कर रहे थे उसके कारण, आकाश से यातना उतारी। (59)
_______________________________
    और याद करो जब मूसा ने अपनीक़ौम के लिए पानी की प्रार्थना की तो हमने कहा,"चट्टान पर अपनी लाठी मारो," तो उससे बारह स्रोत फूट निकलेऔर हर गरोह ने अपना-अपना घाट जान लिया - "खाओ और पियो अल्लाह का दिया और धरती में बिगाड़ फैलाते न फिरो।" (60)
_______________________________
   और याद करो जब तुमने कहा था,"ऐ मूसा, हम एक ही प्रकार के खाने पर कदापि संतोष नहीं कर सकते, अतः हमारे लिए अपने रब से प्रार्थना करो कि वह हमारेवास्ते धरती की उपज से साग-पात और ककड़ियाँ और लहसुनऔर मसूर और प्याज़ निकाले।" और मूसा ने कहा, "क्या तुम जो घटिया चीज़ है उसको उससे बदलकर लेना चाहते हो जो उत्तमहै? किसी नगर में उतरो, फिर जो कुछ तुमने माँगा है, तुम्हें मिल जाएगा" - और उनपर अपमान औरहीन दशा थोप दी गई, और वे अल्लाह के प्रकोप के भागी हुए। यह इसलिए कि वे अल्लाह की आयतों का इनकार करते रहे और नबियों की अकारण हत्या करते थे। यह इसलिए कि उन्होंने अवज्ञा की और वे सीमा का उल्लंघन करते रहे।(61)
_______________________________
    निस्संदेह, ईमानवाले और जोयहूदी हुए और ईसाई और साबिई, जो भी अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाया और अच्छा कर्म किया तो ऐसे लोगों का उनके अपने रब के पास (अच्छा) बदला है, उनको न तो कोई भय होगा और नवे शोकाकुल होंगे - (62)
_______________________________
    और याद करो जब हमने इस हाल में कि तूर पर्वत को तुम्हारेऊपर ऊँचा कर रखा था, तुमसे दृढ़ वचन लिया था, "जो चीज़ हमने तुम्हें दी है उसे मज़बूती के साथ पकड़ो और जो कुछ उसमें है उसे याद रखो ताकि तुम बच सको।" (63)
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    फिर इसके पश्चात भी तुम फिर गए, तो यदि अल्लाह की कृपाऔर उसकी दयालुता तुम पर न होती तो तुम घाटे में पड़ गए होते। (64)
_______________________________
    और तुम उन लोगों को तो जानते ही हो जिन्होंने तुममें से 'सब्त' के दिन के मामले में मर्यादा का उल्लंघन किया था, तो हमने उनसे कह दिया, "बन्दर हो जाओ, धिक्कारे और फिटकारे हुए!" (65)
_______________________________
    फिर हमने इसे सामनेवालों और बाद के लोगों के लिए शिक्षा-सामग्री और डर रखनेवालों के लिए नसीहत बनाकर छोड़ा। (66)
_______________________________
    और याद करो जब मूसा ने अपनीक़ौम से कहा, "निश्चय ही अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि एक गाय ज़ब्ह करो।" कहने लगे, "क्या तुम हमसे परिहास करते हो?" उसने कहा, "मैं इससे अल्लाह की पनाह माँगता हूँ किजाहिल बनूँ।" (67)
_______________________________
    बोले, "हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हम पर स्पष्ट कर दे कि वह (गाय) कैसी हो?" उसने कहा, "वह कहता है कि वह ऐसी गाय हो जो न बूढ़ी हो, नबछिया, इनके बीच की रास हो; तो जो तुम्हें हुक्म दिया जा रहाहै, करो।" (68)
_______________________________
    कहने लगे, "हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हमें बता दे कि उसका रंग कैसा हो?" कहा, "वह कहता है कि वह गाय सुनहरी हो, गहरे चटकीले रंग की कि देखनेवालों को प्रसन्न कर देती हो।" (69)
_______________________________
   बोले, "हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हमें बता दे कि वह कैसी हो, गायों का निर्धारण हमारे लिए संदिग्ध हो रहा है। यदि अल्लाह ने चाहा तो हम अवश्य। पता लगा लेंगे।" (70)
_______________________________
    उसने कहा, " वह कहता है कि वह ऐसी गाय है जो सधाई हुई नहीं है कि भूमि जोतती हो, और न वह खेत को पानी देती है, ठीक-ठाक है, उसमें किसी दूसरे रंग की मिलावट नहीं है।" बोले,"अब तुमने ठीक बात बताई है।" फिर उन्होंने उसे ज़ब्ह किया,जबकि वे करना नहीं चाहते थे। (71)
_______________________________
    और याद करो जब तुमने एक व्यक्ति की हत्या कर दी, फिर उस सिलसिले में तुमने टाल-मटोल से काम लिया - जबकि जिसको तुम छिपा रहे थे, अल्लाह उसे खोल देनेवाला था। (72)
_______________________________
    तो हमने कहा, "उसे उसके एक हिस्से से मारो।" इस प्रकार अल्लाह मुर्दों को जीवित करता है और तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है, ताकि तुम समझो। (73)
_______________________________
    फिर इसके पश्चात भी तुम्हारे दिल कठोर हो गए, तो वे पत्थरों की तरह हो गए बल्कि उनसे भी अधिक कठोर; क्योंकि कुछ पत्थर ऐसे भी होते हैं जिनसे नहरें फूट निकलती हैं, और उनमें से कुछ ऐसे भी होते हैं कि फट जाते हैं तो उनमें से पानी निकलने लगता है और उनमें से कुछ ऐसे भी होते हैं जो अल्लाह के भय से गिर जाते हैं। और जो कुछ तुम कर रहे हो अल्लाह उससे बेख़बर नहीं है। (74)
_______________________________
    तो क्या तुम इस लालच में होकि वे तुम्हारी बात मान लेंगे, जबकि उनमें से कुछ लोग अल्लाह का कलाम सुनते रहे हैं, फिर उसे भली-भाँति समझ लेने के पश्चात जान-बूझकर उसमें परिवर्तन करते रहे? (75)
_______________________________
  और जब वे ईमान लानेवाले से मिलते हैं तो कहते हैं, "हम भी ईमान रखते हैं", और जब आपस में एक-दूसरे से एकान्त में मिलतेहैं तो कहते हैं, "क्या तुम उन्हें वे बातें, जो अल्लाह ने तुम पर खोलीं, बता देते हो कि वे उनके द्वारा तुम्हारे रब के यहाँ हुज्जत में तुम्हारा मुक़ाबिला करें? तो क्या तुम समझते नहीं!" (76)
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    क्या वे जानते नहीं कि अल्लाह वह सब कुछ जानता है, जोकुछ वे छिपाते और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं? (77)
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    और उनमें सामान्य बे पढ़े भी हैं जिन्हें किताब का ज्ञान नहीं है, बस कुछ कामनाओं एवं आशाओं को धर्म जानते हैं, और वे तो बस अटकल से काम लेते हैं। (78)
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    तो विनाश और तबाही है उन लोगों के लिए जो अपने हाथों से किताब लिखते हैं, फिर कहते हैं, "यह अल्लाह की ओर से है", ताकि उसके द्वारा थोड़ा मूल्य प्राप्त कर लें। तो तबाही है उनके लिए उसके कारण जो उनके हाथों ने लिखा और तबाही है उनके लिए उसके कारण जो वे कमा रहे हैं। (79)
_______________________________
    वे कहते हैं, "जहन्नम की आगहमें नहीं छू सकती, हाँ, कुछ गिने-चुने दिनों (सांसारिक कष्टों) की बात और है।" कहो,"क्या तुमने अल्लाह से कोई वचनले रखा है? फिर तो अल्लाह कदापि अपने वचन के विरुद्ध नहीं जा सकता? या तुम अल्लाह के ज़िम्मे डालकर ऐसी बात कहते हो जिसका तुम्हें ज्ञान नहीं? (80)
_______________________________
   क्यों नहीं; जिसने भी कोई बदी कमाई और उसकी ख़ताकारी ने उसे अपने घेरे में ले लिया, तोऐसे ही लोग आग (जहन्नम) में पड़नेवाले हैं; वे उसी में सदैव रहेंगे। (81)
_______________________________
    रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वहीजन्नतवाले हैं, वे सदैव उसी में रहेंगे।" (82)
_______________________________
    और याद करो जब इसराईल की सन्तान से हमने वचन लिया,"अल्लाह के अतिरिक्त किसी की बन्दगी न करोगे; और माँ-बाप केसाथ और नातेदारों के साथ और अनाथों और मुहताजों के साथ अच्छा व्यवहार करोगे; और यह कि लोगों से भली बात कहो और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो।" तो तुम फिर गए, बस तुममें से बचे थोड़े ही और तुम उपेक्षा की नीति ही अपनाए रहे।(83)
_______________________________
   और याद करो जब हमने तुमसे वचन लिया, "अपने ख़ून न बहाओगेऔर न अपने लोगों को अपनी बस्तियों से निकालोगे।" फिर तुमने इक़रार किया और तुम स्वयं इसके गवाह हो। (84)
_______________________________
   फिर तुम वही हो कि अपने लोगों की हत्या करते हो और अपने ही एक गरोह के लोगों को उनकी बस्तियों से निकालते हो;तुम गुनाह और ज़्यादती के साथउनके विरुद्ध एक-दूसरे के पृष्ठपोषक बन जाते हो; और यदि वे बन्दी बनकर तुम्हारे पास आते हैं, तो उनकी रिहाई के लिएफ़िद्ये (अर्थदंड) का लेन-देन करते हो जबकि उनको उनके घरों से निकालना ही तुम पर हराम था,तो क्या तुम किताब के एक हिस्से को मानते हो और एक को नहीं मानते? फिर तुममें जो ऐसा करें उनका बदला इसके सिवाऔर क्या हो सकता है कि सांसारिक जीवन में अपमान हो? और क़ियामत के दिन ऐसे लोगों को कठोर से कठोर यातना की ओर फेर दिया जाएगा। अल्लाह उससे बे ख़बर नहीं है जो कुछ तुम कर रहे हो।(85)
_______________________________
    यही वे लोग हैं जो आख़िरत के बदले सांसारिक जीवन के ख़रीदार हुए, तो न उनकी यातना हल्की की जाएगी और न उन्हें कोई सहायता पहुँच सकेगी। (86)
_______________________________
   और हमने मूसा को किताब दी थी, और उसके पश्चात आगे-पीछे निरन्तर रसूल भेजते रहे; और मरयम के बेटे ईसा को खुली-खुली निशानियाँ प्रदान कीं और पवित्र-आत्मा के द्वारा उसे शक्ति प्रदान की; तो यही तो हुआ कि जब भी कोई रसूल तुम्हारे पास वह कुछ लेकर आया जो तुम्हारे जी को पसन्द न था, तो तुम अकड़ बैठे, तो एक गरोह को तो तुमने झुठलाया और एक गरोह को क़त्ल करते रहे। (87)
_______________________________
    वे कहते हैं, "हमारे दिलों पर तो प्राकृतिक आवरण चढ़े हैं।" नहीं, बल्कि उनके इनकार के कारण अल्लाह ने उनपर लानत की है; अतः वे ईमान थोड़े ही लाएँगे। (88)
_______________________________
   और जब उनके पास एक किताब अल्लाह की ओर से आई है जो उसकीपुष्टि करती है जो उनके पास मौजूद है - और इससे पहले तो वे न माननेवाले लोगों पर विजय पाने के इच्छुक रहे हैं - फिर जब वह चीज़ उनके पास आ गई जिसेवे पहचान भी गए हैं, तो उसका इनकार कर बैठे; तो अल्लाह की फिटकार इनकार करने वालों पर! (89)
_______________________________
    क्या ही बुरी चीज़ है जिसके बदले उन्होंने अपनी जानों का सौदा किया, अर्थात जो कुछ अल्लाह ने उतारा है उसे सरकशी और इस अप्रियता के कारण नहीं मानते कि अल्लाह अपना फ़ज़्ल (कृपा) अपने बन्दों में से जिसपर चाहता हैक्यों उतारता है, अतः वे प्रकोप पर प्रकोप के अधिकारी हो गए हैं। और ऐसे इनकार करनेवालों के लिए अपमानजनक यातना है। (90)
_______________________________
    जब उनसे कहा जाता है,"अल्लाह ने जो कुछ उतारा है उस पर ईमान लाओ", तो कहते हैं, "हमतो उसपर ईमान रखते हैं जो हम पर उतरा है," और उसे मानने से इनकार करते हैं जो उसके पीछे है, जबकि वही सत्य है, उसकी पुष्टि करता है जो उनके पास है। कहो, "अच्छा तो इससे पहले अल्लाह के पैग़म्बरों की हत्या क्यों करते रहे हो, यदि तुम ईमानवाले हो?" (91)
_______________________________
    तुम्हारे पास मूसा खुली-खुली निशानियाँ लेकर आया, फिर भी उसके बाद तुम ज़ालिम बनकर बछड़े को देवता बना बैठे। (92)
_______________________________
    और याद करो जब हमने तुमसे वचन लिया और तूर को तुम्हारे ऊपर उठाए रखा था- "जो कुछ हमनेतुम्हें दिया है उसे मज़बूती से पकड़ो और सुनो।" वे बोले,"हमने सुना, किन्तु हमने माना नहीं।" उनके अविश्वास के कारणउनके दिलों में बछड़ा बस गया था। कहो, "यदि तुम ईमान वाले हो, तो कितना बुरा वह कर्म है जिसका हुक्म तुम्हारा ईमान तुम्हें देता है।"(93)
_______________________________
    कहो, "यदि अल्लाह के निकट आख़िरत का घर सारे इनसानों कोछोड़कर केवल तुम्हारे ही लिए है, फिर तो मृत्यु की कामना करो, यदि तुम सच्चे हो।" (94)
_______________________________
   अपने हाथों इन्होंने जो कुछ आगे भेजा है उसके कारण वे कदापि उसकी कामना न करेंगे; अल्लाह तो ज़ालिमों को भली-भाँति जानता है। (95)
_______________________________
    तुम उन्हें सब लोगों से बढ़कर जीवन का लोभी पाओगे, यहाँ तक कि वे इस सम्बन्ध में शिर्क करनेवालों से भी बढ़े हुए हैं। उनका तो प्रत्येक व्यक्ति यह इच्छा रखता है कि क्या ही अच्छा होता कि उसे हज़ार वर्ष की आयु मिले, जबकि यदि उसे यह आयु प्राप्त भी हो जाए तो भी वह अपने आपको यातना से नहीं बचा सकता। अल्लाह देखरहा है, जो कुछ वे कर रहे हैं। (96)
_______________________________
    कहो, "जो कोई जिबरील का शत्रु हो, (तो वह अल्लाह का शत्रु है) क्योंकि उसने तो उसे अल्लाह ही के हुक्म से तुम्हारे दिल पर उतारा है, जो उन (भविष्यवाणियों) के सर्वथाअनुकूल है जो उससे पहले से मौजूद हैं; और ईमानवालों के लिए मार्गदर्शन और शुभ-सूचना है। (97)
_______________________________
   जो कोई अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसके रसूलों और जिबरील और मीकाईल का शत्रु हो, तो ऐसे इनकार करनेवालों का अल्लाह शत्रु है।" (98)
_______________________________
   और हमने तुम्हारी ओर खुली-खुली आयतें उतारी हैं औरउनका इनकार तो बस वही लोग करते हैं जो उल्लंघनकारी हैं। (99)
_______________________________
   क्या यह उनकी निश्चित नीति है कि जब भी उन्होंने कोई वचन दिया तो उनके एक गरोह ने उसे उठा फेंका? बल्कि उनमें अधिकतर ईमान ही नहीं रखते।(100)
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